लटकती तलवार

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अभय जब घर लौट कर आया तो बहुत परेशान और उदास था. पूजा पानी लेकर आई और उसके बगल में बैठ गई. अभय ने पानी पी लिया तो वह बोली "आज बहुत परेशान लग रहे हैं. कोई खास बात है."

लटकती तलवार

अभय जब घर लौट कर आया तो बहुत परेशान और उदास था. पूजा पानी लेकर आई और उसके बगल में बैठ गई. अभय ने पानी पी लिया तो वह बोली "आज बहुत परेशान लग रहे हैं. कोई खास बात है."
कुछ क्षण शांत रहने के बाद वह कुछ गंभीर स्वर में बोला "लगता है शायद अब नौकरी नही बचेगी. आर्डर आया है कि सभी आरक्षित पद समाप्त होने वाले हैं." उसने लता के चेहरे की तरफ देख कर कहा "यदि ऐसा हुआ तो कैसे चलेगा. रिया की पढ़ाई, मकान की किस्त, घर का खर्च."
उसकी बात सुन कर लता भी चिंतित हो गई. कुछ सोंच कर बोली "लेकिन आपकी नौकरी को तो कई साल हो गए हैं."
"उससे कोई फर्क नही पड़ता. जब सब आस्थाई पद ही समाप्त होने वाले हैं." अभय ने भर्राई आवाज़ में कहा.
लता ने उसे तसल्ली देने के लिए कहा "ना जाने कितने लोग आस्थाई हैं. इतने सारे लोगों की नौकरी कैसे एक साथ जा सकती है."
आशीष कुमार त्रिवेदी
"जब पद ही नही रहेंगे तो नौकरी कैसे रहेगी." अभय ने निराश होकर कहा.
रात में बिस्तर पर लेटे हुए दोनों पति पत्नी के मन में एक ही बात चल रही थी. लता सोच रही थी कि यदि ऐसा हुआ तो वह उन लोगों से बात करेगी जहाँ वह पहले नौकरी करती थी. फिर वह खर्चे कम करने के बारे में सोंचने लगी. किंतु कामवाली की तनख्वाह के अलावा उसे कोई और खर्च नही समझ आया जिसे कम किया जा सके. उसने अगले माह से कामवाली को मना करने का निश्चय किया.
अभय जमा पूंजी का हिसाब लगा रहा था कि मुसीबत के समय कितने दिन काम चल सकता है. वह सोंच रहा था कि नौकरी चले जाने पर उसके पास कौन कौन से विकल्प हैं. वह खुद के ट्यूशन क्लास चला सकता है. उसके पास अनुभव भी है. नई नौकरी के लिए प्रयास कर सकता है. कुछ ना हुआ तो वह गांव जाकर अपनी जमीन पर खेती करेगा.
यही सब सोचते हुए दोनों पति पत्नी सो गए.
अगले दिन सुबह पूजा ने अभय को जगाया "उठिए आज कॉलेज नही जाएंगे क्या. साढ़े आठ बज रहे हैं."
उठते हुए वह बोला "पहले क्यों नही जगाया."
"वो आप कल बहुत परेशान थे इसलिए मैंने सोने दिया. आप फटाफट तैयार हो जाइये."
जल्दी से तैयार होकर वह रॉलेद के लिए निकल गया. कॉलेज ख़त्म होने के बाद सभी अस्थाई शिक्षकों ने बैठक की. बैठक में आगे क्या करना है इस पर विचार किया गया. तय हुआ कि सभी अस्थाई कर्मचारी इस माह की बीस तारीख को मिलकर गांधी मैदान में धरने पर बैठेंगे. और भी कई मुद्दों पर बात हुई. लौटते समय अभय कुछ एक लोगों से मिला जिनके पास नौकरी के लिए सिफारिश की जा सकती थी.
जब घर लौटा तो बहुत थका था. चाय लेकर वह बालकनी में आकर खड़ा हो गया. हवा के झोंके सुकून पहुँचा रहे थे. उसे कुछ फड़फड़ाने की आवाज़ सुनाई पड़ी. उसने देखा कि एक पतंग आकर बालकनी में फंस गई है. हवा में संघर्श कर रही है कि कहीं हवा उसे उड़ा ना ले जाए.
उसने मन में सोंचा उसकी अपनी स्थिति भी इस पतंग की तरह है. वह भी डर रहा है कि कहीं वक्त उससे उसकी नौकरी ना छीन ले.


यह कहानी आशीष कुमार त्रिवेदी जी द्वारा लिखी गयी है . आप लघु कथाएं लिखते हैं . इसके अतिरिक्त उन लोगों की सच्ची प्रेरणादाई कहानियां भी लिखतें हैं  जो चुनौतियों का सामना करते हुए भी कुछ उपयोगी करते हैं.
Email :- omanand.1994@gmail.com

COMMENTS

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  1. कहानी अच्छी तरह शुरु तो हुई किंतु अचानक खत्म हो गई... लगा अभी तो शुरु ही हुई है... अधूरी लगी. टिप्पणीबाधक हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ. केवल अपनी बात कही है.

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