अतीत में दबे पाँव

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अतीत में दबे पाँव ओम थानवी
Ateet Mein Dabe Paon Om Thanvi


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अतीत में दबे पाँव ओम थानवी जी द्वारा लिखा गया एक यात्रा वित्रांत है .इतिहास हमें दिशा दे सकता है तो ऐतिहासिक नगर सभ्यता के विकास को दिशा दे सकते हैं . इसी सन्दर्भ में यह रचना ओम थानवी की यात्रा वृतांत और रिपोर्ट का मिला - जुला रूप है ,जो अब तक के ज्ञान में भारतीय भूमि ही नहीं विश्व फलक पर घटित सभ्यता की सबसे प्राचीन घटना को उठने ही सुनियोजित ढंग से पुनर्जीवित करता है ,जितने सुनियोजित ढंग से उसके दो महान नगर मोहनजोदड़ो और हड़प्पा बसे थे .लेखक ने टीलों ,स्नानागार ,मृद्भांड ,कुँवों - तालाबों ,महानों व मार्गों से प्राप्त पुरातत्व में मानव - संस्कृति की उस समझदार - भावनात्मक घटना को बड़े इत्मीनान से खोज - खोज कर हमें दिखलाया हैं ,जिससे हम इतिहास की सपाट वर्णात्मक से ग्रस्त होने की जगह इतिहास बोध से तर होते हैं . सिन्धु सभ्यता के सबसे बड़े शहर मोहनजोदड़ो की नगर योजना अभिभूत करती है .वह आज के सेक्टर मार्का कॉलोनी के नीरस नियोजन की अपेक्षा ज्यादा रचनात्मक थी ,क्योंकि उसकी बसावट शहर के खुद विकसने का अवकाश भी छोड़ कर चलती थी .पुरातत्व के निष्प्राण पड़े चिन्हों से के एक ज़माने में ,आबाद घरो ,लोगों और उनकी सामाजिक - धार्मिक - राजनितिक व आर्थिक गतिविधियों का पुख्ता अनुमान किया जा सकता है .वह सभ्यता ताकत के बल पर शासित होने की जगह आपसी समझ से अनुशासित थी .उसमें भव्यता थी ,पर आडम्बर नहीं था . उसकी खूबी उसका सौन्दर्यबोध था ,जो राजपोषित या धर्मपोषित न होकर समाज पोषित था .अतीत की ऐसी कहानियों के स्मारक चिन्हों का आधुनिक व्यवस्था के विकास - अभियानों की भेंट चढ़ते जाना भी लेखक को कचोटता है .


अतीत में दबे पाँव ओम थानवी प्रश्न उत्तर अभ्यास atit me dabe pav question and answer in hindi NCERT Solutions class-12 Hindi Core Ch03 Ateet Mein Dabe Paavan - 



प्र.१.‘सिन्धु सभ्यता साधन सम्पन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था |’ प्रस्तुत कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?

उ.१. दूसरी जगहों पर राजतंत्र या धर्मतंत्र की ताकत का प्रदर्शन करने वाले महल ,उपासना स्थल ,मूर्तियाँ या पिरामिड आदि मिलते हैं .हड़प्पा संस्कृत में न तो भव्य राजप्रसाद मिलते हैं ,न ही मंदिर न राजाओं और महंतों की समाधियाँ .मोहनजोदड़ो सिन्धु सभ्यता का सबसे बड़ा शहर ही न नहीं था बल्कि उसके साधनों और व्यवस्थाओं को देखते हुए सबसे समृद्ध शहर माना गया है .इसमें भव्यता का आडम्बर न होने के कारण इतिहासकारों ने इसकी समपन्नता की बात कम की है .

प्र.२.‘सिन्धु सभ्यता की खूबी उसका सौन्दर्य बोध है जो राजपोषित न होकर समाज-पोषित था।‘ ऐसा क्यों कहा गया है?

उ.२. सिन्धु सभ्यता के सम्बन्ध में इतिहासकार शासन या सामाजिक प्रबंध को समझने की कोशिश कर रहे हैं .वहाँ अनुशासन जरुर था ,पर ताकत के बल पर नहीं .वे मानते है कि  कोई सैन्य सत्ता शायद नहीं न रही हो .मगर कोई अनुशासन  जरुर था ,जो नगर योजना ,वास्तुशिल्प ,मुहर - कुप्पों ,पानी या साफ़ सफाई जैसी सामाजिक व्यवस्थाओं आदि में एकरुपता को कायम रखे हुए था .इसीलिए लेखक को सिन्धु सभ्यता में राज - पोषित या धर्म पोषित सौन्दर्य बोध न देखकर समाज - पोषित देखा .

प्र.4.‘यह सच है कि यहाँ किसी आँगन की टूटी-फूटी सीढ़ियाँ अब आप को कहीं नहीं ले जातीं,वे आकाश की तरफ अधूरी रह जाती हैं। लेकिन उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं, वहाँ से आप इतिहास को नहीं उस के पार झाँक रहे हैं।’ इसके पीछे लेखक का क्या आशय है?

उ.४. लेखक का मानना है कि सिन्धु सभ्यता आज भले ही अजायबघरों की शोभा बढ़ा रहा हो ,शहर जहाँ था ,अब भी वही है .आप इसकी किसी भी दिवार पर पीठ टिकाकर सुस्ता सकते हैं .वह एक खंडहर ही क्यों न हो ,किसी घर की देहरी पर पाँव रखकर आप सहम सकते है .रसोई की खिड़की पर खड़े होकर उसकी गंध महसूस कर सकते है .शहर के किसी सुनसान मार्ग पर कान देकर उस बैलगाड़ी की रुन - झुन सुन सकते हैं ,जिसे अपने पुरातत्व की तस्वीरों में मिट्टी की गंध में देखा है .सिन्धु सभ्यता पर खड़े होकर आप यह अनुभव कर सकते हैं कि आप दुनिया की छत पर है ,वहाँ से आप इतिहास को नहीं ,उसके पर झाँक रहे हैं .

प्र.7.  हम  सिन्धु  सभ्यता को जल-संस्कृति कैसे कह सकते हैं ?

उ.७. सिन्धु सभ्यता में अच्छी खेती होती थी .पुरातत्वी शिरीन रत्नागार का मानना है कि सिन्धु सभ्यता वासी कुँवों से सिंचाई कर लेते थे .दूसरे मोहनजोदड़ो किसी खुदाई में नहर होने के प्रमाण नहीं लिखे है .बारिश उस समय काफी होती रही .लेखक का मानना है कि बारिश घटने या कुँवों के अत्याधिक इस्तेमाल से भू - तल जल भी पहुँच से दूर चला गया .हो सकता है कि पानी के अभाव में यह इलाका उजड़ा और उसके साथ सिन्धु घाटी की समृद्ध सभ्यता थी ,जो की सिन्धु सभ्यता में जल की बहुतायत थी ,इसीलिए उसे जल संस्कृति कह सकते हैं . 


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