यमुना का प्रदूषण

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नदी जल प्रदूषण का एक बड़ा कारण है औद्योगिक कचरा जैसे पेपर मिल, गन्ना पेरने और चीनी मिल, डिस्टिलरी एवं अन्य विभिन्न प्रकार के कल कारखानों तथा शहरी नालों के गंदे प्रवाह का नदियों में बिना शोधन के डाल दिया जाना है।

दम तोड़ती भारत की जीवित जीवनदायिनी मैया यमुना  

जिस नदी के किनारे श्रीकृष्ण ने बाल गोपालों के साथ बाललीला की, गोपियों के संग रासलीला की, जिस नदी के प्रति लोगों के मन में श्रद्धा है, वह पौराणिक नदी यमुना आज सिसक रही है। इसके प्रदूषण का स्तर खतरनाक तरीके से बढ़ गया है। जिस नदी में कालिया नाग के होने की मिथकीय कथा है, उसमें मछलियों समेत तमाम जल-जीवों का अस्तित्व संकट में है। पौराणिक मान्यताओं में जिस नदी में आचमन मात्र कर लेने से सारे पाप धुल जाने का उल्लेख है, अब उस नदी की गन्दगी को धोने की आवश्यकता है। यमुना से गुजरते हुए अथवा अपने घरों में पूजा करने के बाद फालतू हो चुके पूजन सामग्री फूल और अन्य कचरा को हम उसकी तरफ उछाल देते हैं। यमुना को पैसों या अन्ध-श्रद्धा की जरूरत नहीं। उसे स्वच्छ रखने की इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। इसे देश और नदियों का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि हमारी जीवनदायी नदियों का पानी अछूत होता जा रहा है। यमुना नदी के पानी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार नदी जल में अमोनिया की मात्रा इस हद तक बढ़ गई है कि उसे छूना भी स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। इस पानी में अमोनिया की मात्रा खतरे के स्तर को पार कर चुकी है। इस कारण फरवरी 2016 को दिल्ली के वजीरावाद और चंदावल जल शोधन संयंत्रों को दो दिनों के लिये बन्द भी कर दिया गया था। दिल्ली क्षेत्र में यमुना में अमोनिया की मात्रा 1.12 पार्टिकल्स पर मिलियन (पीपीएम) तक पहुँच गई थी, जबकि पानी में अमोनिया की मात्रा शून्य होनी चाहिए। वर्तमान स्थितियों में प्रदूषण सम्बन्धी तमाम रिपोर्टों के बावजूद यमुना दिल्ली में 25 किलोमीटर और आगरा में 10 किमी लम्बे नालों में तब्दील हो चुकी है। अकेली दिल्ली में अनेक चेतावनियों के बावजूद प्रतिदिन 3296 मिलियन गैलन लीटर गन्दा पानी और औद्योगिक अवशेष विभिन्न नालों से यमुना में उड़ेले जा रहे हैं। करीब 5600 किमी लम्बी सीवर लाइनों से मल-मूत्र बहाया जा रहा है। 17 स्थलों पर 30 सीवर ट्रीटमेंट प्लांट क्रियाशील हैं, लेकिन उनकी गन्दे मल को स्वच्छ जल में परिवर्तित करने की दक्षता सन्दिग्ध है। 
नदी जल प्रदूषण
जल प्रदूषण का कारण:-नदी जल प्रदूषण का एक बड़ा कारण है औद्योगिक कचरा जैसे पेपर मिल, गन्ना पेरने और चीनी मिल, डिस्टिलरी एवं अन्य विभिन्न प्रकार के कल कारखानों तथा शहरी नालों के गंदे प्रवाह का नदियों में बिना शोधन के डाल दिया जाना है। कल कारखाने जैसे पेपर मिल, डिस्टिलरी एवं अन्य रासायनिक प्रवाह तथा शहरी नालों का गंदा प्रवाह बिना शोधन के नदियो सीधे उत्सर्जित कर देना एक कारण है । इसे रोकना और शोधित करना बहुत आसान और सहज है। यमुना की की कुल लंबाई  1,376 किमी है।इसका उद्गम  यमुनोत्री उत्तराखंड है।इसका इलाहाबाद गंगा में संगम होता है। 1993 में जापान सरकार की मदद से यमुना एक्शन प्लान प्रोजेक्ट शुरूहुआ है। जापान बैंक की ओर से 10.27 अरब रुपए निवेश की घोषणा की गयी है। अब तक दो चरण पूरेहो चुके हैं। कुल 1,453.17 करोड़ खर्च हुआ है । मई 2016 में मैली से निर्मल यमुना पुनरुद्धार-2017 योजना शुरू की गई। इसके अंतर्गत पहले चरण के लिए 1,969 करोड़ रुपए आवंटित हुआ है ।
नई विधिक स्थिति :- उत्तराखंड के नैनीताल हाई कोर्ट ने देश की प्रमुख नदियों गंगा और यमुना को जीवित मानव का दर्जा दिया है। गंगा और यमुना, भारत की दोनों पौराणिक नदियों को अब एक मानव की तरह संविधान की ओर से मुहैया कराए गए सभी अधिकार मिल सकेंगे। अदालत ने गंगा को ‘भारत की पहली जीवित संस्‍था’ के रूप में मान्‍यता दी है। सोमवार 20 मार्च 2017 को वरिष्ठ न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व् न्यायमूर्ति आलोक सिंह की खंडपीठ में हरिद्वार निवासी मो. सलीम की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने डीएम देहरादून को 72 घंटे के भीतर शक्ति नहर ढकरानी को अतिक्रमण मुक्त करने के सख्त निर्देश दिए हैं। उत्तराखंड में गंगा सहित अन्य नदियों में सीवर की गंदगी गिरने पर अब रोक लगेगी। करीब ढाई वर्ष जद्दोजहद के बाद नमामि गंगे परियोजना के तहत पेयजल निगम को 662 करोड़ रुपये की मंजूरी मिल गई है। इस बजट से प्रदेश भर में 13 परियोजनाओं पर कार्य किया जाना है। प्रोजेक्ट के तहत नालों को टेप किया जाएगा। अभी कई स्थानों पर नालों का सीवर गंगा सहित अन्य नदियों में छोड़ दिया जाता है। जगह-जगह बिछाई जा रही सीवर लाइन को तो सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाकर उनसे जोड़ा जा रहा है, लेकिन नालों की गंदगी रोकने का कोई रास्ता नहीं निकल पा रहा था। इस संबंध में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पेयजल से सवाल करते हुए पूछा था कि राज्य भर में किए जा रहे सीवरज योजना के कार्यों में नदियों की स्वच्छता का कितना ध्यान रखा जा रहा है?
अदालतों के आदेश का परिपालन नहीं :-दिल्ली की अदालतें भी यमुना को निर्मल बनाने के लिए कई आदेश जारी कर चुकी हैं। इसके बावजूद सरकारी महकमों की सुस्ती के चलते दिल्ली मथुरा तथा आगरा में जीवनदायिनी यमुना दम तोड़ रही है। हजारों करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद यमुना स्वच्छ नहीं हो सकी। यमुना की स्वच्छता के लिए योजनाएं भी कई बनीं। इंटरसेप्टर सीवर लाइन का काम करीब छह साल से चल रहा है, जो अब तक पूरा नहीं हुआ है। दिल्ली के वजीराबाद से ओखला के बीच यमुना सबसे ज्यादा मैली है क्योंकि वजीराबाद से ओखला के बीच 22 बड़े नालों का कचरा यमुना में गिर रहा है। कॉलोनियों का सीवर बिना शोधित किए नदी में गिराया जाता है। इसका बड़ा कारण यह है कि दिल्ली के करीब 50 फीसद इलाकों में सीवर नेटवर्क नहीं है। जल बोर्ड के सीवरेज शोधन संयंत्रों की क्षमता करीब 604 एमजीडी है, लेकिन प्रतिदिन करीब 450 एमजीडी सीवरेज शोधित हो पाता है। जल बोर्ड ने 1962 करोड़ रुपये की लागत से इंटरसेप्टर सीवर लाइन का निर्माण वर्ष 2011 में शुरू कराया था। अभी तक इसका एक पैकेज पूरा हुआ है। इसके पांच पैकेजों का काम अधूरा है। इसके अलावा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर छोटे नालों के गंदे पानी के शोधन के लिए 14 सीवरेज शोधन संयंत्र लगाने की योजना बनी थी। इस साल तक इसका काम पूरा होना था। यह योजना भी धरातल पर नहीं उतर सकी। यह भी तब जब दिल्ली व केंद्र की सरकार ने वर्ष 2017 तक यमुना को साफ करने की बात कही थी। नमामि गंगे परियोजना के तहत दिल्ली में यमुना को स्वच्छ बनाने के लिए 1600 करोड़ की योजनाएं तैयार की गई हैं। इससे यह उम्मीद तो जगी है कि यमुना स्वच्छ होगी, लेकिन योजनाओं पर अमल नहीं हो पाने से हर बार निराश ही हाथ लगती है। 
आज भारत सरकार , नमामि गंगे परियोजना , राज्य सरकारें तथा सिचाई व पर्यावरण विभाग की यह संयुक्त जिम्मेदारी बनती है कि विधिक दर्जा पा्रप्त इस पावन संस्था को बचाने के लिए, इसकी पवित्रता के लिए तथा अवाधित प्रवाह के लिए हर तरह से वरीयता के साथ उपाय अपनायें जांय। इन नदियों पर जो भी बांध बने हुए हैं , उसे अविलम्ब तोड़ा जाय तथा जो लापरवाही करे, उसे दण्डित करते हुए इसकी सफाई की जिम्मेदारी उसी पर निर्धारित किया जाय। न्यायालय तथा अन्य कई स्वैच्छिक संगठन इसकी लगातार निगरानी करें। जनता को भी जागरुक किया जाय। विद्यालयों के पाठ्यक्रम में इस विषय को समलित कर इसका व्यापक प्रचार प्रसार कराया जाय।

डा. राधेश्याम द्विवेदी , पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी, 
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा 282001 मो. 9412300183

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