नया रास्ता उपन्यास का सारांश summary

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नया रास्ता उपन्यास का सारांश 
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मीनू अपने माँ - बाप की बड़ी बेटी है .वह साधारण नैन नक्स और छोटे कद की लड़की है .वह पढाई के प्रति
नया रास्ता
नया रास्ता 
विशेष सचेत रहती है और प्रत्येक कथा में प्रथम आती है .उपन्यास की कथा के प्रारंभ में ही रोहित परीक्षा परिणाम का अखबार लेकर आता है .मीनू प्रथम श्रेणी और उसकी सहेली द्वित्य श्रेणी में पास होती है .मीनू विवाह योग्य हो गयी है ,लेकिन जो भी लड़के उसे देखने आते हैं ,उसके सांवले रंग के कारण अस्वीकार कर देते हैं .इस कारण मीनू हीन भावना से ग्रसित रहती है .लड़की देखने के क्रम में मेरठ के मायाराम जी अपने पुत्र अमित के साथ आते हैं .अमित को मीनू बहुत पसंद आई .उसकी पढाई - लिखाई और घर के कामों में कुशलता अच्छी लगी .अमित ऐसी लड़की चाहता था जो उसके माता - पिता के साथ ठीक तरह से रह सके और उन्हें सम्मान दे .अमित के पिता ने मीनू के पिता जी दयाराम जी को घर पहुँचकर उत्तर देने की बात कही .घर पहुँचने ही देखा कि शहर के धनी व्यक्ति धनीमल जी अपनी बेटी सरिता का रिश्ता लेकर आये हैं .साथ में फोटो और पाँच लाख रुपये दहेज़ देने का वचन .मायाराम स्वयं दहेज़ विरोधी थे .उन्हें भी मीनू पसंद आई थी .लेकिन पत्नी के बातों में आकर वे सरिता के साथ अमित का विवाह करने के तैयार  हो गए .दयाराम जी को इनकार कैसे किया जाय ,इसके लिए अमित की माँ  ने उक्ति सुझाई कि मीनू का विवाह का प्रस्ताव न रखकर बल्कि उसकी छोटी बहन आशा को स्वीकार किया जाय ,इससे दयाराम स्वयं ही विवाह से इनकार कर देंगे .
मीनू के परिवार में सभी मयाराम जी के पत्र का इंतज़ार कर रहे थे .पत्र पढ़कर सभी उदास हो गए .मीनू के अन्दर और हीन भावना घर कर गयी .दयाराम जी ने कहा कि आशा तो मीनू तो छोटी है ,मीनू के रहते आशा का विवाह कैसे कर सकते हैं .अंत में घर में सभी की मर्ज़ी देखकर वे मेरठ गए .वहाँ पर घर में नौकर के सिवाय कोई नहीं था तभी सेठ धनीमल चमचमाती कार से उतरे .उन्ही से पता चला कि उनकी बेटी सरिता का विवाह अमित से तय हुआ है .वे चुपचाप मेरठ से लौट आये .घर पर सारी बातें बताने पर सबका ह्रदय मायाराम जी के परिवार के घृणा से भर गया .
मीनू का मन भी बहुत आहत हुआ .उसने विवाह का सपना देखना छोड़ दिया .बचपन से ही उसकी इच्छा वकील बनने की थी .अतः अब वह वकालत की पढ़ाई करेगी .माँ - बाप भी उसकी बातें से प्रभावित होकर वकालत पढने की अनुमति दे दी .उसने मेरठ के लॉ कॉलेज में प्रवेश लिया .प्रत्येक वर्ष वह प्रथम श्रेणी में पास होती रही .इसी बीच उसकी नीलिमा एवं छोटी बहन आशा का भी विवाह हो गया था .वकालत की पढ़ाई के दौरान ही मीनू के पिता के तबियत ख़राब हुई ,तो मीनू घर और पढ़ाई के बीच अच्छा तालमेल मिलाकर चलती थी .वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह मेरठ में ही वकालत करने लगी .वकालत में मीनू की धाक जम गयी .

इधर अमित ,मीनू से शादी करना चाहता था ,पर धनीमल सेठ के धन के प्रभाव के कारण उसकी माँ को सरिता की फोटो पसंद आई .अमित जानता था कि उसके माता - पिता सेठ धनीमल के धन के आकर्षण के जाल में फँस गए हैं .उसने अपनी माँ को समझने का प्रयास किया ,लेकिन माँ ने एक न सुनी .अमित की माँ अपने बेटे की भावनाओं की कद्र नहीं करती थी .लेकिन दयाराम जी ने महसूस किया कि अमित के साथ जबरदस्ती की जा रही हैं ,उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि वे अपने बेटे की जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं .अतः मायाराम जी ने सेठ धनीमल की बेटी के साथ इनकार कर दिया .
सरिता से रिश्ता टूट जाने के बाद अमित ने विवाह से इनकार कर देती है .इसी बीच अमित का एक्सीडेंट हो जाता है और वह अस्पताल में भर्ती हो जाता है .नीलिमा का पति सुरेन्द्र अमित का दोस्त है .अतः नीलिमा ने अमित के एक्सीडेंट की खबर मीनू को देती है .मीनू अमित से मिलने अस्पताल जाती है .वहाँ वह अमित के प्रति सहानुभूति से भर जाती है और दोनों के बीच मन की मैल ख़त्म हो जाती है .
मायाराम जी ने अपनी भूल का पछतावा होता है और वे मीनू के पिता के घर जाकर माफ़ी मांगते हैं और मीनू के विवाह का प्रस्ताव रखते हैं .मीनू भी बाद में विवाह के लिए तैयार हो जाती है .मीनू का विवाह अमित से हो जाता है .इसी प्रकार मीनू - अपनी मेहनत और लगन से वकालत में सफलता प्राप्त करती हैं .जीवन में जटिल परिस्थितियों को जीत कर वह समाज में अपनी हीन स्थिति से आगे बढ़कर अपना आत्म -निर्भर जीवन बनाती है .


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