प्रयोगवाद की विशेषताएँ प्रवृत्तियाँ

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प्रयोगवाद की विशेषताएँ प्रवृत्तियाँ 
prayogvad ki visheshta prayogvad ki pravritiyan


प्रगतिवाद काव्य की प्रतिक्रियास्वरुप कवियों ने एक नयी प्रकार की कविता को जन्म दिया ,जिसे प्रयोगवाद की संज्ञा दी गयी है.काव्य में अनेक प्रकार के नए - नए कलात्मक प्रयोग किये गए .इसीलिए इस कविता को प्रयोगवादी कविता कहा गया .प्रयोगवादी काव्य में शैलीगत तथा व्यंजनागत नवीन प्रयोगों की प्रधानता होती है . डॉ. गणपतिचन्द्र गुप्त के शब्दों में - "नयी कविता ,नए समाज के नए मानव की नयी वृत्तियों की नयी अभिव्यक्ति नयी शब्दावली में हैं ,जो नए पाठकों के नए दिमाग पर नए ढंग से नया प्रभाव उत्पन्न करती हैं ."

प्रगतिवाद की तरह प्रयोगवाद भी छायावाद के व्यक्तिवाद का विद्रोह स्वर है .इस धारा के कवियों में एकमत और एक स्वर नहीं है .जीवन ,धर्म ,समाज ,राजनीति आदि के विषय में ही नहीं .कथावस्तु ,शैली ,छंद तथा तुक और कवि धर्म के विषय में भी व्यापक मतभेद है .इनमें यदि कोई समानता है तो केवल इस अर्थ में कि सबने भाषा शैली के क्षेत्र में अनेक प्रयोग किये हैं .प्रयोगवादी कवि कहते हैं कि प्रयोग उनका साध्य या इष्ट नहीं है अपितु इस काव्य के धारा के माध्यम से उन्हें जो नवीन सत्य की उपलब्धि हुई है ,उसे समष्टि तक पहुँचने के चेष्टा करना लक्ष्य है ,यही उनका प्रयोग भी है .इन कवियों ने कविता के भाव जगत के उपेक्षा करके शिल्प तथा वैचित्र्य विधान की ओर अधिक ध्यान दिया है .

हिन्दी में प्रयोगवादी कविता का जन्म साधारर्ण सन १९४३ में प्रकाशित तार सप्तक नामक संग्रह से माना जाता है .इसके संपादक अज्ञेय है .इसमें सात कवियों मुक्तिबोध ,नेमीचन्द्र, भारत भूषण ,प्रभाकर माचवे ,गिरिजाकुमार माथुर ,राम विलास शर्मा तथा अज्ञेय की कविताओं का संकलन किया गया है .सन १९५१ में दूसरे तार सप्तक में अन्य सात कवियों की कविताओं का संकलन किया गया .ये कवि थे - भावानीप्रसाद मिश्र ,शकुन्तला माथुर ,हरिनारायण व्यास ,शमशेरबहादुर सिंह ,नरेशकुमार मेहता ,रघुवीर सहाय और धर्मवीर भारती .इन संग्रहों के अतिरिक्त अज्ञेय द्वारा सम्पादित 'प्रतीक' मासिक पत्रिका में प्रयोगवादी कविताओं का व्यापक प्रकाशन हुआ है .साप्ताहिक हिंदुस्तान ,धर्मयुग ,निबंध निकष ,विविधा आदि पत्रिकाओं के माध्यम से भी आज अनेक प्रयोगवादी कविताएँ प्रकाशित हो रही हैं .

प्रयोगवादी कविता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं - 

१.अहंवादी व्यक्तिवाद - 

प्रयोगवादी कवियों ने वैयतिक खीझ ,कुंठा ,झुंझलाहट आदि को अपने अपनी कविता का केन्द्र्विंदु बनाया है . 

२. नग्न यथार्थवाद - 

प्रयोगवादी कवियों ने समाज की अशिल्लता , अस्वस्थता ,नग्नता आदि को यथार्थ रूप में प्रदर्शित किया है .यह साहित्य जनता की भावनाओं को परिष्कृत नहीं कर पाया ,वरन इसने साहित्य में गन्दगी लाकर पाठक के दिमाग को विकृत किया . 

३. अति बौद्धिकता - 

प्रयोगवादी काव्य अति बौद्धिकता से ग्रसित है .बौद्धिकता के कारण इस काव्य में निरसता और शुष्कता आ गयी है .यहाँ सांस्कृतिक ढाँचा चरमरा गया है .इस काव्य में ह्रदय की कोमल वृत्तियों की अवहेलना हुई है . 

४. उपमानों की नवीनता - 

प्रयोगवादी काव्य की सबसे बड़ी विशेषता उप्मानिं की नवीनता में हैं .इन कवियों ने पुराने रूपकों और उपमानों को छोड़कर नवीनता का समावेश किया है .जैसे - 
मेरे सपने इस तरह टूट गए जैसे भूंजा हुआ पापड 

५. निराशावाद - 

प्रयोगवादी कवि नैराश्य के कुहरे से घिरे रहते हैं .जीवन और जगत के प्रति वे निराशावादी होते हैं . 

६. सामान्य विषयों को महत्व - 

प्रयोगवादी कविता में कवि की परिधि व्यापक है .कविता में अब चाय की प्याली ,गरम पकोड़ा ,ठंडा बियर ,चूड़ी का टुकड़ा आदि का वर्णन किया गया है . 
प्रयोगवादी कवि को सुंदरी की भुजाएं चीड की लकड़ी की भांति दिखाई देती है ,उसके होंठ फिरोजी प्रतीत होते हैं .इन फिरोजी होंठों पर बर्बाद मेरी जिंदगी प्रतीत होती हैं .जब वह क्रुद्ध होती हैं तो उसके कपोल सूखे हो जाते हैं जैसे विद्युत् से जलता स्टोव होता है . 

७. अलंकार, छंद विधान और भाषा  - 

अलंकारों की दृष्टि से उन्होंने रूपक ,उपमा ,उत्प्रेक्षा आदि का प्रयोग किया है .प्रयोगवादी काव्य में छंदों का बंधन नहीं है .ये कवि मुक्तक छंद का ही विशेष प्रयोग किये हैं .प्रयोगवादी काव्य की भाषा सरल, सरस खड़ीबोली तथा शैली मुक्तक है .आजकल भाषा के नवीन और सुन्दर रूपों का प्रयोग मिलता है. इनकी भाषा में व्याकरण की अवहेलना दिखाई पड़ती है .इस नवीन भाषा में विज्ञान,भूगोल ,दर्शन ,गणित आदि के शब्द मिलते हैं . 


अज्ञेय ,मुक्तिबोध ,भवानीप्रसाद मिश्र ,गिरिजाकुमार माथुर ,नरेश मेहता ,रामविलाश शर्मा ,धर्मवीर भरती आदि प्रमुख प्रयोगवादी कवि हैं .जिसमें - अज्ञेय कृत भग्नदूत ,चिंता ,इत्यलम ,हरि घास पर क्षण भर ,बावरा अहेरी ,इंद्र धनुष रौंदे हुए ,भावनी प्रसाद मिश्र कृत गीत फरोश कविता संग्रह ,गिरिजाकुमार माथुर कृत मंजीर ,नाश और निर्माण तथा धूप के धान तथा धर्मवीर भारती कृत ठंडा लोहा युग आदि काव्य और कविता संग्रह प्रमुख हैं .


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COMMENTS

Leave a Reply: 2
  1. कवि युगल सुखमंगल सिंह और अजीत श्रीवास्तव के विचार -
    परिवर्तन लाने के लिए प्रयोगवाद एक सफल प्रयास था। लेकिन बाद में, प्रयोगवाद के नाम पर, विचारों के बोझ में लिप्त होने की प्रवृत्ति थी, जिसके परिणामस्वरूप कविता को जनता से काट दिया गया।
    यही कारण है कि प्रयोगवाद केवल बड़े पुस्तकालयों में कविताओं तक ही सीमित है।
    Thoughts of poet duo Sukhmangal Singh and Ajit Srivastava -
    Experimentalism was a successful attempt to bring about change. But later, in the name of experimentalism, there was a tendency to indulge in the burden of ideas, which resulted in the poem being cut off from the public.
    This is why experimentalism is limited to poems only in large libraries.

    जवाब देंहटाएं
  2. Prayogvad ki koi do visheshtaen likhiye

    जवाब देंहटाएं
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