ग़ैरतमंद

SHARE:

सुबह का समय था। गाँव के लोग जो खेतों में गए हुए थे, वे यह कहते हुए भागते हुए आए कि बाढ़ आ रही है। हर शौकत हुसैन शोरो शौकत हुसैन शोरो एक थोड़ा-सा सामान लेकर गाँव से निकलने की भागम-भागी में लग गया।

ग़ैरतमंद


सिंधी कहानी 
लेखक: शौकत हुसैन शोरो
अनुवाद: देवी नागरानी 

सुबह का समय था। गाँव के लोग जो खेतों में गए हुए थे, वे यह कहते हुए भागते हुए आए कि बाढ़ आ रही है। हर
शौकत हुसैन शोरो
शौकत हुसैन शोरो
एक थोड़ा-सा सामान लेकर गाँव से निकलने की भागम-भागी में लग गया। आरिब और उसका छोटा भाई कासिम भी भागते हुए घर आए।
‘जल्दी करो, कपड़े लत्ते, थोड़ा ज़रूरी सामान जो ले सको, लेकर निकलें। बाढ़ बस आई कि आई!’
कासिम की पत्नी ज़रीना पेट से थी। आठवाँ महीना चल रहा था। वह उठी और सामान समेटने लगी।
‘सफूरान कहाँ है?’ आरिब ने पूछा।
‘कुछ देर पहले बाहर गई है।’ ज़रीना ने जवाब दिया।
‘उसे भी अभी बाहर जाना था। लोगों की भागम-भाग मची हुई है। ऐसी क्या ज़रूरत थी उसे बाहर जाने की...।’ आरिब ने ग़ुस्से से कहा।
‘मैं देखकर आता हूँ!’ कहकर कासिम जल्दी बाहर निकल गया। बाहर आकर आसपास नज़र फिराई, पर वह कहीं नज़र नहीं आई। वह घूमकर घर के पिछवाड़े की ओर गया। कुछ दूरी पर सफूरान रमज़ान के साथ बातें कर रही थी। उसे देखकर कासिम का पारा चढ़ गया। उसकी रमज़ान के साथ वैसे ही अनबन थी और अब जो उसे भाभी के साथ इतनी नज़दीकी में बात करते देखा, तो वह आग-बबूला हो उठा। कासिम कुल्हाड़ी लेकर उनकी ओर दहाड़ा। रमज़ान ने उसे दूर से आते देखा, तो वह छू-मंतर हो गया। सफूरान पथरा-सी गई। कासिम ने एक पल की देर न की, ‘तुम काली हो’ कहते हुए कुल्हाड़ी का ज़ोरदार वार उसकी गर्दन पर किया। वह धड़ाम से नीचे गिरी। कासिम उल्टे पाँव घर की ओर लौटा, एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। ख़ून से सनी कुल्हाड़ी लेकर घर पहुँचते ही अपने भाई आरिब के सामने रख दी। आरिब हक्का-बक्का रह गया।
‘यह क्या कर आए?’ आरिब की चीख़ निकल गई।
‘भौजाई का क़त्ल कर आया हूँ।’ कासिम की आवाज़ के साथ साथ उसकी शक्ल में भी एक वहशियत थी। ज़रीना काँपने लगी, ख़ून से रँगी कुल्हाड़ी देखकर उसका दिल मचलने लगा। आरिब का छः साल का बेटा और चार साल की बेटी, दोनों भयभीत होकर पिता और चाचा को देखने लगे।
‘क्यों किया?’ आरिब ने डूबती आवाज़ में पूछा।
‘पिछवाड़े में रमज़ान के साथ उसे देखा!’ कासिम ने कहा।
‘ऐसा क्या देखा...?’ आरिब ने फिर सवाल किया।
‘दोनों एक-दूसरे के नज़दीक खड़े थे। मुझे देखकर रमज़ान भाग गया और भौजाई...।’ कासिम ने बात अधूरी छोड़ दी।
‘फिर बिना किसी पूछताछ के तुम उसे मार आए।’ आरिब की चीख निकल गई।  ‘वह मेरी औरत थी, मुझे बताते! तुम्हें क्या हक़ था उसे मारने का?’ आरिब ने ग़ुस्से से लाल-पीला होते हुए कहा।
बच्चे जो अब तक भय से थरथरा रहे थे, अब ‘अम्मा अम्मा’ कहकर रोने लगे थे।
कासिम ने आगे बढ़कर ज़मीन पर पड़ी कुल्हाड़ी उठाते हुए कहा, ‘भाई मेरी ग़ैरत जाग उठी। ठीक है, मैं थाने जाकर ख़ुद को समर्पित करता हूँ।’ वह जाने लगा। ज़रीना ने घबराकर कासिम की ओर फिर आरिब की ओर देखा।
‘ठहरो!’ आरिब ने चिल्लाते हुए कहा, कुल्हाड़ी मुझे दे दो।’
उसने आगे बढ़कर कासिम के हाथों से कुल्हाड़ी छीन ली और ज़ोर से बहुत दूर फेंक दी।
‘थाने जाने की कोई ज़रूरत नहीं है, चलो मेरे साथ।’ आरिब ने ग़ुस्से से कहा।
बाढ़ का पानी अब गाँव तक आ पहुँचा था। आरिब ने कंधों पर बेटे को बिठाया और बेटी को गोद में लिया। 
‘जल्दी करो, चलो नहीं तो डूब जाएँगे।’ बढ़ता हुआ पानी अब उनकी कमर तक पहुँच गया था। उमड़ते पानी के बीच से रास्ता चीरते वे बाँध पर आकर पहुँचे। वहाँ लोगों की भीड़ जमा थी।
आस-पास के गाँव के लोग भी वहाँ जमा हुए थे। सभी अपनी-अपनी चिंता और परेशानी की चादर ओढ़े हुए थे।
आरिब के परिवारवालों ने वह रात बाँध पर गुज़ारी। दूसरे दिन उन्हें एक ट्रैक्टर-ट्राली में सवारी मिल गई। बाढ़ से पीड़ित और लोगों के साथ वे ‘सरवर’ आ पहुँचे। कैंप में ऊधम मचा हुआ था। बच्चों और औरतों के साथ मर्दों की आवाज़ें भी थीं। आरिब बच्चों को अपने साथ सटाकर बैठ गया। ज़रीना भी सामान को सरकाकर वहाँ आकर बैठी। गाँव से निकलने के पश्चात आरिब बिल्कुल चुप था।
‘मैं देखकर आता हूँ, कहीं कोई रहने का ठिकाना मिल जाए।’ कहते हुए कासिम लोगों के हुजूम में खो गया। रात बहुत देर गए वह वापस लौटा।
‘नाम लिखवाकर आया हूँ। हमें एक तंबू भी मिला है। चलो चलते हैं।’ कासिम ज़रीना के साथ सामान लेकर आगे बढ़ा। आरिब बच्चों को लेकर चुपचाप उनके पीछे जाने लगा। तंबू में आकर ज़रीना ने सामान सहेजकर रखा। वह अपने साथ कुछ बर्तन भी ले आई थी। कासिम उनमें से एक हाँडी लेकर बाहर चला गया। दिन-भर के भूखे-प्यासे बच्चे अब रोने लगे थे। कासिम दलिए से आधी भरी हाँडी लेकर भीतर आया।
‘यहाँ खाना लेना नहीं पड़ता, भीख में माँगना पड़ता है।’ कहते हुए उसने हाँडी नीचे रख दी। ज़रीना ने दो थालियों में दलिया परोसकर दोनों भाइयों के सामने रखा। आरिब बच्चों को खिलाने लगा। ‘भैया बच्चों को मैं खिलाती हूँ, यह आप खा लो।’ ज़रीना ने आरिब से कहा।
आरिब ने कोई जवाब नहीं दिया। ज़रीना ने कासिम की ओर देखा जैसे आँखों ही आँखों से शिकवा करते हुए कह रही हो, ‘देखा कैसा क़हर कर दिया तुमने!’
आरिब ने बच्चों को खिलाकर, उन्हें लिटाया और ख़ुद भी लेट गया। नींद तो किसी को भी नहीं आ रही थी। ज़रीना ने सोने के लिए आँखें मूदीं, तो उसके आगे ख़ून से सनी कुल्हाड़ी घूम गई। सफूरान थी तो उसकी जेठानी, पर वह उसकी सास बनकर उसे दुलारती और प्यार करती। ज़रीना अभी दस साल की ही थी कि उसकी माँ मर गई। उसके पिता की संगत चोर-डाकुओं के साथ थी। वह कभी जेल में होता, तो कभी बाहर। ज़रीना कभी नानी के पास तो कभी पराए दरों की ठोकर खाती रही। सात-आठ साल यूँ ही गुज़र गए। उसके पिता एक दिन अपने बचपन के दोस्त आरिब के पास गए और ज़रीना को शादी के बंधन में बाँधने की बात की, ताकि वह इस जवाबदारी से मुक्त हो सके। आरिब को भी अपने छोटे भाई कासिम के लिए एक रिश्ते की तलाश थी। ज़रीना सुंदर भी थी और गुणवान भी। सफूरान ने उसे अपनी छोटी बहन की तरह समझा और माना था। ज़रीना का दिल अचानक भर आया और उसकी सिसकी बँध गई। वह दुपट्टा मुँह में ठूँसकर रोने लगी। कासिम समझ गया कि वह रो रही है। वह ख़ुद भी तो उसके बाजू में बुत बना लेटा रहा।उसका दिमाग़ बिल्कुल ख़ाली व सुन्न था।
फिर न जाने कब उन दोनों की आँख लग गईं। जब वे सुबह उठे, तो तंबू में न आरिब था, न बच्चे! उन्होंने सोचा शायद आरिब बच्चों को बाहर ले गया होगा। जब कुछ देर गुज़री, तो कासिम उन्हें ढूँढने के लिए बाहर निकला। उसने सारा कैंप छान मारा, पर आरिब व बच्चे कहीं भी नहीं मिले। आख़िर भटकने के बाद वह अकेला ही तंबू में लौट आया। ज़रीना जो इंतज़ार में बैठी थी, कासिम को अकेला आते देखकर व्याकुल हो गई. ‘क्या हुआ, भाई आरिब नहीं मिले?’
‘नहीं, सारा कैंप घूम आया हूँ, पर वे कहीं भी नज़र नहीं आए।’ कासिम ने मायूसी-भरे लहज़े में कहा।
ज़रीना हैरत-भरी निगाहों से कासिम की ओर देखती रही। ‘आख़िर वे कहाँ गए होंगे?’ लगता है भैया बच्चों को लेकर किसी और जगह चले गए हैं।’ कासिम ने कहा।
ज़रीना के हृदय को आघात पहुँचा। वह समझ गई कि आरिब उनसे जुदा होकर, बच्चों को लेकर कहीं निकल गए हैं।
‘अब तो हम बिल्कुल अकेले हो गए हैं।‘ ज़रीना जैसे अपने-आपसे बतियाने लगी। कासिम ने भी कुछ नहीं कहा।
‘अब हम ख़ुद भी क्या करेंगे?’ ज़रीना ने कुछ देर बाद कासिम की ओर देखते हुए कहा।
‘क्या करेंगे।’ अभी तो यहाँ कैंप में बैठे हैं।’ उसने बगल की जेब में हाथ डालकर सिगरेट का पैकेट निकाला। सिर्फ़ एक सिगरेट बचा था। उसने पैकेट फेंककर, सिगरेट सुलगाया और कश लेने लगा।
‘खाने का वक़्त हो गया है। हाँडी दे दो तो देखता हूँ। खाना लेने के लिए भी लंबी कतार...’
ज़रीना ने चुपचाप हाँडी लाकर उसे दी। कासिम बाहर निकला। वह जब लौटा तो उसकी कमीज़ फटी हुई थी।
‘खाना लेने के लिए तो तौबा...तौबा...एक तरफ़ पुलिसवालों की लाठियाँ, दूसरी तरफ़ लोगों की धक्का-धुक्की...’ उसने ग़ुस्से से कहा।
एक हफ़्ता-भर गुज़रा, तो कासिम बाहर से परेशानी वाली हालत में भीतर आया।
‘कह रहे हैं कि कल से मुफ़्त का खाना बंद है। हर एक अपना बंदोबस्त ख़ुद करे।’
‘फिर?’ ज़रीना भी परेशान हो उठी।
‘मेरे पास तो कुल मिलाकर तीन सौ रुपए होंगे। तुम्हारे पास कुछ पैसे हैं?’ कासिम ने ज़रीना से पूछा।
ज़रीना चुपचाप उठी, एक गठरी में से पाँच सौ रुपए निकालकर कासिम को दिए।
‘बस इतने!’ कासिम ने उन पैसों की ओर देखते हुए कहा। ‘इनमें से कितने दिन गुज़ारा होगा। ये ख़त्म हो गए तो फिर...?’
‘जजकी में भी अब कुछ दिन ही बाक़ी हैं। उसके लिए भी चार पैसे पास हों, तो अच्छा होगा।’ ज़रीना ने जैसे उसे याद दिलाते हुए कहा। कासिम खाना खाना भूल गया। वह परेशान हो उठा।
‘भैया के पास कुछ पैसे थे, पर वे हमें अकेला छोड़कर चले गये.’ कासिम ने शिकायती लहज़े में कहा।
‘किस मुँह से भैया पर इल्जाम लगा रहे हो!’ ज़रीना ने पहली बार कासिम के मुँह पर सच कहने की हिमाकत की। कासिम ने नज़रें उठाकर उसकी ओर देखा, जैसे कुछ कहना चाहता हो, पर चुप रहा।
रात को वे देर तक सोचते रहे, पर समस्या का कोई भी समाधान नज़र नहीं आ रहा था।
‘देखो शहर में अगर कोई नौकरी मिल जाए?’ ज़रीना ने सलाह दी।
‘यहाँ कैंप में हज़ारों लोग आए हैं, सभी भटक रहे हैं। क्या सिर्फ़ मुझे ही नौकरी मिलेगी?’ कासिम ने चिड़ते हुए कहा।
ज़रीना ने चुप रहना बेहतर समझा। कुछ देर बाद वह सोने की कोशिश करने लगी। कासिम को अचानक मौसी भागल याद आ गई, जो हैदराबाद में रहती थी। मौसी का पति ‘जानूं’ जाना-माना डकैत था। कई लोगों के साथ मिलकर उसने एक सूबेदार को भी मारा था, पर फिर वह उन डकैतों की टोली से जुदा हो गया। स्थापन के दिनों उसने मौसी भागल से शादी की और हैदराबाद में कासिमाबाद के इलाक़े में एक जगह ले ली। वहीं पर उसे एक बेटा भी पैदा हुआ। किसी जान-पहचान वाले ने उसे कासिमाबाद में देख लिया और जाकर पुलिस में चुगली लगाई। एक रात पुलिस की टीम ने उसके घर पर धावा बोल दिया और उसे गिरफ़्तार करके ले गए। मौसी भागल ने बहुत यत्न किए, कोर्ट में केस भी चला, वकील भी किए, पर जानू को फाँसी की सज़ा से कोई न बचा पाया। उन दिनों कभी आरिफ़ कभी कासिम माँ के साथ मिलकर कासिमाबाद जाते, उसकी मदद करते। जानूं को फाँसी हुई तो वो मौसी के साथ जाकर जानूं की लाश गाँव लिवाकर ले आए।
माँ के गुज़र जाने के बाद मौसी के पास उनका आना-जाना कम हो गया था। अब तो बरसों बीत गए थे। उनका मौसी के साथ कोई रिश्ता ही न रहा। कासिम को यक़ीन था कि वह अगर मौसी के पास जाएगा, तो वह ज़रूर उसका लिहाज़ करेगी। कासिम ने सोचा, ‘और कोई चारा भी नहीं, ये बचे-खुचे पैसे भी ख़त्म हो जाएँगे, तो कोई ख़ैरात भी नहीं देगा।’ उसे कोई और रास्ता नज़र नहीं आया तो उसने मौसी के पास जाने का फ़ैसला किया। इस फ़ैसले से जैसे उसके मन से भारी बोझ उतर गया।
सुबह उठते ही उसने यह बात ज़रीना को बताई। नाश्ता करके, सामान साथ लेकर वे कैंप छोड़कर सरवर स्टेशन पर आए। कासिम ने हैदाराबाद की दो टिकटें लीं और वे गाड़ी में रवाना हुए।
‘मेरे ख्याल में तो भैया आरिब भी भागल के पास गए होंगे।’ कासिम ने अंदाज़ा लगाते हुए कहा।
‘पता नहीं, वहाँ चलेंगे तो मालूम पड़ेगा।’ ज़रीना ने जवाब दिया।
‘तय है वहीं होगा, और कहाँ गया होगा।’ कासिम ने खातिरी के साथ कहा।
कासिम और ज़रीना जब कासिमाबाद, मौसी भागल के घर पहुँचे, तब उनकी बहू नसरीन ने आकर दरवाज़ा खोला। कासिम ने इससे पहले उसे कभी नहीं देखा था।
‘मौसी भागल घर में हैं?’ कासिम ने पूछा।
‘कौन मौसी भागल?’ नसरीन ने हैरत से पूछा।
कासिम कशमकश में पड़ गया, ‘यह घर मौसी भागल का है न?’
‘नहीं, यह मौसी अमीना का घर है!’ इतना कहकर नसरीन दरवाज़ा बंद करने ही वाली थी कि मौसी ने पास आकर पूछा, ‘कौन है?’
उसकी नज़र कासिम पर पड़ी, तो ख़ुशी से चिल्ला उठी, ‘कासिम ‘तुम?’
वह कासिम और ज़रीना को अंदर ले आई।
‘शाबास है बेटे! मौसी को तो बिल्कुल ही भुला बैठे। मैं टी॰वी॰ पर बाढ़ की ख़बरें देखकर चिंता में पड़ गई कि मेरे यतीम भांजों का न जाने क्या हाल हुआ होगा? अच्छा किया आ गए, पर आरिब और उसके बच्चे कहाँ हैं?’ मौसी ने शिकायत के साथ हमदर्दी जताते हुए कहा।
‘कैंप में तो साथ थे, फिर अचानक भैया हमें बताए बिना बच्चों को लेकर न जाने कहाँ चले गए। हमने समझा वो आपके पास आए होंगे...’
मौसी ने हैरानी से कासिम और ज़रीना की ओर देखते हुए कहा, ‘यहाँ तो नहीं आया।’ 
‘मौसी आप तो ख़ुश हैं न?’ कासिम ने बात का रुख़ बदलते हुए पूछा। 
‘बस बेटा! मालिक की मेहरबानी है, गुज़र-बसर हो रहा है। जो जमा-पूँजी थी, वह तुम्हारे मौसा पर खर्च हो गई। फिर भी शुक्र है, यह घर बच गया। अपनी छत की छाँव है।’
घर काफ़ी अच्छा था-तीन कमरे थे, आँगन और अलग रसोईघर। एक कमरे में सदीक, उसकी पत्नी और बच्चा रह रहा था। दूसरे कमरे में मौसी भागल, जो आजकल मौसी अमीना के नाम से जानी जाती थी। तीसरा कमरा छोटा था, जिसमें घर का सामान रखा हुआ था। मौसी ने उस कमरे में कासिम और ज़रीना को पनाह दे दी।
दूसरे दिन सुबह नाश्ता करते समय कासिम ने सदीक से कहा, ‘भाई सदीक, तुम्हें अगर कोई नौकरी सूझे तो मुझे दिला देना। किसी न किसी रोज़गार से लग जाऊँ, तो अच्छा होगा।’
सदीक हँसने लगा, ‘नौकरियाँ इतनी आसानी से मिलतीं, तो मैं क्यों बेरोज़गार बैठा होता। मैट्रिक पास हूँ, पर चौकीदार की नौकरी भी नहीं मिलती।’
‘बेटा, नौकरियाँ मिलनी मुश्किल हैं। कहीं अगर मज़दूरी मिल जाए, तो और बात है।’ मौसी अमीना ने कहा।
सदीक नाश्ता करके, तैयार होकर, घर के बाहर खड़ी नई मोटर साइकिल पर सवार होकर कहीं चला गया। कासिम ने सोचा कि उसे ख़ुद ही कोशिश करके रोज़गार ढूँढना पड़ेगा। इतना बड़ा शहर है, कहीं कोई मज़दूरी तो ज़रूर मिल जाएगी।’
देवी नागरानी
देवी नागरानी
कासिम कई दिन भटकता रहा। आफिसों में, दुकानों में, होटलों में, जहाँ भी गया उसे दो टूक जवाब मिला। ऊपर से ज़रीना की जजकी के दिन भी पास आने लगे।
मौसी ने जजकी का सारा भार ख़ुद पर ले लिया। कहीं से दाई का इंतज़ाम किया। ज़रीना ने बेटे को जनम दिया। मुबारकबाद का आदान-प्रदान हुआ, खुशियाँ मनाई गईं।
एक दिन ज़रीना ने बच्चे को सुलाते हुए कहा, ‘मौसी ने हम पर बहुत मेहरबानी की है। नहीं तो कौन किसी का इतना ख्याल रखता है और घर में बिठाकर खिलाता-पिलाता है, पर हम आख़िर कब तक मौसी पर बोझ बने बैठे रहेंगे?’ चिंता में डूबी ज़रीना ने कहा।
‘फिर क्या करें?’ कासिम बोल उठा, उसे ख़ुद भी इस बात का अहसास था।
‘तुम थोड़ा कुछ ही कमाकर ले आओ, तो हम भी सर उठाने जैसे हों।’ ज़रीना ने कहा।
‘तुम क्या समझती हो कि मैं कमाने से कतराता हूँ? पूरा महीना भटका हूँ, कहीं मजदूरी भी नहीं मिली। बाक़ी भीख माँगने का काम बचा है, कहो तो वह भी करके देखूँ।’ कासिम ने चिढ़ते हुए कहा।
‘आहिस्ता बोलो, मौसी सुन लेगी। मैंने कब कहा कि भीख माँगने का काम करो!’ ज़रीना ने वापस चिढ़ते हुए कहा।
‘तुम बात ही ऐसी करती हो ! अपनी ओर से मैंने पूरी कोशिश की।’ कासिम ने उसके कान के पास जाते हुए धीरे से कहा, ‘मेरी बात तो सुनो...।’
ज़रीना ने सवाली नज़रों से उसकी ओर देखा।
‘ये हर रोज़ शाम ढले मौसी के घर न जाने कौनसी लड़कियाँ सजी हुई आ जाती हैं। ये हैं कौन? मौसी के घर में क्या करती हैं?
‘मुझे क्या पता कौन हैं? मैं भी तुम्हारी तरह देख रही हूँ!’ ज़रीना ने जवाब दिया।
‘रात होते ही मौसी के पास फ़ोन आने शुरू हो जाते हैं। वह फ़ोन पर धीरे से बात करती है और फिर लड़कियों को साथ लेकर निकल जाती है। यह क्या माजरा है?’ कासिम ने हैरत ज़ाहिर करते हुए कहा।
‘यह उसकी मर्जी, तुम क्यों सिरदर्द मोल ले रहे हो। हमें पनाह दी है, तीन बार खाना देती है। हम पर उसका यह अहसान कम है कि तुम बैठे-बैठे मौसी की जासूसी कर रहे हो।’ ज़रीना ने कासिम को हल्के से डाँटा।
‘जासूसी नहीं कर रहा, सामने मंजर देख रहा हूँ, इसलिए पूछ लिया।’
‘चलो अब ज़्यादा दिमाग़ मत लड़ाओ, चुप करके सो जाओ।’ ज़रीना ने उसकी ओर पीठ करते हुए कहा।
एक दिन रात के वक़्त ज़रीना मौसी के पास बैठी थी कि एक फ़ोन आया।
‘हाँ रईस! मैं ख़ुश हूँ, गाँव से कब लौटे?’ मौसी ने पूछा और फिर बात सुनते ही हँसकर कहा, ‘आते ही इतनी बेताबी! अच्छा देखती हूँ अगर वह घर में है, तो लेकर आती हूँ।’
फिर मौसी ने किसी को फ़ोन करके कहा, ‘रईस ने बुलाया है, तुम तैयार हो जाओ, तो मैं रिक्शा में तुम्हें लेने आती हूँ।’
मौसी ने ज़रीना की ओर देखा, ‘तुम चलोगी घूमने?’
‘कहाँ मौसी...?’ ज़रीना ने पूछा। वैसे भी वह कभी-कभी मौसी के साथ बाज़ार में घर के सौदे के लिए जाया करती थी।
‘बस यूँ ही चलो चक्कर लगा आते हैं!’ मौसी ने मुस्कराते हुए कहा।
‘मेरा ...बच्चा...!’
‘नसरीन जो बैठी है।’ मौसी ने नसरीन को बुलाकर ज़रीना के बच्चे की देखभाल करने की हिदायत दी। नसरीन ने मुस्कराकर ज़रीना की ओर देखा। वह शक्ल-सूरत में सादी थी, पर दिल की अच्छी थी। ज़रीना को वह बहुत चाहती थी। घर का तमाम भार नसरीन पर था, पर अब ज़रीना भी उसके काम में हाथ बँटाती थी। मौसी अमीना तो फक़त हुकुम चलाया करती। वह थोड़ी- थोड़ी देर में पुकारकर नसरीन को चाय बनाने के लिए कहती। उसे चाय पीने व सिगरेट फूँकने के सिवा दूसरा कोई काम न था।
‘तो फिर चलें?’ मौसी ने ज़रीना से पूछा।
ज़रीना ने हामी भरी, तो मौसी ने उसकी ओर देखा और हँसते हुए कहा, ‘इस हाल में बाहर चलोगी क्या? कपड़े तो ढंग के पहन लो।’
ज़रीना ने भीतर जाकर कपड़े बदले और बाल ठीक करके बाहर आई। मौसी ने चाहत भरी नज़रों से उसकी ओर देखा और बाहर आकर हाथ के इशारे से एक रिक्शे को रोका। रिक्शेवाले से दो जगहों पर रुकने के पैसे तय करके ज़रीना के साथ भीतर बैठ गई। रिक्शा एक गली में किसी मकान के पास रुका। मौसी ने फ़ोन से एक मिस्ड कॉल किया। तुरंत चादर में लिपटी लड़की बाहर आई और रिक्शे में बैठ गई। सिंधी मुस्लिम सोसाइटी में एक बँगले के बाहर आकर रिक्शा रुकी, तो मौसी ने उसका किराया चुकाया। आगे जाकर उसने घर की कॉलबेल बजाई। तुरंत ही नौकर ने आकर गेट खोला। मौसी को देखते ही मुस्कराकर एक तरफ खड़ा हो गया। मौसी दोनों लड़कियों को लेकर बँगले में भीतर गई और ड्रांइगरूम में जाकर बैठ गई। ज़रीना को महसूस हुआ कि मौसी का वहाँ आना-जाना लगा रहता है। ज़रीना ने ज़िंदगी में पहली बार इतने बड़े बँगले को देखा था। वह बहुत ख़ुश हुई। साथ आई लड़की ने अपनी चादर उतारकर पास ही सोफ़े पर रख दी। लड़की जवान थी और दिलकश भी। कुछ ही पलों में वह रईस भीतर आया और उसने मौसी की ओर मुस्कराकर पूछा, ‘अमीना क्या हाल है? फिर उसने लड़की की और साथ बैठी ज़रीना की ओर देखा। उसकी आँखें ज़रीना पर ठहर गईं। ज़रीना को शर्म आने लगी, उसने अपनी आँखें नीची कर लीं।
‘रईस यह मेरी भांजी है। बाढ़ की वजह से यह लोग गाँव से मेरे पास आए हैं।’ मौसी ने ज़रीना का परिचय कराते हुए कहा, और फिर दूसरी लड़की की ओर देखते हुए कहा, ‘तुम्हारी फरमाइश पर शमाइला को लेकर आई हूँ।’
रईस ने मुस्कराते हुए शमाइला की ओर देखा, ‘कैसी हो?’
‘जी ठीक हूँ।’ शमाइला ने मुस्कराकर जवाब दिया।
रईस कुछ सोचते हुए उठा और मौसी की ओर देखते हुए कहा, ‘अमीना यहाँ आओ तो...।’ मौसी उठकर उसके पीछे दूसरे कमरे में गई। रईस बिस्तर पर बैठा और उसने मौसी को अपने साथ बिठाया। वह मौसी के कंधे पर अपनी बाँह रखकर उसे देखने लगा।
‘क्या देख रहे हो रईस?’ मौसी हँसने लगी, ‘मैं तो अब बूढ़ी हो गई हूँ।’
‘मैं भी कौन सा जवान हूँ, अमीना? साठ साल का हो गया हूँ।’
‘नहीं रईस, मर्द और घोड़ा दोनों कभी बूढ़े नहीं होते।’ मौसी की बात सुनकर रईस ने ठहाका लगाया।
‘तुम्हारी यही बातें तो मुझे भली लगती हैं।’ रईस ने हँसते हुए कहा। पल- भर रुककर फिर कहा, ‘अमीना जवानी में तुम भी कहर ढाती थीं, पर तुम्हारी भांजी भी ग़ज़ब की है। मैं तो उस पर फ़िदा हो गया हूँ।’
मौसी ने रईस की बाँह अपने कंधे से हटाते हुए कहा, ‘नहीं रईस! ज़रीना मेरे भांजे की बीबी है, मेरे पास मेहमान बनकर आई है। यह बात शोभा नहीं देती। तुम इस बात को ज़हन से निकाल दो। मैं तुम्हें ज़रीना से ज़्यादा सुंदर लड़की ढूँढकर दूँगी।’
‘नहीं!’ रईस ने नकारात्मक ढंग से गर्दन हिलाते हुए कहा, ‘मुझे तो वह भा गई है। चाहिए, तो बस यही चाहिए।’ उसने ज़िद   करने की कोशिश की।
‘रईस, मेरी बात सुनो और समझो, मैं तो इसे यूँ ही घुमाने ले आई थी। मुझे क्या पता कि इसे देखते ही अपने होश खो बैठोगे!’ मौसी ने हँसते हुए उसे समझाने की कोशिश की।
रईस ने मौसी के सामने दोनों हाथ जोड़ दिए, ‘देखो अमीना तुम कुछ भी करो, पर यह काम कर दो।’
मौसी ने तुरंत उठकर रईस के हाथों को अपने हाथों में थामा, ‘यह क्या कर रहे हो रईस! अच्छा, कुछ दिन सब्र करो, तो मैं कोई हल निकालने की कोशिश करती हूँ।’
रईस ने मौसी को आगोश में लेकर उसका गाल चूम लिया, ‘बस अब सब तुम्हारे हाथ में है। कुछ करना, वर्ना मैं मर जाऊँगा।’
‘अच्छा, अच्छा अब ज़्यादा अदाकारी दिखाने की ज़रूरत नहीं है। मैं तुम्हें जानती हूँ।’ मौसी जी ने उसे टोकते हुए कहा।
रईस ने बटुए से हज़ार-हज़ार के दो नोट निकालकर मौसी को दिए।
‘यह एक हज़ार तुम्हारा और एक हज़ार ज़रीना का।’ उसने फिर तीसरा नोट निकालते हुए कहा, ‘यह शमाइला को दे देना और उसे अपने साथ लेते हुए जाना अभी मेरा मन नहीं है।’
‘नहीं रईस, यह बात ठीक नहीं! तुम्हारे कहने पर ही उसे ले आई हूँ। अब कैसे कहूँ कि वापस चलो?’ मौसी ने ऐतराज़ करते हुए कहा।
‘अच्छा ठीक है! आई है, तो उससे दिल बहला लेता हूँ। वर्ना तुम भी बुरा मान जाओगी...’ रईस ने मौसी की बात मानते हुए कहा।
दोनों ड्राइंगरूम में लौटे, तो मौसी ने ज़रीना को चने के लिए कहा।
‘ठहरो तुम्हें मेरी गाड़ी छोड़कर आती है।’ मौसी के मना करने के बावजूद वे दोनों रईस की गाड़ी में सवार होकर रवाना हुईं। घर से कुछ दूरी पर दोनों कार से उतरकर घर आईं। ज़रीना अपने कमरे में गई, तो देखा कि बच्चा सो रहा था। कासिम अभी तक नहीं लौटा था। इतने में मौसी उसके कमरे में आई।
‘अरी पगली! रईस तुझे देखकर पागल हो गया है।’ मौसी ने उसके पास बैठते हुए कहा।
‘मौसी तुम मुझे ग़ैर मर्द के पास क्यों लेकर चलीं?’ ज़रीना ने शिकायत-भरे लहज़े में कहा।
‘इसलिए ले चली कि तुम थोड़ा घूम-फिर आओ। मुझे क्या पता था कि वह तुझ पर लट्टू हो जाएगा।’ मौसी ने हज़ार का नोट उसकी ओर बढ़ाते कहा, ‘ये लो रईस ने तुझे ख़ुशी से बख़्शीश दी है।’
ज़रीना हैरानी से उस नोट को देखती रही।
‘नहीं, मौसी नहीं! कासिम पूछेगा कि पैसे कहाँ से लाई, तो क्या जवाब दूँगी। तुम्हें पता नहीं कासिम कितना खड़ूस है...।’ फिर उसने सफूरान के क़त्ल की सारी वारदात मौसी को बता दी।
मौसी के तो जैसे होश उड़ गए, ‘यह ज़ालिम तो ख़ूनी है। मैं भी सोचूँ कि आरिब छोटे भाई को छोड़कर कैसे चला गया होगा? अच्छा, तो यह बात है...।’ उसने हज़ार का नोट अपने पास रखते हुए कहा, ‘हाँ सच में वह पैसे देखकर शक़ करेगा। तुम्हारे पैसे मैं अपने पास अमानत के तौर रखती हूँ।’
‘मौसी वैसे भी तुम्हारा ही तो खा रहे हैं...।’ ज़रीना ने शुक्रगुज़ारी की रस्म निभाते हुए कहा।
‘नहीं पगली नहीं! हर एक अपने नसीब का खाता है...।’ मौसी ने हँसते हुए कहा। ‘तुम्हें पता है घर का इतना ख़र्च किस तरह चलता है। सदीक बाल-बच्चों वाला हो गया है, पर घर की जिम्मेदारी बिल्कुल पूरी नहीं कर पाता। माँ जो कमा रही है। पिता के पैसे सब मुक़दमों में खर्च हो गए। ख़ुद तो फाँसी पर चढ़ गया, पीछे रह गई मैं। सदीक तब बच्चा था। मेरे पास अपनी जवानी के सिवा कुछ न था।’
मौसी ने गहरी साँस लेते हुए कहा, ‘तुम्हें क्या पता, अकेली औरत जात होकर मैंने किस तरह गुज़ारा किया। पापी पेट को टुकड़ा तो चाहिए न...।’ मौसी का गला भर आया। वह रोने लगी।
‘मैंने यह काम ख़ुशी से नहीं किया। मुझे अपना और अपने बच्चे का पेट पालना था। बस, इस दलदल में उतरी तो फिर बाहर न आ पाई...।’
मौसी को रोता देखकर, ज़रीना का दिल भर आया।
‘दुनिया बड़ी ज़ालिम है ज़रीना। किसी-न-किसी ढंग से उससे जूझना तो है ही।’ मौसी ने दुपट्टे से आँसू पोछते हुए कहा।
ज़रीना मौसी की बातें सुनकर दंग रह गई।
एक रात कासिम ने यूँ ही बात निकाली, ‘अब मुझे मौसी के पास रहना अच्छा नहीं लगता।’
‘क्यों? क्या हुआ?’ ज़रीना ने हैरानी से पूछा।
‘मुझे मौसी के आसार अच्छे नहीं लगते।‘ कासिम ने कहा।
ज़रीना सकते में आ गई, ‘तुमने ऐसे कैसे सोच लिया?’ उसने धीमी आवाज़ में कहा।
‘सदीक सारा दिन मोटर साइकिल पर घूमता रहता है। कोई काम भी नहीं करता, तो फिर घर में इतना पैसा कहाँ से आता है? मौसी कोई अच्छा काम नहीं कर रही है, इतना तो मैं भी समझ गया हूँ।’ उसने गर्दन हिलाते हुए कहा।
‘पता नहीं।’ ज़रीना ने नर्म लहज़े में कहा, ‘फिर तुम्हारी क्या मर्ज़ी है?’
‘कोई चारा हो तो यहाँ से निकल चलें।’ कासिम ने कहा।
‘मर्द आदमी हो, कोई रास्ता ढूँढ निकालो।’
‘सुबह से शाम तक रोज़गार के पीछे भागता फिरता हूँ। बस दुआ कर!’ कासिम ने बेबसी की छटपटाहट से जूझते कहा।
‘ख़ुदा करे अपने रोज़गार का कोई रास्ता निकल आए।’ ज़रीना ने कहा।
शायद ज़रीना की दुआ कबूल हुई, कासिम को एक होटल में काम मिल गया, पर वह काम उसके लिए नया भी था और कठिन भी। एक तो उसके शरीर में फ़ुर्तीलापन नहीं था, दूसरे कभी उसके हाथ से प्लेट गिर जाती, तो कभी गिलास टूट जाता। ग्राहकों की बातें सुननी पड़तीं और साथ में होटल के मालिक की सख्ती सहनी पड़ती। वह एक हफ़्ता भी नहीं टिक पाया। आख़िर होटल के मालिक ने उसे नौकरी से निकाल दिया। ज़रीना ने सुना, तो उसने दोनों हाथों से अपना माथा पीट लिया।
‘तुमसे यह काम भी नहीं हो पाया, तो दूसरा कौन सा काम करोगे?’ उसने ग़ुस्से से कहा।
‘लोगों की बातें सुनकर, सख़्ती सहकर भी काम कर रहा था। होटल मालिक ने ख़ुद जवाब दिया। इसमें मेरा क्या दोष?’ कासिम ने कहा।
‘आख़िर तुम क्या करोगे? अगर तुमसे कुछ नहीं होता, तो फिर मुझे रिहा करो, तो मैं मौसी के साथ बाहर निकलूँ...।’ ज़रीना ने चिढ़ते हुए कहा। कासिम ने झपटकर उसे गर्दन से पकड़ लिया।
‘फिर अगर ऐसी बात की है, तो तेरे टुकड़े-टुकड़े कर दूँगा...।’ ग़ुस्से से उसकी मुट्ठियाँ बँध गईं। 
‘भड़वों के साथ रहकर तुम भी उन जैसी हो गई हो।’ उसने ज़रीना की गर्दन पकड़ते हुए उसे धक्का मारा। ज़रीना कमरे की दीवार से टकराकर नीचे गिर पड़ी। कासिम तेज़ी से बाहर निकल गया। शोर सुनकर मौसी कमरे में आई। उसने ज़रीना को गले लगाकर उसे ज़मीन से उठाया। ज़रीना मौसी से लिपटकर रोने लगी।
‘हम भड़वे हैं और ख़ुद ग़ैरतमंद है, तो यहाँ क्यों बैठा है?’ मौसी बहुत गुस्से में थी। ‘मुझे तुम्हारा और छोटे बच्चे का खयाल न होता, तो अभी का अभी कासिम को घर से बाहर निकाल फेंकती। ख़ुद को समझता क्या है?’
उसने अपने दुपट्टे से ज़रीना के आँसू पोंछे। फिर पानी का ग्लास भरकर उसे पिलाया, ‘यह पानी पीले, ये मर्द सब होते हैं कुत्ते! झूठे, मक्कार, ग़ैरतमंद! इनका बस चले, तो औरत का मांस तो मांस, उनकी हड्डियाँ भी चबा डालें...।’ मौसी ने ग़ुस्से-भरे उबाल से कहा।
रात को कासिम देर से घर आया। ज़रीना ने चुपचाप खाना लाकर उसके सामने रखा और ख़ुद बच्चे के पास लेट गई। खाना खाकर कुछ वक़्त कासिम चुप बैठा रहा। वह चाहता था कि ज़रीना से बात करे। उसने ज़रीना की बाँह पर हाथ रखा, पर ज़रीना ने उसका हाथ परे झटक दिया। अब कासिम ज़मीन पर बिछे अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया।
मौसी और ज़रीना जबसे रईस के पास से लौटी थीं, शाम होते ही वह रोज़ मौसी को दो-तीन बार फोन करता।
‘क्या हुआ? मेरी रातों का सुख-चैन सब खो गया है। कब परिंदे को लेकर आ रही हो?’
‘रईस, ज़रीना कोई गुलाब नहीं, जो ख़ुशबू के साथ तुम्हारे पास ले आऊँ, पर तुम्हारे कारण मैं भरपूर कोशिश करूँगी।’ मौसी रईस की उम्मीद बँधाती और अपनी जान छुड़वा लेती। जब रईस की बेसब्री हद से ज़्यादा बढ़ी, तो मौसी ने उससे फ़ोन पर पूछा, ‘अच्छा यह तो बताओ, ज़रीना को किसी तरह ले भी आई तो दोगे क्या?’
‘जो तुम कहोगी।’ रईस ने तुरंत जवाब दिया।
‘ज़रीना तुम्हारे पास महीने में चार बार आएगी। तुम उसके चालीस हज़ार महीने के बाँध दो...।’ मौसी ने अपना पासा फेंका।
‘ये लो अमीना, तुम तो पहाड़ की चोटी पर चढ़ गईं।’ रईस की जैसे चीख़ निकल गई।
‘अगर रईसों के अदब-आदाब अपनाने हैं, तो ख़र्चा तो करना पड़ेगा।’
‘मैं हर महीने तीस हज़ार रुपए दूँगा, पर एक शर्त पर...।’
‘कैसी शर्त?’ मौसी ने पूछा।
‘वह मेरे सिवा किसी और के पास नहीं जाएगी।’ रईस ने शर्त सामने रखी।
‘वाह साँई, वाह! तीस हज़ार देकर परिंदे को पिंजरे में बंद करके
रखोगे। अगर ऐसा शौक है, तो लाख रुपए महीने का दो, नहीं तो ऐसी पाबंदी कबूल नहीं।’ मौसी ने रूखा-सा जवाब दिया।
‘ऐसी ज़ोर जबरदस्ती मत करो अमीना! तुम्हें पता है मेरे और भी कई खर्च हैं।’
‘तो फिर ऐसी शर्त भी मत रखो।’
‘चलो फिर मैंने शर्त को रद्द कर दिया। अब तो मान जाओ...।’ रईस जैसे बेबस हो गया था।
‘ठीक है रईस, देखती हूँ। मैं क्या कर सकती हूँ।’ मौसी ने कोई भी वादा न करते हुए कहा।
‘हाय! अब भी देखोगी? तब तक मैं मर जाऊँगा।’ रईस ने जैसे बेहताशा होकर चिल्लाते हुए कहा।
‘ये वाक्यांश किसी और को सुनाओ, मरता-वरता कोई नहीं।’ मौसी ने हँसते हुए कहा, ‘ज़रीना को हासिल करना इतना आसान नहीं। मुझे थोड़ा वक़्त दो अपने घर को तो बाँध लूँ।’
‘बस अमीना, अब तुम्हारी मर्ज़ी! हम तो अब तेरे बस में हैं।‘ रईस ने ठंडी आह भरते हुए फ़ोन बंद कर दिया।
‘मौसी तुमने यह क्या किया?’ ज़रीना के चेहरे पर डर और परेशानी के बादल उमड़ आए।
‘पगली! रईस के साये में तुम बस जाओगी।’ मौसी ने उसे समझाते हुए कहा।
‘नहीं मौसी नहीं..., डर से मेरा हृदय काँप रहा है। कासिम को तो तुम जानती हो।’ इतना कहकर ज़रीना हक़ीक़त में काँपने लगी थी।
‘इतना डरने की बात नहीं। मैं भी इस बात को समझती हूँ। बात बनी तो बनी, नहीं बनी, तो खैर है। मैंने तो ऐसे ही रईस से जानना चाहा कि वह देगा क्या?’
मौसी ने ज़रीना को दिलासा बँधाया!
कुछ दिनों तक कासिम से न ज़रीना ने बात की, और न ही मौसी उसके मुँह लगी। कासिम को मौसी की ओर से अधिक चिंता थी। अगर मौसी ने घर से निकाला, तो कहाँ जाएँगे? इस ख़याल से वह और अधिक भयभीत हो जाता। अब गाँव में भी उसके लिए कुछ न बचा था। एक बड़ा भाई था, उसने भी उससे नाता तोड़ दिया था। कैंपों में ख़ैरात पर आख़िर आदमी कब तक पड़ा रहेगा। एक दिन उसने ज़रीना को बात करते हुए मिन्नत की, ‘अब ग़ुस्से को थूक भी दो, क्या सारी उम्र बात नहीं करोगी?’
‘क्या बात करूँ? बात करती हूँ, तो गला दबा देते हो...।’ ज़रीना ने अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा।
‘तुमने बात ही ऐसी की। क्या गुस्सा नहीं आएगा?’
‘यानि, तुम्हें मेरा बात करना पसंद नहीं है? तो फिर बात न करूँ तो ही ठीक है।’
‘घर में दो बर्तन होंगे, तो ज़रूर टकराएँगे। इसमें बड़ी बात कौन सी है?’
‘बड़ा आया है बर्तन...।’ ज़रीना की हँसी छूट गई।
‘ग़नीमत है, तुम हँसी तो सही।’
‘मेरी तो ख़ैर है, पर मौसी बहुत ग़ुस्से में है।’ ज़रीना ने कासिम के अंदर ख़ाफ़ को फूँक दिया।
‘हाँ, मैं भी देख रहा हूँ, वह घास ही नहीं डाल रही। तुम उससे बात करो, तो शायद उसकी नाराज़गी कम हो।’
‘मौसी तुम्हारी है और कहा मेरा मानेगी?’
‘हाँ... पर...।’ कुछ कहते-कहते कासिम चुप हो गया।
दूसरे दिन शाम को मौसी के घर दो लड़कियाँ आईं। रात होते ही मौसी के पास फ़ोन आने लगे। मौसी दोनों लड़कियों को लेकर घर से निकली। गली से निकलकर रोड पर आई, तो एक कार उनका इंतज़ार कर रही थी। कार ने उन्हें लेकर एक बँगले के सामने छोड़ा। अंदर साहब अपने एक दोस्त के साथ बैठा था। उनके सामने व्हिस्की के भरे गिलास रखे थे। मौसी और लड़कियों को देखकर दोनों ने मिला-जुला नारा लगाया-‘मौसी ज़िन्दाबाद।’ मौसी ने लड़कियों को छोड़कर लौटना चाहा, पर साहब और उसके दोस्त ने मौसी को अपने साथ बिठाया और व्हिस्की का एक गिलास मौसी को पेश किया। 
‘चीयर्स’ कहकर उन्होंने अपने गिलास मौसी के गिलास से टकराए। मौसी भी दो पेग पीकर, मदहोशी में अपने घर लौटी। उस वक़्त तक ज़रीना व कासिम जाग रहे थे। मौसी ने ज़रीना को अपने कमरे में बुलवाया।
‘कर ख़बर? तुम्हारा मर्द रास्ते पर आया है या नहीं?’ मौसी ने ज़रीना से पूछा।
‘थोड़ा बहुत...। कहता है मौसी को मनवाओ।’ ज़रीना ने हँसते हुए कहा।
‘अच्छा, जाओ उसे ले आओ।’ मौसी जैसे आलीशान मूड में थी।
कुछ देर में ज़रीना लौट आई और उसके पीछे सहमा-सहमा सा कासिम भी भीतर आया।
‘बैठो मिया कासिम ख़ान।’ मौसी ने तंज-भरे लहज़े में कहा, ‘दबंग जान हो।’
‘नहीं मौसी, तुम्हारा बच्चा हूँ।’ बैठते हुए कासिम ने नर्मी से कहा।
‘मेरी स्वर्गवासी बहन के बेटे हो, इसीलिए मैंने भी तुम्हें अपना ख़ून समझकर घर में रखा। बाक़ी तुम मुझे अगर बुरा समझते हो, तो दरवाज़ा खुला पड़ा है। जाना चाहो, तो ख़ुशी से जा सकते हो।’ मौसी ने उस पर सीधा वार किया।
‘नहीं मौसी, तुम भी मेरी माँ समान हो। तुम्हें बुरा क्यों समझूँगा। तुम्हारे सिवा हमारा है ही कौन?’ कासिम की आवाज़  में पशेमानी थी। मौसी ने पर्स में से पाँच सौ वाले चार नोट निकालकर आगे रखे।
‘मेरी इस कमाई पर सारा परिवार चलता है। कुछ छिपा नहीं रही। मेरा धंधा तेरे सामने है।‘ उसने पाँच सौ का एक नोट कासिम की ओर बढ़ाते कहा, ‘हाँ, ये मेरी ओर से जेबख़रची है।’
‘नहीं, नहीं, मौसी, तुम्हारा दिया खा रहे हैं, मेरे लिए इतना ही काफी है।’ कासिम ने पैसे लेने से इंकार करते हुए कहा।
‘अब ले भी लो, मौसी का दिया हुआ लौटा रहे हो।’ ज़रीना ने ज़ोर दिया।
कासिम ने जैसे लाचारी के तहत नोट लेकर जेब में डाला।
‘कासिम, अब मेरी बात ठंडे दिमाग़ से सुनो। कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं है। अपनी मर्ज़ी वाले हो। अगर तुम्हें यह बात अच्छी न लगे, तो जहाँ चाहो अपना रास्ता पकड़कर चले जाना।’ मौसी ने ग़ौर से कासिम की ओर देखा। कासिम बिल्कुल चुप था।
‘क्या कहते हो? बात चलाऊँ?’ मौसी ने कहा।
‘जी मौसी!’ कासिम के गले से घुटी-घुटी-सी आवाष निकली।
‘तुम्हारी पत्नी और बच्चे का खर्च मुझ पर है। तुम उनसे आज़ाद हो। तुम्हें हर महीने पाँच हज़ार जेब ख़र्च मिलेगा। बस! ज़रीना की बाँह मेरे हवाले कर दो।’
कासिम के दिमाग़ की नसें तन गईं और उसका जिस्म पथरा गया। मौसी ने देखा कि उसकी आँखें लाल हो गई थीं।
‘तुम भले अभी जवाब मत दो। एक-दो दिन ठंडे दिमाग़ से सोच- विचार करो। फिर जो तुम्हारी मर्ज़ी।’ मौसी ने उनींदी आँखों से उनकी ओर देखते हुए कहा, ‘अब जाकर सो जाओ।’
कासिम अपने पथराए शरीर को ढोकर बाहर निकल गया। मौसी ने मुस्कराकर ज़रीना को आँख मारी और उसे कासिम के पीछे जाने को कहा।
कासिम जाते ही अपने बिस्तरे पर ढेर हो गया। उस रात दोनों ने एक- दूसरे से एक शब्द भी नहीं कहा और न ही दो-तीन दिनों तक मौसी वाली बात छेड़ी।
दो-तीन दिन गुज़र गए। कासिम दोपहर का खाना खाकर बाहर जाने लगा, तो ज़रीना ने उससे कहा, ‘सुनो आज शाम जल्दी घर आना, काम है।’
‘क्या काम है?’ कासिम ने हैरत से पूछा।
‘तुम आओ फिर बताऊँगी।’
कासिम कुछ समझ नहीं पाया। बेचैन मन में न जाने कितने सवालों ने उसका बाहर रहना मुहाल कर दिया। शाम होते ही घर लौट आया। ज़रीना कमरे में नहीं थी। वह बैठ गया। कुछ देर के बाद ज़रीना कमरे में भीतर आई, तो कासिम उसे देखकर दंग रह गया। उसने इतनी सजी-धजी ज़रीना कभी नहीं देखी थी। पहली बार ज़रीना उसे इतनी सुंदर लगी।
‘अब कहो, इजाज़त दो तो मौसी के साथ जाऊं ?’ कासिम का तन एक बार फिर पथरा-सा गया।
एक क्षण के लिए रुककर ज़रीना ने कहा, ‘क्या कहते हो, तुम्हारी मर्ज़ी नहीं है, तो मैं नहीं जाती।’ ज़रीना उसकी ओर देखती रही और कासिम की गर्दन झुक गई। कुछ देर के बाद उसने ज़रीना की ओर देखे बिना फुसफुसाहट के लहज़े में कहा, ‘चली जाओ...!’
ज़रीना ने गर्दन मोड़ ली। एक तंज-भरी मुस्कराहट को होंठों पर सजाए वह कमरे से बाहर निकल गई।



मूल लेखक -  शौक़त हुसैन शोरो जन्म : 4 जुलाई 1947, तालुका सजावल, ज़िला ठट्टो में। सचल सरमस्त आर्ट्स कॉलेज से बी.ए. और सिंध यूनिवर्सिटी से एम.ए. किया। अपनी कार्ययात्रा का प्रारंभ सिंधी अदबी बोर्ड, जामशोरो से प्रकाशित रसाले 'गुल-फुल’ के संपादक के रूप में किया। बाद में पाकिस्तान टी.वी. सेंटर, कराची में सहायक निर्माता रहे। इस समय सिंध यूनिवर्सिटी जामशोरो में छात्र पाठ्य सहगामी क्रियाओं के निदेशक के पद पर कार्यरत हैं। उनकी कहानियों के संग्रह 'गूँगी धरती, बहरा आकाश' और 'आँखों में टँगे सपने', 'रात का रंग' सिंधी में और 'गुम हुई परछाई' हिंदी में प्रकाशित हैं।दारा हुआ आदमी’ उनका सिन्धी से हिन्दी में अनूदित कहानी संग्रह है । सिंधी व उर्दू में कई नाटकों का प्रसारण हो चुका है। उनमें खास हैं-दौलत, बाख, धुब्बण एवं सुनीति वगैरह। मई 14, 2015 “अखिल भारत सिंधी बोली और साहित्य सभा” की ओर से उन्हें मुंबई में “सिन्धी अदीब अवार्ड” प्राप्त हुआ।           संपर्क : सिन्ध यूनिवर्सिटी जामशोरो की कालोनी में आवास।

अनुवादिका -  देवी नागरानी जन्म: 1941 कराची, सिंध (पाकिस्तान), 8 ग़ज़ल-व काव्य-संग्रह, (एक अंग्रेज़ी) 2 भजन-संग्रह, 8 सिंधी से हिंदी अनुदित कहानी-संग्रह प्रकाशित। सिंधी, हिन्दी, तथा अंग्रेज़ी में समान अधिकार लेखन, हिन्दी- सिंधी में परस्पर अनुवाद। श्री मोदी के काव्य संग्रह, चौथी कूट (साहित्य अकादमी प्रकाशन), अत्तिया दाऊद, व् रूमी का सिंधी अनुवाद. NJ, NY, OSLO, तमिलनाडू, कर्नाटक-धारवाड़, रायपुर, जोधपुर, महाराष्ट्र अकादमी, केरल व अन्य संस्थाओं से सम्मानित। साहित्य अकादमी / राष्ट्रीय सिंधी विकास परिषद से पुरुसकृत।
संपर्क 9-डी, कार्नर व्यू सोसाइटी, 15/33 रोड, बांद्रा, मुम्बई 400050॰ dnangrani@gmail.com

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,34,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",6,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,3,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,7,आषाढ़ का एक दिन,17,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,2,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,15,कमलेश्वर,6,कविता,1408,कहानी लेखन हिंदी,13,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,5,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,4,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,3,केशवदास,4,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,138,गजानन माधव "मुक्तिबोध",14,गीतांजलि,1,गोदान,6,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,2,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,2,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,29,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,68,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,4,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,25,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,3,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,6,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,23,नाटक,1,निराला,35,निर्मल वर्मा,2,निर्मला,38,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,174,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,133,प्रयोजनमूलक हिंदी,21,प्रेमचंद,39,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,3,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,86,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,5,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,6,भक्ति साहित्य,138,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,13,भीष्म साहनी,7,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,5,मलिक मुहम्मद जायसी,4,महादेवी वर्मा,18,महावीरप्रसाद द्विवेदी,2,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,10,मैला आँचल,4,मोहन राकेश,11,यशपाल,13,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,5,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,20,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,2,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,8,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,1,रीतिकाल,3,रैदास,2,लघु कथा,117,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,33,विद्यापति,6,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,1,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,7,शमशेर बहादुर सिंह,5,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,5,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,52,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,1,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,28,सआदत हसन मंटो,9,सतरंगी बातें,33,सन्देश,39,समसामयिक हिंदी लेख,221,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,17,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,69,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",9,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,20,सूरदास,15,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,10,हजारी प्रसाद द्विवेदी,2,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,343,हिंदी लेख,504,हिंदी व्यंग्य लेख,3,हिंदी समाचार,164,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,85,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,6,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,18,hindi essay,335,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,94,hindi stories,656,hindi-kavita-ki-vyakhya,15,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,13,kavyagat-visheshta,22,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,10,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,Rimjhim Class 3,14,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,sponsored news,9,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,32,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: ग़ैरतमंद
ग़ैरतमंद
सुबह का समय था। गाँव के लोग जो खेतों में गए हुए थे, वे यह कहते हुए भागते हुए आए कि बाढ़ आ रही है। हर शौकत हुसैन शोरो शौकत हुसैन शोरो एक थोड़ा-सा सामान लेकर गाँव से निकलने की भागम-भागी में लग गया।
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiA3miyK2yNnzCJQefywQY9N6CvYsrMaJ_6-9LpGpCF_5_RmUS6fP16K8BJWABp1V647-Pz2jDLiaeRd76iwyjIXP88N-BbOuSYgqQnNgluvR_Q0ZFIT51QnzzG2PRkfiwIWiyDOkJaCw9l/s1600/Shoukat++Hussain+Shoro.JPG
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiA3miyK2yNnzCJQefywQY9N6CvYsrMaJ_6-9LpGpCF_5_RmUS6fP16K8BJWABp1V647-Pz2jDLiaeRd76iwyjIXP88N-BbOuSYgqQnNgluvR_Q0ZFIT51QnzzG2PRkfiwIWiyDOkJaCw9l/s72-c/Shoukat++Hussain+Shoro.JPG
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2017/04/gairathmand.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2017/04/gairathmand.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका