सम्वाद प्रसंग-द्बितीय

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मीडिया का परिसर बड़ा व्यापक है । आम जिंदगियों पर इसका प्रभाव देखने को मिलता है । इन सभी चीजों को ध्यान में रखते हुए मीडि़या का आकलन बहुत जरूरी है । मीडिया से संबंधित विभिन्न रचनाओं को संग्रह कर भारतीय जन संचार संस्थान , ढेंकानाल ने निबंध संग्रह 'सम्वाद प्रसंग-द्बितीय' का प्रकाशन किया है ।

संचार माध्यम के विभिन्न दिशाओं का आकलन व विश्लेषण करता 'सम्वाद प्रसंग- द्वितीय'

पुस्तक समीक्षा

यह कहा जाता है कि पत्रकारिता के माध्यम से जो शब्द उकेरे जाते हैं वह कमल-स्याही से नहीं बल्कि आत्मा की आग-पानी से लिखे जाते हैं । क्योंकि पत्रकारिता साधना है और आंतरिक शक्ति पर आधारित कोई भी संघर्ष संचार माध्यम के बिना चलाया नहीं जा सकता है । मीडिया का परिसर बड़ा व्यापक है । आम जिंदगियों पर इसका प्रभाव देखने को मिलता है । इन सभी चीजों को ध्यान में रखते हुए मीडि़या का आकलन बहुत जरूरी है । मीडिया से संबंधित विभिन्न रचनाओं  को संग्रह कर भारतीय जन संचार संस्थान , ढेंकानाल ने निबंध संग्रह 'सम्वाद प्रसंग-द्बितीय' का प्रकाशन किया है । 

पच्चीस आलेख शामिल - 

संवाद प्रसंग- द्वितीय
संवाद प्रसंग- द्वितीय
विभिन्न आखबारों तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित मीडिया से संबंधित 25 आलेखों को इसमें शामिल किया गया है । स्वतंत्रता से पहले मीडिया की भूमिका, उसके बाद मीडिया की लोकप्रियता तथा वर्तमान मीडिया की स्थिति के संबंध में विभिन्न आलेखों में विस्तार से उल्लेख है । संचार माध्यम की  भाषा शैली, मीडिया की नीति तथा समाजिक दायित्व और कर्तव्य, सम्वाद और साहित्य में संपर्क, पत्रकारिता का धर्म, अनुवाद की भूमिका आदि विषयों से संबंधित विभिन्न लेखों को इस निबंध संग्रह में स्थान मिला है  । यह किताब केवल पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए लाभकारी नहीं बल्कि इस पेशे से जुड़े सभी लोगों के लिए उपयोगी है । 

स्वतंत्रता या प्रकाशनीयता - 

प्रख्यात लेखक मनोज दास से लेकर डा.राधानाथ रथ आदि के आलेखों ने इसे अधिक पठनीय बनाया है । मनोज दास ने अपने लेख 'समाचार-पत्र, स्वतंत्रता और संत्रासवाद' के माध्यम से आजकल संचार माध्यम में स्वतंत्रता के नाम पर प्रकाशित कईं समाचारों की प्रकाशनीयता पर सवाल उठाया है । उन्होंने उल्लेख किया है कि बाहरी दुनिया से ज्यादा हमारी अंतरात्मा  में कुसंस्कार भरे हैं । इसीलिए अंतरात्मा के स्वमूल्यांकन की आवश्यकता है ।  वहीं 'दैनिक समाज' के पूर्व सम्पादक  डा. राधानाथ रथ ने 'वो निर्मल पत्रकारिता कहां?' के माध्यम से संचार माध्यम में निर्मलता को लेकर प्रश्न उठाया है । उन्होंने लिखा है कि स्वतंत्रता से पहले पत्रकारिता एक  महान उद्देश्य था लेकिन अब स्वार्थपरायणता की बलि चढ़ रहा है मशाल स्वरूप जलने वाला कलम । ब्रह्मपुर विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के पूर्व मुख्य डा. प्रदीप महापात्र ने 1936 से 2016 तक पत्रकारिता के विकास के संबंध में चर्चा की है । संचार माध्यम में आए बदलावों के विषय में उन्होंने विर्मश किया है । 

संचार माध्यम का सामाजिक दायित्व - 

विशिष्ट साहित्यकार हरप्रसाद दास ने 'भाषा, साहित्य, समाचारपत्र-विमर्श निर्माण' के माध्यम से पत्रकारिता की भाषा, व्याकरण, ओड़िया साहित्य के विभिन्न दिशाओं को उजागर किया । डा. मृणाल चटर्जी ने 'संचार माध्यम की स्वतंत्रता और सामाजिक दायित्व' के माध्यम से मीडिया से जुड़े विभिन्न कानून, भारतीय प्रेस परिषद की भूमिका, संचार माध्यम की विश्वसनीय आदि विषयों पर प्रकाश डाला है । इसके अलावा संचार माध्यम की नीति (डा.रवि रंजन साहू), संसदीय धर्मनिरपेक्षता और संचार माध्यम (अरूण पंडा), भ्रष्टाचार को मिटाने में संचार माध्यम की भूमिका( अभय द्विवेदी) आदि लेखों ने संवाद प्रसंद-द्वितीय को अधिक पठनीय बना दिया है । यह उम्मीद और विश्वास है कि संचार माध्यम के विभिन्न विषयों का आकलन करने में यह पुस्तक खास भूमिका का निर्वहन करेगी और यह पत्रकारिका के पेशे से जुड़े हर इंसान की सोच में एक बदलाव जरूर लाएगा ।  भारतीय जन संचार संस्थान, ढेंकानाल की रजत जयंती के अवसर पर क्षेत्रीय निदेशक डा. मृणाल चटर्जी के सम्पादन में इस पुस्तक का प्रकाशन हुआ है । 2003 में इसका पहला भाग 'सम्वाद प्रसंग' प्रकाशित हो चुका है । 



यह समीक्षा इतिश्री सिंह राठौर जी द्वारा लिखी गयी है . वर्तमान में आप हिंदी दैनिक नवभारत के साथ जुड़ी हुई हैं. दैनिक हिंदी देशबंधु के लिए कईं लेख लिखे , इसके अलावा इतिश्री जी ने 50 भारतीय प्रख्यात व्यंग्य चित्रकर के तहत 50 कार्टूनिस्टों जीवनी पर लिखे लेखों का अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद किया. इतिश्री अमीर खुसरों तथा मंटों की रचनाओं के काफी प्रभावित हैं.

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