एक पेड़ छतनार

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दिनेश कुमार शुक्ल की कविताएँ अपनी भाषा-सामर्थ्य के लिए भी विशेष जानी गई हैं। उन्होंने अपना एक अलग रंग रचा है, और छन्द परम्परा को नई कविता में भिन्न कौशल से बरता है जो लोक-स्मृति, जन-गण की पीड़ाओं और मनुष्य की जिजीविषा की विभिन्न मुद्राओं से सम्पन्न इस संग्रह की कविताओं में भी देखा जा सकता है।

पुस्तक : एक पेड़ छतनार     
लेखक : दिनेश कुमार शुक्ल        

किताब के विषय में:
 एक पेड़ छतनार
 एक पेड़ छतनार     
दिनेश कुमार शुक्ल की कविता में जीवन और जन के राग का उत्सव है जो आश्चर्य नहीं कि अक्सर छन्द में आता है, नहीं तो छन्द की परिधि पर कहीं दूर-पास मँडराता हुआ। उनकी कविता समय की समूची दुखान्तिकी से परिचित है, उस पूरे अवसाद से भी जिसे समय ने अपनी उपलब्धि के रूप में अर्जित किया है, लेकिन वह उम्मीद की अपनी ज़मीन नहीं छोड़ती। कारण शायद यह है कि जन-जीवन, लोक-अनुभव और भाषा के भीतर निबद्ध जनसामान्य के मन की ताकत की एक बड़ी पूँजी उनके पास है। 
वृहत् विश्व-मानव-समाज की नियति के किसी एक हाथ में सिमट जाने की स्थिति पर व्यंग्यपूर्वक वे अगर कहते हैं कि 'आपकी अनुमति से ही आएँगे/सुख के बौर/आपकी सहमति से ही उठेगी/आँधी दुख की, तो स्पष्ट हो जाता है कि अपने समय के सब खतरों से वे बखूबी वाकिफ हैं, लेकिन वे यह भी देख पा रहे हैं कि 'सबकुछ बिखरा हुआ पड़ा है/ध्वस्त पड़ी है सारी निर्मिति/किन्तु बचा है एक कंगूरा/साबुत सीधा सधा हुआ जो/ ताक रहा है आसमान को’। यही वह एक कंगूरा है जो सम्भवत: एक नए आरम्भ का प्रस्थान बिन्दु होगा जहाँ 'मुकुति-का-खिलइ-सहस-दल-कँवल/हँसइ-जीवन-नित-नूतन-धवल/बहइ-सर-सर-सर-झंझा-प्रबल/कि धँसकँइ-बड़ेन-बड़ेन-के-महल’। इन पंक्तियों में न सिर्फ एक भिन्न भविष्य के स्वप्न-नृत्य का नाद सुनाई देता है, बल्कि एक नए निर्माण का इरादा भी दिखाई देता है।
दिनेश कुमार शुक्ल की कविताएँ अपनी भाषा-सामर्थ्य के लिए भी विशेष जानी गई हैं। उन्होंने अपना एक अलग रंग रचा है, और छन्द परम्परा को नई कविता में भिन्न कौशल से बरता है जो लोक-स्मृति, जन-गण की पीड़ाओं और मनुष्य की जिजीविषा की विभिन्न मुद्राओं से सम्पन्न इस संग्रह की कविताओं में भी देखा जा सकता है। 
    
लेखक परिचय
हिन्दी के प्रतिष्ठित कवि।
जन्म : वर्ष 1950 में नर्वल ग्राम, जि़ला कानपुर (उ.प्र.)।
शिक्षा : एम.एस-सी., डी.फिल. (फिजि़क्स), इलाहाबाद विश्वविद्यालय।
प्रकाशित रचनाएँ : कविता-संग्रह—समयचक्र (1997), कभी तो खुलें कपाट (1999), नया अनहद (2001), कथा कहो कविता (2005), ललमुनिया की दुनिया (2008), आखर 
अरथ (2009), समुद्र में नदी (2011)। सम्पादन—कई समयों में कवि कुँवरनारायण 
की रचनाओं का संचयन। काव्यानुवाद—
पाब्लो नेरूदा की कविताएँ (1989), कुछ आलोचनात्मक गद्य, समीक्षाएँ, टिप्पणियाँ 
और निबन्ध।
सम्मान : 'केदार सम्मान’ तथा 'सीता स्मृति सम्मान’।
सम्पर्क : ए-201, इरवो क्लासिक अपार्टमेंट्स सेक्टर-57, गुरुग्राम-122003 (हरियाणा)।
  
बाईंडिंग : हार्डबाउंड 
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
मूल्य  :  300/-
वर्ष   : 2017
आईएसबीएन : 978-81-267-3044-5              

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