जीवन का कड़वा सच Jiwan Ka Kadwa Sach जीवन का कड़वा सच Jiwan Ka Kadwa Sach कम बोले ,सच बोलो और सच भी मधुर बोलो . अपने आचरण का ध्यान रखो . सत्य बोलना चाहिये, प्रिय बोलना चाहिये, सत्य किन्तु अप्रिय नहीं बोलना चाहिये।प्रिय किन्तु असत्य नहीं बोलना चाहिये ; यही सनातन धर्म है .
जीवन का कड़वा सच
Jiwan Ka Kadwa Sach
जीवन का कड़वा सच Jiwan Ka Kadwa Sach - एक आदमी का लड़का बुरी सांगत से बिगड़ गया था .वह बात - बात पर गाली बकता था .पिता इससे बहुत परेशान था .वह अपने लड़के को बहुत समझाता किन्तु लड़के की आदत नहीं छुटती थी .एक दिन लड़के को बुलाकर कहा कि तुम जब भी गाली दो पीछे बने हुए लकड़ी के छप्पर में एक कील थोक दिया करो .लड़के ने बात मान ली .दूसरे दिन पिता ने पूछा - आज कितने कील ठोके .लड़के ने जबाब दिया पचास .फिर अगले दिन पिता ने पूछा तो जबाब मिला चालीस . ऐसे ही ज्यों - ज्यों दिन बीतते गए ,कीलों की संख्या कम होती गयी .एक दिन लड़के ने कहा - आज मैंने एक भी कील नहीं ठोकी .आज मैंने किसी को गाली ही नहीं दी .
कुछ दिन बीत गए पिता ने लड़के को फिर बुलाया और कहा जिस दिन तुम कोई नेक काम करना एक कील उखाड़ देना .समय बीतता गया .एक दिन लड़के ने पिता जी से कहा जो मैंने कील ठोके थे सभी निकाल दिए .पिता खुश हुआ .एक दिन पिता लड़के को लेकर उस छप्पर में गया और कहा तुमने जो कील लगाये थे उन्हें उखाड़ तो दिए लेकिन देखो ,उसने निशान तो बने रहे न .तब लड़का बोला निशान तो रह हो जाते हैं .तब पिता ने समझाया कसूर करके माफ़ी माँग लो तब भी कसक तो रह जाता है ,जैसी ही निशान हैं .
कोई भी काम अच्छा हो या बुरा उसका प्रभाव अवश्य पड़ता है .गलती न करना भगवान् की निशानी है .गलती करके सुधारना इंसान की निशानी है और गलती पर गलती करते रहना शैतान की निशानी है .बुराई और नेकी का निशान तो रहता ही है .इसीलिए शास्त्र कहता है कोई भी काम करने से पहले विचार करना चाहिए .सच में मीठा बोले - कड़वा सच भी जहर के समान होता है .किसी एक आँख वाले को काना कह दो तो उसे बहुत बुरा लगता ,हालांकि वह सच है .
बुराई की छाप इंसान पर जरुर रहती है .गलत काम करते समय दो आदमी को जरुर पता लग जाता है .एक चोरी करने वाले चोर को दूसरे जिसके घर चोरी होती है .तीसरा भी होता है ,जिसे दुनिया भूल जाती है .वह है ईश्वर ,जो सब देखता रहता है .आत्मा भी गलत काम करते समय टोंकती है ,लेकिन मनुष्य उसकी अनसुनी कर देता है .कम बोले ,सच बोलो और सच भी मधुर बोलो .कहावत है कि -
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् , न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम् ।
प्रियं च नानृतम् ब्रूयात् , एष धर्मः सनातन: ॥
अर्थ - सत्य बोलना चाहिये, प्रिय बोलना चाहिये, सत्य किन्तु अप्रिय नहीं बोलना चाहिये।प्रिय किन्तु असत्य नहीं बोलना चाहिये ; यही सनातन धर्म है .
इसलिए हम सभी को अपने आचरण पर ध्यान रखना चाहिए .सत्य ,मधुरता के साथ बोलो .
कहानी से शिक्षा -
- कम बोले ,सच बोलो और सच भी मधुर बोलो .
- अपने आचरण का ध्यान रखो .
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