हाॅस्पिटल से जाते वक्त मैं सोना को अपने साथ घर ले आई ।दो दिन बाद कांता ने अपनी जिंदगी की अंतिम सांस ली ।आखिरी बार उसे देखते वक्त लगा जैसे वह कह रही हो कि मेरी सोना का ख्याल रखना और मैं अपनी सोनचिरैया को हमेशा के लिए अपने साथ घर ले आई ।
सोन चिरैया
आज फिर उसने अपनी माँ की उंगली थामे आॅफिस मे कदम रखा ।उसकी माँ कांता जो आॅफिस मे चाय देने
आती थी , पहले ये काम उसका पति करता था लेकिन वह अब हवालात मे था , बलात्कार के इलजाम मे ।वह कभी नहीं कहती थी कि उसके पति ने ये जुर्म नहीं किया बल्कि वह उस औरत के लिए दुखी होती थी जिसके साथ उसने इतनी हैवानियत दिखाई ।वह अपनी तीन साल की बच्ची पर उस हैवान की परछाई भी नहीं पड़ने देना चाहती थी ।
उसकी बच्ची का नाम सोना था ।मैं उसे सोनचिरैया कहती थी ।जब भी कांता मुझे चाय देने आती तो मैं उसे टाॅफी या चाॅकलेट जरूर देती थी ।कभी - कभी जब मैं कांता से बात करने मे उसे टाॅफी देना भूल जाती तब वह मेरी कुर्सी के पास से हटती नहीं थी तो कभी मेरी साड़ी का पल्लू कसकर पकड़ लेती ।मुझे उसकी मासूमियत पर बहुत प्यार आता था ।
मुझे अपनी व कांता की हालत एक जैसी लगती थी , फर्क सिर्फ इतना था कि उसका पति जेल मे था और मेरे पति देश के लिए शहीद हुए थे , जिसका मुझे हमेशा गर्व रहता है ।मेरे पास भी एक प्यारी बेटी थी दिव्या, जो अभी छः साल की थी शायद इसलिए मैं कांता के दुख को समझ सकती थी ।कांता बहुत स्वाभिमानी स्त्री थी ।जब भी मैं उसकी आर्थिक मदद करने की कोशिश करती तो वह यही कहती , नहीं मैडम जी आपकी दुआ से रोजी - रोटी चल रही है ।कभी सहायता की जरूरत होगी तो आपसे ही कहूंगी ।
अप्रैल का महिना था , अचानक ही दिव्या को बुखार आ गया ।मैंने आॅफिस से कुछ दिनों की छुट्टी ले ली ताकि दिव्या की देखभाल कर सकूँ ।चार दिन हो गए थे दिव्या को भी स्कूल गए हुए , आज उसे थोड़ा आराम था ।मैंने उसे ये कहते हुए दवा दी कि कल तक तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगी और परसो स्कूल जाना पड़ेगा ।अगले दिन दिव्या का बुखार बिल्कुल ठीक हो गया था , उसके साथ मैंने खेल - कूद कर वह दिन बिताया ताकि वह अच्छा महसूस करे ।
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पुष्पा सैनी |
डाॅक्टर से बात करने पर पता चला कि कांता के सर में गहरी चोट आई है और वह मुश्किल ही बच पाएगी ।मैं कभी कांता की गंभीर हालत देखती तो कभी उसकी मासूम सोनचिरैया को ।मैंने कांता को सांत्वना देने के उद्देश्य से उसके सर पर हाथ रखा और कहा वह जल्दी ही ठीक हो जाएंगी ।कांता ने अपनी उनिदी सी आँखें बड़ी मुश्किल से खोली ।वह कभी मेरी तरफ देखती तो कभी सोना की तरफ ।मैंने उसका हाथ थाम कर कहा कि तुम चिंता मत करो , मैं सोना का ख्याल रखूंगी ।तुम जल्दी ठीक हो जाओ ।मेरी बात सुनकर इतने दर्द मे भी वह मुस्कुरा दी जैसे उसे अब किसी बात की फिक्र ही नहीं थी ।
हाॅस्पिटल से जाते वक्त मैं सोना को अपने साथ घर ले आई ।दो दिन बाद कांता ने अपनी जिंदगी की अंतिम सांस ली ।आखिरी बार उसे देखते वक्त लगा जैसे वह कह रही हो कि मेरी सोना का ख्याल रखना और मैं अपनी सोनचिरैया को हमेशा के लिए अपने साथ घर ले आई ।
यह रचना पुष्पा सैनी जी द्वारा लिखी गयी है। आपने बी ए किया है व साहित्य मे विशेष रूची है।आपकी कुछ रचनाएँ साप्ताहिक अखबार मे छप चुकी हैं ।
bhut aacha likha h aap ne
जवाब देंहटाएंबेटिया सबसे प्यारी होती हैं, फिर भी लोग बेटों के पीछे पड़े होते हैं.
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