दान की महिमा दान की महिमा पर कहानी Glory of charity दान की महिमा बहुत है .सुपात्र को दिया गया कभी निष्फल नहीं होता .इसीलिए हमेशा सुपात्र को ही दान देना चाहिए .दान का पात्र कौन है ? यह विचार करना चाहिए .जैसे किसी अभावग्रस्त विद्यार्थी को पढने के लिए दान देना सुफल है .किसी अनाथ विधवा के बच्चों की सहायता के लिए दान देना चाहिए .इसी प्रकार संसार की भलाई करने वाले शास्त्रज्ञ को दान देना पुण्य कार्य है .
दान की महिमा
Glory of charity
दान की महिमा दान की महिमा पर कहानी Glory of charity - बात बहुत पुरानी है .श्रीराम जी के वन में चले जाने के बाद राजा दशरथ विलाप करने लगे और महारानी कौशल्या को एक घटना सुनाई .एक बार देवताओं और असुरों में भीषण युद्ध हो रहा था .देवताओं की सहायता के लिए दशरथ जी भी युध्य करने के लिए गए .युद्ध में बेहद घायल महाराजा धरती पर गिर पड़े.उनके बचने की कोई उम्मीद नहीं थी .उसी समय गिद्ध जटायु उनके पास आया और बोला - महाराज ! हमारे पास किसी की दी हुई अमृत की बूँदें हैं .उसे लेकर मैं क्या करूँगा . उसे लाता हूँ और आपको पिला देता हूँ .उससे आप ठीक हो जायेंगे .
![]() |
दान की महिमा |
वह अमृत लाया और राजा को पिला दिया .राजा ठीक हो गए .उन्होंने जटायु से कहा - मैं इसका बदला कैसे चुकाऊंगा .आ मुझसे जो माँगना चाहें ,माँग लें .यदि मेरे पास वह चीज़ होगी तो मैं उसे अवश्य दूंगा .बहुत आग्रह करने पर जटायु ने कहा - मैं अब वृद्ध हो चूका हूँ .मेरी सेवा के लिए आप अपना एक बालक दे दीजिये .यह सुनकर राजा बहुत दुखी हुए और बोले आपने माँगा भी तो ऐसी चीज़ जो मेरे पास है ही नहीं .मेरे तो कोई संतान ही नहीं हैं .जटायु ने कहा - जब आपके पास नहीं हैं तो कहाँ से देंगे .इसमें दुखी होने की क्या बात है ? जब होगी तब दे देना .दशरथ ने कहा - जब भी मेरी पहली संतान होगी ,उसे मैं तुम्हारी सेवा के लिए भेजूंगा .
दशरथ ने यह कथा सुनाते हुए रानी कौशल्या से कहा - राम को तो मैंने पैदा होने के पहले ही दान दे दिया था .इस समय राम हमारे पास नहीं है .वे अवश्य जटायु के पास पहुँच गए होंगे .उसी समय रावन पंचवटी से सीता का अपहरण करके ले जा रहा था .जटायु वहाँ मौजूद थे .उन्होंने सीता को छुड़ाने के लिए रावन से युद्ध किया ,किन्तु रावन ने तलवार से जटायु के पंख काट दिए और वह जमीन पर गिरा सीताजी को खोजते हुए भाई लक्ष्मण के साथ जब श्रीराम वहाँ पहुंचे तो उन्होंने घायल जटायु को देखा और पुत्र की भाँती उनका सिर अपना गोद में ले लिया .जटायु के प्राण श्रीराम की गोद में ही निकले .इसके बाद उन्होंने पुत्र की भाँती जटायु का अंतिम संस्कार भी किया और गोदावरी में उन्होंने जलांजलि भी दी .
इसीलिए कहा गया है कि दान की महिमा बहुत है .सुपात्र को दिया गया कभी निष्फल नहीं होता .इसीलिए हमेशा सुपात्र को ही दान देना चाहिए .दान का पात्र कौन है ? यह विचार करना चाहिए .जैसे किसी अभावग्रस्त विद्यार्थी को पढने के लिए दान देना सुफल है .किसी अनाथ विधवा के बच्चों की सहायता के लिए दान देना चाहिए .इसी प्रकार संसार की भलाई करने वाले शास्त्रज्ञ को दान देना पुण्य कार्य है .
COMMENTS