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छायावाद की विशेषताएँ प्रवृत्तियां
chhayavad ki visheshta chhayavad ki pravritiyan
छायावाद की विशेषताएँ प्रवृत्तियां chhayavad ki visheshta chhayavad ki pravritiyan - विदेशी शासन के अत्याचारों से उत्पन्न संघर्षमयी परिस्थितियों के विरोध में कवियों की पलायनवादी मनोवृति ने जिस काव्य शैली का सृजन किया उसे छायावाद की संज्ञा दी गयी .द्विवेदी युग की प्रतिक्रिया का परिणाम छायावाद है .द्विवेदी युग में राष्ट्रीयता के प्रबल स्वर में प्रेम और सौन्दर्य की कोमल भावनाएं दब सी गयी थी .इन सरस कोमल मनोवृतियों को व्यक्त करने के लिए कवि ह्रदय विद्रोह कर उठा .ह्रदय की अनुभूतियों तथा दार्शनिक विचारों की मार्मिक अभिव्यक्ति के परिणामस्वरूप ही छायावाद का जन्म हुआ .इस प्रकार छायावाद की प्रथम कविता का दर्शन हमें प्रसादजी के काव्य में मिलता है .उनका झरना छायावाद का प्रथम काव्य है .छायावाद का युग सन १९२० से १९४० तक माना गया है .छायावाद की विशेषताएँ निम्न है -
१. व्यक्तिवाद की प्रधानता -
हिंदी की छायावादी कविता की सबसे बड़ी विशेषता व्यक्तिवाद है .छायावादी कविता मूलतः व्यक्तिवाद की कविता है .विषयवस्तु की खोज में कवि बाहर नहीं अपने मन के भीतर झांकता है .इन कवियों में अपने व्यक्तित्व के प्रति अगाध विश्वास है .इस अतिशय विश्वास को बड़े उत्साह के साथ उसने भाव और काला में बाधकर अपने सुख - दुःख की अभिव्यक्ति की है .प्रसाद के आँसू तथा पन्त के उच्छ्वास में व्यक्तिवाद की ही अभिव्यक्ति हुई है .
२. प्रकृति चित्रण -
छायावादी कविता में प्रकृति प्रेम को इतना महत्व दिया गया है कि बहुत से लोग इसी को छायावाद कहते हैं . छायावाद में प्रकृति पर चेतना का आरोप किया गया है .प्रसाद ,पन्त ,निराला ,महादेवी आदि सभी छायावादी कवियों ने प्रकृति का नारी रूप में चित्रण कर अपने सौन्दर्य तथा प्रेम भाव की अभिव्यक्ति की है .
प्रसाद - पगली हा ! संभाल ले कैसे ,छूट पड़ा तेरा आँचल.
देख बिखरती है मणिराजी ,अरि उठा बेसुध चंचल .
३. नारी के सौन्दर्य का चित्रण -
छायावादी कवियों में नारी सौन्दर्य के प्रति विशेष आकर्षण है .इसमें सूक्षमता और शील है न कि रीतिकालीन कविता जैसी स्थूलता और नन्गता .प्रसाद ,पन्त ,निराला ,महादेवी वर्मा आदि सभी कवियों में यह भाव समान रूप से मिलता है .
नारी! तुम केवल श्रद्धा हो.
विश्वास-रजत-नग पगतल में।
पीयूष-स्रोत-सी बहा करो.
जीवन के सुंदर समतल में।
४. प्रेम चित्रण -
छायावादी कवियों के प्रेम चित्रण में कोई लुका छिपी नहीं है .क्योंकि इसमें स्थूल क्रिया व्यापारों का चित्रण नहीं मिलता है या न के बराबर मिलता है .यह चित्रण मानसिक स्टार तक सिमित है .अतः इसमें मिलन की अनुभुतीओं की अपेक्षा विरहानुभूति का व्यापक चित्रण है ,निराला की कविता स्नेह निर्भर बह गया है .पन्तकृत ग्रंथि तथा प्रसाद कृत आँसू एवं आत्मकथा में ऐसे ही प्रणय चित्रण है .
५. रहस्यवाद -
छायावादी कविता में रहस्यवाद एक आवश्यक प्रवृति है .यह प्रवृति हिंदी साहित्य की एक आदि प्रवृति रही है .इस कारण छायावाद के प्रत्येक कवि ने एक फैशन अथवा व्यक्तिगत रूचि से इस प्रवृति को ग्रहण किया . यदि निराला ने तत्व ज्ञान के कारण इसे अपनाया ,तो पन्त ने प्रक्तितिक सौन्दर्य अभिभूत होकर और महादेवी वर्मा ने अतिशय प्रेम और वेदना के कारण इसे तन मन में बसाया ,तो प्रसाद ने परम सत्ता को बाहरी संसार में खोज की दृष्टि से .
प्रसाद -
मधुराका मुस्काती थी पहले देखा जब तुमको
परिचित-से जाने कब के तुम लगे उसी क्षण हमको।
जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक पर स्मृति सी छायी
दुर्दिन में आँसू बन कर वह आज बरसने आई।
६. लाक्षणिकता -
छायावादी कविता में लाक्षणिकता का अभूतपूर्व सौन्दर्य भाव मिलता है .इन कवियों से सीधी सादी भाषा को ग्रहण कर लाक्षणिक एवं अप्रस्तुत विधानों द्वारा उसे सर्वाधिक मौलिक बनाया है .मूर्त में अमूर्त का विधान उनकी सबसे बड़ी विशेषता है .प्रसाद की कविता बीती विभावरी में लाक्षणिकता की लम्बी श्रृंखला है
बीती विभावरी जाग री!
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा नागरी!
खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा
किसलय का अंचल डोल रहा
लो यह लतिका भी भर लाई-
मधु मुकुल नवल रस गागरी
७. छंद विधान -
छंद के लिए भी छायावादी काव्य उल्लेखनीय है .इन कवियों ने मुक्तक छंद और ऋतूकान्त दोनों प्रकार की कविताएँ लिखी हैं .इसमें प्राचीन छंदों के प्रयोग के साथ - साथ नवीन छंदों के निर्माण की प्रवृति भी मिलती है .
८. अलंकार विधान -
छायावादी कवियो में हिंदी के प्राचीन अलंकारों के साथ - साथ अंगेजी साहित्य के दो अलंकारों मानवीकरण तथा विशेषण विप्रे का अधिकाधिक प्रयोग किया है .प्राकृतिक दृश्यों के चित्रण में मानवीकरण है .विशेषण विपर्याय में विशेषण को स्थान से हटाकर लाच्श्कों द्वारा दूसरी जगह आरोपित किया जाता है .
जैसे - तुम्हारी आँखों का बचपन ,खेलता जब अल्हड खेल .
इस प्रकार छायावादी काव्य श्रेष्ठ काव्य है .छायावादी काव्य को अनेक गणमान्य समीक्षकों ने खड़ीबोली काव्य का स्वर्णकाल कहा ,जो की उचित है .
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Chayavad ke cavaygat ki bisestao ka ullek kre
जवाब देंहटाएंVery very nice
हटाएंVery very nice
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सर आपके द्वारा लिखा गया छायावाद की विशेषताएं मुझे बहुत मदद किया छायावाद को समझने में आपने बहुत ही सरल शब्दों में लिखा जिस से कोई भी व्यक्ति समझ सके
जवाब देंहटाएंVery useful arti
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सर आपने छायावाद के बारे में बहुत ही सरल लिखा है मुझे इससे बहुत सहयोग मिला thank you
जवाब देंहटाएंविवेचना को बताइये
जवाब देंहटाएंChayavaad ki mukhya viseshta kyaa hai
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक धन्यवाद आपके कारण ही हमें छाया वाद के बारे में जानकारी प्राप्त हुई हैं ।
जवाब देंहटाएंbahut-bahut achcha likha hai / ham ise school ke chaatron ko bata sakte hain / dil se dhanywaad/
जवाब देंहटाएंChhayavad ke Kay vesesta hai
जवाब देंहटाएं👍👍😊😊😊😊😊
जवाब देंहटाएंchhayavad kal Hamen likhane tatha samajhne mein bahut madad mil raha hai isliye ki bahut Achcha hai
जवाब देंहटाएंहिंदी में ओन लाइन स्तरीय पत्रिका पद कर आनंद आया ।
जवाब देंहटाएंVartaman kavya aur chhayavad kavya ki visestao me antar batayen
जवाब देंहटाएंThank you so much
जवाब देंहटाएंThank you so much
जवाब देंहटाएंआप के द्वारा जो भी नोट्स मै देख रही हूँ बहुत सरल है ओर बढ़ने में sb समझ मे जल्द ही आ जाता है धन्यवाद
जवाब देंहटाएंIska PDF mil sakta hai kya
जवाब देंहटाएंYes
हटाएंChhaya vadodara ki wishes ta
हटाएंThank you so much sir itny achy sy smjany ky liye😩😭mujy kafi der sy smj nhi aarha tha but yh pdf pdker smj aagya jldii sy🙌🙏🙏
जवाब देंहटाएंVery helpful, Thank you so much.
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