गुड-बाय / विज्ञान-कथा

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सन् 2048 में दूसरी आकाशगंगा से आए भयावह ' एल्यन्स ' के एक समूह से निपटने के लिए इंसानों को आपस में मिल-जुल कर उनसे युद्ध करना पड़ा , जो कई बरसों तक चला । अंत में पृथ्वीवासी विजयी हुए ।

गुड-बाय / विज्ञान-कथा

                        

ईशान बहुत देर तक फीके , धुँधले आसमान को देखता रहा । हरियाली-विहीन अपने भूरे लॉन को देखता रहा । क्या वह इन्हें अंतिम बार देख रहा था ? अपने व्यक्तिगत भूमिगत परमाणु शरण-स्थल या न्यूक्लियर-शेल्टर में जाने से पहले वह धरती और आकाश की छवियों को अपनी आँखों में भर लेना चाहता था । आम लोगों को तो भीड़-भाड़ वाले सरकारी न्यूक्लियर-शेल्टर से गुज़ारा करना पड़ेगा । पर भला हो उसके पिता का जो एक 
अंतरिक्ष-यान
नामी परमाणु-वैज्ञानिक थे । उन्होंने अपने जीवन-काल में अपनी बुद्धिमत्ता और मेहनत से अपने घर के नीचे ही यह व्यक्तिगत परमाणु शरण-स्थल बना लिया था , जिसका फ़ायदा अब ईशान को होने वाला था । बाहर कभी भी पूर्वी और पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों के बीच परमाणु -युद्ध छिड़ सकता था । यह सन् 2218 का साल था । भयावह प्रदूषण की वजह से पृथ्वी अब इंसानों के रहने लायक नहीं रह गई थी । ' हब्ब्ल ' से भी हज़ारगुना अधिक शक्तिशाली टेलेस्कोपों की मदद से इंसान ने अब सुदूर अंतरिक्ष में पृथ्वी जैसे ग्रह ढूँढ़ लिए थे , जहाँ जा कर बसा जा सकता था । जो लोग जा सकते थे , वे अन्य ग्रहों पर बसी मानव-कॉलोनियों पर नया जीवन शुरू करने के लिए भेजे गए अंतरिक्ष-यानों में बैठ कर निकल गए थे । उसकी प्रेयसी नेहा भी उन में से एक थी ...
                     " ईशान , तुम भी चलो न साथ । पृथ्वी का भविष्य अब धूमिल है । चलो न , हम सितारों में नई दुनिया बसाएँगे । " जाने से पहले नेहा ने उसका मन बदलने का बहुत प्रयास किया था । पर वह नहीं माना था । अपनी पृथ्वी से उसे बहुत लगाव था । इसे छोड़ कर वह कहीं और जा कर बसने की कल्पना भी नहीं कर सकता था । वह पृथ्वी को बचाने के लिए बनाई गई मुख्य समिति का एक महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक था । इन वैज्ञानिकों की सिफ़ारिशें पर दोनों गोलार्द्ध की सरकारों को अमल करना था ।
                    " नेहा , तुम भी क्यों नहीं यहीं रुक जाती हो ? हम लोग पृथ्वी को बचाने की एक अंतिम भरपूर कोशिश कर रहे हैं । " उसने कहा था , हालाँकि अपनी कही बात पर उसे खुद ही पूरा यक़ीन नहीं था । नेहा नहीं रुकी थी । इस बात को दो साल हो गए थे ।
                    हमारी धरती को इतना बंजर और प्रदूषित बनाने के लिए कौन ज़िम्मेदार है -- वह फिर से सोचने लगा । पिछले दो सौ सालों के सभी घटना-क्रमों के बारे में उसने पढ़ा था । पृथ्वी पर प्रदूषण लगातार बढ़ता चला गया था । जल-प्रदूषण , वायु-प्रदूषण , ध्वनि-प्रदूषण । चौबीसों घंटे प्रदूषण से बचनेवाला मास्क लगाए बिना अब लोग धरती पर साँस भी नहीं ले सकते थे । अक्सर भरी दुपहरी में ' स्मॉग ' का अँधेरा छाया रहता । धरती लगातार बंजर होती जा रही थी । पेड़-पौधे ख़त्म होते जा रहे थे । पशु-पक्षी विलुप्त होते जा रहे थे । हरियाली के गिने-चुने इलाक़े ही बचे रह गए थे । हम इंसानों ने अपनी धरती को क्या से क्या बना दिया --उसने सोचा ।
                    थोड़ी ही देर में वह अपने न्यूक्लियर-शेल्टर में जा कर उसके धातु के मज़बूत द्वार को पूरी तरह सील करके बंद कर देने वाला था । बाहरी दुनिया से तब उसका सम्पर्क लगभग पूरी तरह ख़त्म हो जाने वाला था । न जाने कितने महीनों , बरसों तक के लिए । उसने अपने ' न्यूक्लियर शेल्टर ' में ' ऐंटी-न्यूक्लियर अटैक पिल्स ' का भंडार सहेज कर रख लिया था । इन गोलियों को खाने से परमाणु बम से होने वाले विकिरण से बचा जा सकता था । खाने-पीने के सामान की समुचित व्यवस्था कर ली गई थी । इसके अलावा विशेष क़िस्म के कैप्सूल खाने से भूख लगने पर पेट भर जाता था । इस दवाई का भंडार भी वहाँ सहेज लिया गया था । लगभग दस बरस तक वह बिना बाहर आए आराम से अपने न्यूक्लियर-शेल्टर में सुरक्षित जीवन बिता सकता था ।
                     लेकिन आज धरती पर हालात ऐसे क्यों हो गए -- उसने सोचा । डेढ़-दो सौ साल पहले तक दुनिया बहुत सारे देशों में बँटी थी । पर बाहरी दुनिया के ' एल्यन्स ' से आए ख़तरे ने दुनिया के देशों को एकजुट करने का काम किया । सन् 2048 में दूसरी आकाशगंगा से आए भयावह ' एल्यन्स ' के एक समूह से निपटने के लिए इंसानों को आपस में मिल-जुल कर उनसे युद्ध करना पड़ा , जो कई बरसों तक चला । अंत में पृथ्वीवासी विजयी हुए । तब तक दुनिया दो गोलार्द्ध में बँट चुकी थी -- पूर्वी और पश्चिमी गोलार्द्ध । किंतु अफ़सोस कि ' एल्यन्स ' का ख़तरा ख़त्म होते ही दोनों गोलार्द्ध वर्चस्व के लिए आपस में लड़ने-झगड़ने लगे । अब स्थिति इतनी ख़राब हो गई थी कि किसी भी समय दोनों गोलार्द्ध की सरकारें एक-दूसरे पर परमाणु-हमला कर सकती थीं , जिससे धरती का विनाश निश्चित था ।
                     तभी ईशान का मोबाइल फ़ोन परिचित अंदाज़ में बज उठा । दूसरी ओर से आ रही आवाज़ सुनकर वह हैरान रह गया । यह तो नेहा की आवाज़ थी । पर यह कैसे सम्भव था ? वह तो दो साल पहले ही किसी और ग्रह पर जा चुकी थी ।
                     " ... ईशान , मेरी आवाज़ सुनकर हैरान मत हो । मैं तुम्हें मनाकर अपने साथ ले जाने की एक और कोशिश करने के लिए आ रही हूँ । बस कुछ ही देर में तुम्हारे पास पहुँच रही हूँ । पता है , हमने ऐंड्रोमीडा गैलेक्सी में कांस्टेलेशन  'कैप्रियन' के ग्रह ' 410 गामा कैप्रियनिस ' पर सफलतापूर्वक मानव-बस्ती बसा ली है । यह ग्रह पृथ्वी जैसा है । यहाँ प्रचुर मात्रा में पानी और ऑक्सीजन उपलब्ध है ...। " फ़ोन पर दूसरी ओर से आती नेहा की आवाज़ सुनकर ईशान को लग रहा था जैसे उसके कानों में शहद की मिठास घुल रही हो ।
                    जल्दी ही सामने वाले बड़े मैदान में एक अंतरिक्ष-यान उतरा । ईशान के देखते-ही-देखते नेहा उसके पास आ पहुँची ।
                    " चलो ईशान , मैं तुम्हें लेने आई हूँ । " नेहा ने ईशान को आलिंगन में लेते हुए कहा । कितने सही समय पर आई है नेहा -- ईशान ने सोचा । सिर पर मँडराते परमाणु-युद्ध की विभीषिका से चिंतित ईशान ने अब अपना इरादा बदल लिया था । इस तृतीय विश्व-युद्ध में धरती का विनाश निश्चित था ।
                   आने वाले एक-दो दिनों में दोनों ने धरती पर उपलब्ध कई उपयोगी वनस्पतियों और जीव-जंतुओं को अंतरिक्ष-यान में भर लिया । नए ग्रह पर जाने में पंद्रह दिन का समय लगता था । वह भी तब , जब उनका अंतरिक्ष-यान प्रकाश की गति से यात्रा करता था । पृथ्वी पर पीछे छूट जाने वाले मित्रों से अंतिम मेल-मुलाक़ात कर ली गई थी । जो साथ आना चाहते थे , उन्हें साथ ले लिया गया था ।
                   आख़िर दो दिन बाद सूर्योदय के समय ईशान ने नेहा के साथ अंतरिक्ष-यान में सुदूर ग्रह के लिए उड़ान भरी । पीछे छूट रही नीली , भूरी और थोड़ी हरी पृथ्वी अंतरिक्ष से अब भी सुंदर लग रही थी -- उसने सोचा । " आइ विल मिस यू , अर्थ ! " उसने कहा । उसकी आँखों में आँसू आ गए । नेहा के अंक में मुँह छिपाते हुए उसने रुँधे गले से कहा , " बेस्ट ऑफ़ लक् , मेरी प्यारी धरती । गुड-बाय ! "

                           ------------०------------


प्रेषक : सुशांत सुप्रिय
            A-5001 ,
            गौड़ ग्रीन सिटी ,
            वैभव खंड ,
            इंदिरापुरम ,
            ग़ाज़ियाबाद - 201014
            ( उ. प्र. )

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