छोटू

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छोटू के मामा को जिस दिन पता चला था कि वह बड़ा हो के पैसा कमाना चाहता है उसी दिन उनके मस्तिष्क में एक कुटिल चाल का जन्म हुआ था।

छोटू

"नानी सोनू इस्कूल जाता है।हम भी जायेंगे।हमको भी बड़ा होके बड़का नौकरी कर के खूब पैसा कमाना है नानी।"

उसे बस इतना याद है कि रसोई से आग की लपटें उठीं थीं। और फिर जली हुई अम्मा बाहर निकली थी।नहीं
निकली नहीं थी अम्मा, निकाली गयी थी। बाबूजी तो पहले ही छोड़ कर चले गए थे। उनकी एक भी याद उसके स्मृति पट पर न थी।हाँ, अम्मा याद थी पर धुँधली धुँधली।
नाना नानी ने छत दी, कपडे दिए,खाना दिया।प्यार भी दिया थोड़ा बहुत मामा मामी से छुपा कर पर स्कूल नहीं भेजा। कभी कभी मामा के बेटे सोनू को स्कूल जाता देख वह तड़प उठता था।
सोनू भी चिढ़ाता-"हम तो इस्कूल जाते हैं। एक दिन बड़का नौकरी करेंगे और खूब पैसा कमाएंगे। और तुम पड़े घास छीलना।"

"अबे छोटू खाना लगा। देर मत कर" ये एक जानी पहचानी आवाज़ थी जिसने छोटू को यादों के भँवर से बाहर निकाला। छोटू बिना कुछ सोचे समझे एक झटके में उठा और बड़ी बड़ी पतीलियों में दाल भात पलटाने लगा।

छोटू के मामा को जिस दिन पता चला था कि वह बड़ा हो के पैसा कमाना चाहता है उसी दिन उनके मस्तिष्क में एक कुटिल चाल का जन्म हुआ था। हफ्ते भर के अंदर ही उन्होंने छोटू के शहर जाने का बंदोबस्त कर दिया।
छोटू एक प्राइवेट मेस में बर्तन धोने का काम करता है। खाना परोसने की भी जिम्मेदारी है उसपे। छोटू खुश है कि मामा का बेटा तो अभी इस्कूल जा जा के चप्पल घिस रहा है और वो तो पैसा भी कमाने लगा। पर पैसा मामा ले जाते हैं। छोटू को विश्वास है कि एक दिन उसके पैसे उसे मिलेंगे और वो नाना के लिए तंबाकू की पुड़िया और नानी के लिए बनारसी पान लगवा कर गाँव ले जायेगा। लेकिन कब? ये वह भी नहीं जानता।

फटाफट उसने खाना टेबल पर लगा दिया। और खड़ा हो गया। मैनेजर ने सख्त हिदायत दी थी-"जब तक लोग खाते रहें खड़े रहना। बैठना मत। कोई चीज़ कम पड़े तो लाकर रख देना।" बारह बजते बजते मेस में भीड़ हो गयी। कोई एक्स्ट्रा मिठाई माँगता तो कोई एक्स्ट्रा पापड़। किसी ने ऑमलेट बनाने की फरमाइश की। छोटू दौड़ दौड़ के अंदर से सामान लेकर आता। या बाहर की फरमाईशें अंदर संप्रेषित करता। अभी छोटू आ के खड़ा हुआ
निधि "श्री"
निधि "श्री"
ही था कि देखा कि 'उसके' साथ वाली लड़की सामने वाली टेबल पर बैठ के खा रही है। उसने इधर उधर नज़रें दौड़ाई।पर 'वो' कहीं नहीं दिखी।
'वो' अक्सर आकर मेस में चिल्लाती थी-"इतना ऑयली खाना है। मेरा चेहरा बिगड़ा जा रहा है। इतने पिम्पल्स हो गए हैं।"
'वो' हमेशा रोटी और सलाद ही खाती थी। उसका नाम छोटू को नहीं पता था। उसके साथ वाली लड़की खा कर उठी ही थी कि छोटू दौड़ता हुआ आया- "दीदी ये उनके लिए।वो जो आपके साथ आती हैं।" और कागज़ में लपेटी हुई रोटियां आगे बढ़ा दी।

'उसे'जब ये बात पता चली तो बड़ी हैरानी हुई। और संदेह भी हुआ। अब तक तो उसने कभी छोटू पर ध्यान भी नहीं दिया था। पर अब वो अक्सर देखती की छोटू उसी की ओर ताक रहा है। कभी कभी उसे देखते हुए ऐसे मुस्कुराता है जैसे उसके साथ उसकी कोई मधुर स्मृति जुडी है।न जाने क्यों लड़की उसकी इन हरकतों से परेशान रहने लगी। वो जब भी मेस ना जाती तो छोटू कागज़ में रोटियाँ लपेट कर भिजवा देता। सहेलियों को बड़ा मज़ा आता। बात बात में उसे छोटू का नाम ले कर चिढ़ाने लगीं।
एक दिन लड़की ने खीज कर मेस महाराज से शिकायत कर दी-"इस बद्तमीज़ को समझा दीजिये। हमेशा घूरता रहता है।हँसता भी है।" छोटू को इस बात के लिए तीन झापड़ पड़े। मेस के बाकी कर्मचारियों ने भी कभी इस बात पर ध्यान नहीं दिया था। पर अब जब भी वो लड़की आती सब का ध्यान छोटू की तरफ होता।छोटू न जाने क्यों उसे एकटक देखता रहता।

"बड़ा बेशरम है यार। बस नाम ही का छोटू है। देखो कैसे टुकुर टुकुर ताकता है लड़की को। मार खा के भी होश ठिकाने नहीं आया।"
"अरे इस बार आये इसके मामा तो कहा जाए।"
"अईसा ही जवानी सतिसवा को चढ़ा था। याद है न।"
"हाँ भई याद क्यों नहीं है। पूरे पांच साल हुए उस बात को। उस बार तो दरोगा जी  तक बात पहुंच गयी थी।मार के मुँह नाक फोड़ दिए थे। वैसे कहाँ है सतिसवा आज कल?
"अरे देखो भाई छोटू जवान आ गए।"
छोटू को ये संबोधन थोड़ा अटपटा लगा। पर बोला कुछ नहीं।
"अरे छोटुआ इधर आओ।कितने बरस के हो जी?"
"जी!चउदा साल के हैं" और उसके बोलते ही पूरी मण्डली ठहाके मार के हँस पड़ी।
"अच्छा बड़ा जवानी चढ़ा है बेटा तुमको आज कल। बड़ा निहारा करते हो लौंडिया को। आगे का करना है पलैन किये हो का?"
छोटू ने एक पत्थर उठाया और उसके सर पे दे मारा।
उस दिन मेस में बड़ा बवाल हुआ। मैनेजर ने छोटू को निकाल दिया। मामा ने भी खूब लात जूते बरसाए।

एक दिन नानी सर में तेल लगाते हुए पूछ बैठीं- "छोटुआ रे!तुम मामा का कितना नाक कटवाये।कौनी लौंडिया को तकते थे?"
छोटू ने गुर्राते हुए नानी को देखा। "ए नानी! लौंडिया मत बोलो। उ अम्मा जइसी लगती हैं।"

रचनाकार परिचय 
निधि "श्री"
छात्रा(महिला महाविद्यालय)
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी
ईमेल-nimi3799@gmail.com

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