प्राइमरी स्कूल

SHARE:

आज से 50 वर्ष पूर्व समाज के अधिकतर लोग इन्हीं प्राइमरी स्कूलों में पढ़ते थे, आगे बढ़ते थे और अलग अलग क्षेत्रों में पहुँचकर परिवार एवं समाज का नाम रोशन करते थे.

प्राइमरी स्कूल ख़ामोश हैं !

प्राइमरी स्कूल
प्राइमरी स्कूल
आज भारत के अधिकतर क्षेत्रों में निःस्वार्थ भाव से समाज को प्राथमिक शिक्षा बाँटता हुआ प्राइमरी स्कूल गाँवों, कस्बों या शहरों के एक कोने में तन्हा दिखाई दे रहा है. कई दशक पुराना प्राइमरी स्कूल गाँव में बसा होने के बावजूद गाँव से ही अलग-थलग पड़कर अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है. स्कूल पल हरपल टकटकी लगाए विद्यार्थियों का इंतजार कर रहा है. परन्तु आज के बदलते मंजर ने उसके नेक इरादों पर पानी फेर दिया है. जी हाँ, सचमुच प्राइमरी स्कूल अपनी किस्मत कोसता हुआ बद्हाली की मर्म कहानी सुना रहा है. मगर आज की आपाधापी भरी जिन्दगी में भला किसके पास इतना वक्त है कि वह उसके करीब जाकर उसकी ख़बर ले, ख़ामोशी की वजह पूछे और दशकों पहले दिए हुए अतुलनीय योगदान की सराहना करे, यानी उसके वजूद को याद करे. यह वही प्राइमरी स्कूल है जिसने बीते समय में समाज को वैज्ञानिक, क्रान्तिकारी, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रशासक और राजनीतिज्ञ तक सौपें हैं.

बेहाली का हाल:

बद्हाली का आलम यह है कि आज प्राइमरी स्कूल शिक्षकों की कमी, मिड़ ड़े मील की अव्यवस्था, बच्चों की गिरती संख्या, सरकारी गैर-जमीनी नीतियाँ और खास तौर पर शासन सत्ता एवं समाज के गैर जिम्मेदाराना रवैया की वजह से मायूस हैं. जमीनी हकीकत तो यह है कि प्राइमरी स्कूलों में कहीं बच्चे हैं तो मूलभूत सुविधाएँ नहीं, कहीं सुविधाएँ है तो बच्चे नहीं. जनता की नुमाइंदगी करने सत्ता के गलियारे तक पहुँचें अधिकतर नेता , ऊँचे ओहदेदार अधिकारी एक बार ओहदा हथियानें के बाद पीछे मुड़कर देखते तक भी नही, बस यें सब लोक लुभावनीं नीतियाँ बनाने में मशगूल रहते हैं और इनका इससे दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं रहता कि ये नीतियाँ जमीनी स्तर पर कैसे उतारी जाए कि जरूरतमंद लोगों को लाभ मिले. समय के साथ साथ नीतियाँ बनती हैं, चलती हैं और अन्ततः दफ्तरों की फाइलों में ठीक ठाक ढ़ंग से सुपुर्द भी हो जाती है. चुनाव आने पर सरकार अपनी पीठ थप-थपाकर इनका श्रेय भी लेती है.


सार्थक परिणाम से कोसों दूर नीतियाँ :

विशेष गौरतलब है कि आजादी के दशकों बीत जानें के बाद भी आज शिक्षा और उसकी गुणवत्ता का हाल बेहाल है. संविधान के अनुच्छेद-45 में राज्य नीति निर्देशक तत्वों के अन्तर्गत यह व्यवस्था बनाई गई थी कि संविधान को अंगीकृत करके 10 वर्षों के अन्दर 6-14 वर्ष के सभी बालक/बालिकाओं के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी. किन्तु कई दशक गुजर जाने के बाद भी इस लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सका. सरकार द्वारा प्रारम्भिक शिक्षा को लेकर प्रत्येक पंचवर्षीय में अहम फैसले लिए जाते है. वर्तमान में कक्षा 1 से 8 तक सभी बालक/बालिकाओं के लिए निःशुल्क पाठ्य- पुस्तक , मध्यान्ह पोषाहार और छात्रवृत्ति की अधिकाधिक व्यवस्था है. विद्यालय को लेकर तरह तरह के अन्य मानक भी बनाए गए है. प्राथमिक विद्यालय की स्थापना हेतु तकरीबन  1 किमी तथा उच्च प्राथमिक विद्यालय की स्थापना हेतु 2 किमी की अनुमानित दूरी निर्धारित की गयी है. इतना ही नहीं, सरकार का करोड़ों का बजट प्रतिवर्ष प्राथमिक शिक्षा हेतु व्यय किया जाता है. फिर भी आज ऐसी हालत क्यूँ ..... ??

 सोचने वाली बात:

जरा गौर कीजिए, आज से 50 वर्ष पूर्व समाज के अधिकतर लोग इन्हीं प्राइमरी स्कूलों में पढ़ते थे, आगे बढ़ते थे और अलग अलग क्षेत्रों में पहुँचकर परिवार एवं समाज का नाम रोशन करते थे. स्कूल आज भी वही हैं, इनमें पढ़ाने वाले शिक्षकों के चयन का मानक शायद तब से आज कहीं ज्यादा बेहतर है, मूलभूत सुविधाएँ अधिक है, प्राथमिक विद्यालय की सँख्या तब से कई गुना आज ज्यादा है. यहाँ तक कि आज तकरीबन प्रत्येक कस्बों में प्राइमरी स्कूल मिल ही जाएगें. परन्तु अहम सवाल यह है कि इतना सब कुछ होने के बावजूद भी प्राइमरी स्कूलों की हालत दिन प्रतिदिन क्यूँ बिगड़ती जा रही है...?

एक अहम कारण यह भी:

शालिनी तिवारी
शालिनी तिवारी
मुख्य बात यह है कि आज के कुछ दशक पहले समाज के अधिकतर लोग इन्हीं प्राइमरी स्कूलों में पढ़ते थे. जहाँ से छात्र अपनी अपनी बुद्धिमत्ता के अनुसार अलग अलग क्षेत्रों में सफल भी होते थे. परन्तु आज समाज का अधिकतर बच्चा प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा ग्रहण कर रहा है , इसके विपरीत कुछ गिने चुने सामाजिक दबे कुचले गरीब लोगों के ही बच्चे आज प्राइमरी स्कूलों में आ रहे हैं. यकीनन हम यह कह सकते हैं कि प्राइमरी स्कूलों के अभिभावकों का अधिकांश तबका गैर-जागरूकता के साथ साथ गरीबी और भुखमरी से जूझ रहा है. यह तो वही बात हो गयी कि किसी को पूर्णतय: मक्खन निकाला हुआ दूध दिया जाए और कहा जाए कि अब तुम इससे मक्खन निकालों. आज के प्राइमरी स्कूलों की हालत यही है. पहले प्राइमरी स्कूलों में शुद्ध दुग्ध रूपी छात्र आते थे, जिनसे घी, मक्खन, दही, मट्ठा ( ड़ाँक्टर, इँजी०, नौकरशाह...) सब बनाए जाते थे और आज पहले से ही दूध से सब कुछ निकालकर प्राइमरी स्कूलों को अशुद्ध दूध दिया जा रहा है और कहा जा रहा है कि अब तुम इससे घी, मक्खन, दही और मट्ठा निकालों. क्या यह जमीनी तौर पर सम्भव है ? शायद कभी नहीं.


सामाजिक लगाम की कमी:

दूसरी अहम बात यह है कि दशकों पहले जब समाज के प्रत्येक तबकों के बच्चे इन्हीं प्राइमरी स्कूलों में पढ़ते थे, तो समाज की लगाम भी इन प्राइमरी स्कूलों पर रहती थी. हर अभिभावक प्राइमरी स्कूलों की शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान रखते था, क्योंकि उनके पास ये स्कूल ही शिक्षा प्राप्ति के मुख्य विकल्प हुआ करते थे. सामाजिक सहभागिता के चलते ही शिक्षक भी अपने अध्यापन कार्य को पूर्ण इमानदारी और निष्ठा पूर्वक करते थे. आज दिशाहीन सत्ता ने शिक्षा का व्यवसायीकरण करके समाज के मध्यम एवं उच्च तबकों के लिए कई प्रकार के विकल्प तैयार कर दिए. रईसों और सुविधा सम्पन्न घरानों के बच्चे बड़ी बड़ी अकादमियों, पब्लिक स्कूलों और प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने लगे. अत्याधुनिकता भरे दौड. भाग वाले दौर में स्वकेन्द्रित समाज आज कस्बों की इन प्राइमरी स्कूलों की तरफ देखता भी नहीं है. खैर किसी से मतलब ही क्या है ? उनका बच्चा तो आलीशान स्कूल में पढ़ ही रहा है. शेष गरीब, अशिक्षित और गैर जागरूक समाज दो वक्त की रोटी में इतना व्यस्त है कि यदि एक दिन भी मजदूरी न करे तो खाए क्या ? लाजमी है कि इस तबके को शिक्षा में कोई खासी रूचि नहीं है. एक बार जैसे तैसे करके बच्चे का दाखिला प्राइमरी स्कूल में करा दिया, सर का भार उतार लिया और यह मान बैठा कि अब तो सरकार कापी-किताब, ड़्रेस, मिड़ ड़े मील और छात्रवृत्ति देगी ही. परिस्थितियों को देखकर हम यह कह सकते हैं कि आज प्राइमरी स्कूलों से सामाजिक लगाम पूर्णरूपेण हट चुकी है, जिसका नतीजा हमारे सामने है. शिक्षक भी भयहीन होकर स्वयं को सरकारी दमाद समझ बैठे हैं. देर से विद्यालय आना , जल्दी जाना और कई बार तो बिना छुट्टी ही विद्यालय से नदारद रहना अपनी दिनचर्या समझ बैठे है. खैर मास्टर साहब ! आप स्वयं विचारिए कि यदि आप दूसरे के बच्चे का भविष्य गर्त में ढ़केलेगें तो आपके बच्चे का भविष्य कितना अच्छा होगा, इसको आप स्वयं सोच सकते हैं ?

जन जन की जिम्मेदारी :

अभी हाल में ही मै व्यक्तिगत रूप से प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश के कई प्राइमरी स्कूलों में गई और वहाँ के शिक्षकों एवं विद्यार्थियों से अपने विचारों का आदान प्रदान की. कुछ शिक्षकों जिनमें ड़ा विष्णु मिश्रा, कैलाश नाथ मौर्या, नागेश पासी, अमित लाल वर्मा समेत अन्य कई शिक्षकों से खास बातचीत भी की, प्राइमरी स्कूलों की बदहाली के सम्बंध में कुछ नए पहलू भी सामने उभरकर आए. जो निम्नवत् हैं-
1- शिक्षा का व्यवसायीकरण होना.
2- समाज का प्राइमरी स्कूलों से अंकुश हटना.
3- वर्तमान में समाज के सिर्फ दबे, कुचले , निम्न वर्ग के बच्चों का प्राइमरी स्कूलों में जाना.
4- प्राइमरी स्कूलों और शिक्षकों पर सत्ता एवं शासन तंत्र का कानूनी लगाम लचीला होना.
5- समाज के अधिकतर लोगों की सोच का स्वकेन्द्रित होना.
6- भ्रष्टाचार के चलते नीतियों का ठीक ढ़ंग से जमीनी स्तर पर संचालन न होना.
7- बदलते आधुनिक जमाने के मुताबिक प्राइमरी स्कूलों और उससे जुड़ी नीतियों में सकारात्मक बदलाव न होना.


आइए बदलाव करें :

अहम बात यह है कि किसी भी चीज की बेहतरीकरण में जन जन की सहभागिता अति आवश्यक है और देश भी आगे तभी बढ़ेगा, जब समाज का अन्तिम जन आगे बढ़ेगा. हम अधिकतर इंसान स्वयं के विषय में दिन रात सोचते रहते हैं, आप ही बताइए की क्या यह सच्ची मानवता है ? आप की थोड़ी सी भागीदारी समाज को एक नई दिशा दे सकती है. बस आवश्यकता सिर्फ शुरूआत करने की है, आप देखेंगे कि स्वयं सेवा का कारवां बढ़ता जाएगा, समाज बदलता जाएगा, देश खुद-बखुद आगे बढ़ता जाएगा. सच मानिए , उस वक्त हमें 'देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है' जैसे नारों की ढ़िढ़ोरा पीटने की जरूरत ही नही रहेगी. देर मत कीजिए, आप भी अपने कस्बे के प्राइमरी स्कूलों में जाइए, उन पर नज़र रखिए और शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने हेतु हर सम्भव प्रयास कीजिए. शायद इससे बड़ी देश सेवा आपके लिए कुछ भी नहीं हो सकती है. सो रहे सरकारी तंत्र और समाजिक नुमाइंदों को जगाइए. सरकार भी गली मुहल्लों में थोक के भाव चल रहे प्राइवेट स्कूलों को तय मानक के मुताबिक न होने पर उनकी मान्यता रद्द करे और उन पर नकेल कसे. कुछ नई पहल ऐसी भी प्रारम्भ करे, जिससे समाज के प्रत्येक तबके के बच्चे प्राइमरी स्कूलों में विद्यार्जन करना ज्यादा पसन्द करें. प्राइमरी स्कूलों को अत्याधुनिक बनाने पर बल दिया जाए, नवोदय और केन्द्रीय विद्यालय जैसे ही कई और विद्यालयों की स्थापना की जाए. प्राइमरी स्कूलों की ही तर्ज पर प्राइमरी अंग्रेजी माध्यम स्कूल भी खोले जाए. निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि देश की दिशा दशा तय करने वालें इन प्राइमरी स्कूलों के साथ जन जन जुड़कर अन्तिम जन को अग्रसित करने में अपना बहुमूल्य योगदान दें, ताकि राष्ट्र समग्रता की ओर बढ़े और गौरव का परचम लहराए.

रचनाकार परिचय -अन्तू, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश की निवासिनी शालिनी तिवारी स्वतंत्र लेखिका हैं । पानी, प्रकृति एवं समसामयिक मसलों पर स्वतंत्र लेखन के साथ साथ वर्षो से मूल्यपरक शिक्षा हेतु विशेष अभियान का संचालन भी करती है । लेखिका द्वारा समाज के अन्तिम जन के बेहतरीकरण एवं जन जागरूकता के लिए हर सम्भव प्रयास सतत् जारी है ।

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,35,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",6,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,3,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,7,आषाढ़ का एक दिन,17,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,2,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,15,कमलेश्वर,6,कविता,1413,कहानी लेखन हिंदी,13,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,5,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,4,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,3,केशवदास,4,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,138,गजानन माधव "मुक्तिबोध",14,गीतांजलि,1,गोदान,6,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,2,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,2,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,30,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,73,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,5,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,25,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,3,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,6,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,23,नाटक,1,निराला,35,निर्मल वर्मा,2,निर्मला,38,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,175,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,133,प्रयोजनमूलक हिंदी,24,प्रेमचंद,40,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,86,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,5,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,7,भक्ति साहित्य,138,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,13,भीष्म साहनी,7,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,5,मलिक मुहम्मद जायसी,4,महादेवी वर्मा,19,महावीरप्रसाद द्विवेदी,2,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,11,मैला आँचल,4,मोहन राकेश,12,यशपाल,14,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,20,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,2,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,8,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,2,लघु कथा,118,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,33,विद्यापति,6,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,1,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,7,शमशेर बहादुर सिंह,5,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,5,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,53,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,1,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,28,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,39,समसामयिक हिंदी लेख,222,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,17,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,70,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",9,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,20,सूरदास,15,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,10,हजारी प्रसाद द्विवेदी,2,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,356,हिंदी लेख,504,हिंदी व्यंग्य लेख,4,हिंदी समाचार,164,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,86,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,6,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,18,hindi essay,348,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,102,hindi stories,656,hindi-gadya-sahitya,7,hindi-kavita-ki-vyakhya,15,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,14,kavyagat-visheshta,22,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,10,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,Rimjhim Class 3,14,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,sponsored news,10,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,41,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: प्राइमरी स्कूल
प्राइमरी स्कूल
आज से 50 वर्ष पूर्व समाज के अधिकतर लोग इन्हीं प्राइमरी स्कूलों में पढ़ते थे, आगे बढ़ते थे और अलग अलग क्षेत्रों में पहुँचकर परिवार एवं समाज का नाम रोशन करते थे.
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgjMYNkHveEdQKgpY2B66x3W8Y8-jLEqtAw4Q_6Bye5B6B-xwZ8pLmQT-C69_62nunU8UuK2GLdIsQmwcZ82QGFSgLWwsBSI_Kf2aoYKyf_e_s0WjhPyUU6eBWSmOdVxlgMX2SK9Ufi824l/s320/primary+school.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgjMYNkHveEdQKgpY2B66x3W8Y8-jLEqtAw4Q_6Bye5B6B-xwZ8pLmQT-C69_62nunU8UuK2GLdIsQmwcZ82QGFSgLWwsBSI_Kf2aoYKyf_e_s0WjhPyUU6eBWSmOdVxlgMX2SK9Ufi824l/s72-c/primary+school.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2017/02/primary-school.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2017/02/primary-school.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका