शाबाश सनी

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सनी मेंढक सुबह-सुबह उदास चेहरा लिए बिस्तर से उठा और धीरे से मम्मी के पास जाकर खड़ा हो गया। वह घर की सफाई कर रहीं थीं।

शाबाश सनी

सनी मेंढक सुबह-सुबह उदास चेहरा लिए बिस्तर से उठा और धीरे से मम्मी के पास जाकर खड़ा हो गया। वह घर की सफाई कर रहीं थीं। सनी ने मम्मी को 'गुड मॉर्निंग' कहा लेकिन उदास होकर ही।
मम्मी प्यार से बोलीं, "क्या हुआ मेरे बेटे को आज?"
सनी धीमे स्वर में बोला, "मम्मा मेरे स्कूल की छुट्टियाँ खत्म होने वाली हैं और इस बार हम कहीं भी घूमने नहीं गए। "
शाबाश सनी
मम्मी ने सनी के दोनों गालों पर प्यार से हाथ रखकर कहा, "आज मैं तुम्हें दो खुशखबरियाँ सुनाऊँगी। एक तो यह कि तुम्हारे स्कूल से फ़ोन आया था कि तुम्हारी छुट्टियाँ कुछ दिन और बढ़ा दी गईं हैं क्योंकि तुम्हारे स्कूल की नई बिल्डिंग पूरी होने में कुछ दिन और लगेंगे।“
“और दूसरी कौन सी?” सनी उतावला हुआ जा रहा था।
“दूसरी यह कि कल से पापा ने अपने ऑफिस से तीन दिन की छुट्टियाँ ली हैं और हम नानी के घर आज शाम को ही जा रहे हैं।“ मम्मी ने मुस्कुराते हुए अपनी बात पूरी की।
“नानी के घर! मज़ा आ गया.... कितने सुंदर जंगल में है उनका घर....और उनके घर के पास तालाब...." सनी खुशी से उछलता हुआ अपने कमरे में भाग गया।

सनी के पुकारने पर मम्मी काम छोड़कर आईं। उसने अपने सामने  खिलौनों का ढेर लगा रखा था। "मम्मा ये सब मैं नानी के घर लेकर जाऊँगा। " सनी ने खिलौनों की ओर इशारा करते हुए कहा।
मम्मी की हँसी छूट गई। प्यार  से सनी को समझाते हुए वे बोलीं,  “नहीं बेटा, हम वहाँ सिर्फ़ कपड़े लेकर जाएंगे। तीन दिन बाद तो घर वापिस आना ही है। "
मम्मी की बात मानकर उसने सारे खिलौने वापिस रख दिए और पापा के आने का इंतज़ार करने लगा।

पापा के आते ही वे चल दिए। इस बार सनी वहाँ जाते हुए कुछ ज़्यादा ही खुश था, क्योंकि वे अपनी कार में जा रहे थे। सनी पिछली सीट पर अकेला मस्ती से बैठा था। वह कभी गाने सुन रहा था, कभी चॉकलेट खा रहा था तो कभी बाहर का दृश्य देख रहा था। एक जगह सुंदर सा झरना दिखाई दिया तो उसने पापा से फ़ोटो खींचने को कहा। तीनों नीचे उतरकर कुछ देर बैठे। वहाँ एक खरगोश का परिवार पिकनिक मनाने आया हुआ था। पापा के कहने पर एक ‘खरगोश अंकल’ ने सनी के परिवार की फ़ोटो खींच दी। सनी मन ही मन सोच रहा था कि वह अपने दोस्तों को फ़ोटो दिखाकर अपनी यात्रा के बारे में बताएगा तो सब कितने खुश होंगे। सनी के पापा ने पास की दुकान से नानी के घर ले जाने के लिए कुछ मिठाइयाँ खरीदीं और वे लोग वापिस चल दिये। नानी के घर पहुँचने में पूरे चार घंटे लगे।

सनी सबसे मिलने के बाद तालाब के किनारे चलने की ज़िद करने लगा। मम्मी पापा उसे लेकर तालाब की ओर चल दिए। उसे अपने खिलौनों की बहुत याद आ रही थी। मम्मी ने रास्ते में गुब्बारे वाले से उसे एक गुब्बारा दिला दिया।

तालाब के किनारे पहुँचकर सनी खुश हो गया। वहाँ हरी-हरी घास थी और रंगबिरंगे फूल खिले हुए थे। वह भागते हुए तितलियों को पकड़ने की कोशिश कर रहा था। एक तितली का पीछा करते हुए हाथ में पकड़ा हुआ गुब्बारा उसके हाथ से छूटकर ऊपर उड़ गया। सनी उदास होकर टहलने लगा। अचानक उसे मिट्टी में दबी चमचमाती हुई चूड़ी जैसी गोल सी कोई चीज़ दिखाई दी। थोड़े प्रयास से ही वह बाहर आ गई।
 "अरे ! इसकी 'शेप' तो 'सर्कल' है, टीचर ने कुछ दिन पहले ही तो शेप्स के बारे में बताया था हमें। आह! यह गोल चीज़ तो बड़ी सुंदर है, ऐसा लग रहा है कि किसी कार का सुन्दर सा टायर है। " सोचते हुए सनी ने गोल चीज़ को ज़मीन पर खड़ा कर दिया। गोल टायर जैसी चीज़ थोड़ी आगे की ओर लुढ़की और फिर गिर गई।
"अरे, वाह! यह तो पहिए की तरह चलती भी है। क्यों न इसे धक्का देकर आगे खिसकाता रहूँ।" सोचते हुए सनी के चेहरे पर एक  शरारती मुस्कान आ गई। उसने नीचे पड़ी हुई पेड़ की डंडियों में से एक छोटी सी डंडी उठाई और गोल चीज़ को धकेलने लगा। वह चीज़ आगे-आगे तेज़ी से बढ़ रही थी और सनी पीछे-पीछे डंडी से उसे धकेल रहा था।

 थोड़ी देर बाद वह मम्मी-पापा के पास आया और गोल चीज़ दिखाते हुए बोला, "देखो, कार के पहिए का सुनहरी टायर।" मम्मी को उसकी भोली बातों पर हँसी आ गई। वह बोलीं,"बेटा यह टायर नहीं हाथ में पहनने का कंगन है। शहर से कुछ लोग पिकनिक मनाने आए होंगे कभी.....तभी किसी का छूट गया होगा यहाँ।"
मधु शर्मा कटिहा
मधु शर्मा कटिहा

"शहर में बड़े-बड़े इंसान रहते हैं। पता है न तुम्हें, सनी।“ पापा ने मम्मी की बात आगे बढ़ाते हुए कहा। “वहाँ की मम्मी भी तुम्हारी मम्मी जैसी चूड़ियाँ पहनती हैं, पर उनका साइज़ हमारी कार के पहिये जितना होता है।"
पापा की बात सुनकर सनी की आँखें फटी रह गईं और वह गोलाकार वस्तु को देखकर आदमी के आकार का अनुमान लगाने लगा। कुछ देर और बातें करके वह वापिस कंगन को लुढ़काने के काम में लग गया। उसे यह खेल इतना पसंद आया कि वह अपना अधिकांश समय तालाब के किनारे ही बिताने लगा।

उस तालाब में एक बगुला रहता था। उसने सनी को अकेले खेलते हुए देख लिया और उसे अपना शिकार बनाने की ठान ली। एक दिन सनी खेलते-खेलते थक गया और पेड़ के नीचे लेट गया। अपने प्यारे खिलौने कंगन को वह हाथ में पकड़े ही रहता था। तभी अचानक बगुले ने चोंच बाहर निकाली और सनी के पैरों को दबोचकर अपनी चोंच में फंसा लिया। सनी को समझते देर न लगी कि वह किसी मुसीबत में फंस गया है। उसके मम्मी-पापा ने उसे हमेशा हिम्मत से काम लेने की शिक्षा दी थी। बगुले का चेहरा उसे अपने चेहरे के पास साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा था। सनी डर से काँप रहा था, पर साहस का साथ नहीं छोड़ा उसने।

तभी अचानक उसके दिमाग में एक विचार कौंधा। वह अपने दोनों हाथों में पकड़े हुए कंगन को बगुले की चोंच तक ले गया। बगुले के थोड़े से खुले मुँह में उसने कंगन का एक हिस्सा टेढ़ा करके अंदर की ओर धकेल दिया और कंगन को दूसरी ओर से अपने हाथों से कसकर पकड़ लिया। बगुला कुछ समझ पाता इससे पहले ही उसने कंगन बगुले  के मुँह में और आगे बढ़ाया और ऐसे खड़ा कर दिया जैसे वह ज़मीन पर धकेलने के लिए खड़ा करता था। कंगन जैसे ही  ऊँचा हुआ बगुले का मुँह खुल गया। कंगन फंसा होने के कारण वह मुँह बंद भी नहीं कर पा रहा था। सनी ने जल्दी से अपने फंसे हुए पैर बगुले के मुँह से बाहर निकाले और मौका पाते ही उछलकर भाग निकला।

तेज़ी से भागकर हाँफता हुआ वह घर पहुँचा। उसकी बहादुरी का किस्सा सुनकर सब हैरान रह गए। मम्मी-पापा ने उसे गले से लगा लिया। नानी ने उसे बाज़ार ले जाकर उसकी  मनपसंद चीज़ दिलवाने का कार्यक्रम बनाया। बाज़ार से सनी ने एक पैन और ‘छोटा भीम’ की तस्वीर वाली डायरी खरीदी और घर आकर मम्मी से वह घटना लिखने को कह दिया उस डायरी में।

छुट्टियाँ समाप्त होने के बाद जब वह  विद्यालय गया तो उसने डायरी अध्यापिका को पढ़ने को दी। वे खुशी से फूला न समाईं । वार्षिकोत्सव पर सनी को मंत्री जी से पुरस्कार मिला। इतना ही नहीं सनी के नाम से विद्यालय में प्रतिवर्ष बहादुर बच्चे के लिए एक  पुरस्कार देने की योजना भी शुरु की गयी और उस पुरस्कार का नाम रखा गया—‘शाबाश सनी।‘ सनी की बहादुरी से सब बच्चे बहुत प्रभावित हुए और सबने हमेशा हिम्मत से काम लेने की ठान ली।        


यह रचना  मधु शर्मा कटिहा जी द्वारा लिखी गयी है . आपने दिल्ली विश्वविद्यालय से लाइब्रेरी साइंस में स्नातकोत्तर  किया है . आपकी कुछ कहानियाँ व लेख  प्रकाशित हो चुके हैं।
Email----madhukatiha@gmail.com 

COMMENTS

Leave a Reply: 3
  1. bahut sahas se bhari katha, sankat ke samay hame ghabrana nahi chahiye balki himmat se kam lena chahiye.

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    उत्तर
    1. आपको कहानी पसंद आई और आपने प्रशंसा भी की....धन्यवाद!

      हटाएं
  2. Abhee -Abhee Madhu Ji Ki Kahani Kaa
    Bharpoor Aanand Liya Hai .

    जवाब देंहटाएं
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