अनूठा उपहार

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5 सितम्बर शिक्षक दिवस होता है। यह जानने के लिये कि विद्यार्थियों में शिक्षकों के प्रति कितना प्रेम व सम्मान है, पाठशाला के प्रधान आचार्य ने विद्यार्थियों से एक एक उपहार शिक्षक दिवस लाने को कहा।

अनूठा उपहार

5 सितम्बर शिक्षक दिवस होता है। यह जानने के लिये कि विद्यार्थियों में शिक्षकों के प्रति कितना प्रेम व सम्मान है, पाठशाला के प्रधान आचार्य ने विद्यार्थियों से एक एक उपहार शिक्षक दिवस लाने को कहा। उन्हें यह भी बताया गया कि जो सबसे अच्छा उपहार लावेगा, उसे सम्मानित किया जावेगा। सभी बच्चे उत्साहित हो उठे और अच्छे से अच्छा उपहार लाने की सोचने लगे। धनी परिवार के बच्चे एक से बढ़कर एक कीमती उपहार देने का विचार करने लगे। जो गरीब थे वे अपने हाथों से बढ़िया  चीजें बनाने में जुट गये।
धनी बच्चों ने अपने कीमती उपहार चाँदी की थाली में रेशमी कपड़े में लपेटकर भेट करने की सोची। गरीब बच्चे भी अपने हुनर का प्रदर्शन करने बाँस, लुब्दी, कागज आदि की सुन्दर नक्काशी की तस्तरी में कढ़ाई किये कपड़े में रखकर उपहार ले आये। सभी के माता-पिता ने अपने बच्चों को सुन्दरतम वस्त्र पहनाये थे ताकि समारोह में उनका आकर्षण मंत्रमुग्ध करनेवाला हो।
समारोह में एक एक बच्चे का नाम पुकारा जाता और वे अदब से मंच पर आकर अपने उपहार भेंट करने लगे। सभी के उपहार प्रशंसा के योग्य थे। किसका उपहार सबसे अच्छा माना जावेगा, यह कहना मुश्किल था। निर्णय का समय भी आ गया, पर शिक्षकों का चहेता बालक विजय नहीं आ पाया था।
सभी बच्चों के अभिभावक निर्णय सुनने उतावले हो रहे थे। वे आपस में फुसफुसाने लगे, ‘सिर्फ एक बच्चे के आने का इंतजार कब तक किया जावेगा?’
किसी ने कहा, ‘उसके पिता हाल ही में सीमा पर मारे जा चुके हैं। वह बच्चा दुख में है। उससे उपहार प्राप्त होने
भूपेन्द्र कुमार दवे
भूपेन्द्र कुमार दवे
की आशा ही नहीं करने चाहिये।’
‘हाँ, वह कई दिनों से स्कूल भी नहीं आ रहा। वह घर पर भी नहीं दिखता,’ उसके दोस्त ने कहा।
किसी ने कहा, ‘उसकी माँ भी विजय को खोजती भटकती दिखती है। शायद वह गाँव छोड़कर कहीं चला गया है।’
सच, अब और इंतजार करना निरर्थक समझा जाने लगा। तभी सुझाव आया कि विजय का नाम तीन बार पुकारा जावे और यदि तब भी वह नहीं आया तो आये उपहारों का निरिक्षण कर सबसे अच्छे का चयन कर दिया जावे। सभी अभिभावक इससे सहमत हो गये।
‘विजय ... एक।’
‘विजय ... दो।’
‘और यह विजय ...’ 
पर ‘तीन कहने के पहले लोगों ने देखा कि विजय धूल व पसीने से लथपथ, फटे चिथड़े में दौड़ा चला आ रहा था। पर उसके हाथ खाली थे और वह बुरी तरह थका हुआ दिख रहा था। जैसे-तैसे वह आगे बढ़ा और मंच के पास आकर ठिठक गया। मंच की मेज पर रखे सुन्दर उपहारों को देख वह आगे न बढ़ सका।
‘तुम क्या उपहार लाये हो?’ प्रधान आचार्य ने पूछा। 
डरते-डरते उसने अपने पेंट की जेब से एक पुड़िया निकाली और उसे ‘दे या न दे’ की उलझन में यूँ ही खड़ा रहा। एक शिक्षक ने आगे बढ़कर वह पुड़िया ली और खोलकर देखा। ‘अरे! यह क्या है? मिट्टी !!’ शिक्षक ने पूछा। यह सुन सभी खिलखिलाकर हँस पड़े।
विजय अपने आँसू रोक न सका। रोते-रोते वह बस इतना कह पाया, ‘यह सरहद की मिट्टी है, जहाँ मेरे पापा शहीद हुए थे।’
                                                                     


यह रचना भूपेंद्र कुमार दवे जी द्वारा लिखी गयी है आप मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल से सम्बद्ध रहे हैं आपकी कुछ कहानियाँ व कवितायें आकाशवाणी से भी प्रसारित हो चुकी है 'बंद दरवाजे और अन्य कहानियाँ''बूंद- बूंद आँसू' आदि आपकी प्रकाशित कृतियाँ हैसंपर्क सूत्र - भूपेन्द्र कुमार दवे,  43, सहकार नगररामपुर,जबलपुरम.प्र। मोबाइल न.  09893060419.             

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