भिखारी की आत्मकथा पर निबंध essay on bhikhari ki atmakatha Essay on Autobiography of a Beggar in Hindi bhikhari ni atmakatha essay on beggars in hindi bhikhari ki samasya in hindiमैं एक भिखारी हूँ . मेरी कहानी या आत्मकथा बहुत ही दुःख भरी है .उसे कहकर मैं दूसरों को दुःख दे सकता हूँ .
भिखारी की आत्मकथा पर निबंध
essay on bhikhari ki atmakatha
Essay on Autobiography of a Beggar in Hindi
bhikhari ki atmakatha भिखारी की आत्मकथा - मैं एक भिखारी हूँ . मेरी कहानी या आत्मकथा बहुत ही दुःख भरी है .उसे कहकर मैं दूसरों को दुःख दे सकता हूँ . पेट बहुत पापी है .यह जो न कराये वह थोडा है .उसी को भरने के लिए लोग क्या क्या नहीं करते हैं .मैं भी इस पापी पेट को भरने के लिए सुबह से साम तक दरवाजे दरवाजे माँगता फिरता हूँ .कोई मुझे फटकारता है ,कोई गालियाँ देता हैं ,कोई कोई मेरी ओर आँख तक उठाता है .कभी किसी को थोड़ी दया आई भी तो वह बड़ी उपेक्षा से कुछ पैसे या खाने का समान फेंक देता है .मैं मान अपमान भूल चूका हूँ .जो भी रुखा सुखा मिलता है ,उसी को खाकर अपना पेट भरता हूँ .
अपमान ही जीवन है -
मुझे यदि भीख नहीं मिलती हैं तो कूड़ों के ढेर में कुत्तों के साथ छीना - झपटी भी करता हूँ .लोग सम्मान और
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भिखारी |
फुटपाथ पर मेरा जन्म -
मैं रास्ते के किनारे खड़ा रहता हूँ .हाथ फैलाये भीख माँगता हूँ .किसी की निगाह मुझ गरीब पर नहीं पड़ती है . कभी कभी कोई व्यक्ति बड़ी उपेक्षा से कुछ पैसे फेंक देता है और आगे बढ़ जाता है .किसी को मेरे जीवन के बारे में गंभीरता से सोचने की फुर्सत नहीं है .मेरा जन्म भी रास्ते में ही हुआ होगा .मुझे मेरे पिता के बारे में ज्ञात नहीं है .बचपन में मैं एक फुटपाथ पर खेला करता था .मेरी माँ भी भीख माँगा करती थी .वह भीख माँगकर कर मेरा और अपना गुजारा करती थी .मेरी माँ के मरने पर मैं भीख मांग कर अकेले ही जीवनयापन कर रहा हूँ .
भीख माँगना एक कला -
वैसे जीवन में भीख माँगना एक कला है .इसमें तरह - तरह के नाटक करने पड़ते हैं . अपने दुःख के बारे में बढ़ा चढ़ाकर सामने वाले से कहना पड़ता है .उन्हें कैसे बेवकूफ बनाया जाय. मैंने अपने वर्तमान में जीता हूँ .मैं न अतीत में जीता हूँ और न भविष्य में .मुझे केवल इतना याद रहता है कि सब कुछ छोड़कर मुझे भीख माँगनी है . मैं अपने भीख माँगने के कर्म से लज्जित हूँ लेकिन मुझे कोई अन्य सहारा नहीं दिख रहा है .अतः सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने मुझ भिक्षुक के बारे में सही ही कहा है -
वह आता-
दो टूक कलेजे के करता पछताता
पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को-- भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता--
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
बहुत अच्छी लेकिन भिकारी या अमीर इंसान के घर जन्म लेना पाने हाथ में नहीं लेकिन अमीर बनना बिलकुल अपने हाथ में हैं लोग हमेशा परिस्थिति को ही दोष देते हैं और मेहनत करेने से पीछे हटते हैं, लेकिन मैं यह सोचता हु की परिस्थिति चाहे कैसी भी हो अगर इंसान मेहनत करे तो अपने सपनों को जरुर पूरा करता हैं.
जवाब देंहटाएंvry emotional a lot of tears in my eyes during reading of this it remind me that uncle who is on the road and not able to work this world Will be happy if we help the poor beggers not those who r able to work but those who r not able to work ....
जवाब देंहटाएंहमे अभी पूरी जानकारी नही है कि मैं अपनी कबिता कैसे प्रकाशित करू
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