बिना अकल के नक़ल Akal Ke Bina Nakal बिना अकल के नक़ल Akal Ke Bina Nakal - एक बार की बात है।दो बहुत अच्छे मित्र थे।एक का नाम ,मोहन तथा दूसरे का नाम सोहन था . दोनों साथ- साथ खेलना, पढना व विद्यालय जाने जैसी क्रियाएँ साथ ही करते थे।
बिना अकल के नक़ल
Akal Ke Bina Nakal
बिना अकल के नक़ल Akal Ke Bina Nakal - एक बार की बात है।दो बहुत अच्छे मित्र थे।एक का नाम ,मोहन तथा दूसरे का नाम सोहन था . दोनों साथ- साथ खेलना, पढना व विद्यालय जाने जैसी क्रियाएँ साथ ही करते थे।उनकी एक व्यक्ति के साथ नहीं बनती थी।वह व्यक्ति उन दोनों का पड़ोसी था।एक रोज जब वे फुटबॉल खेल रहे थे तो उनकी फुटबॉल उसके सर पर जा लगी .वह व्यक्ति उनसे बहुत नाराज हुआ ,उसने उन्हें सबक
सीखाने के लिए एक योजना सोची।वह जनता था की उन्हें जब किसी काम को करने की चुनोती दी जाए तो वे उस काम को करने के लिए तत्पर हो जाते थे।
सीखाने के लिए एक योजना सोची।वह जनता था की उन्हें जब किसी काम को करने की चुनोती दी जाए तो वे उस काम को करने के लिए तत्पर हो जाते थे।
अगले दिन योजना अनुसार उसने उन दोनों को चिढाते हुए कहा,``पूरे दिन भर खेलने कूदने से कुछ नहीं होता अगर तुम दोनों किसी सेठ के यहाँ काम करके पैसे कमाकर दिखाओ तो में भी मानूं की तुम दोनों होशियार हो।``दोनों दोस्तों को उसकी बात का बहुत बुरा लगा।वे उस व्यक्ति का घमंड तोडना चाहते थे।इस लिए उन्होंने चुनौती को स्वीकार कर लिया।
अगले दिन वो किसी सेठ के यहाँ काम मांगने गए. पहले तो सेठ ने उनकी उम्र का हवाला देते हुए काम देने से मना कर दिया लेकिन बाद में उन दोनों के उदास चेहरे को देखते हुए उसने उन्हें काम दे दिया। काम था, सेठ की दूकान में भारी सामान को इथर-उधर ले जाना .उन दोनों की उम्र कम थी तो वे पहले दिन बहुत थक गए लेकिन अगले दिन उन्होंने एक योजना सोची .उन्होंने सेठ की दूकान में पुराने पड़े एक दरवाजे के नीचे चार छोटे-छोटे पहिए लगा लिए और फिर उस पर सामान लादकर ले जाते . ये सब देखकर वह व्यक्ति जलने लगा . उसे यह देखकर यह आश्चर्य हुआ की किस तरह से ये छोटे बच्चे भारी सामान को भी बड़ी आसानी से ले जाते हैं . उसने केवल यह देखा की वे दोनों दोस्त केवल बोर को धक्के मारकर सामान को इधर- उधर ले जाते हैं . उसने उनकी नकल करने की सोची ताकि उसे भी सामान उठाने में ज्यादा जोर न लगाना पड़े .
अगले दिन उसने बोरे में सामान डालकर धक्का देना प्रारम्भ किया . लेकिन ज्यादा जोर लगाने की वजह से बोरा फट गया और सारा सामान बिखर गया .सेठ यह देखकर नाराज हुआ और उसने झट से उसे नौकरी से निकाल दिया . इसलिए कहा गया है कि नक़ल के लिए भी अक्ल की जरुरत होती है.
आशुतोष खांडल
विद्यालय - स्वामी सम्भुगिरी उच्च माध्यमिक विद्यालय - कनवारी ( चुरू)
पता - ग्राम पोस्ट - कनवारी तहसील - रतनगढ़ जिला - चुरू ( राजस्थान )
bahut badhiya kaha bhut achchi sikh, nakal karne ke liye bhi akal ki jarurat hoti hain.
जवाब देंहटाएंवाह!छा गए आशुतोष. आशा है तुम आगे भी कहानी लिखने के लिए प्रेरित होओगे.
जवाब देंहटाएंराजेन्द्र कुमार शास्त्री