आषाढ़ का एक दिन नाटक का उद्देश्य

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ashadh ka ek din uddeshya आषाढ़ का एक दिन नाटक का उद्देश्य आषाढ़ का एक दिन नाटक में नाटककार मोहन राकेश जी ने भौतिक दर्शन और प्रवृत्तिमार्ग और निवृति मार्ग के घनीभूत द्वन्द का ही चित्रण किया है .

आषाढ़ का एक दिन नाटक का उद्देश्य

षाढ़ का एक दिन नाटक में नाटककार मोहन राकेश जी  ने भौतिक दर्शन और प्रवृत्तिमार्ग और निवृति मार्ग के घनीभूत द्वन्द का ही चित्रण किया है .नाटककार मोहन राकेश जी ने दिखाया है कि जीवन में भोग कुछ समय तक मानव मन को अपनी ओर आकृष्ट तो किये रहते हैं किन्तु अंत में वे अपना महत्व खो देते हैं ,क्योंकि वे सत्य नहीं क्षणिक हैं .भोगों के प्रति मानव मन का आकर्षण क्षणिक होता है .निश्चिय ही प्रवृत्ति की अपेक्षा निवृत्ति मार्ग का अधिक प्रभाव रहता हैं . नाटक में भौतिकवादी चार्वाक दर्शन और बौद्ध दर्शन के द्वन्द को भी चित्रित किया गया हैं । मोहन राकेश मुख्यतः यथार्थ पर आधारित नाटकों के नाटककार हैं। वह पश्चिमी विद्वानों की विचारधारा से भी प्रभावित हैं, इसलिए उनकी रचनाओं में यह प्रभाव साफ़-साफ़ दिखाई देता है। राकेश जी की रचनाओं में मुख्य रूप से मनुष्य का आन्तरिक द्वन्द्व, पुरुष की स्वयं को श्रेष्ठ समझने की मानसिकता और उसकी इस वृत्ति की शिकार नारी की दयनीय स्थिति के चित्रों के दर्शन होते हैं। उनके नाटक 'आषाढ़ का एक दिन' में भी यही सब दिखाया गया है।

प्रवृत्ति और निवृत्ति मार्ग का द्वन्द 

आषाढ़ का एक दिन नाटक का उद्देश्य
आषाढ़ का एक दिन नाटक के प्रमुख पात्र कालिदास ,मल्लिका और विलोम के जीवन दर्शन में मूलतः भिन्नता है . कालिदास जहाँ प्रवृति से उबकर निवृति की ओर अग्रसर होते हैं ,मल्लिका प्रवृति के मार्ग पर ही विवश होकर रह जाति हैं .वास्तव में ,कालिदास और मल्लिका एवं विलोम का द्वन्द आकर्षण औचित्य का द्वन्द है ,आसक्ति और अनाशक्ति का द्वन्द है.नाटक का कथानक एक ऐसे ऐतिहासिक काल पर आधारित है जिसे हम दर्शन का संधिकाल कह सकते हैं .
 
आषाढ़ का एक दिन नाटक के दो प्रमुख पात्र कालिदास और मल्लिका क्रमशः प्रवृति और निवृति मार्ग के प्रतिनिधि पात्रों के रूप में ही चित्रित हुए हैं. नाटक का नायक कालिअस भोगों से उबकर सन्यास ग्रहण करता है . मल्लिका भौतिक आवश्यकतावश विलोम के साथ रहने विवश होती है . 

आषाढ़ का एक दिन नाटक कालिदास की कीर्ति और जीवन पर आधारित है . नाटककार के यथार्थ से अलग नहीं रह सकता . कथानक की नायिका मल्लिका को विलोम के सामने आत्म समर्पण करना ही पड़ता है . इस उद्देश्य को नाटककार ने प्रारंभ में मल्लिका की माँ अम्बिका के द्वारा उठाया है . 

यथार्थवादी दृष्टिकोण 

नाटककार ने सिद्ध किया है कि आवश्यकताओं की पूर्ति भावना से नहीं हो सकती है .आवश्यकताओं को यथार्थ में ही पूरा किया जा सकता है . मल्लिका को विलोम के समक्ष आत्म समर्पण करना ही पड़ता है .वह कालिदास से कहती है -
 
"तुम जीवन में तटस्थ  हो सकते हो ,परन्तु मैं तो अब तटस्थ नहीं हो सकती . क्या जीवन को तुम मेरी दृष्टि से देख सकते हो ? जानते हो मेरे जीवन के ये वर्ष कैसे व्यतीत हुए थे ? मैंने क्या देखा है ? क्या से क्या हुई हूँ ... इस जीवन को देखते हो ? पहचान सकते हो ?यह मल्लिका है . जो धीरे धीरे बड़ी हो रही है और माँ के स्थान पर अब मैं उसकी देखभाल करती हूँ ....यह मेरे अभाव की संतान है .

नाटक में कालिदास को नितान्त स्वार्थी दिखाया गया है। मल्लिका कालिदास से बहुत प्रेम करती है। वह सीधी और सरल हृदय की है। उसका प्रेम निःस्वार्थ है । वह अपने प्रेम के प्रति इतनी समर्पित है कि वह न तो अपनी माँ अम्बिका की बात सुनती है और न ही बदनामी से डरती है, परन्तु वैभव और सत्ता चाहने वाला कालिदास सब कुछ प्राप्त हो जाने के बाद मल्लिका को छोड़कर चला जाता है। इस प्रकार कालिदास के रूप में मोहन राकेश ने ऐसे पुरुष का चित्रण किया है जो अपने सुख-साधन और सत्ता के लिए कुछ भी कर सकता है। भावनाएँ उसका रास्ता नहीं रोक पातीं। जो मल्लिका कालिदास के लिए सबसे बुराई मोल लेती है उसे भी कालिदास उज्जयिनी जाकर भूल जाता है और गुप्त वंश की राजकुमारी प्रियंगुमंजरी से विवाह कर लेता है। यह सब जानते हुए भी मल्लिका जीवन भर कालिदास की भलाई ही करना चाहती है।

कालिदास की स्वार्थपरता 

कालिदास की स्वार्थपरता का पता तो तभी चल जाता है जब वह विलोम के उज्जयिनी जाने से पहले मल्लिका से विवाह के प्रस्ताव को टाल जाता है। बाद में जब कालिदास काश्मीर जाते समय भी मल्लिका से मिलने नहीं आता तब भी उसके अहंभाव का प्रमाण मिलता है ।
 
कालिदास के इसी अहंभाव की शिकार मल्लिका वर्षों तक सामाजिक उपेक्षा सहन करती है, परन्तु अंत में शेष जीवन विलोम के साथ बिताने का निर्णय लेती है और उसकी पुत्री को जन्म देती है। अंतिम अंक में हारा-थका विवश कालिदास जब उसके पास आता है और उसे विलोम की बच्ची की माँ के रूप में पाता है तो उसका अहं फिर जाग उठता है और वह मल्लिका को छोड़कर चला जाता है क्योंकि विलोम ने एक बार फिर उसके अहं को ठेस पहुँचाई थी । 

किसी भी बंधन में बँधकर रचनाकार का पूर्ण विकास असंभव है। इस उद्देश्य को भी मोहन राकेश ने इस नाटक के द्वारा व्यक्त किया है। मोहन राकेश ने स्वयं इसे भोगा था तभी तो अनेक पदों से त्यागपत्र देकर उन्होंने स्वतंत्र रूप से लिखना आरम्भ किया था । 'आषाढ़ का एक दिन' का नायक कालिदास कवि है और नाटककार ने प्रारम्भ में ही यह स्पष्ट कर दिया है कि कुछ राजकीय मुद्राओं के बदले वह गुप्त वंश के सम्राट के पास अपने कवि को बंधक नहीं रख सकता। जिसका उदाहरण यह संवाद है- “मैं राजकीय मुद्राओं से क्रीत होने के लिए नहीं हूँ।" इससे स्पष्ट हो जाता है कि वह राजकीय सम्मान को स्वीकार नहीं करना चाहता। मल्लिका जब उसे उज्जयिनी जाने को प्रेरित करती है तब भी वह यही कहता है कि उसे राजकीय सम्मान की कोई इच्छा नहीं है और वह यहीं ग्राम्य क्षेत्र में रहना चाहता है।

राजतंत्र व्यवस्था पर प्रहार

उपरोक्त उद्देश्यों के अतिरिक्त नाटककार का एक अन्य उद्देश्य राजकीय जीवन के बनावटीपन, दिखावे की संस्कृति और राजतंत्र व्यवस्था पर प्रहार करना भी है। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति मोहन राकेश ने मातुल नामक पात्र के द्वारा की है। राजकीय जीवन, उसका बनावटीपन, व्यर्थ का स्वामित्व, निरर्थकता का बोध आदि को मातुल ने बड़े ही स्वाभाविक ढंग से व्यक्त किया है । मल्लिका की माँ अम्बिका भी राजकीय जीवन की घोर विरोधी है, तभी तो वह कहती है- राजपुरुषों की आकृतियाँ जब भी ग्राम - प्रान्तर में दिखाई देती हैं, कोई न कोई विपदा ज़रूर आती है। कभी युद्ध की सूचना आती है तो कभी महामारी की। यह कथन स्पष्ट कर देता है कि राजकीय जीवन भोग-विलास पूर्ण होता है जबकि राजपुरुष ग्रामीणों का जीवन दूभर कर देते थे।
 
'आषाढ़ का एक दिन' नाटक के द्वारा मोहन राकेश ने भोली-भाली सीधी-सरल भावनाओं में बहने वाली उस नारी का भी चित्रण किया है जो एकनिष्ठ और नि:स्वार्थ प्रेम करती है, परन्तु अहंकारी, अहंवादी और स्वार्थी प्रेमी के कारण अपना पूरा जीवन दुःखों को सहते हुए काट देती है। 

निष्कर्ष - उपयुक्त विवेचन से स्पष्ट है कि आलोच्य नाटक उद्देश्य प्रधान है . इसमें नाटककार ने इस जीवन दर्शन को स्पष्ट किया है कि संसार में मनुष्य का जीवन केवल भावना से नहीं चल सकता . भौतिक आवश्यकता के कारण उसे यथार्थ के धरातल पर आना ही पड़ता है ।नाटक में नाटककार ने एक ऐसी भावुक नारी के प्रेम का वर्णन किया है जो अहंवादी पुरुष के छल का शिकार बनती है। इस प्रकार मोहन राकेश ने पुरुष प्रधान समाज में नारी की दयनीय स्थिति को दर्शाकर अपना उद्देश्य स्पष्ट किया है। इसके अलावा नाटक का एक अन्य उद्देश्य यह स्पष्ट करना भी है कि बंधनों में बँधकर कलाकार की प्रतिभा का विकास नहीं हो सकता जिसे नाटककार ने कालिदास के माध्यम से दर्शाया है। इन दो मुख्य उद्देश्यों के अतिरिक्त मोहन राकेश ने राजतंत्र शासन प्रणाली पर भी 'आषाढ़ का एक दिन' के माध्यम से अपना विरोध प्रकट किया है। 

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