होना नारी का

SHARE:

अपनी सात बहनों में सबसे बड़ी थी उनके पिता बंगाल के छोटे से गाँव में मजदूरी करके उनके परिवार का पालन बड़ी मुस्किल से कर पाते थे बड़ी होने के कारण सारा बलिदान उसे ही देना पड़ता था और इस नारी बात को केवल उसकी माँ ही समझ पाती थी ।

होना नारी का...

बिस्तर पर लेटे लेटे ही वह पुराने दिनों में खो गयी थी आज उसकी सेहत बहुत ख़राब थी लगता था की अब वो नहीं बचेगी।
उसे याद है वो अपनी सात बहनों में सबसे बड़ी थी उनके पिता बंगाल के छोटे से गाँव में मजदूरी करके उनके परिवार का पालन बड़ी मुस्किल से कर पाते थे बड़ी होने के कारण सारा बलिदान उसे ही देना पड़ता था और इस
नारी
बात को केवल उसकी माँ ही समझ पाती थी ।
जब भी उसके पिता घर आते थे तो यही कहते की आज मजदुरी कम हे और भर पेट खाना नहीं बन पायेगा,इतना सुनते ही वह समझ जाती थी की आज फिर उसे आधा भूखा सोना पड़ेगा और इसमें साझेदार उसकी माँ भी होगी क्योकि पिताजी तो भूखे पेट सोयेंगे नहीं और सारे भाई बहन छोटे हैं तो उन्हें तो भर पेट खाना मिलेगा ही । सारे दिन कमरतोड़ काम करने के बाद उसे भूखा ही सोना पड़ता था सारे दिन भाई बहनों को संभालो ,पानी लेकर आओ डेढ़ किलोमीटर दूर से । माँ की कमजोरी की वजह से वह उनको काम नहीं करने देती थी माँ ने लगातार सात भाई बहनों को जनम दिया था और उसको खाने को भी नहीं मिला था इस कारण वह इतनी कमजोर थी की सिर्फ हड्डियों का ढांचा ही नजर आती थी।
शाम के समय जब भी उसके पिता बैठते तो हर बार यही कहते की मेरा विवाह कैसे होगा ना जाने इसके करम कहाँ फूटेंगे।
जब भी में इस तरह की बाते सुनती तो अपने आप को में घर में रखे टूटे फूटे आइने में देखती तो वाकई लगता था की में सुन्दर तो नहीं लेकिन शादी के लायक तो होने लगी थी ।
कुछ दिनों बाद दुर्गा पूजा का त्यौहार आया तो मन में उत्साह आया की कुछ अच्छा होगा लेकिन वह जानती थी की हर साल की तरह ही इस साल भी भगवान उस पर और उस के पारिवार पर मेहरबान नहीं होंगे ।
पिताजी जब शाम को लोटे तो उनके हाथ में अखबार में कुछ कपडे थे आते ही उन्होंने छोटे भाई बहनों को बुलाया और उनको देते हुए बोले तू तो अब बड़ी हो गयी हे इसलिए में इनके लिए कपडे ले पाया साथ में ही कुछ मिठाई भी दी और मुझसे कहा जा पानी पिला सिर पर ही खड़ी रहेगी क्या? में उनमने से मन को लेकर चल पड़ी और मैंने कनखियों से देखा की माँ की आँखों में आंसू थे लेकिन वह चाह कर भी कुछ ना बोल पाई में चाहती थी की पिताजी कम से कम इस साल तो मुझे कपडे लेकर दे क्योंकि मेरे कपडे इतने पुराने थे और फट चुके थे की आने जाने वाले अब मेरे शरीर को ही देखने की कोशिश करते थे।
राजेश मेहरा
राजेश मेहरा
रात को सोते समय माँ ने मेरे सिर पर हाथ रखा और कहा बेटी मुझे माफ़ कर दो में तुम्हारे लिये कुछ नहीं पाई, में भगवान् से प्रार्थना करुँगी की तुझे अच्छा सा ससुराल मिले और जो खुशियाँ इस घर में नहीं मिली वो तुझे उस घर में मिले, दूर कही पर ढोल नंगाड़ो की आवाजे आ रही थी और माँ सोते हुए मेरे सिर पर हाथ फेर रही थी मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था थकी होने के कारण कब मेरी आँख लग गयी मुझे पता ही नहीं चला। एक दिन में पानी लेंने जा रही थी तो देखा की पड़ोस की काकी के घर में कुछ हलचल सी हो रही थी जब पानी लेकर में उनके घर के सामने से निकली तो देखा एक लड़का बाहर कुर्सी पर बेठा कुछ पढ़ रहा था उसने मेरी तरफ देखा और मुस्करा दिया मेने नजरे नीचे की और चली आई थोड़ी देर बाद देखा की काकी अपने हाथ में दो कुछ मीठा लेकर आई और मेरी माँ से बोली मेरा भतीजा आया हे उसकी नोकरी लगी हे ये मिठाई वह ही लाया हे,तब में समझी की वो लड़का कोन हे। तीन दिन बाद में पानी लेने के लिए घर से निकली तो देखा वह लड़का मेरे पीछे आ रहा था और नजदीक आते ही वह बोला में दो तीन दिन से देख रहा हूँ की तुम सारा दिन काम ही करती रहती हो चुपचाप थकती नहीं हो? मेने कोई जवाब नहीं दिया,में आगे चल दी। अगले दिन देखा की वह लड़का मेरी काकी के साथ मेरे घर पर आया और मेरे पिता से कुछ घुल मिल कर बाते कर रहा था । थोड़ी देर बाद जब में घर के पीछे गयी तो वो भी वही आ गया। वो मेरे पास आकर बोला मेने तुम से कुछ पुछा था तुमने जवाब नहीं दिया? में कुछ नहीं बोली वह फिर बोला अच्छा ठीक है मत बताओ लेकिन में तुम्हे जब अपने घर ले जाऊँगा तब तो बोलोगी? वह ये कह कर चल दिया तथा शाम को वह दोबारा मेरे घर अपनी काकी को लेकर आया इस बार उसके हाथ में कुछ मिठाई थी, आते ही काकी बोली भाई साहब ये मेरा भतीजा आपकी बेटी से शादी करना चाहता है। ये सुनकर मेरे पिताजी कुछ नहीं बोले कुछ देर सोचने के बाद वे बोले बहिनजी हमें माफ़ करना हम आपके बराबर नहीं है और हम ये शादी नहीं कर सकते और वो हाथ जोड़ कर अन्दर चले गए । में ये सब देख रही थी मैंने सोचा चलो अब मेरे कुछ अच्छे दिन आने वाले हें लेकिन मुझे क्या पता था की मेरी किस्मत में कुछ और लिखा है। काकी और वह लड़का चला गया और मुझे लग रहा था की मेरी खुशकिस्मत मुझ से दूर जा रही थी। में सोच रही थी की शायद मेरे पिताजी ने हमारी गरीबी की वजह से मना किया है लेकिन शाम को मेरे पिताजी मेरी माँ से बात कर रहे थे और तब मुझे पता लगा की वो मुझे बेचना चाहते थे तभी तो उन्होंने मेरी शादी उस लड़के से नहीं की थी जबकि वह दहेज़ में कुछ भी नहीं चाहता था । ये मेरी और एक कुर्बानी थी जो मुझे अपने परिवार के लिए देनी थी। मेरी माँ मेरे पिताजी की बाते सिर्फ सुनती रही लेकिन बोली कुछ नहीं उसकी आँखों में केवल आंसू थे। कुछ दिनों बाद मेरे घर पर दो पगड़ी वाले लोग आये जो की बंगाल के बिलकुल नहीं लग रहे थे। में बाहर कम के लिए निकल गई थोड़ी देर बाद जब में आई तब भी वो लोग वहीँ थे उसमे से एक तो मुझे अजीब सी नजरो से घूर रहा था । मेरी माँ ने मुझे अन्दर बुलाया और कहा की चल बेटी तैयार हो जा तेरी बिदाई है तेरा ब्याह हो गया है और तेरा दूल्हा जो बाहर पेंट और कमीज में है वो है। माँ ने ये शब्द ऐसे कहे थे जैसे की किसी ने उससे जबरदस्ती कहलवाए हो । मेने अपने पिताजी की तरफ देखकर बोला माँ कितने में बेचा है मुझे? मुझे जल्दी से तैयार किया गया में केवल देख रही थी लेकिन विरोध नहीं कर पा रही थी। मैंने अपने घर के छोटे से आँगन व् बरामदे को देखा और सोचा ये मेरा अंतिम दिन है इस घर में और शायद में फिर इस घर में ना आ पाऊँ। मेरी माँ मेरे पास आयी और बोली मुझे माफ़ कर देना तेरे पिता ने तुझे इन लोगों के हाथों बेच दिया है ताकि तेरे भाई बहनों और हमारा जीवन बसर हो सके । में सारी बातें सुनते हुए भी नहीं सुन पा रही थी । वे लग जल्दी चलने की बात कर रहे थे कुछ देर बाद मेरी माँ मुझे लेकर बाहर आई और उन लोगो के साथ छोड़ कर अन्दर रोते हुए भाग गई। मेने मुड़कर भी नहीं देखा और उन लोगो के पीछे चल दी जैसे की कोई कठपुतली हूँ में उन रास्तो, गलियों व् बचपन में खेले खेतों से निकलकर बाहर सड़क पर आ गयी थी लेकिन चाह कर भी नहीं रो पा रही थी। 
मुझे नहीं पता वो लेगे कैसे मुझे लेकर जींद पहुँच गए रास्ते में ना उन्होंने मुझसे पानी के बारे में पुछा न खाने के लिए मेरी जिंदगी किस रास्ते पे जाने वाली थी ये मुझे इन दस बारह घंटो में पता लग गया था। रास्ते में पता लगा की वह जवान सा दिखने वाला व्यक्ति मेरा पति था। जेसे ही में घर पहुंची वहां मोजूद हर औरत बोलने लगी लो खरीद लाये बहू अब रम्मे इधर उधर नहीं भागेगा। में इनकी बातों से समझ रही थी की जिस व्यक्ति की मुझसे शादी हुई थी उसकी शादी इस लिए नहीं हो रही थी क्योंकि इस जगह लड़कियों की संख्या कम थी और वो लोग अपना वंश चलाने के लिए ही मुझे खरीद कर लाये थे। रात होते ही मुझे एक कमरे में धकेल दिया गया वहां ऐसा कुछ नहीं था जिससे लगे की मेरी आज सुहागरात है । थोड़ी देर में ही रम्मे, जिसने मुझे ख़रीदा था वहां आया उसने पी रखी थी और आते ही मुझे रोंदने लगा मेरे सारे सपने मेरे आंसुओं के साथ धुल गए थे । जैसा मैंने सोचा था वैसा कुछ नहीं हुआ और में रोते रोते अपनी किस्मत में ऐसा ही लिखा सोचते हुए सो गई। सुबह में जल्दी ही उठ गई और ना खाने की वजह व ज्यादा यात्रा की वजह से मुझे बुखार भी लग रहा था लेकिन मेने अपना काम शुरू कर दिया और इसे अपनी जिंदगी समझ लिया था।
 रम्मे तीन भाईयों में सबसे छोटा था उसकी दोनों भाभियाँ अमीर घर से थी और कुछ ही दिनों में मुझे लग गया की वो दोनों उसे बिलकुल भी नहीं चाहती थी और हमेशा उसे हिकारत भरी नजरो से ही देखती थी। उसे घर के हर महत्तवपूर्ण कार्यों से दूर रखा जाता था । कोई भी काम उससे पूछ कर नहीं किया जाता था । उसे उनके समाज में घुलने मिलने की भी आजादी नहीं थी । उसके त्यौहार और यहाँ के त्यौहार अलग थे उसे यहाँ की भाषा भी समझ में नहीं आती थी फिर भी वह निभाती जा रही थी। अपने घर की तरह ही ना कोई उसे खाने की पूछता ना ही कोई उसे कपडे आदि लेने के लिए कहता । होली दिवाली सारे त्यौहार निकल गए लेकिन वह उस परिवार में एक मिठाई का टुकड़ा भी ना चख पाई। उसे न ही रम्मे के बड़े भाइयों के बच्चो के जन्मदिन पर बुलाया जाता न ही किसी पारिवारिक मसले पर। रम्मे उसे केवल भोग की वस्तु ही समझता था उसे उसकी भावनाओं से कोई मतलब नहीं था। कुछ महीने बाद उसे लगा की वह माँ बनने वाली है लेकिन तब भी रम्मे को उससे कोई लगाव नहीं था केवल वह इतना ही बोला लड़का ही चाहिए। इतना सुनकर उसे अपनी माँ की याद आई तो उसने रम्मे से उसे उनसे मिलाने के लिए कहा लेकिन वह बोला भूल जाओ अब तुम इस घर से मोत के बाद ही जाओगे। सच भी था मुझे सात महीने हो गए थे लेकिन रम्मे मुझे आज तक बाहर लेकर नहीं गया था। उसने मुझे घर में ही रखा था और अपने सब दोस्तों को मेरे बारे में बता रखा था के में एक नोकरानी हूँ। में ज्यादा बीमार रहने लगी थी मुझे इस हालत में भी ना ही पोष्टिक खाना दिया जाता था न ही दवाई । मुझे अपनी माँ की बात याद आती थी जो वो कहती थी की तुझे अच्छा घर मिलेगा लेकिन यहाँ तो ऐसा कुछ नहीं था और में अपनी किस्मत पर हंस देती थी। एक तो कमजोर ऊपर से कोख में पलने वाले बच्चे की वजह से अब बहुत कमजोर हो गयी थी लेकिन कोई उसकी तरफ ध्यान नहीं दे रहा था वह रम्मे से कहती उसे डॉक्टर को दिखा दो लेकिन वह कहता चुप रह । जब में बिलकुल ही बिस्तर पर गिर गयी तो एक दाई को बुलाया गया उसने कहा की बच्चा किसी भी दिन हो सकता है इसकी हालत नाजुक हे इसे अस्पताल ले जाओ लेकिन किसी ने नहीं सुना । अगले दिन मेने एक बच्चे को जन्म दिया और बेसुध हो गई पूरा परिवार व रम्मे खुश थे की उनके घर बेटा हुआ हे लेकिन मुझे किसी ने नहीं देखा,में बिस्तर पर पड़ी सोच रही थी की भगवान अगले जन्म मुझे नारी ना बनाना यदि बनाते भी हो तो किसी गरीब के घर मत देना जिससे की वो मुझे बेच न सकें । में मर गई थी लेकिन मुझे दूर कहीं से ढोल बजने व खुशियों की आवाजे आ रही थी। बारिश भी होने लगी थी जैसे केवल प्रकृति ही मेरे मरने पर मातम मना रही हो।

यह रचना राजेश मेहरा जी द्वारा लिखी गयी है।  आप ,नई दिल्ली से हैं तथा  मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हैं । आपको , बच्चो की कहानियां, लेख और कवितायेँ लिखने का शौक है।

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका