हमारे चचाजी

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हमारे चचा जी हमारे घर के पास रहते हैं.वे सरलता के परिपक्व इंसान हैं.लोगों की मदद करना उनकी नियति है.वे सदैव बड़े लोगों का सम्मान करते हैं और छोटों से प्यार.यह उनकी भावना है.कभी भी न हारने का इरादा रखते हैं.लगातार काम करने की जिद.

हमारे चचाजी

हमारे चचा जी हमारे घर के पास रहते हैं.वे सरलता के परिपक्व इंसान हैं.लोगों की मदद करना उनकी नियति है.वे सदैव बड़े लोगों का सम्मान करते हैं और छोटों से प्यार.यह उनकी भावना है.कभी भी न हारने का इरादा रखते हैं.लगातार काम करने की जिद.बहुत ही विश्वासी जीवन.यह सब गुण उनमें है.यहाँ तक कि वे मेरी चाची को कभी कुछ नहीं कहा.कभी कोई रार झगड़ा ही नहीं हुआ.

बताते हैं कि वे पढ़ने में बहुत तेज नहीं थे लेकिन उतना कमजोर भी नहीं थे.गुरूजनों के प्रति श्रदा तो कूट कूट
चाचा
कर भरी थी.यह उनकी सहृदयता का ही परिणाम है.अपने दोश्तों के साथ हिलमिल कर रहना उनकी आदत जैसी थी.गाली सीखी नहीं.यह बात कितनी मायने रखती है लेकिन अन्य लड़कों में तो गाली जबान पर रहती थी. गरीब दोश्तों के लिये हर संभव मदद करने में सदैव तत्पर रहते थे. ऐसे हैं हमारे चचा.कितना निर्मल मन.पवित्र हृदय.विरासत में मिला था.माँ बाप का पूरा गुण समाया है.

सादा जीवन में सादा ही भोजन लेते हैं. खाने पीने के ज्यादा शौकीन नहीं है जो कुछ भगवान की दया से जुटा उसी में संतोष करते हैं.लालच बुरी बला है इसलिये इनके ऊपर यह सब हावी नहीं हो सका.दाल चावल काफी प्रिय भोजन है.हरी सब्जियाँ तो खाते ही हैं लेकिन सब्जियों की खेती भी बहुत अच्छे से करते हैं.यह भी उनके जीवन का हिस्सा है.जानवर भी पाल रखें हैं.अपनी गाय में वे काफी समय देतेे हैं. गऊ सेवा में पूरा भरोसा करते हैं.

अध्यात्म में गहरी रूचि है.पूजा पाठ में विशेष रूचि रखते हैं.बिना स्नान किये चाय तक भी नहीं लेते है.वे कहते हैं कि ईश्वर हमारे कार्यों की गणना करता रहता है.हमें उसके विषय में अपशब्द नहीं बोलने चाहिये.सुख दुःख जीवन के साथी हैं.इससे घबड़ाने की जरूरत नहीं है.धैर्य व्यक्ति का प्रथम गुण होना चाहिये.हमें ईश्वर में पूरा भरोसा करना चाहिये.

दया उनके स्वभाव का हिस्सा है.कोई भी गरीब मिला .सहायता करने में नहीं हिचकते हैं.किसी को पैसे से मदद की तो पैसे माँगने नहीं जाते है,दिया तो भी सहीँ,नहीं दिया तो कोई मॉक मलाल नहीं.कैसे इंसान हैं.हम आज तक चचा को सहीं से नहीं समझ सके.

जयचन्द प्रजापति 'कक्कू जी
जयचन्द प्रजापति 'कक्कू जी'
इन्हीं कारणों से उनके अन्दर कविता फूटने लगी है.वे अब अच्छी कविता लिखने लगें हैं.बड़े बड़े संपादक उनसे उनकी रचना माँगते हैं.
उनकी रचना में गरीबों की आवाज है.विधवाओं का दर्द पूरी तरह से समाया रहता है.मजदूरों की बातें उनकी कविताओं में चिंघाड़ मारती है.यह उनकी कविता का कमाल है.यह सब उनके सहृदयता के कारण ही वे आज अच्छी रचना के माध्यम से देश विदेश में ख्याति लब्ध कवि के रूप में जाने जातें हैं.

उनका हिन्दी पर पूरा अधिकार है.हिन्दी उनकी जीह्वा पर विराजमान रहती है.शब्दों मे ऐसी कला भरतें हैं कि पूरी रचना से खुशबू आने लगती है.आम बोलचाल की भाषा को समेटे रहते हैं इसीलिये उन्हें जनकवि के रूप में ज्यादा जाना जाने लगा है.उनके काव्यों में मिश्री घुली रहती है.मिठास से भरी रचना हमारे मन को तो आह्लादित कर देती है.उनकी रचना पढ़कर पाठक सोंचने के लिये मजबूर हो जाता है

मैं अपने चचा का प्रिय भक्त हूँ.उनको हर पल अपने में समेटे रहता हूँ.
उनका गुण मैं लेना चाहता हूँ.मेरे प्रति तो वे जान छिड़कते हैं.सदैव प्रिय भाषा ही बोलने की सलाह देते रहते हैं.उदार बनने की सौगंध खिलाते रहतें हैं.ऐसे महान चचा पाकर मैं धन्य हो गया हूँ.जीवन में सबको ऐसे चचा दें ताकि जीवन भर करूण हृदय बना रहे.मानवीय गुण मन भाव में भरा रहे.


यह रचना जयचंद प्रजापति कक्कू जी द्वारा लिखी गयी है . आप कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं . संपर्क सूत्र - कवि जयचन्द प्रजापति 'कक्कू' जैतापुर,हंडिया,इलाहाबाद ,मो.07880438226 . ब्लॉग..kavitapraja.blogspot.com

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