नाच उठा हाथी

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नाच उठा हाथी कौत्स मुनि को पुत्र हुआ .उसका नाम रखा वत्स . पाँच साल का होने पर उसका उपनयन कर दिया .कावेरी नदी के तट पर आश्रम था .चारो ओर हरियाली . वन में पशु पक्षी खूब मौज करते थे .भृगु भी अपने छात्रों से बड़ा स्नेह करते थे .उन्हें तरह तरह की कथाएँ सुनकर शिक्षा देते थे .

नाच उठा हाथी


कौत्स मुनि को पुत्र हुआ .उसका नाम रखा वत्स . पाँच साल का होने पर उसका उपनयन कर दिया .कावेरी नदी के तट पर आश्रम था .चारो ओर हरियाली . वन में पशु पक्षी खूब मौज करते थे .भृगु भी अपने छात्रों से बड़ा स्नेह करते थे .उन्हें तरह तरह की कथाएँ सुनकर शिक्षा देते थे .वत्स अपने गुरु को देखता .उसके लिए गुरु देवता के समान थे .वह उनकी देखा - देखी आचरण करता था .गुरु जी तीन बार कावेरी में स्नान किया करते थे .वत्स भी वैसा ही करता .मन लगाकर पढता और महर्षि भृगु की खूब सेवा करता . 

नाच उठा हाथी
नाच उठा हाथी
लगन से वत्स ने शीघ्र ही पढ़ाई पूरी कर ली .इसके बाद वत्स कल्याण तीर्थ में आ गया .वहाँ तप करने लगे .मोह - ममता से ऊपर उठ गए .वह ध्यान में ऐसे लगे रहते कि अपने आपको भूल जाते .विचरते मृग वहाँ ऐसे आ जाते और उनके शरीर से सींघ रगड़ते लगते .किन्तु वत्स मुनि को उनका भान न हो पाता. वहाँ के वनवासी यह दृश्य देखकर आश्चर्य करने लगे .वे उन्हें मृगश्रृंग कहकर पुकारने लगे . 

वत्स मुनि को तपस्या करते करते बरसों बीत गए .एक दिन भगवान् वृष्णु प्रकट हुए . मृग श्रृंग तो ध्यान में समाधी लगाये हुए थे .उन्हें कुछ भी पता न चला .यह देखकर विष्णु ने उनके माथे को छुवा .मुनि की चेतना जैसे लौट आई .भगवान् विष्णु बोले - वत्स ,मैं तुमसे प्रसन्न हूँ .तुम जो चाहो ,वर माँग लो . 

मुनि मृगश्रृंग के शरीर में रोमांच हो गया .नेत्रों से ख़ुशी के आँसू झरने लगे .उन्होंने बार - बार भगवान् को नमन किया .भगवान् ने फिर कहा - "मृगश्रृंग ,तुमने ब्रह्मचर्यं का पालन किया हैं .बिना किसी लोभ के तुमने मेरी तपस्या की है .अब तुम गृहस्थ धर्म का पालन करो .माता - पिता की सेवा करो . "

मृगश्रृंग ने भगवान् के चरणों में मस्तक रख दिया .बोले - "आपके दर्शन पाकर मैं धन्य हुआ .मैं आपके आदेश का पालन अवश्य करूँगा ." 

भगवान् विष्णु अंतर्ध्यान हो गए .मुनि मृगश्रृंग अपने घर ,माता - पिता के पास पहुंचे .माता - पिता को उन्होंने भगवान् के दर्शन होने की बात बताई .यह सुनकर वे दोनों फूलें नहीं समाये .उन्होंने पुत्र को आशीर्वाद दिया और बोले - "तुम्हारा जन्म धन्य हुआ .बड़े - बड़े त्यागी - तपस्वी भी उनके दर्शन को तरसते हैं ,पर वह तुम्हे सहज प्राप्त हो गया .अब तुम वैसा करो ,जैसा भगवन विष्णु ने कहा है ." 

कुत्स मुनि अपने पुत्र के लिए सही कन्या खोजने निकले .भोजपुर में उक्थ्य मुनि की एक कन्या थी .उनका नाम था सुब्रता .वह गुणवान और सुन्दर थी .धर्म कर्म में बहुत रूचि रखती थी .नित्य कावेरी में स्नान करती .संध्या भजन करती .कुत्स मुनि ने उसे देखा ,तो अपने पुत्र के लिए उचित समझा .उन्होंने सुव्रता का हाथ अपने पुत्र के लिए माँगा . 

कुत्स मुनि की बात सुनकर ,सुब्रता के पिता को बहुत आनंद हुआ .उन्होंने सुब्रता की सहमति लेकर हाँ कर दी .एक दिन सुब्रता अपनी सखियों के साथ कावेरी स्नान को जा रही थी .अचानक एक जंगली हाथी नदी से बाहर आया .सूंड उठाकर वह उन कन्याओं की ओर झपटा .वे चिल्लाती हुई ,भाग खड़ी हुई .भागते - भागते चारों लडकियाँ एक कुएँ में जा गिरी .कुएँ में जल नहीं था .वह झाड़ - झंकाड़ से ढका था .उन लड़कियों को इतना सदमा लगा कि वह अचेत हो गयी . 

कुछ समय ,उनके कन्याओं के माता - पिता खोजते हुए वहाँ आये .किसी तरह उन्होंने कन्याओं को बाहर निकाला .कन्याओं को निर्जीव पाकर रोने कल्पने लगे .तभी मृगश्रृंग वहाँ आये .उन्होंने धाडस बंधाते हुए कहा - "मैं इन कन्याओं को जीवित कर दूंगा .आप धैर्य रखो . "

मुनि मृगश्रृंग कावेरी के जल में खड़े हो गए .वह सूर्य की ओर मुख करके ,भुजाओं को उठाकर स्तुति करने लगे .कुछ ही देर वह भयंकर हाथी जल से निकला .चिंघाड़ता हुआ मुनि की ओर झपटा .किन्तु मुनि एकदम शांत भाव से स्तुति करते रहे .मुनि के निकट आने पर हाथी शांत हो गया .लगा ,जैसे मुनि को प्रणाम कर रहा हो .हाथी ने सूंड से पकड़कर मुनि को अपनी पीठ पर बैठा लिटा . 

मुनि ने हाथ में जल लिया .संकल्प करते हुए कहा - मैं अपना आधा पुण्य तुझे देता हूँ . 

जैसे कोई चमत्कार हुआ .हाथी प्रसन्नता से खिल उठा .मुनि ने हाथी के मस्तक पर धीरे - धीर हाथ फेरा .तभी क्या देखता है कि उस जीव ने हाथी का शरीर त्याग दिया . 

वह देवता के रूप में प्रकट हो गया .उसने मुनि की स्तुति की और बार - बार धन्यवाद दिया .उसने बताया कि शाप के कारण उसे पशु की योनी में आना पड़ा था .अब वह स्वर्ग को जा रहा है . 

मुनि मृगश्रृंग फिर से सूर्य की ओर मुख करके स्तुति करने लगे .यमराज प्रकट हुए .उन्होंने मुनि से कहा कि वर माँग लो .मुनि ने हाथ जोड़कर यमराज को प्रणाम किया .उनसे प्रार्थना की कि आप इन चारों कन्याओं को जीवित करने की कृपा कीजिये . 

यमराज ने तथास्तु कहा .फिर वह अंतर्ध्यान हो गए .  कन्याओं की चेतना लौट आई .उन्हें लग रहा था ,जैसे वे सोकर उठी हैं .उन्होंने यम - लोक का आँखों देखा हाल अपनी माताओं को सुनाया .कुछ दिन बाद सुब्रता का विवाह मुनि मृगश्रृंग से हो गया .उस वेदी ओअर उसकी तीन सखियों का विवाह भी किये गए .वे भी अपनी - अपनी ससुराल जाकर ,सुख से रहने लगी . मृगश्रृंग और सुब्रता ने लम्बी आयु पायी . 


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