रीतिकाल का नामकरण वर्गीकरण

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रीतिकाल का नामकरण वर्गीकरण
ritikal ka naamkaran  ritikal ka vargikaran


हिंदी साहित्य में रीतिकाल सन १६४३ से १८४३ ई .तक माना जाता है .इस काल तक हिंदी काव्य अपनी प्रौढ़ता को प्राप्त कर चुका था .कवियों ने काव्यांगों ,रस ,छंद ,अलंकार ,शब्द शक्तियों आदि के विवेचनों की प्रवृत्ति उभर कर सामने आ चुकी .इस प्रकार के विवेचन हेतु लिखे गए लक्षण ग्रन्थ रीति ग्रन्थ कहे गए .


रीतिकाल की परिभाषा रीति का अर्थ - 

विशेष पद रचना . अर्थात काव्य के शोभाकारक शब्द अर्थ के धर्मों से युक्त पद रचना ही रीति है .शब्द अलंकार ध्वनि आदि जिससे शब्द सौन्दर्य बढ़ता है रीति के बहिरंग तत्व हैं .गुण ,रस ,ध्वनि,वाक्,चातुर्य अलंकार काव्य्दोश आदि अर्थमय सौन्दर्य का बोध कराते हैं .इनको रीति का अन्तरंग तत्व माना जाता है .इन रीति ग्रंथों के कर्ता,भावुक ,सहृदय और निर्गुण कवि थे .अतः उनके द्वारा रसों और अलंकारों के सरस और स्पर्शी उदाहरण प्रस्तुत किये गए .आचार्य शुक्ल ने इस युग में रीति ग्रंथों की अधिकता देखकर ही उसका नाम रीतिकाल रखा .


रीतिकाल का नामकरण -

 विभिन्न विद्वानों ने रीतिकाल को अनेक नामों से पुकारा है .मिश्रबन्धु ने इसे अलंकृत काल कहा है .आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इसे श्रृंगार काल कहा है .यह नाम तत्कालीन सम्पूर्ण रचनाओं को समेट कर चलता है .इस नाम की व्यापकता ,सार्थकता को आचार्य शुक्ल ने भी स्वीकार करते हुए लिखा है कि - वास्तव में श्रृंगार और वीर दो रसों की कविता इस काल में हुई ,प्रधानता श्रृंगार रस की रही . इससे इस काल को रस के विचार से कोई श्रृंगार काल कहे तो कह सकता है .श्रृंगार की प्रवृत्ति उस समय समाज और वातावरण की प्रवृत्ति थी .काव्य को अंक इसे अछूता नहीं हैं .डॉ.रसाल इसे कला काल कहते हैं .उनका कहना है कि काव्य ने कला पक्ष का जितना अधिक उत्कर्ष इस काल में हुआ उतना पहले कभी नहीं हो सका .परन्तु आचार्य शुक्ल ने रीति ग्रंथों की बहुलता के आधार पर इसका नामकरण रीतिकाल रखा .यह उस समय रीति (लक्षण ,उदाहरण ) की शैली की एक मुख्य प्रवृत्ति को प्रकट करती है .

रीतिकाल का वर्गीकरण - 

दो धाराएँ - रीतिकाल में दो काव्य धाराएँ हैं - १. रीतिबद्ध काव्य धारा २. रीतिमुक्त काव्यधारा .जिन कवियों ने उपयुक्त लक्षण लक्ष्य वाली पद्धति अपनाई वे रीति परंपरा से बंधे होने के कारण रीति कहलाये और जिन्होंने इस पद्धति का तिरस्कार करके काव्य रचना की और सहज स्वाभाविक पढ़ती अपनाई वे रीतिमुक्त  (रीति पद्धति से अलग) रहने वाले कहलाये .

रीतिबद्ध  -

कवियों में भी दो भेद हैं - १ रीतिबद्ध २. रीतिसिद्ध . रीतिबद्ध वे हैं जिन्होंने लक्षण लक्ष्य ग्रन्थ वाली पद्धति दोनों लिखे ,किन्तु जिन्होंने विभिन्न काव्यांगों के लक्षण तो नहीं लिखें पर अपनी काव्य रचना के समय इन लक्षणों का ध्यान अवश्य रखा ,जिससे उनकी कविताओं इन विभिन्न लक्षणों का उदाहरण जैसी लगती है वे रीतिसिद्ध कहलायें .

रीतिसिद्ध - 

इस धारा के कवियों ने रीति शैली को पृष्ठभूमि में रखा है .इस कवियों ने न तो लक्षण ग्रंथों का निर्माण किया है ,न अलग से नायिका भेद का वर्णन किया है .बिहारी ,बेनी ,यजनेश ,कृष्णकवि आदि है .बिहारी इस धारा के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं .

रीतिमुक्त धारा - 

इन कवियों ने रीति को महत्व न देकर पृथक प्रकृति को संचालित किया है .रसखान ,घनानंद ,शेख ,आलम ,बोधा इस धारा के प्रमुख कवि है .

विडियो के रूप में देखें - 





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COMMENTS

Leave a Reply: 3
  1. एक नायक व् एक नायिका को केंद्र में रखकर की गई छंदोबद्ध रचना रीतिकालीन रचना कहलाती है
    जब नायक व् नायिका ईश्वर का स्वरूप होते हैं तब वह रचना भक्तिकालिक रचना कहलाती है
    वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा काण्ड में सीता के वियोग में राम का विलाप भक्ति के साथ साथ रीतिकाल का भी पुट मिलता है.....

    जवाब देंहटाएं
  2. रीति का वर्गीकरण

    जवाब देंहटाएं
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