स्वर्ग बना सकते है

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swarg bana sakte hai poem explanationरामधारी सिंह दिनकर की कविता स्वर्ग बना सकते हैं कविता का केन्द्रीय भाव / मूल भाव स्वर्ग बना सकते है ,कविता श्री रामधारी सिंह दिनकर जी द्वारा लिखी गयी प्रसिद्ध कविता है .प्रस्तुत कविता में उन्होंने अपने देश की तुलना स्वर्ग से की है .

स्वर्ग बना सकते है / रामधारी सिंह दिनकर की कविता


रामधारी सिंह दिनकर की कविता "स्वर्ग बना सकते हैं" उनकी रचनात्मकता, सामाजिक चेतना और मानवतावादी दृष्टिकोण का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह कविता मानव की सृजनशील शक्ति, एकजुटता और सामाजिक परिवर्तन की संभावनाओं को रेखांकित करती है। दिनकर इसमें यह संदेश देते हैं कि मनुष्य अपने प्रयासों, संकल्प और सकारात्मक दृष्टिकोण से धरती पर ही स्वर्ग जैसा समाज रच सकता है। उनकी ओजस्वी शैली, प्रेरक भावनाएँ और राष्ट्रीयता की भावना इस कविता में स्पष्ट झलकती है। यह कविता उनकी प्रगतिवादी और रचनात्मक सोच का प्रतीक है, जो पाठकों को सामाजिक सुधार और मानवीय मूल्यों के प्रति प्रेरित करती है।

स्वर्ग बना सकते हैं कविता का भावार्थ व्याख्या

१. धर्मराज यह भूमि किसी की
नहीं क्रीत है दासी
है जन्मना समान परस्पर
इसके सभी निवासी ।
सबको मुक्त प्रकाश चाहिए
सबको मुक्त समीरण
बाधा रहित विकास, मुक्त
आशंकाओं से जीवन ।

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों  में कवि रामधारी सिंह दिनकर जी कहते है कि यह धरती किसी की खरीदी हुई दासी नहीं है .इस पर जन्म लेने वाले सभी एक सामान है . उन सभी को खुला आसमान चाहिए ,जिससे वे धूप और चाँदनी सभी का समान आनंद ले सके . कवि कहते है कि सभी को विकास का अवसर मिलना चाहिए और किसी प्रकार की बाधा उसके विकास को न रोके और न ही किसी के मन में किसी के लिए कोई संदेह नहीं होगा .कवि का कहना है कि इस धरती को स्वर्ग बनाने के लिए यही एक मात्र तरीका है . धरती ,आसमान ,हवा सबके लिए एक समान है और उन पर सबका समान अधिकार है .


२. लेकिन विघ्न अनेक अभी
इस पथ पर अड़े हुए हैं
मानवता की राह रोककर
पर्वत अड़े हुए हैं ।
न्यायोचित सुख सुलभ नहीं
जब तक मानव-मानव को
चैन कहाँ धरती पर तब तक
शांति कहाँ इस भव को ?

व्याख्या - कवि का कहना है कि इस धरती को स्वर्ग बनाने के लिए अनेक बाधाएँ खड़ी हैं . विभिन्न वर्गों में बटें हुए समाज में बराबरी को लाना कठिन है .सभी को न्यायपूर्ण सुख प्राप्त नहीं हो सकता है .जब तक मनुष्य को न्यायरुपी सुख नहीं मिलेगा तब तक उसे चैन नहीं आएगा .अतः कवि ऐसा संसार बनाना चाहता है जहाँ सभी को न्यायोचित सुख के साथ चैन और शान्ति मिले .

३. जब तक मनुज-मनुज का यह
सुख भाग नहीं सम होगा
शमित न होगा कोलाहल
संघर्ष नहीं कम होगा ।
उसे भूल वह फँसा परस्पर
ही शंका में भय में
लगा हुआ केवल अपने में
और भोग-संचय में।

व्याख्या -  कवि का मानना है कि जब तक जीवन में समता का सुख नहीं होगा ,तब तक मनुष्य के मन में असंतोष रहेगा और असंतोष के कारण अशांति बनी रहेगी . अन्याय के विरुद्ध मानवता का आन्दोलन का शोर तब तक कम नहीं होगा जब तक प्रकृति के साधन सबको समान रूप से नहीं मिल जाते .समाज में एक दूसरे पर भी संदेह करते हैं .स्वार्थी भावना लाते हैं .अतः इसी भावना के कारण मनुष्य लालचवश भोग और संचय में लगा हुआ है .


४. प्रभु के दिए हुए सुख इतने
हैं विकीर्ण धरती पर
भोग सकें जो उन्हें जगत में,
कहाँ अभी इतने नर?
सब हो सकते तुष्ट, एक सा
सब सुख पा सकते हैं
चाहें तो पल में धरती को
स्वर्ग बना सकते हैं ।

व्याख्या - कवि का कहना है कि ईश्वर ने मनुष्य को अनेक प्रकार के सुख दिए है .वन ,पर्वत ,नदियाँ ,धरती ,सोना उलगने वाली कृषि भूमि ,सोना चाँदी ,जल,मिटटी ,पेड़ -पौधे ,किसी भी साधन की धरती पर कमी नहीं है .धरती पर प्रचुर मात्रा में सुख के साधन है . मनुष्य स्वार्थ रहित होकर यदि इन सुखों को समतापूर्वक भोगे तो सबको सुख भी प्राप्त होगा और सभी संतुष्ट भी रहेंगे .अतः यह धरती स्वरः के समान सुन्दर बन जायेगी .यहाँ भी वहीँ सुख प्राप्त होंगे तो स्वर्ग में प्राप्त होते हैं .

स्वर्ग बना सकते हैं कविता का केन्द्रीय भाव / मूल भाव 

स्वर्ग बना सकते है ,कविता श्री रामधारी सिंह दिनकर जी द्वारा लिखी गयी प्रसिद्ध कविता है .प्रस्तुत कविता में उन्होंने अपने देश की तुलना स्वर्ग से की है .कवि का मानना है कि हम सभी का जन्म समान रूप से हुआ है .ईश्वर ने हमें समान रूप से बनाया है और साथ यह धरती ,हवा ,प्रकाश आदि का उपयोग करने के लिए दिया है ,परन्तु कुछ मनुष्यों से लोभ वश उन पर कब्ज़ा जमा लिया है और समाज में अन्याय को जन्म दिया है . अतः हमारे देश में किसी प्रकार की भाषा ,धर्म ,जाति ,रंग आदि के नाम पर कोई भेद -भाव न हो . सभी देशवासियों को न्यायोचित सुख मिले .सभी का समान विकास हो .किसी प्रकार का संघर्ष न हो . कवि का मानना है कि समता और प्रेम के आधार पर हम इस देश व सारी धरती को स्वर्ग के समान बना सकते हैं .

स्वर्ग बना सकते हैं कविता का उद्देश्य

रामधारी सिंह दिनकर की कविता "स्वर्ग बना सकते हैं" का उद्देश्य मानव की सृजनशील शक्ति, एकजुटता और सामाजिक सुधार के प्रति आशावादी दृष्टिकोण को प्रेरित करना है। इस कविता में दिनकर यह संदेश देते हैं कि मनुष्य अपने संकल्प, मेहनत और सकारात्मक सोच से धरती पर ही स्वर्ग जैसा समाज बना सकता है। यह कविता सामाजिक परिवर्तन, मानवीय मूल्यों और सामूहिक प्रयासों की शक्ति पर जोर देती है। दिनकर की ओजस्वी शैली और राष्ट्रीय चेतना इस कविता में झलकती है, जो पाठकों को सामाजिक न्याय, समानता और बेहतर भविष्य के लिए प्रेरित करती है। यह रचना उनकी प्रगतिवादी विचारधारा को दर्शाती है, जिसमें वे मानव की रचनात्मक क्षमता और समाज को बदलने की संभावनाओं पर विश्वास व्यक्त करते हैं।

कवि रामधारी सिंह दिनकर का परिचय

रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गाँव में एक साधारण परिवार में हुआ था। हिंदी साहित्य में वे अपनी ओजस्वी रचनाओं, राष्ट्रीय चेतना और प्रगतिशील विचारधारा के लिए विख्यात हैं। उनकी लेखनी में देशभक्ति, सामाजिक न्याय, मानवीय मूल्यों और भारतीय संस्कृति की गहरी झलक मिलती है। आर्थिक तंगी और सामाजिक कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने अपनी शिक्षा पटना विश्वविद्यालय से पूरी की और जीवन के शुरुआती दौर में पत्रकारिता, शिक्षण और लेखन के क्षेत्र में सक्रिय रहे।

दिनकर की काव्य यात्रा छायावाद और प्रगतिवाद के बीच एक सेतु की तरह रही। उनकी रचनाएँ शक्ति, साहस और विद्रोह की भावना से ओतप्रोत हैं। उनकी प्रमुख काव्य कृतियों में "रश्मिरथी", "कुरुक्षेत्र", "हुंकार", "परशुराम की प्रतीक्षा" और "उर्वशी" शामिल हैं। "रश्मिरथी" में कर्ण के चरित्र को केंद्र में रखकर उन्होंने मानवीय संवेदनाओं और नैतिकता का चित्रण किया, जबकि "कुरुक्षेत्र" में महाभारत के युद्ध के माध्यम से जीवन और धर्म के गहन प्रश्न उठाए। उनकी कविताओं में राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम की भावना और सामाजिक सुधारों का आह्वान स्पष्ट झलकता है।कविता के अलावा दिनकर ने निबंध, समीक्षा और गद्य लेखन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी गद्य कृतियों जैसे "संस्कृति के चार अध्याय" और "मिट्टी की ओर" में भारतीय संस्कृति, इतिहास और दर्शन की गहरी समझ दिखती है। उनकी लेखनी में विचारों की स्पष्टता और भाषा की ओजस्विता ने उन्हें हिंदी साहित्य में विशिष्ट स्थान दिलाया। दिनकर ने स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय भागीदारी निभाई और अपनी रचनाओं के माध्यम से जनजागरण का कार्य किया।

राजनीतिक क्षेत्र में भी उनकी उपस्थिति रही। वे 1952 से 1964 तक राज्यसभा के सदस्य रहे और अपनी बौद्धिक क्षमता से संसद में महत्वपूर्ण योगदान दिया। साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें पद्म भूषण और साहित्य अकादमी पुरस्कार जैसे सम्मान प्राप्त हुए। दिनकर का निधन 24 अप्रैल 1974 को हुआ, लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी हिंदी साहित्य में प्रासंगिक और प्रेरणादायी बनी हुई हैं। उनकी लेखनी न केवल साहित्यिक बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना का भी प्रतीक है।

स्वर्ग बना सकते हैं कविता का सारांश

'स्वर्ग बना सकते है' कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की रचना 'कुरुक्षेत्र" का ही अंश है जिसने भीष्म पितामह युधिष्ठिर को अंतिम उपदेश स्वरूप ज्ञान प्रदान कर रहे हैं। वे कहते हैं कि हे धर्मराज युधिष्ठिर यह धरती किसी के द्वारा खरीदी हुई दासी नहीं है। इस पर यहाँ जन्मे सभी व्यक्तियों का समान अधिकार है। सभी इसके निवासी हैं। सभी को इस धरती पर समान अधिकार व अवसर मिलेगा अर्थात् सभी को समान प्रकार व वायु मिलेगी तभी विकास सतत् रूप से होगा और अपनी सुरक्षा तथा अधिकारों के प्रति शंका नहीं रहेगी।
 
कवि के अनुसार भीष्म कहते हैं कि मानव के विकास की राह में अनेक विघ्न-बाधाएँ हैं बाधाओं के पर्वत मानवता के मार्ग में अड़े हुए जिसके कारण मनुष्य प्रगति के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ पा रहा है। जब तक जब तक मनुष्य को न्यायोचित सुख प्राप्त नहीं होगा तब तक न तो मनुष्य को इस धरती पर चैन मिलेगा और न ही संसार में अमन कायम हो पायेगा।वे आगे कहते हैं कि जब तक सभी मनुष्यों का सुख भाग समान नहीं होगा, उनमें समानता का भाव न होगा तब तक इस संसार में 'शोरगुल और संघर्ष निरन्तर जारी रहेगा। लेकिन समानता के आदर्श को भूलकर वह आपस में ही शंका व भय का वातावरण बना स्वार्थ पूर्ति में लगा हुआ है तथा अपने ही लिए वस्तुओं का संग्रह कर रहा है। ईश्वर ने इस धरती पर इतने सुख के साधन बिखेरे हैं अर्थात् उपहार दिए हैं कि उन सभी सुखों का उपभोग करने के लिए पर्याप्त संख्या में मनुष्य भी इस संसार में नहीं हैं। वे सुख-सुविधाएँ इतनी अधिक मात्रा में हैं कि सभी लोग संतुष्ट व सुखी हो सकते हैं। लेकिन ऐसा तभी सम्भव है जब उनमें समानता व प्रेम का भाव हो। इस तरह अपने अथक परिश्रम के बल पर वह आसानी से इस धरती को स्वर्ग बना सकते हैं। 


स्वर्ग बना सकते हैं प्रश्न उत्तर


प्र. कवि के अनुसार मनुष्य का जीवन कैसा हो ?

उ . कवि के अनुसार मनुष्य का जीवन बाधा रहित होना चाहिए . उसके जीवन में अन्याय न हो और समान रूप से विकास का अवसर मिले . 


प्र. कवि के अनुसार संघर्ष कब समाप्त होगा ?

उ . कवि के अनुसार जब सभी मनुष्यों को समानता की दृष्टि से देखा जाएगा ,सभी को बढ़ने का समान अवसर प्राप्त होगा तभी  संघर्ष समाप्त होगा . 





प्र. मनुष्य किसमें लगा हुआ है ? वह किस भय में हैं ?

उ. मनुष्य भोग और संघर्ष में लगा हुआ है . स्वार्थ के कारण उसमें लालच की भावना होती है और वही उसे खोने का डर भी होता है . 

प्र. कवि के अनुसार धरती को स्वर्ग कैसे बनाया जा सकता है ?

उ. कवि का कहना है कि धरती पर सभी मनुष्यों का समान अधिकार है .सुख के साधनों को केवल कुछ मनुष्यों का कब्ज़ा ही मनुष्य के दुखों का कारण है . यदि सभी को समान अधिकार मिले और विकास का समान अवसर मिले तो यह धरती अवश्य ही स्वर्ग बन जायेगी .

प्रश्न. कवि ने क्रीत दासी का प्रयोग किसके लिए किया है और क्यों ? 

उत्तर- कवि ने क्रीत दासी का प्रयोग धरती के लिए किया है क्योंकि कवि के अनुसार ये धरती किसी की क्रीत दासी अर्थात् खरीदी हुए दासी नहीं वरन इस धरती पर जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति का इस पर अधिकार है।
 
प्रश्न. इस संसार में विकास के लिए सभी को किसकी आवश्यकता है? और क्यों? 

उत्तर- कवि के अनुसार इस संसार में विकास के लिए सभी को समान प्रकाश व मुक्त हवा की आवश्यकता है क्योंकि जब तक प्राकृतिक साधनों पर सबका समान अधिकार न होगा तब तक जीवन आशंकाओं से मुक्त न होगा। 
प्रश्न. धरती को स्वर्ग बनाने के लिए कौन-सा उपाय कवि ने सुझाया है? 

उत्तर- कवि इस धरती को स्वर्ग बनाने के लिए मनुष्यों में समानता का भाव होना आवश्यक मानते हैं। समान वातावरण होने पर मनुष्यों के जीवन में किसी प्रकार की आशंका नहीं रहेगी - और सभी को समान अवसरों की प्राप्ति होने पर भेदभाव रहित वातावरण होने पर ही इस धरती को स्वर्ग बनाया जा सकेगा। 

प्रश्न. कवि के अनुसार अनेक बाधाएँ किस मार्ग में हैं? 

उत्तर- कवि के अनुसार मनुष्य के विकास में अनेक बाधाएँ हैं। इन बाधाओं के कारण ही मनुष्य का विकास रुक गया है। पर्वत रूपी बाधाएँ मानवता के मार्ग को रोके खड़ी हैं।
 
प्रश्न. मानवता की समानता पर जोर देने का क्या कारण है ?

उत्तर- ईश्वर ने मनुष्य को विकास के लिए समान अवसर दिए हैं की उसने मनुष्य के बाधा रहित विकास के लिए साफ वायु और प्रकाश दिया है। इसलिए कवि ने मानवता की समानता पर जोर दिया है। ताकि सभी समान रूप से उसका उपभोग कर सके । 

प्रश्न. इस धरती पर शान्ति लाने के लिए क्या आवश्यक है? 

उत्तर- इस धरती पर शान्ति लाने के लिए यह आवश्यक है प्रकृति द्वारा प्रदान की गई सभी सुख सुविधाएँ मनुष्यों को समान रूप से प्राप्त हों। जब प्राकृतिक संसाधनों की प्राप्ति न्यायोचित रूप में सभी को होगी तभी इस धरती पर शान्ति स्थापित हो पायेगी। 

प्रश्न .कवि ने मानव को क्या संदेश दिया है? 

उत्तर- इन पंक्तियों में कवि ने मानव को समानता व प्रेम का संदेश देते हुए कहा है कि इस धरती को स्वर्ग बनाने के लिए हम ईश्वर द्वारा दिए सभी सुखों का उपयोग समान रूप से कर हम संसार में शान्ति व धरती पर चैन और सुकून स्थापित कर सकते हैं तथा मानवता का विकास कर सकते हैं।
 
प्रश्न. 'जब तक मनुज-मनुज का यह सुख भाग नहीं सम होगा' से कवि का क्या अभिप्राय है? 

उत्तर- इस काव्यांश से कवि दिनकर जी का अभिप्राय है कि मानवता के विकास के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्य-मनुष्य के बीच किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए। सभी को विकास के समान अवसर मिलने चाहिए।
 
प्रश्न. संघर्ष व कोलाहल के कम करने को क्या उपाय बताए है ?

उत्तर- जब तक सभी मनुष्यों के बीच भेदभाव को समाप्त कर सुखों के उपभोग के समान अवसर नहीं होंगे तब तक संसार में कोलाहल शान्त नहीं होगा। ऐसी स्थिति में समाज के सभी वर्गों के बीच समान अवसरों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष चलता रहेगा । 

प्रश्न. आज के मनुष्य की किस दुष्प्रवृत्ति की ओर कवि ने क्या संकेत किया है? 

उत्तर- कवि ने आज के मनुष्य की स्वयं के स्वार्थों की पूर्ति में लगे रहने की प्रवृत्ति की ओर संकेत किया है। मनुष्य अपने स्वार्थों की पूर्ति में मानव मात्र के समानता के आदर्श को भूल गया है जिससे मानव प्रगति में बाधा आ गयी है।
 
प्रश्न. वर्तमान में मनुष्य क्या भूल गया है और क्यों ?

उत्तर- वर्तमान में मनुष्य सभी मनुष्यों में समानता के आदर्श को भूल गया है उसके मन में जीवन के प्रति भय व शंका व्याप्त हो गयी है, जिसके कारण वह अपने स्वार्थों को पूरा करने व भोग-विलास के साधनों को एकत्र करने में लग गया है। इसलिए विकास का मार्ग अवरुद्ध हो गया है।

प्रश्न. प्रभु ने कौनसे सुख हमें प्रदान किए हैं? 

उत्तर- ईश्वर ने प्रकृति के माध्यम से स्वच्छ वायु, स्वच्छ जल, प्रकाश आदि उपहार स्वरूप दिए है। धरती के माध्यम से पोषण हेतु के अन्न व कीमती रत्न, आदि वस्तुएँ दी हैं तथा इनका उपभोग करने के लिए शक्ति व बुद्धि प्रदान की है।

प्रश्न. 'कहाँ अभी इतने नर ?' से कवि का क्या अभिप्राय है? 

उत्तर- कवि दिनकर जी के अनुसार ईश्वर द्वारा प्रदत्त प्राकृति संसाधनों का भण्डार इतना अधिक है कि धरती पर रहने वाले मनुष्यों की संख्या उनके उपभोग के लिए कम रहेगी सभी मनुष्यों अर्थात् समस्त पृथ्वीवासी अपनी आवश्यकतों की पूर्ति सहज ही कर सकते हैं।

प्रश्न. कवि के अनुसार हम इस धरती को स्वर्ग कैसे बना सकते हैं? 

उत्तर- यदि सभी मनुष्य आपस में भेदभाव के बिना सबको एक समान समझें। स्वार्थ की भावना से ऊपर उठकर सबको विकास के समान अवसर और अधिकार को समझे। सुखों का न्यायोचित उपयोग कर इस धरती को स्वर्ग बना सकते हैं।

MCQ Questions with Answers Swarg Bana Sakte Hai


बहुविकल्पीय प्रश्न उत्तर 

प्र १. स्वर्ग बना सकते हैं कविता के कवि का नाम बताओ ?
a. जयशंकर प्रसाद 
b. रामधारी सिंह दिनकर 
c. महादेवी वर्मा 
d. सुभद्राकुमारी चौहान 

उ. b. रामधारी सिंह चौहान 

२. दिनकर जी को  किस रचना पर ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ ?
a. कुरुक्षेत्र 
b. रश्मिरथी 
c. उर्वशी 
d. प्रिय प्रवास 

उ. c. उर्वशी 

३. 'क्रीत' शब्द का अर्थ बताओ ?
a. खरीदी हुई . 
b. बेचीं हुई 
c. कार्य करना 
d. उपरोक्त में से कोई नहीं 

उ. a. खरीदी हुई 

४. दिनकर जी की प्रमुख गद्य रचना है ?
a. विनयपत्रिका
b. परशुराम की प्रतीक्षा 
c. भारतीय संस्कृति के चार अध्याय 
d. सूरज का सातवां घोडा 

उ. c. भारतीय संस्कृति के चार अध्याय 

५. जीवन में विकास के लिए किन किन चीज़ों की आवश्यकता पड़ती है ?
a. हवा और रौशनी 
b. आशंकाओ से मुक्त जीवन 
c. समानता व बाधा रहित विकास 
d. उपयुक्त सभी 

उ. d. उपयुक्त सभी 

६. कवि के अनुसार संसार में कब तक शान्ति संभव नहीं है ?
a. शांति संभव ही नहीं 
b. जब तक लोग शान्ति चाहते नहीं है . 
c. जब तक सभी का सुख भाग समान नहीं है . 
d. भय समाज में विद्यमान है 

उ. c. जब तक सभी का सुख भाग समान नहीं है . 

७. धरती को स्वर्ग कैसे बनाया जा सकता है ?
a. मनुष्य यदि स्वार्थ त्याग दे 
b. सभी मनुष्यों में प्रेम हो . 
c. सभी मनुष्य जन मिलजुल कर कार्य करें 
d. उपयुक्त सभी 

उ. d. उपयुक्त सभी 

8. जब मनुष्य उन्नति की तरफ अग्रसर होता है तो उसे कौन रोकता है ?
a. उसके दुश्मन 
b. उसके आलसपन 
c. अनेक बाधाएं पर्वत के समान 
d. उपयुक्त में से कोई नहीं 

उ. c. अनेक बाधाएँ पर्वत के समान 

९. मानवता के मार्ग में पर्वत किस प्रकार खड़े हैं ?
a. सहयोगी के रूप में 
b. मार्ग रोक कर 
c. अनेक बाधाओं के रूप में 
d. उपरोक्त में से कोई नहीं 

उ. c. अनेक बाधाओं के रूप में 

१०. इस संसार में सुख शान्ति कैसे आएगी ?
a. यदि मनुष्य लड़ना बंद कर दे . 
b. संसार में सभी मनुष्य मिल जुल कर रहें . 
c. लोग स्वार्थी न बने 
d. उपरोक्त में से कोई नहीं 

उ. b. संसार में सभी मनुष्य मिलजुल कर रहें . 

11. किन समस्याओं ने  मनुष्य का मार्ग रोक रखा है ?
a. विभिन्न वर्गों में विभाजित समाज 
b. जाति - पाती 
c. रंग भेद व वर्ण भेद 
d. उपयुक्त सभी 

उ. d. उपयुक्त सभी 

१२. 'न्यायोचित ' सुख से क्या तात्पर्य है ?
a. सुख और शान्ति 
b. न्याय के अनुसार 
c. सभी को सुख सुविधा प्राप्त हो 
d.. उपरोक्त सभी 

उ. d. उपरोक्त सभी 

१३. मनुष्य वर्तमान में क्या भूल गया है ?
a. दूसरों की सेवा करना 
b. अपना धर्म 
c. उन्नति का मार्ग 
d. शांति तथा अपना कर्त्तव्य 

उ. d. शांति और अपना कर्तव्य 

१४. 'विकीर्ण' शब्द का क्या अर्थ है ?
a. शांति 
b. समानता 
c. फटा हुआ 
d. शोरगुल 

उ. d शोरगुल 

१५. मनुष्य जीवन में कैसे सुख पा सकता है ?
a. स्वार्थ रहित होकर 
b. ईश्वर द्वारा अमूल्य भण्डार को समानता के साथ बाँट कर  
c. सभी सुखों को सफलतापूर्वक भोगकर 
d. उपरोक्त सभी 

उ. d. उपरोक्त सभी 



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  8. उत्तर धरती किसी एक की नहीं है।

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  9. उत्तर धरती किसी एक की नहीं

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  10. Shukhriya bro aapki madat ke liye Kal Mera Hafiz xam hai aur mujhe kuch smjh ni aarha tha

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