प्रकृति का संरक्षण

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प्रकृति संरक्षण पर निबंध पर्यावरण संरक्षण पर्यावरण संरक्षण मराठी निबंध पर्यावरण का महत्व प्रकृति संरक्षण पर स्लोगन पर्यावरण की रक्षा पर्यावरण संरक्षण पर कविता पयार्वरण का महत्व पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों में हवा, पानी, मिट्टी, खनिज, ईंधन, पौधे और जानवर शामिल हैं।

प्रकृति का संरक्षण स्वयं के अस्तित्व का संरक्षण है 

पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों में हवा, पानी, मिट्टी, खनिज, ईंधन, पौधे और जानवर शामिल हैं। इन संसाधनों की देखभाल करना और इनका सीमित  उपयोग  करना ही प्रकृति का संरक्षण है।ताकि सभी जीवित चीजें  भविष्य में उनके द्वारा लाभान्वित हो सकें।प्रकृति , संसाधन और पर्यावरण हमारे जीवन और अस्तित्व का आधार हैं ।
प्रकृति का संरक्षण
प्रकृति का संरक्षण
हालांकि, आधुनिक सभ्यता की उन्नति ने हमारे ग्रह के प्राकृतिक संसाधनों पर बहुत प्रभाव डाला है। इसलिए, आज प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण बहुत जरूरी है। प्रकृति या पर्यावरण का संरक्षण केवल स्थायी संसाधनों के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन को दर्शाता है जिसमें वन्यजीव, जल, वायु और पृथ्वी  शामिल हैं। अक्षय और गैर-नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन हैं प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण आम तौर पर मनुष्यों की जरूरतों और रुचियों पर केंद्रित होता है, उदाहरण के लिए जैविक, आर्थिक, सांस्कृतिक और मनोरंजक मूल्य। संरक्षणवादियों का मानना है कि बेहतर भविष्य के लिए विकास आवश्यक है, लेकिन जब परिवर्तन ऐसे तरीके से होते हैं जो प्रकृति को नुकसान पहुंचते हों वो विकास नहीं वरन आने वाली पीढ़ियों के लिए विनाश का सबब बनते हैं।

खाने, पानी, वायु और आश्रय जैसे सभी चीजें हमें जीवित रहने के लिए जरुरी हैं, ये सभी प्राकृतिक संसाधनों के अन्तर्गत आते हैं। इनमें से कुछ संसाधन, छोटे पौधों की तरह होते है इन्हे इस्तेमाल किए जाने के बाद जल्दी से बदला जा सकता है। दूसरे, बड़े पेड़ों की तरह होते हैं इनके बदलने में बहुत समय लगता हैं। ये अक्षय संसाधन हैं। अन्य संसाधन, जैसे कि जीवाश्म ईंधन, बिल्कुल नहीं बदला जा सकता है।एक बार उपयोग करने के बाद ये पुनः प्राप्त नहीं किये जा सकते हैं ये गैर नवीनीकरण संसाधन के अंतर्गत आते हैं। 

यदि संसाधन लापरवाही से प्रबंधित होते हैं, तो निश्चित रूपसे संसाधनों का दुरूपयोग होता है और इससे जो अक्षय संसाधन हैं वो भी खतरे की जद में आ जाते हैं और इन ,अक्षय संसाधनों को बहुत अधिक समय तक उपयोग के लिए नहीं बचाया जा सकेगा। लेकिन अगर हम अपनी पीढ़ियों से प्यार करते हैं 
 तो इन  प्राकृतिक संसाधनों को बुद्धिमानी से प्रबंधित करना होगा ।
पिछले दो शताब्दियों में मनुष्यों की आबादी बहुत बड़ी हो गई है। अरबों लोग संसाधनों का इस्तेमाल  करते हैं क्योंकि वे भोजन, घरों का निर्माण करते हैं, वस्तुओं का उत्पादन करते हैं, और परिवहन और बिजली के लिए ईंधन जलाते हैं। हम जानते हैं कि जीवन की निरंतरता प्राकृतिक संसाधनों के सावधान उपयोग पर निर्भर करती है।संसाधनों को संरक्षित करने की आवश्यकता अक्सर अन्य आवश्यकताओं के साथ संघर्ष करती है। कुछ लोगों के लिए, एक जंगली क्षेत्र एक खेत लगाने के लिए एक अच्छी जगह हो सकता है।एक लकड़ी कंपनी निर्माण सामग्री के लिए क्षेत्र के पेड़ों को काट कर उनका व्यापारिक प्रयोग करतें है । एक व्यवसायी  भूमि पर फैक्टरी या शॉपिंग मॉल का निर्माण करना चाहेगा।
ऐसे कई तरीके हैं जो किसी प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण कर सकते हैं।आज, अधिकांश लोग प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए कई तरीके ढूंढ रहे हैं। हाइड्रो-पावर और सौर ऊर्जा एक विकल्प है इन स्रोतों से बिजली उत्पन्न हो सकती है और ये प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए सर्वोत्तम तरीके हैं। प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करने का एक तरीका है  रीसाइक्लिंग की  प्रक्रिया इसके माध्यम से प्रकृति और संसाधनों का संरक्षण हो सकता है कई उत्पाद जैसे पेपर, कप, कार्डबोर्ड और लिफाफे  पेड़ों से बनते  हैं। इन उत्पादों को रीसाइक्लिंग करके आप एक वर्ष में कई लाख पेड़ों को बचा सकते हैं। यह प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए एक बढ़िया तरीका है
भविष्य में इन संसाधनों को अच्छी तरह से स्थापित करने के लिए सतत वनों की प्रथा महत्वपूर्ण हैं। वनों का रोपण सिर्फ प्राकृतिक तरीकों से ही हो सकता है ये मनुष्य की क्षमताओं में नहीं है। इसके लिए जंगल में स्वाभाविक रूप से क्षरण के लिए पेड़ तैयार करना ताकि उनके बीजों से पत्तियों से एवं तनों से नए वृक्षों का निर्माण हो सके । यह "डेडवुड" मिट्टी को तैयार करता है और अन्य  तरीकों से प्राकृतिक पुनर्जनन में सहायक होता है। 
हमें जीवाश्म ईंधन के संरक्षण की आवश्यकता है। हालांकि, हमारे जीवाश्म ईंधन के उपयोग को सीमित करने के अन्य कारण भी हमें तलाशने होंगें क्योंकि ये ईंधन वायु प्रदूषित करते हैं जीवाश्म ईंधन को जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड  वायुमंडल में फैलती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग में योगदान होता है। ग्लोबल वार्मिंग हमारे पारिस्थितिक तंत्र को बदल रहा है महासागर गर्म और अधिक अम्लीय होते जा रहे हैं, जो समुद्री जीवन के लिए खतरा हैं। समुद्र के स्तर बढ़ रहे हैं, तटीय समुदायों के लिए खतरा पैदा हो रहा है। कई क्षेत्रों में अधिक सूखा का सामना करना पड़ रहा है, जबकि अन्य बाढ़ से पीड़ित हैं। दुनिया के कई हिस्सों में लोग पानी की कमी को भुगत रहें हैं। भूमिगत जल स्रोतों जिन्हें एक्विफेर कहा जाता है,की कमी के कारण पानी की निरंतर कमी हो रही है।  सूखा के कारण वर्षा की कमी या पानी की आपूर्ति भी प्रकृति के  प्रदूषण का एक मुख्य कारण है। । विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) का अनुमान है कि 2.6 बिलियन लोगों के लिए  पर्याप्त मात्रा में  पीने के लिए स्वच्छ पानी नहीं है। पीने, खाना पकाने, या धोने के लिए प्रदूषित पानी का उपयोग करने के कारण हर साल 5 लाख से अधिक लोग मरते हैं।पृथ्वी की आबादी का एक तिहाई हिस्सा उन क्षेत्रों में रहता है जो पानी का तनाव का सामना कर रहे हैं। इन क्षेत्रों में से ज्यादातर विकासशील देशों में रहते हैं।
जैव विविधता की सुरक्षा अब बहुत जरूरी है क्योंकि जलवायु परिवर्तन को कम करने और साथ ही साथ जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल होने के लिए जैव विविधता महत्वपूर्ण है। यदि हम जैव विविधता की रक्षा नहीं करते हैं, तो इसका प्रभाव ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के रूप में और अधिक  हानिकारक हो सकता है। यह विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय जंगलों की जैव विविधता हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है ये जंगल जलवायु परिवर्तन से लड़ने और किसी भी अन्य पारिस्थितिकी तंत्र के प्रकार की तुलना में अधिक प्रजातियों के लिए महत्वपूर्ण हैं। दूसरे शब्दों में, हमारे स्वास्थ्य के लिए जैव विविधता की सुरक्षा आवश्यक है।इसके साथ ही जैव विविधता प्रकृति को संतुलित करने में मदद करती है
गरीबी के स्तर को कम करने और जनसंख्या के जीवन स्तर में सुधार के लिए उच्च आर्थिक विकास आवश्यक है। उच्च आर्थिक विकास में प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण का अधिक से अधिक उपयोग करने की आवश्यकता होती है,जो बदले में उनकी गिरावट और अंततः क्षय का कारण बन जाती है।प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ी हुई आबादी का दबाव भी उनके गिरावट में योगदान देता है इसलिए, उच्च विकास को स्थायी विकास तब तक नहीं कहा जा  सकता है, जब तक कि इसके साथ पर्यावरण संरक्षण न हो। पर्यावरण के संरक्षण और समझदारी के इस्तेमाल पर बल देते हुए एक कुशल मांग प्रबंधन नीति भी इन संसाधनों के भंडार की आपूर्ति में वृद्धि कर सकती है। ऐसे संसाधनों के सामुदायिक प्रबंधन के माध्यम से संसाधनों को संरक्षित करने के विकल्प खोजने का प्रयास जरुरी है। विभिन्न समुदायों और  उपयुक्त संस्थानों के उचित संपत्ति अधिकारों के अभाव में समुदाय प्रबंधन सफल नहीं हो सकता है। आज जरुरत है ऐसी समुदायक और पारिस्थितिक नीतियों की जो पर्यावरण संरक्षण और प्रबंधन की  भागीदारी प्रणाली में संलग्न हों।

- सुशील शर्मा 


यह रचना सुशील कुमार शर्मा जी द्वारा लिखी गयी है . आप व्यवहारिक भूगर्भ शास्त्र और अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक हैं। इसके साथ ही आपने बी.एड. की उपाध‍ि भी प्राप्त की है। आप वर्तमान में शासकीय आदर्श उच्च माध्य विद्यालय, गाडरवारा, मध्य प्रदेश में वरिष्ठ अध्यापक (अंग्रेजी) के पद पर कार्यरत हैं। आप एक उत्कृष्ट शिक्षा शास्त्री के आलावा सामाजिक एवं वैज्ञानिक मुद्दों पर चिंतन करने वाले लेखक के रूप में जाने जाते हैं| अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में शिक्षा से सम्बंधित आलेख प्रकाशित होते रहे हैं | अापकी रचनाएं समय-समय पर देशबंधु पत्र ,साईंटिफिक वर्ल्ड ,हिंदी वर्ल्ड, साहित्य शिल्पी ,रचना कार ,काव्यसागर, स्वर्गविभा एवं अन्य  वेबसाइटो पर एवं विभ‍िन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाश‍ित हो चुकी हैं।आपको विभिन्न सम्मानों से पुरुष्कृत किया जा चुका है जिनमे प्रमुख हैं :-
 1.विपिन जोशी रास्ट्रीय शिक्षक सम्मान "द्रोणाचार्य "सम्मान  2012
 2.उर्स कमेटी गाडरवारा द्वारा सद्भावना सम्मान 2007
 3.कुष्ट रोग उन्मूलन के लिए नरसिंहपुर जिला द्वारा सम्मान 2002
 4.नशामुक्ति अभियान के लिए सम्मानित 2009
इसके आलावा आप पर्यावरण ,विज्ञान, शिक्षा एवं समाज  के सरोकारों पर नियमित लेखन कर रहे हैं |

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