आषाढ़ का एक दिन नाटक में विलोम का चरित्र चित्रण

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आषाढ़ का एक दिन नाटक में विलोम का चरित्र चित्रण विलोम का चरित्र चित्रण vilom ashadh ka ek din आषाढ़ का एक दिन नाटक मोहन राकेश जी द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध नाटक है . इसमें कालिदास व मल्लिका के अतिरिक्त विलोम भी एक पात्र है . विलोम का अर्थ विपरीत या उलटा होता है .

विलोम का चरित्र चित्रण 

आषाढ़ का एक दिन नाटक में विलोम का चरित्र चित्रण आषाढ़ का एक दिन नाटक मोहन राकेश जी द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध नाटक है . इसमें कालिदास व मल्लिका के अतिरिक्त विलोम भी एक पात्र है . विलोम का अर्थ विपरीत या उलटा होता है .पूरे नाटक में वह कालिदास के विपरीत बन कर उभरता है . विलोम ग्राम्य पुरुष है ,वह खलनायक के रूप में उपस्थित हुआ है। मल्लिका कालिदास को प्रेम करती है और विलोम मल्लिका से विवाह करने के लिए प्रयन्तशील है।वह मल्लिका और कालिदास में विषय में मल्लिका की माँ अम्बिका के भी कान भरना है -  

"मल्लिका को सह्य नहीं है।दीपक जला कर अंबिका की ओर देखता है।जानता हूँ, अंबिका ! मल्लिका बहुत भोली है। वह लोक और जीवन के संबंध में कुछ नहीं जानती।वह नहीं चाहती कि मैं इस घर में आऊँ, क्योंकि कालिदास नहीं चाहता।और कालिदास क्यों नहीं चाहता ? क्योंकि मेरी आँखों में उसे अपने हृदय का सत्य झाँकता दिखाई देता है। उसे उलझन होती है।...किंतु तुम तो जानती हो अंबिका, मेरा एकमात्र दोष यह है कि मैं जो अनुभव करता हूँ, स्पष्ट कह देता हूँ।"

विलोम मल्लिका के न चाहने पर भी हर परिस्थिति में उपस्थित हो जाता है।वह मल्लिका से कहता है - 

"यह अनुभव करने की मैंने आवश्यकता नहीं समझी । तुम मुझसे  घृणा करती हो ,मैं जानता हूँ। परन्तु मैं तुमसे घृणा नहीं करता।  मेरे यहाँ  होने के लिए इतना ही पर्याप्त है।  

विलोम को सफलता मिलती है .कालिदास उज्जयनी जाते हैं . प्रियाम्गुमंजारी से उनका विवाह हो जाता है . वे कश्मीर के शासक बनते हैं . इधर मल्लिका को माँ की मृत्यु हो जाति है . परिस्थितियां मल्लिका को विलोम के समक्ष आत्म - समर्पण करने के लिए विवश कर देती है . अंत में जब कालिदास मल्लिका के पास आते हैं ,विलोम उपस्थितहोकर अपनी विजय घोषित करता है . 

"तुम चाहते हो इस समय मैं यहाँ से चला जाऊँ।  मैं चला जाता हूँ। इसीलिए नहीं कि तुम आदेश देते हो। परन्तु इसीलिए कि तुम आज यहाँ अतिथि हो और अतिथि की इच्छा का मान होना चाहिए।  देखना मल्लिका ,अतिथित्य में  कोई कमी न रहे। जो अतिथि वर्षों में एक बार आया है ,वह आगे जाने कभी आएगा या नहीं।"

उपयुक्त विवेचन से स्पष्ट है कि खलनायक के रूप में विलोम को स्थिति  बड़ी सार्थक बन पड़ी है .उसे सिर्फ खलनायक ही नहीं कहा जा सकता  है .वह कालिदास से भी अधिक विकसित पात्र है .उसके बिना यह नाटक प्रभावहीन रह जाता . वह कालिदास के विपरीत है। अंततः उसकी विजय होती है ,भावना पर यथार्थ की विजय होती है।  


विडियो के रूप में देखें - 


COMMENTS

Leave a Reply: 1
  1. Sir बहुत स्पष्ट भाषा है नाटक पढ़ने के उपरांत भी नहीं समझ आता मूल कथ्य, आपके लेख से बातें खुल गईं
    एक निवेदन है pls ध्यान दें संदर्भ ग्रंथ भी mention करा कीजिए 🙏

    जवाब देंहटाएं
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