महायज्ञ का पुरस्कार

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महायज्ञ का पुरस्कार


शपाल जी द्वारा रचित कहानी 'महायज्ञ का पुरस्कार' मानव मूल्यों और निष्काम कर्म के महत्व को स्थापित करने वाली एक अत्यंत हृदयस्पर्शी रचना है। कहानी का केंद्रीय विचार यह है कि सच्चा धर्म दिखावे या फल की इच्छा से किए गए कर्मकांडों में नहीं, बल्कि निःस्वार्थ भाव से किए गए परोपकार और सेवा में निहित होता है। सेठ जी ने अपनी गरीबी और भूख की परवाह न करते हुए रास्ते में मिले एक भूखे कुत्ते को अपनी चारों रोटियाँ खिला दी थीं। यह क्रिया उनके लिए केवल एक मानवोचित कर्तव्य थी, जिसे उन्होंने किसी यज्ञ या पुण्य कमाने की लालसा से नहीं किया। 

कहानी बताती है कि धन्ना सेठ का यज्ञ खरीदने से इनकार करना और फिर अंत में उन्हें दिव्य शक्ति द्वारा यह पुरस्कार मिलना, शीर्षक की सार्थकता को सिद्ध करता है। यह निःस्वार्थ दयालुता ही उनके जीवन का सबसे बड़ा महायज्ञ सिद्ध हुई, जिसका अलौकिक फल उन्हें प्राप्त हुआ। कहानी की भाषा सरल, सहज और प्रवाहमयी है, तथा सेठ और सेठानी के चरित्र-चित्रण द्वारा लेखक ने दया, उदारता और कर्तव्यपरायणता जैसे गुणों को उजागर किया है। यह कथा हमें आडंबरपूर्ण धार्मिक क्रियाओं से दूर रहकर, दीन-दुखियों की निःस्वार्थ सेवा करने की महान प्रेरणा देती है, क्योंकि मानवता की सेवा ही सबसे बड़ा और सच्चा महायज्ञ है।

महायज्ञ का पुरस्कार कहानी का सारांश 

महायज्ञ का पुरस्कार,यशपाल जी द्वारा लिखी गयी प्रसिद्ध कहानी है .इसमें उन्होंने एक काल्पनिक कथा का आश्रय लेकर परोपकार की शिक्षा पाठकों को दी है . एक धनी सेठ था . वह स्वभाव से अत्यंत विनर्म , उदार और धर्मपरायण व्यक्ति था .कोई साधू संत उसके द्वार से खाली वापस नहीं लौटता था . वह अत्यंत दानी था .जो भी उसके सामने हाथ फैलता था , उसे दान अवश्य मिलता था . उसकी पत्नी भी अत्यंत दयालु व परोपकारी थी . अकस्मात् दिन फिर और सेठ को गरीबी का मुख देखना पड़ा . नौबत ऐसी आ गयी की भूखों मरने की हालत हो गयी . उन दिनों एक प्रथा प्रचलित थी . यज्ञ के पुण्य का क्रय - विक्रय किया जाता था . सेठ - सेठानी ने निर्णय लिया किया की यज्ञ के फल को बेच कर कुछ धन प्राप्त किया जाय ताकि गरीबी कुछ गरीबी दूर हो .




सेठ के यहाँ से दस - बारह कोस की दूरी पर कुन्दनपुर नाम का क़स्बा था . वहां एक धन्ना सेठ रहते थे . ऐसी मान्यता थी की उनकी पत्नी को दैवी शक्ति प्राप्त है और वह भूत - भविष्य की बात भी जान लेती थी .मुसीबत से घिरे सेठ - सेठानी ने कुन्दनपुर जाकर उनके हाथ यग्य का पुण्य बेचने का निर्णय लिया . सेठानी पड़ोस के घर से आता माँग चार रोटियां बनाकर सेठ को दे दी . सेठ तड़के उठे और कुन्दनपुर की ओर चल पड़े. गर्मी के दिन थे . रास्ते में एक बाग़ देखकर उन्होंने सोचा की विश्राम कर थोडा भोजन भी कर लें . सेठ ने जैसे ही अपनी रोटियाँ निकाली तो उसके सामने एक मरियल सा कुत्ता नज़र आया . सेठ को दया आई और उन्होंने एक - एक करके अपनी साड़ी रोटियाँ कुत्ते को खिला दी . स्वयं पानी पीकर कुन्दनपुर पहुँचे तो धन्ना सेठ की पत्नी ने कहा कि अगर आप आज का किया हुआ महायज्ञ को बेचने को तैयार हैं तो हम उसे खरीद लेंगे अन्यथा नहीं .सेठ जी अपने महायज्ञ को बेचने को तैयार नहीं हुए ,वह खाली हाथ लौट आये . अगले दिन ही सेठ जी अपने घर की दहलीज़ के नीचे गडा हुआ खज़ाना मिला . उसने जो मरियल कुत्ते को अपनी रोटी खिलाई थी ,यह खज़ाना उसी महायज्ञ का पुरस्कार था . ईश्वर भी उन्ही की सहायता करता जो गरीब ,दुखिया ,निश हाय की सहायता करता है .हमारे अच्छे कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाते है .हमें हमेशा अच्छे कर्म करते रहने चाहिए तभी जीवन सुफल होगा . 

महायज्ञ का पुरस्कार कहानी शीर्षक की सार्थकता

 महायज्ञ का पुरस्कार कहानी का शीर्षक अत्यंत सार्थक एवं उचित है . कहानीकार यशपाल जी उपयुक्त  कहानी में दिखाया है कि निस्वार्थ भाव से किया गया कर्म ही सच्चा कर्म महायज्ञ होता है . इस कहानी के मुख्य पात्र सेठ एवं सेठानी अपनी गरीबी को दूर करने के लिए यज्ञ के फल को बेचने के लिए विबस होना पड़ा . अपने यज्ञ के फल को बेचने के लिए सेठ जी कुन्दनपुर गए लेकिन रास्ते में भूखे कुत्ते को रोटी खिलाकर उस सेठ ने यज्ञ कमाया था ,उसे वह बेचने के लिए तैयार नहीं हुआ . सेठ जी की दृष्टि में यह उनका कर्तव्य था ,कोई यज्ञ नहीं . वापस घर आने पर रात को दिया जलाने पर उन्हें तहखाने में धन का अम्बार दिखाई दिया और साथ ही एक दिव्य वाणी भी सुनाई देती है कि उनके द्वारा भूखे ,कमज़ोर कुत्ते पर किये गए उपकार का ही यह पुरस्कार है. अतः निस्वार्थ भाव से कर्म करना चाहिए और लोगो की भलाई कर्तव्य मानकर करना चाहिए .यही महायज्ञ है .

अतः कहा जा सकता है कि कहानी का शीर्षक उचित एवं सार्थक है जो की पाठकों के ह्रदय पर एक गहरी छाप छोडती है .


यशपाल का साहित्यिक जीवन परिचय

यशपाल हिंदी साहित्य के एक प्रमुख लेखक हैं, जिनका साहित्यिक जीवन क्रांतिकारी गतिविधियों और प्रगतिवादी विचारधारा के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा रहा। उनका जन्म 3 दिसंबर 1903 को पंजाब के फिरोजपुर छावनी में हुआ था। लाहौर के नेशनल कॉलेज से शिक्षा प्राप्त करते समय वे भगत सिंह और सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों के संपर्क में आए और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। इसी कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा। जेल जीवन ने उनके चिंतन को और भी परिपक्व बनाया, जहाँ उन्होंने साहित्य को अपनी वैचारिक अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया।

यशपाल ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत जेल में ही की, और उनकी रचनाओं पर मार्क्सवाद तथा मनोविश्लेषणवाद का गहरा प्रभाव दिखाई देता है। वे मुख्यतः प्रगतिवादी साहित्यकार माने जाते हैं। उनका साहित्य समाज में व्याप्त आडंबरों, रूढ़ियों, विषमताओं और शोषण पर करारा प्रहार करता है। उनका लेखन केवल मनोरंजन तक सीमित न रहकर, समाज को एक नई दिशा देने का प्रयास करता है।

उनका विपुल साहित्य-सृजन है जिसमें कहानी, उपन्यास, निबंध और संस्मरण शामिल हैं। उनके प्रमुख उपन्यासों में 'झूठा सच' (जो भारत-विभाजन की त्रासदी पर आधारित है और उनका एक कालजयी उपन्यास माना जाता है), 'दिव्या' और 'पार्टी कामरेड' शामिल हैं। उनकी कहानियों में 'पिंजड़े की उड़ान' और 'ज्ञानदान' संग्रह विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। 'महायज्ञ का पुरस्कार' उनकी अत्यंत लोकप्रिय कहानी है। उनकी लेखन शैली यथार्थवादी और व्यंग्यात्मक होती थी, जिससे वे समाज की विसंगतियों को प्रभावी ढंग से उजागर कर पाते थे। अपने उत्कृष्ट साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें 'पद्म भूषण' और 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। उनकी मृत्यु 26 दिसंबर 1976 को हुई, लेकिन उनका प्रगतिशील साहित्य आज भी प्रासंगिक है।

सेठ जी का चरित्र चित्रण

महायज्ञ का पुरस्कार कहानी में सेठ जी प्रमुख पात्र बन कर उभरते है . वह अत्यंत धार्मिक प्रवृति के व्यक्ति थे . वह इतने परोपकारी थे की कोई भी उनके दरवाजे से खाली हाथ नहीं जाता था .उदार मन से वह दान करते थे . वह किसी मनुष्य को क्या ,किसी जीव को भी दुखी नहीं करना चाहता थे . इसी कारण वह बड़े - से बड़ा त्याग करने के लिए तैयार रहते थे . वह खुद रोटियाँ न खाकर मरियल कुत्ते को रोटियाँ खिला दी . उनके चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएं हैं - 
  • आत्म सम्मान - सेठ जी चरित्र में आत्म सम्मान है . वह अपने कुत्ते को रोटी खिलाने के कार्य को कर्तव्य बता कर यज्ञ को नहीं बेचे और धन्ना सेठ जी के यहाँ से खली हाथ लौट आये . सेठ जी के चरित्र में हमें आत्म सम्मान एवं स्वाभिमान के गुण भी दिखाई देते है . 
  • मानवोचित गुण - सेठ जी के चरित्र में सभी मानवोचित गुण है जो एक सच्चे मनुष्य में होने चाहिए . इसीलिए भगवान् ने उनके सत्कात्यों के लिए उचित इनाम भी दिया . अतः हम कह सकते है की उनका चरित्र अत्यंत प्रभावशाली है . अपने नैतिक मूल्यों एवं मानवोचित गुण के कारण पाठकों पर एक गहरी छाप छोड़ते हैं . 

सेठानी का चरित्र चित्रण

सेठानी पतिव्रता थीं। वे समझदार और धर्यवान भी थीं। गरीबी में भी उन्होंने सेठ का साथ नहीं छोड़ा और धीरज बँधाया। सेठानी ने ही सेठ को यज्ञ बेचने की सलाह दी थी। सेठ के खाली हाथ वापस आने पर उन्हें चिंता तो हुई, पर पूरी कहानी सुनकर वे इसलिए खुश होती हैं कि सेठ ने विपत्ति में भी अपना धर्म नहीं छोड़ा .


महायज्ञ का पुरस्कार प्रश्न उत्तर

प्र. सेठ जी कौन थे ?

उ. सेठ जी एक धनी व्यक्ति थे . वे अत्यंत धार्मिक प्रवृति के थे . वे अत्यंत दाने भी . उन्होंने अनेकों यज्ञ किये . उनके दरवाजे के कोई भी याचक खली हाथ नहीं लौटता था . वह एक विनम्र ,दयालु व अच्छे इंसान थे .

प्र. दिन किसके फिर गए ?  दिन फिरने पर सेठ पर क्या प्रभाव पड़ा ?

उ . दिन धनी सेठ जी के फिर गए . दिन फिरने पर सेठ जी को गरीबी का मुँह देखना पड़ा . संगी - साथियों ने भी उनसे मुँह फेर लिया और नौबत यहाँ टक आ गयी कि सेठ व सेठानी को भूखों मरना पड़ा . 

प्र. उन दिनों कौन सी प्रथा प्रचलित थी और सेठानी ने क्या सलाह दी ?

उ. उन दिनों यज्ञ के फल को बेचने की प्रथा थी .चुकि उन्होंने बहुत सारे यज्ञ किये थे . इसीलिए सेठानी जी ने उन्हें यज्ञ के फ़ल को बेचने की सलाह दी ताकि कुछ धन मिल सके और उनकी गरीबी दूर हो सके .

प्र .  सेठ जी कहाँ जा रहे थे ? और क्यों ?

उ. सेठ जी कुन्दनपुर नगर में धनी सेठ के हाथों अपना एक यज्ञ बेचने जा रहे थे .उन दिनों यज्ञ बेचने की प्रथा प्रचलित थी . गरीबी के कारण सेठ जी की पत्नी ने उन्हें यह सलाह दी थी . अतः मजबूरीवश वह कुन्दनपुर जा रहे थे . 
प्र. सेठ जी का ह्रदय क्यों करुणा से भर गया और उन्होंने क्या किया ?

उ. जिस स्थान पर सेठ जी आराम करने के लिए रुके थे ,वहीँ पर एक मरियल कुत्ता आ गया जो की भूख से छटपटा रहा था .अतः सेठ जी उसे अपने लिए लायी रोटियाँ कुत्ते को सब खिला दी और खुद पानी पीकर रह गए . 

प्र . सेठ जी ने कितनी रोटियाँ कुत्ते को खिला दीं और क्यों ?

उ . कुत्ते को भूख से व्याकुल देखकर सेठ जी को दया आ गयी है . अपने रास्ते के लिए लायी हुई चारों रोटियाँ सेठ जी ने कुत्ते को खिला दी . इस प्रकार वह पानी पीकर स्वयं भूखें रहकर कुत्ते की भूख उन्होंने शांत की .


प्र . धन्ना सेठ की पत्नी के बारे में क्या अफ़वाह थी ?

उ. धन्ना सेठ की पत्नी जो कि कुन्दनपुर नगर के बड़े सेठ की पत्नी थी ,के बारे में यह अफ़वाह थी कि उनको कोई दैवीय शक्ति प्राप्त हुई है  , जिससे वह तीनों लोकों की बात जान लेती हैं .


प्र. धन्ना सेठ की पत्नी के मुँह से महा यज्ञ की बात सुनकर उन्हें कैसा लगा ?

उ. धन्ना सेठ जी की पत्नी की बात सुनकर सेठ जी बहुत ही असमंजस में पद गए .उनकी समझ में नहीं आ रहा था की उन्होंने कोई यज्ञ नहीं किया था .बहुत गरीबी के कारण कई बर्षों से उन्होंने कोई यज्ञ नही किया .अतः घोर गरीबी के कारण धन्ना सेठ की पतनी उनका मज़ाक उड़ा रही हैं . 

प्र. महायज्ञ का पुरस्कार कहानी से क्या शिक्षा मिलती है ?

उ. महायज्ञ का पुरस्कार कहानी यशपाल जी द्वारा लिखी गयी है . इस कहानी से हमें यह बताया गया है की हमें हमेशा परोपकार ही करना चाहिए .हमारे ह्रदय में हर प्राणी के लिए दया , प्रेम और सहानुभूति रहनी चाहिए .जिस प्रकार सेठ जी स्वयं भूखे रह कर अपने लिए लायी रोटियाँ कुत्ते को खिला देते और खुद पानी पीकर रह जाते है . धन्ना सेठ की पत्नी द्वारा इसी यज्ञ रूपी कार्य को बेचने का प्रलोभन देने पर भी उन्होंने इसे अपना कर्तव्य माना तथा बेचने से इंकार कर दिया .इसका उन्हें भगवान् से पुरस्कार भी दिया . अतः हमें जीवन में सेठ जी तरह भलाई करते हुए जीवन यापन करना चाहिए .

प्रश्न . सेठजी कहाँ जा रहे थे और क्यों ? 

उत्तर- सेठजी अपने यहाँ से दस-बारह कोस दूर कुंदनपुर के धन्ना सेठ के यहाँ जा रहे थे क्योंकि वे गरीबी दूर करने के लिए उन्हें अपना एक यज्ञ बेचना चाहते थे।
 
प्रश्न. उन्हें विश्राम करने की आवश्यकता क्यों पड़ी? उन्होंने कहाँ विश्राम किया ? 

उत्तर- आधा रास्ता पार करते धूप बहुत तेज हो गयी। पसीने से उनका पूरा शरीर लथपथ हो गया तथा चलने में परेशानी होने करने का लगी। भूख भी लग रही थी अतः वृक्ष के नीचे भोजन खाने व विश्राम करने का उन्होंने निश्चय किया । 

प्रश्न. उनकी पोटली में क्या-क्या था? क्या वे भोजन और विश्राम कर पाए ? 

उत्तर- उनकी पोटली में खाने के लिए चार मोटी-मोटी रोटियाँ और पानी के लिए लोटा व डोर थी। सेठजी ने रोटियाँ कुत्ते को खिला दीं इसलिए वे भोजन नहीं कर पाये। केवल एक लोटा पानी पीकर उन्होंने थोड़ा विश्राम किया।
 
प्रश्न. 'महायज्ञ का पुरस्कार' कहानी से आपको क्या शिक्षा मिलती है? 

उत्तर- इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि निःस्वार्थ भाव से प्राणीमात्र की भलाई के लिए किया गया कार्य ही सच्चा यज्ञ है। हमें सभी प्राणियों पर दया करनी चाहिए। मुसीबत के समय दूसरों की सहायता करना हमारा परम कर्तव्य है और यही सच्ची ईश्वर सेवा भी है।

प्रश्न . पहले सेठ की स्थिति कैसी थी ? 

उत्तर- पहले सेठ के पास धन-दौलत की कमी नहीं थी। वे उदार देख और धर्मपरायण थे। साधु-संत कभी उनके द्वार से खाली हाथ नहीं जाते थे। सबके लिए भंडार का द्वार खुला था। उन्होंने बहुत यज्ञ भी किये तथा दीन-दुखियों को दान भी दिया।
 
प्रश्न. गरीबी के कारण क्या समस्याएँ आईं ? 

उत्तर- गरीबी के कारण सेठ के मित्रों ने उनसे मुँह फेर लिया। मित्र और नाते-रिश्तेदार, जो अच्छे समय में उनके आगे-पीछे घूमते थे, वे सब उनसे दूर हो गये। सेठ व सेठानी भूखों मरने लगे। 

प्रश्न. 'सब दिन होत न एक समान' से क्या आशय है ? 

उत्तर- 'सब दिन होत न एक समान' से एक कटु सत्य की ओर ध्यान दिलाया गया है कि सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख आता रहता है। जिस प्रकार रात के बाद दिन और दिन के बाद रात आती रहती है।
 
प्रश्न.सेठ का चरित्र-चित्रण कीजिए। 

उत्तर- सेठ का चरित्र-चित्रण-सेठ अत्यन्त विनम्र और उदार थे। वह धर्मपरायण थे, कोई भी साधु-संत उनके द्वार से निराश नहीं लौटता था। गरीब हो जाने पर भी वे कर्त्तव्य-परायण बने रहे। उन्होंने खुद भूखे रहकर मरणासन्न कुत्ते को सारी रोटियाँ खिला दीं और इस कार्य को यज्ञ की श्रेणी में नहीं रखा। उनके अनुसार यह हर मानव का कर्त्तव्य है और मानवोचित कर्त्तव्य को बेचने को वे तैयार नहीं हुए। जब इस कार्य के फलस्वरूप उन्हें हीरे-जवाहरात प्राप्त हुए, तब भी उन्होंने ईश्वर से यही प्रार्थना की कि उनकी कर्त्तव्य बुद्धि ऐसी ही बनी रहे और उन्हें कर्त्तव्य पालन करने की शक्ति दें। 

प्रश्न. यज्ञों के क्रय-विक्रय का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- यज्ञों के क्रय-विक्रय की प्रथा पहले प्रचलित थी । यज्ञों को खरीदा और बेचा जा सकता था। माना जाता था कि यज्ञ करने वाले को उसका फल मिलना था, वह यज्ञ बेचने पर खरीदने वाले को वही फल मिलेगा। यज्ञ के अनुसार उसका मूल्य तय किया जाता था ।
 
प्रश्न. यज्ञ बेचने का सुझाव किसने और क्यों दिया ? 

उत्तर- यज्ञ बेचने का सुझाव सेठानी ने अपनी गरीबी से तंग आकर दिया। उन्हें लगा कि भूखे मरने से अच्छा है कि यज्ञ बेचकर कुछ मूल्य मिल जाये तो कुछ हालत सुधर जाये। वैसे भी सेठ ने पूर्व में कई यज्ञ किये थे।
 
प्रश्न. यज्ञ बेचने सेठ कहाँ गये ? अफ़वाह क्या थी ?

उत्तर- यज्ञ बेचने सेठ कुंदनपुर गये, जो सेठ के यहाँ से दस-बारह कोस की दूरी पर बसा हुआ था, उस नगर में एक धन्ना सेठ रहते थे। अफ़वाह यह थी कि उनकी सेठानी को कोई दैवीय शक्ति प्राप्त है, जिससे वह तीनों लोकों की बात जान लेती है।
 
प्रश्न. सेठानी का चरित्र-चित्रण कीजिए ।
 
उत्तर- सेठानी का चरित्र-चित्रण - सेठानी पतिव्रता थीं। वे समझदार और धर्यवान भी थीं। गरीबी में भी उन्होंने सेठ का साथ नहीं छोड़ा और धीरज बँधाया। सेठानी ने ही सेठ को यज्ञ बेचने की सलाह दी थी। सेठ के खाली हाथ वापस आने पर उन्हें चिंता तो हुई, पर पूरी कहानी सुनकर वे इसलिए खुश होती हैं कि सेठ ने विपत्ति में भी अपना धर्म नहीं छोड़ा .

प्रश्न . सेठजी ने किसे यज्ञ बेचने का निश्चय किया? 

उत्तर- दस-बारह कोस दूर कुंदनपुर नगर में एक बहुत बड़े सेठ रहते थे। उनके पास धन की कोई कमी न थी । लोग उन्हें धन्ना सेठ कहते थे। वे सेठजी के यज्ञ को खरीद कर अवश्य ही उचित मूल्य देंगे यह सोच सेठजी ने धन्ना सेठ को अपना यज्ञ बेचने का निश्चय किया।
 
प्रश्न. धन्ना सेठ ने सेठ जी से क्या पूछा और सेठ जी ने क्या उत्तर दिया ? 

उत्तर- धन्ना सेठ ने सेठ जी का स्वागत कर आने का कारण पूछा। सेठजी ने बताया कि वे संकट में हैं और उन्हें एक यज्ञ बेचने के लिए आए हैं। 

प्रश्न. धन्ना सेठ की पत्नी ने यज्ञ खरीदने की क्या शर्त रखी ?
 
उत्तर- धन्ना सेठ की पत्नी ने कहा कि यज्ञ खरीदने के लिए, तो हम तैयार हैं पर आप अपना आज किया हुआ महायज्ञ बेचोगे तो ही हम खरीदेंगे, नहीं तो नहीं।
 
प्रश्न. सेठ जी खाली हाथ क्यों लौट आए ? 

उत्तर- सेठ जी मानते थे कि भूखे को अन्न देना सभी का कर्तव्य है इसमें यज्ञ जैसी कोई बात नहीं है। उन्हें मानवोचित कर्तव्य का मूल्य लेना उचित न लगा। इसलिए चुपचाप पोटली उठाकर खाली हाथ ही लौट आए।
 
प्रश्न. 'धन्य हैं मेरे पति' यह किसने और क्यों कहा? 

उत्तर- सेठ जी की सारी बात सुन सेठानी से कहा कि मुसीबत में भी अपना धर्म न छोड़ने वाले मेरे पति (सेठजी) धन्य हैं। उसने सेठजी के पैरों की धूल माथे से लगा ली।

प्रश्न. सेठानी के दीया जलाते समय क्या घटना घटी?

उत्तर- संध्या समय सेठानी दीया जलाने के लिए बरामदे में आई तो देहरी के पास किसी चीज से उसे ठोकर लगी। गिरते-गिरते बची, सँभलकर किसी तरह दीए तक पहुँचकर उसे जलाया।

प्रश्न. सेठ जी के अचरज का क्या कारण था? 

उत्तर- दहलीज के सहारे एक कुंदा लगे पत्थर को ऊँचा उठा देख सेठ जी अचरज में पड़ गए क्योंकि शाम तक तो वहाँ पत्थर उठा नहीं था तो फिर अचानक कैसे उठ गया ?
 
प्रश्न. सेठ सेठानी की आँखें चौंधियाने का कारण क्या था?

उत्तर- जब सेठ सेठानी दीया लेकर नीचे सीढ़ियाँ उतरने लगे तो जवाहरातों की चमक से उनकी आँखें चौंधियाने लगीं। नीचे विशाल तहखाने में जवाहरात जगमगा रहे थे। इस माया का रहस्य उनकी समझ से परे था।
 
प्रश्न. उन्हें किस महायज्ञ का पुरस्कार मिला? 

उत्तर- नीचे तहखाने में उन्होंने देव वाणी से सुना कि स्वयं भूखे रहकर अपना कर्तव्यपालन की भावना से मरणासन्न कुत्ते को चारों रोटियाँ खिलाकर उसकी जान बचाई उन्हें उसी महायज्ञ का पुरस्कार मिला है। 


MCQ Questions with Answers Mahayagya Ka Puraskar kahani


बहुविकल्पीय प्रश्न उत्तर 

प्र.१. महायज्ञ का पुरस्कार कहानी के लेखक कौन है ?
a. यशपाल 
b. प्रेमचंद 
c. जयशंकर प्रसाद 
d. शिवानी 

उ .a. यशपाल 

२. यशपाल ने किस पत्र का संपादन किया ?
a. विप्लव 
b. हँस 
c. वागर्थ 
d. ज्ञानोदय 

उ. a विप्लव 

३. यशपाल की सबसे प्रसिद्ध रचना है ?
a. झूठा सच 
b. गोदान 
c. गबन 
d. लहरों के राज हँस 

उ. a. झूठा सच 

४. विपद्ग्रस्त शब्द का क्या अर्थ है ?
a.  खुशहाल 
b. संगीतमय 
c. विप्पति में फंसे हुए . 
d. अच्छा जीवन गुजारना 

उ. c. विप्पति में फंसे हुए . 

५.  सब दिन न होत एक समान 
a. सब दिन बुरे होते हैं . 
b. सभी दिन अच्छे होते हैं . 
c. सब दिन एक जैसे होते हैं . 
d. सभी दिन एक समान नहीं होते हैं . 

उ. d. सभी दिन एक समान नहीं होते हैं . 

६. अपने बुरे दिन को ठीक करने के लिए सेठजी क्या उपाय सोचा ?
a. व्यापार करने 
b. पूजा करने 
c. यज्ञ करने का 
d. यज्ञ का पुण्य बेचने का . 

उ. d. यज्ञ का पुण्य बेचने का . 

७. 'न हो तो एक यज्ञ ही बेच डालो ' यह बात किसने कही ?
a. सेठजी 
b. सेठ की पत्नी ने 
c. गाँव वालों ने 
d. भगवान् ने 

उ. b. सेठजी की पत्नी ने 

8. सेठजी के यहाँ से दस - बारह कोस की दूरी पर कौन सा  गाँव था ?
a. रामनगर 
b. मधुपुर 
c. चंदरपुर 
d. कुन्दनपुर 

उ. d. कुन्दनपुर 

९. सेठानी जी रास्ते में खाने के लिए क्या बाँध कर देती है ?
a. चना - गुड 
b. चार रोटियां 
c. दाल - भात 
d. दही - माखन 

उ. b चार रोटियां 

१०.  सेठजी राश्ते में विश्राम करने के लिए कहाँ रुके ?
a. धर्मशाला  में 
b. पेड़ों के कुञ्ज और कुएं के पास 
c. किसी परिचित के घर 
d. किसी होटल में 

उ. b. पेड़ों के कुञ्ज और कुएं के पास 

11. सेठजी ने अपनी सारी रोटियां किसे खिला दी ?
a. एक कुत्ते को 
b. बिल्ली को 
c. स्वयं खा गए 
d. अपने मित्र को 

उ. a. एक कुत्ते को 

१२ . सेठजी अपना यज्ञ का पुण्य कहाँ बेचने गए थे ?
a. कुन्दनपुर 
b. रविदास पुर 
c. श्यामपुर 
d. लखीमपुर 

उ. a. कुन्दनपुर 

१३. धन्ना सेठ की पत्नी के बारे में क्या अफवाह प्रचलित थी ?
a. वह मुर्ख महिला है . 
b. वह बहुत चालाक है . 
c. उसे कोई दैवी शक्ति प्राप्त है . 
d. वह झूठ बोलती है . 

उ.c. उसे कोई दैवी शक्ति प्राप्त है . 

१४. "क्या विचार है सेठजी . यह यज्ञ बेचना है कि नहीं . ? किसने कहा ?
a. सेठानी 
b. पंडित जी ने 
c. धन्ना सेठजी की पत्नी ने 
d. स्वयं सेठजी ने 

उ. c. धन्ना सेठजी की पत्नी ने . 

१५. सेठजी ने रात वापस कहाँ बितायी ?
a.  पेड़ों के नीचे 
b. मित्र के घर 
c. धन्ना सेठ के घर 
d. कुन्दनपुर की धर्मशाला के चबूतरे पर 

उ. d. कुन्दनपुर की धर्मशाला के चबूतरे पर 

१६. विप्पति में भी सेठजी ने क्या नहीं छोड़ा ?
a. पत्नी का साथ 
b. अपना लालच 
c. अहंकार 
d. धर्म का साथ 

उ. d. धर्म का साथ 

१७. संध्या समय सेठानी जी को किस चीज़ से चोट लगी ?
a. ईंट से 
b. लोहे से 
c. बर्तन से 
d. पत्थर में लगे लोहे के कुंदे से 

उ. d. पत्थर में लगे लोहे के कुंदे से 

१८. सेठजी सीढियां उतर कर क्या पाए ?
a. रसोईघर 
b. चोरों का अड्डा 
c. हीरे जवाहरातों से भरा तहखाना 
d. स्वयं का घर 

उ. c. हीरे जवाहरातों से भरा तहखाना 

१९. सेठजी ने अपने महायज्ञ के पुरस्कार स्वरुप क्या प्राप्त किया ?
a. समाज की प्रशंसा 
b. हीरे जवाहरात से भरे तहखाने 
c. गाँव भर में बदनामी 
d. वापस चार रोटियां 

उ. b. हीरे जवाहरात के भरे तहखाने 

२०. महायज्ञ का पुरस्कार कहानी से हमें क्या सीख मिलती है ?
a. सभी प्राणियों पर दया करने 
b. निस्वार्थ भाव से कर्म करने 
c. दूसरों का कष्ट निवारण करने की 
d. उपयुक्त सभी 

उ. d. उपयुक्त सभी 


विडियो के रूप में देखें - 




COMMENTS

Leave a Reply: 21
  1. Yagya bachna SA kya matlab hai kuch samajh nahi aaya

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    1. यज्ञ का पुण्य देकर रुपया-पैसा अर्जित किया जा सकता है

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    2. Yagya ke phal ko bechne ki prataha jo un dino prachalit thi yaha use yagya matlab yagya ke phal ko bechne ki bat ki ja rahi hai

      हटाएं
    3. Yagya ke phal ko bechne ki prataha jo un dino prachalit thi yaha use yagya matlab yagya ke phal ko bechne ki bat ki ja rahi hai

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  2. It's Good but where is Udesh, about the author, etc

    जवाब देंहटाएं
  3. you helped me a lot thank you very very very much

    जवाब देंहटाएं
  4. It helped me al lot in my exams

    जवाब देंहटाएं
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