भोली हिंदी कहानी

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एक लड़की जब परिणय बंधन में बंधकर ससुराल की दहलीज पर पांव रखती है तो उसका ह्रदय न जाने कितने ख्वाबो को खुद में समेटे होता है .

भोली हिंदी कहानी

एक लड़की जब परिणय बंधन में बंधकर ससुराल की दहलीज पर पांव रखती है तो उसका ह्रदय न जाने कितने ख्वाबो को खुद में समेटे होता है . 
किन्तु जब वे ही ख्वाब तिनका तिनका बिखरते हैं तो उसके साथ साथ वो स्वयं भी बिखरती चली जाती है,सुना तो हैं हमने कि मनुष्य एक सवेंदना शील प्राणी होता है, किन्तु उस वक़्त संवेदनशीलता कहाँ चली जाती है जब कोई
रूबी श्रीमाली
रूबी श्रीमाली
किसी को ठेस पहुँचता हैं, तब क्यों वह स्वयं अपना आकलन करना भूल जाता है।
सर्वगुण सम्पन्न तो स्वयं ब्रह्मा जी भी नही थे फिर मनुष्य कैसे हो सकता है।
हमारे मोहल्ले में एक औरत रहा करती थी,उसका अच्छा बड़ा परिवार था,
उसकी ससुराल थी पति था  और दो बच्चे भी थे।
उसको लोग "भोली" कहकर पुकारते थे,
ये उसका नाम था अथवा लोगो द्वारा दिया गया उपनाम नही जानते।
उसे हमने कभी मुस्कुराते हुए नही देखा था
वो ऐसे ही गलियों में घूमती रहती थी किन्तु किसी से कुछ बोलती नही थी।
उसके परिवार के किसी सदस्य के लिए  उसके होने का कोई अर्थ नही था न ही उससे कोई बात किया करता था।
किन्तु वो अपने बच्चों से बहुत प्यार करती थी,यदि वो कभी अपने बेटे को आवाज़ लगाती तो उसकी उसकी सास और पति उसे धिक्कार देते और वो चुपचाप लौट जाती।
हमने कभी उसे झगड़ते हुए नही सुना था।उसका बेटा बड़ा होते-होते कब नशे का आदि हो गया था।
वो कभी समझ ही नही पाई थी ।
और समझ भी कैसे सकती थी उसे तो उसके परिवार ने समझने का अधिकार ही नही दिया था
किसी को कभी कहते हुए सुना था क़ि जब वो ब्याहकर उस घर में आयी थी तो बहुत खूबसूरत थी हष्टपुष्ट थी किन्तु अपनों के तिरस्कार और पति की बेरुखी ने उसके जीवन की परिभाषा ही बदल दी थी अब न तो वो खूबसूरत दिखती थी न ही तंदरुस्त और उसकी आँखों में दर्द और ख़ामोशी के सिवा कुछ भी नजर नही आता था।
बच्चो का बचपन यदि माँ के आँचल में गुजरे,तो ही बचपन होता है और माँ जैसा प्रेम कोई दूसरा कर सके ऐसा हो तो सकता है किंतु सबकी किस्मत इतनी अच्छी हो ये जरूरी तो नही।
वक़्त अपनी रफ्तार से बहता ही चला जाता है नशे की आदत ने उसे एक बेजान खिलौना बना दिया था, उसे टी वी जैसी बीमारी ने घेर लिया था।
उसकी माँ रोज उससे मिलने कोशिश करती किन्तु किसी के भी ह्रदय में इतनी सहानुभूति नही थी कि कोई उसे उसके बेटे से मिलने देता ।और वो रोज मायूस लौट जाती।
सोचते है यदि वो पागल रही होती तो उसे क्या वास्ता होता किसी के दर्द से क्या समझ आते रिश्तों के बंधन क्यों रो देता उसका ह्रदय पुत्र मोह में क्यों वो ममतामयी मूरत अपने अक्श से मिलने के लिए इतनी व्याकुल हो जाती।
वो ऐसी एक ऐसी नदी बन चुकी थी जिसका कोई किनारा नही था बस अपने वेग से चलते रहना था।
इतने बड़े परिवार में क्या किसी के ह्रदय में इतनी दया नही थी कि उसके आंसू पोछ सकता उसे उसके बेटे से मिलने देता।
वो प्रत्येक मौसम में घर के पीछे एक टूटे हुए छप्पर में पड़ी रहती थी या उधर से गुजरने वाली सड़क पर बैठी रहती थी बस यही उसके जीवन का सार था।
और एक दिन उसका बीमार बेटा इस दुनिया को छोड़कर हमेशा के लिए चला गया,उस रोज वो उसे देखने नही आई न ही उसे किसी ने अंतिम विदाई में देखा।
न जाने क्या समझाया होगा उसने अपने ह्रदय को,जब तक वो जीवित था वो रोज उससे मिलने के लिए व्याकुल रहती थी बस एक बार उसे देखने के लिए विचलित हो उठती थी।
और आज कैसे उसका ह्रदय पाषाण हो गया था कि वो उसे अंतिम बेला में देखना नही चाहती थी
उसकी ममता तो हमेशा के लिए सो चुकी थी खामोश हो चुकी थी............


यह रचना रूबी श्रीमाली जी द्वारा लिखी गयी है।आपने चौधरी चरण सिंह मेरठ यूनिवर्सिटी, से वाणिज्य में परास्नातक की उपाधि प्राप्त की है। आप साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखनी चलाती हैं।                        

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