सरदार पंछी

SHARE:

कविता व्यक्तित्व का आईना है जिसमें से जीवन और परिवेश की झलकियां झांकती है। जीवन के पल पल की कोमल भावनाएं, कठोर कड़वी सच्चाइयों से रंगी हुई परछाइयां, साहित्य सरिता के रूप में संवेदनशील हृदय से विस्फोटित होकर प्रशांत नदी की तरह समतल भूमि से बहती धाराओं की तरह सरगोशियां करती हुई बहुत कुछ अपनी खामोश जुबान से कह जाती हैं.

 व्यक्तित्व के आईने में  सरदार पंछी / देवी नागरानी 

कविता व्यक्तित्व का आईना है जिसमें से जीवन और परिवेश की  झलकियां झांकती है।  जीवन के पल पल की कोमल भावनाएं, कठोर कड़वी सच्चाइयों से रंगी हुई परछाइयां, साहित्य सरिता के रूप में संवेदनशील हृदय से विस्फोटित होकर प्रशांत नदी की तरह समतल भूमि से बहती धाराओं की तरह सरगोशियां करती हुई बहुत कुछ अपनी खामोश जुबान से कह जाती हैं.
पंछी जी
पंछी जी
किसी ने खूब कहा है-' ग़ज़ल एक सहराई पौधे की तरह है जो पानी की कमी के बावजूद अपना विकास जारी रखता है''  इसी सच का निर्वाह और निबाह किया है कलम के सिपाही श्री सरदार पंछी जी ने जिनके साहित्य के अनंत विस्तार से जिससे मैं अभी अभी आशना हुई हूँ. अपने तजुर्बात की बुनियाद पर उर्दू गजल में भाषा की चाशनी घोलती हुई उनकी अनेकों कृतियां मेरी नज़र से गुजरीं जिन में मेरी पसंदीदा शायरी की पुस्तकें भी शामिल रहीं- ‘सूरज की शाखें और दर्द का तर्जुमाँ’,  इलावा इनके थीं –‘गुलिस्ता अक़ीदत, बोस्ताँ अक़ीदत, टुकड़े-टुकड़े आईना, नक़्श क़दम, क़दम-क़दम तन्हाई,  अधूरे-बुत, मेरी नज़र मैं आप और उजालों के हमसफर. इतने विस्तार पूरक साहित्य सागर में झांकते ही पंछी जी की का व्यक्तित्व एवं कृतित्व उभर कर आ जाता है. 
उनका विस्तृत परिचय पाने की ललक से पहले पहल  1991  मैं प्रकाशित उनके ग़ज़ल संग्रह 'सूरज की शाखें'  के पन्ने पलटते ‘पेश लफ्ज़’ पढ़ते-पढ़ते जैसे मैं उन से परिचित होती रही, जहां वे अपना तआरुफ़ कराते हुए आप बीती से जग बीती के सफर में मुझे लफ्ज़ दर लफ्ज़ अपनी सजीव गुफ्तगू से मुतासिर करते रहे. उनके लिखने का विस्तार क्षितिज के उस पार की सीमाओं को उलांघने के प्रयासों में सक्षम है. ग़ज़लियात,  नज़्में और गीत,  इसके अलावा हिंदी में नशरी तखलीक भी करते हैं. उनकी शख्सियत और साहित्य के सैलाब ने मेरी हैरानी की चरम सीमा को छुआ. लगा उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर कलम चलाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा है. ऊंचाइयों के सामने बौनेपन का एहसास होना लाजमी है।
वो  झुकी शाखें शजर को दे गई पहचान जब
झुक गई मेरी आना उस ऊंचे कद के सामने-- देवी नागरानी

उसी साहित्यक परिचर्चा पर चर्चा के दौरान सरदार पंछी उस हादसे का जिक्र कर बैठे जिसकी बदौलत उन्हें अपने मसूदों की तमाम फाइलों से हाथ धोना पड़ा, जिसका असर यहां तक हुआ कि वे कोशिशों के बावजूद भी एक साल तक न कुछ लिख पढ़ सके और ना ही किसी मुशायरे में भागीदारी कर पाए. बस उनके ही लफ्जों में ‘लेकिन ख्वाबों में अपने मसूदों की तलाश जारी रही'  जिसकी अनगिनत परतों में बेचैनियां रात भर करवट लेतीं. जी हां! उन मसूदों की फिक्र में जो अनजाने में रद्दी में जाने कहां से कहां पहुंची।
उनका एक शेर इसी दर्द की पीड़ा को शब्दों के पैरहन में पेश कर रहा है;
 उजड़ गई ख्वाबों की जन्नत अब आंखों में ख्वाब कहां
 होगी जन्नत औरों की अब अपनी जन्नत कोई नहीं

शायरी फ़क़त सोच की उपज नहीं वेदना की गहन अनुभूति भी है. ऐसे पलों में जब शब्द शिल्पी पत्थर तराशते  हैं तो  शिलाएं भी बोल पड़ती है-
यू तराशा है उनको शिल्पी ने
जान सी पड़ गई शिलाओं में—देवी

निराशा की परिस्थितियों में जहां आशाओं के रौशन दिये जगमगाते हैं वही अटूट विश्वास आदत बन जाता है. अपनी खुदी को खुदा के सामने झुकाते हुए उनकी बानगी का अंदाज-ए-बयां देखिए--
ऐ बहार अब तो आजा मेरे बाग में 
डालियां हैं खड़ीं सर झुकाए हुए
निराशा में आशा के बीज बोते हुए उनके कपोलों को आंसुओं से सींचते हुए पंछी जी अपनी सोच से,  अपनी आँखों की नमी से सहरा सहरा गुलशन बना देते हैं. दुख सुख,  दोनों का चोली दामन का साथ उनके ख्वाबों की तासीर में इल्तिजा करता हुआ इस बानगी में देखिए --
जिसकी हर एक शाख़ हो पंछी का आशियां
तू सहन में आदाब का वो पौधा लगा के जा  (अधूरे बुत)

मानवीय संवेदना और मानवीय यथार्थ को समेटे जहां एक तरफ सोच का सैलाब हताशा की ओर उन्मुख है वहीं दूसरी ओर आशा झलकती है.  जहां उनका व्यक्तित्व और कृतित्व बहुआयामी एवं बहुमुखी दिखाई पड़ता है, वहीं उनका गद्य एवं पद्य लेखन अबाध रूप से गतिशील है. उनकी ग़ज़लें अपने परिवेश, अपनी धरती और विशेषरुप से घर-परिवार से जुड़ी हुई हैं. अपनी जमीन से जुदा होने का दर्द क्या होता है? वह पीड़ा जो तड़प बनकर दुनिया में संचार करती है वह क्या होती है?  यह उनसे पूछिये जो जड़ से जुदा होकर दरबदर हुए हैं. मैंने भी उस दौर से गुजरते हुए अपने भावों को व्यक्त करते हुए लिखा है--

वो  दर बदर, मकाँ बदर, मंज़िल बदर हुआ 
पता गिरा जो शाख़ से जुड़कर न जुड़ सका--देवी 
देश के बंटवारे की धुंधली सी यादों के कोहरे के पार, किस-किस चीज का बंटवारा नहीं हुआ- जैसे अपने वजूद से ही जुदा होना पड़ा. कैसे एक शहर से दूसरे शहर, बदलते हुए हालातों के दौर से गुजरते हुए लुटे-लुटे से लोग सिंध से हिंद आकर बस जाने की कशमकश में परेशान उन यादों की परछाइयों को अभी तक जहन में समेटे हुए हैं. 14 साल की उम्र में सरदार पंछी भी इस मुल्क के बंटवारे के जामिन रहे.
ख़ुशबू-ए-अकीदत में पंजाब यूनिवर्सिटी के डॉ. तारीख किफ़ायत का कहना है-' सरदार जी एक ऐसे इंसान हैं जिनकी पूरी जिंदगी एक किताब है, जिसका हर एक सुफ़ए में हवादश की तहरीरें दर्ज हैं।  जीवन कुछ यूं दौर-ए-गर्दिशों में गुज़रा कि खिज़ां की हर आहट पर कोई भी शख्स टूट कर रह जाए। लेकिन इन गर्दिशों का यह तूफान, सरदार पंछी के अंदर के इंसान को छू तक नहीं पाया, अपने अटूट विश्वास के परों पर सवार सरदार पंछी अपनी कल्पना और शिल्प की सामंजस्य के माध्यम से यथार्थ का एक अलग ही शाश्वत चित्र प्रस्तुत करते हैं. उसी कल्पना की उड़ान मुलाहिज़ा हो ---

न उसने गम ही देखा, न उसने तीरगी देखी
क़लाम पाक की जिसने ज़रा भी रोशनी देखी  
अक़ीदत कह रही है आज उसकी चूम लूँ आंखें
कि जिसने गुंबज़ खज़रा पे  छाई चंदिनी देखी (गुलिस्ताँ अक़ीदत) 
  सरदार पंछी उर्दू और फारसी की शब्द संपदा पर अधिकार रखते हैं। 'उजालों के हम सफ़र में'  उन्होंने उन शख्सियतों को स्थान  दिया है जिन के नक्शे-क़दम पर चलते हुए इंसान बेहतर और खूबसूरत जिंदगी तक रसाई हासिल कर सकता है.  सुनिये उनके अपने शब्दों में उनकी बात- 'आइए हम सभी इन चरागों की रोशनी से अपने-अपने जहां-ओ-दिल मुनव्वर करे  और इनकी तर्ज़ हयात की रोशनी में अपनी दानस्त की लौ मिलाकर दूर दूर तक उजाला करें।' 
उनकी हकीक़त अक़ीदत बेबुनियाद नहीं है विश्वास की बुलंदियां देखिए इस बानगी में जो इबादत से कम नहीं है--

न हो मायूस पंछी इक ज़ियारत यूं भी होती है
उसी को देख ले जिसने मदीने की गली देखी (उजाले का हमसफर)  

शब्द सरिता कविता के रूप में सुख दुख, आशा-आकांक्षा, मूल्य-मान, जीवन स्थितियों एवं विसंगतियों को उकेर कर  चित्रित करती है।  रचना का जन्म कोरे सिद्धांतों या वैचारिक आदर्शों से नहीं होता, परंतु कवि की वास्तविक
देवी नागरानी
देवी नागरानी
सृजनात्मक अनुभूति से होता है. एक ऊर्जा की परिधि में जब संवेदना का संचार होता है, तब कहीं जाकर रचनाकार अंदर की दुनिया को बाहर से जोड़ता है. तब जाकर काव्य का सृजन होता है जो मानवीय अनुभूतियों और विचारों की अभिव्यक्ति का प्रमुखतम माध्यम होता है. इस शेर में तजुर्बात के गलियारे से झांकता शब्द-शिल्प का प्रमाण है:
जल रही है शम्मा परवाने चलो
 लौ से घुल-मिल जाने में है ज़िंदगी 

यह ज़िन्दगी मिरी इनाम या सज़ा निकले
अभी तो बंद है मुठी न जाने क्या निकले (सूरज की शाखें)

उनकी गज़लें जहां शिल्प की दृष्टि से कलात्मक बन पड़ी हैं वहीँ  कथ्य की दृष्टि से भी सजीव है। ग़ज़ल चूंकि गेय काव्य है, अतः उन्होंने अपनी गजलों को गेय एवं संगीतात्मक बनाने के लिए उपयुक्त उर्दू बहरों की आधारशिला की वैज्ञानिक विधा का निर्वाह पूर्ण रुप से किया है. उन्हीं के शब्दों में उनकी बयानी सुनें:

कह रहा हूँ अपना अफसाना ग़ज़ल के रूप में
दिल के कानों से ग़ज़ल को जाने जां सुन लीजिए ( टुकड़े-टुकड़े आईना)

जो शजर बे-वर्ग है, मायूस है,  तन्हा भी है
हम बनाएंगे उसी पर आशियां सुन लीजिए 

मानव  जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़े अनुभव, उद्योग एवं जीवन मूल्यों को सरदार पंछी ने विषय वस्तु बनाया है. ग़ज़ल सिन्फ़ अदब का आईना है जिसमें सामाजिक सरोकारों को साफ़-साफ़ देखा जा सकता है. चाहे वह मोहब्बत हो या आर्थिक एवं समसामायिक विषय या भ्रष्टाचार राजनीति व सियासतदानों की समस्या और समाधानो, उनकी ओर इशारा करते हुए सरदार पंछी के अशआर अपना कदम आगे, और आगे पुख्तगी से रखते चले जा रहे हैं।
बहुत महंगी है हर एक चीज़ माना
गरीबों का लहू सस्ता बहुत है 
रोटी किसी ने भी न दी भूखे अदीब को
फिर कब्र पर जो मेला लगाया तो क्या किया (टुकड़े-टुकड़े आईना)

खरीदार और बाज़ारवाद पर कटाक्ष करते हुए उनकी बानगी देकहिये---
अब राह में ईमान के बाज़ार लगे हैं
ये शहर गरेबाँ ही खरीदार लगे हैं (दर्द का तर्जुमां)

जुर्म की तारीकियों पर रोशनी डालती हुई कलम भी कहा चुप रहती है--

 शहर के सच्चे म्क्कीं को खून में नहला दिया
और क़ातिल बन गया हक़दार तेरे शहर का 

जो कल तक थे कातिल, वे गंगा नहा कर
सुना है कि अब देवता हो गए हैं- (दर्द का तर्जुमां)

रचनात्मक विस्तार की गज़लें विविध पक्षों को बड़ी कुशलता से आलोकित करती हैं. जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि।-' एक  मशहूर  कहावत है। स्वार्थ लालच और सियासत के उसूलों और मानवीय मूल्यों का क्षरण हुआ है. आदमियत विलीन सी होती जा रही है. इन्साफ, इन्साफ का दुशमन हो गया है, भ्रष्टाचार फैला हुआ है, अन्याय-बेईमानी बढ़ रही है, ज़मीर बिकाऊ हो गया है. भाईचारा कहीं दिखता नहीं, रिश्तो में दरारे चौड़ी हो रही हैं. यहां आवाज उठाने वाले गूंगे और सुनने वाले बहरे हैं. न्याय -अन्याय में फर्क नहीं रहा. कोई कहे तो आखिर किस से?  और यहीं पर कवि की रचनात्मक सशक्तता अपने तेवरों से कलम की जुबानी बिंब के रूप में कुछ कह जाती है--- 

इंसाफ कर रहे हैं वही जिनको आज तक
इंसाफ किसको कहते हैं ये भी पता न था

आप मुन्सिफ हैं तो इतनी जल्दीबाज़ी किसलिए(सूरज की शाखें)

सरदार पंछी जी का साहित्य पढ़ने से लगता है कि रचयिता अपने गहन चिंतन और काव्य के मर्म के साथ हमारे सामने खड़ा है. अच्छी कविता के भीतर कंगारू के पेट की तरह एक और कविता छुपी होती है, तिल्सिम की तरह जो अपने आप में अलग होकर भी पूरे व्यक्तित्व की परिचायक बन जाती है. अपने वजूद की तलाश में गहराइयों में कहीं गुम हो कर खुद को पाना एक सार्थक प्रयास हो जाता है. ऐसे में जब उस छोर को हम पकड़ कर पकड़ पाते हैं जो हमें अपने आप से जोड़ता है. अपने जीवन के अंधेरे के गर्भ से रोशनी चीरकर लाने का सफल प्रयास उन तमाम भटकावों को ठहरा प्रदान करता है. 

प्यास जब जिससे से संभाली जाएगी 
मन से ही गंगा निकाली जाएगी

जाएँगे पंछी सितारे साथ-साथ
अब जहां तक रात काली जाएगी
बेफिक्री का दामन थाम कर, लयात्मक संधि  के साथ परवाज़ करता मन शायद एक समर्पण में लीन होना चाहता है. शायद वह जनता है ‘आज’ गुजरने पर बीते हुए कल में बदल जाएगा और आने वाला कल इस ‘आज’ के स्थान पर लौट आएगा. नए मोड़ आएंगे,  नए मसाईल होंगे, मौसम की तरह हर दृश्य बदल जाएगा, बार-बार इतिहास की तरह सब कुछ दोहराया जाएगा अपने अंतर्मन की भावनाओं को मंथन उपरांत पंछी जी ने जिस नगीनेदारी से शब्दबद्ध किया है, उसकी कारीगरी शब्दों में देखिए --
चलिए ये कौन हवा कौन आ गया मौसम
कि ख़ार फूल बने और फूल ख़ार हुए 

ये हादसे मेरे साए हैं मैं हादसा हूँ 
मैं बार-बार हुआ ये भी बार-बार हुए(सूरज की शाखें)

कहा जाता है, अपने वजूद से जुड़कर एक परम सच से साक्षात्कार होने के बाद जीने मरने का अंतर ही मिट जाता है. उसके बाद और कुछ खोजने की और पाने की ललक बाकी नहीं रहती. ऐसी ही एक भावनात्मक पारदर्शिता शब्दों में देखे, पढ़ें और महसूस करें---

जब तलक रूह-ओ-बदन की तिश्नगी भरती नहीं
सागरों से बादलों की दोस्ती मरती नहीं

जो राहों के पत्थर थे क्या हो गए
शिवालों में जाकर खुदा हो गए (दर्द का तर्जुमाँ)
गागर में सागर सम्मोहित करने की इस आदायगी से मुंतज़िर हूँ और इसी संदर्भ में श्री नंदलाल पाठक जी के दो शेर पेश करती हूँ--

यूँ तो खुद हूँ बेठिकाना, मेरा दिल है खुदा का घर 
मेरी आंख में समंदर मैं ज़रा सा बुलबुला हूँ. 

मेरी शक्ल है तुम्हारी, ज़रा आईने में देखो
मुझे पढ़ कर खुद को पढ़ लो, मैं किताब-सा खुला हूँ 

इल्म की चौखट पर इस विशाल साहित्य के सागर में गहरे उतर कर अपने आंचल में मोती समेट लाना मेरा सौभाग्य है मेरी सोच दहलीज पर दस्तक दिए बिना ही नमन कर रही है, पर इस खामोश कलम की सरगोशियां कह रही हैं--

तवील ऐसा सफ़र पंछी का है ‘देवी’ करे तो क्या
कलम की नोक है खामोश कोई गर लिखे तो क्या—देवी नगरानी

मैं सरदार पंछी की तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ जो मुझे यह मौका दिया कि मैं इस साहित्य धारा से जुड़ पाऊं. उन्हीं के शब्दों में इस तवील सफ़र को आगेज़े-सफ़र मानते हुए यही कहूँगी--
बंदगी का मेरा अंदाज़ जुदा होता है
मेरा  क़ाबा मेरे सजदे में छुपा होता है.
आमीन 
देवी नागरानी
dnangrani@gmail.com 

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,36,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,3,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,7,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,2,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,6,कविता,1466,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,31,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,2,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,34,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,74,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,5,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,6,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,2,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,198,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,138,प्रयोजनमूलक हिंदी,37,प्रेमचंद,41,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,87,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,7,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,15,भीष्म साहनी,7,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,5,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,2,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,7,मोहन राकेश,13,यशपाल,14,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,124,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,7,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,1,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,7,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,56,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,1,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,31,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,42,समसामयिक हिंदी लेख,257,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,19,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,82,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,415,हिंदी लेख,525,हिंदी व्यंग्य लेख,13,हिंदी समाचार,179,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,10,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,19,hindi essay,407,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,674,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,43,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,21,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,10,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,4,sponsored news,10,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,44,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: सरदार पंछी
सरदार पंछी
कविता व्यक्तित्व का आईना है जिसमें से जीवन और परिवेश की झलकियां झांकती है। जीवन के पल पल की कोमल भावनाएं, कठोर कड़वी सच्चाइयों से रंगी हुई परछाइयां, साहित्य सरिता के रूप में संवेदनशील हृदय से विस्फोटित होकर प्रशांत नदी की तरह समतल भूमि से बहती धाराओं की तरह सरगोशियां करती हुई बहुत कुछ अपनी खामोश जुबान से कह जाती हैं.
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOB3kAOcvbqiQ4G8bCXHAGGqD2diVTwexn-HaOgk5lreJonbKN9maErC0DMuMyfdyG2CYwIRHpWUr2a_pk1F5G6eLl8s0-4RrMBYw3jFWy6ycjP6y7D2rcQLLTdziYvnACKbHbeEHdbEIK/s1600/sardaar+panchi.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOB3kAOcvbqiQ4G8bCXHAGGqD2diVTwexn-HaOgk5lreJonbKN9maErC0DMuMyfdyG2CYwIRHpWUr2a_pk1F5G6eLl8s0-4RrMBYw3jFWy6ycjP6y7D2rcQLLTdziYvnACKbHbeEHdbEIK/s72-c/sardaar+panchi.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2017/01/sardar-pancshi.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2017/01/sardar-pancshi.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका