अहसास

SHARE:

पिता के चेहरे पर खुशी छलक रही थी जिसे देखकर अरुण और आशा दोनों को आत्मिक प्रसन्नता महसूस हो रही थी।

अहसास

  अरुण को पिछले एक माह से फोन, फेसबुक, व्हाट्सप सभी पर बधाइयाँ मिल रहीं थीं । उनके इकलौते बेटे  शिवम को पूना से एम बी ए करने के बाद बहरीन में किसी अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गयी थी ।
   शिवम जाने की तैयारी में लगा था । आशा शिवम से कई बार पूंछ चुकी थी, “शिवम बेटा बाहर जाना क्या जरूरी है ?”
  शिवम का जवाब था, “हाँ माँ ,अच्छी कंपनी है ,तंख्वाह भी अच्छी दे रहे हैं ।”
  अरुण अपनी पत्नी आशा के मन की दशा समझते थे । उनका खुद का मन बैठा जाता था लेकिन प्रगट में सामान्य बने रहते ।
  शिवम की माँ ने फिर कहा , “ इंडिया में कोई काम नहीं है क्या ? इतनी बड़ी दिल्ली है खोजेगा तो यहीं कोई नौकरी मिल जायेगी । ”
  “मम्मी,मुझे एसी वैसी कोई भी नौकरी नहीं करना है । ज़िंदगी में आगे बढ्ना है । फिर बहरीन कोई ज्यादा दूर थोड़े ही न है।” शिवम ने थोड़ी सांत्वना देते हुए कहा।
  “अभी बहरीन है ,थोड़े दिनों बाद अमेरिका रूस की बात करेगा ।”
  “कहीं भी हो मम्मी हवाई जहाज से आने जाने में कितना समय लगता है ?”
  अरुण चुप चाप ये संवाद सुन रहे थे । उन्होंने उच्छ्वास लिया और मन ही मन कहा “जाने में समय नहीं लगता लौटने में कभी सदियां लग जातीं हैं ।”
  वो दिल्ली से बनारस अपनी माँ के अंतिम संस्कार में समय पर नहीं पहुँच पाये थे । साधारण में भी कितने लंबे अंतरालों में वो अपने वयोवृद्ध पिता से मिलने बनारस जा पाते हैं। दिल्ली से बनारस क्या इतना अधिक दूर है ? लेकिन उन्होंने न कभी अपनी इच्छा शिवम पर थोपी थी न अभी वो कोई दखल देना चाहते थे । फिर शिवम सुनता क्या ? वो समय और था जब माँ बाप का ज़ोर बच्चों पे चलता था । लेकिन तब बच्चे कभी कभी घुटन महसूस करते थे । फिर लड़के के भविष्य का सवाल था कैसे रोकते ।
  आशा से नहीं रहा जा रहा था । उसने अरुण की ओर देखा , “आप कुछ कहिये ।”
  “शिवम कभी तुमने सरकारी नौकरी के बारे में विचार नहीं किया ?”
  “नहीं।” शिवम का संक्षिप्त जवाब था ।
  अरुण ने आशा को समझाया । शिवम ने सोच समझ कर निर्णय लिया है । आजकल क्या क्या केरियर चोईस हैं मुझे भी जानकारी नहीं । हम लोग तो सिर्फ डॉकटरी या इंजीनियरिंग को ही अच्छे कैरियर के रूप में जानते थे । वो नहीं बनपाये तो रेल्वे और बैंक वगैरह में नौकरी खोजते थे । अब अनेक नई लाइनें खुल गईं हैं ।
  थोड़ी देर बाद जब शिवम किसी काम से बाहर गया । अरुण ने पत्नी को समझाया, “उसे जाने देना होगा । हम लोग उसे हंसी खुशी विदा करेंगे वरना वो निश्चिंत हो के नहीं जा पायेगा । तुम खुद को संभाल लेना । आशा चुप रही ।
रवि रंजन गोस्वामी
  आशा ने वाकई खुद को संभाल लिया । जाने वाले दिन अरुण और आशा ने शिवम को एयरपोर्ट पर मुस्कराते हुए विदा किया। दर्शक दीर्घा से शिवम के हवाई जहाज को तब तक निहारते रहे जब तक वो उड़ नहीं गया ।
  एयरपोर्ट से वापस पश्चिम विहार में अपने निवास को लौटते हुए कार में अरुण और आशा दोनों चुप चाप बैठे रहे । दोनों ही भावनाओं को जब्त किये हुए थे । घर में प्रवेश करते ही आशा का धैर्य छूट गया ।
  उसने दरवाजा बंद किया और उसकी रुलाई फूट पड़ी । अरुण ने उसे पकड़ कर सोफ़े पर बिठाया और खुद भी बैठ गये  । आशा थोड़ी देर अरुण के कंधे पर सर रख कर रोती रही । अरुण उसकी पीठ पर हाथ फेरता रहा । मन तो उसका भी विचलित था लेकिन उसने स्वयं की भावनाओं पर नियंत्रण रखा । 
  आशा की रुलाई जब थमी तो अरुण ने मज़ाक करने की कोशिश की । वह  बोला, “तुम तो ऐसे रो रही हो मानो बेटी को ससुराल विदा करके आ रही हो ।”
  “काश हमारे एक बेटी भी होती ,”आशा बोली ।
  रात को बिस्तर पर लेटे हुए वो सोच रहा था वह भी कभी नौकरी के लिए घर छोड़ आया था ।
  अरुण के पिता की  एक छोटी सी कपड़ों की  दुकान थी किन्तु उससे पर्याप्त आय हो जाती थी । अरुण का एक बड़ा भाई था भानु ,एक बड़ी बहन थी शशि । माँ रमा देवी गृहणी थीं । बड़े भाई ने बी ए तक पढ़ाई की और पापा के साथ दुकान में हाथ बटाने लगे ।
  अरुण घर में सबसे छोटा था इसलिए सबका लाड़ला था । उसने एम कॉम तक पढ़ाई की थी । इस बीच बड़ी बहन शशि का विवाह हो चुका था । पिता कभी कभी कहते , “खाली समय में कभी कभी दुकान पर आ जाया करो” वह चुपचाप सुनकर टाल जाता । उसकी न जाने क्यों व्यापार में जरा भी रुचि नहीं थी । वह कोई नौकरी करना चाहता था । जिसमें नियमित दिनचर्या ,निश्चित आय ,घाटे और लाभ की चिंता नहीं ,समय समय पर अवकाश की सुविधा होती है ।
  घर वालों ने भी उस पर ज़ोर नहीं डाला । वह पढ़ने लिखने में ठीक ठाक था थोड़े हाथ पैर मारने के बाद उसे दिल्ली में स्थित एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गयी । फिर आशा से उसकी शादी हुई । कुछ साल तो नये शहर को जानने समझने और गृहस्थी जमाने में निकल गये । तीज त्योहार बनारस जाना होता रहा । फिर शिवम का जन्म हुआ कुछ व्यस्तता बढ़ी। शिवम ने स्कूल जाना शुरू किया । जैसे जैसे शिवम की उम्र और पढ़ाई बढ़ी अरुण और आशा की वयस्तता बढ़ती गयी । तीज त्योहार बनारस जाना बंद हो गया । स्कूल की छुट्टीयों में ही जाना संभव होता। घर जाने का अंतराल बढ़ता गया । कुछ साल पहले जब अरुण की माँ गुजरीं वो कम्पनी के काम से आस्ट्रेलिया गया हुआ था । हालात कुछ ऐसे बने कि समाचार मिलने पर भी वह जल्दी न लौट सका और माँ का अंतिम संस्कार उसके पहुँचने के पहले ही कर दिया गया था । 
  तभी फोन की घंटी बजी । आशा ने फोन उठाया । शिवम का फोन था ।
  “हैलो,” शिवम की आवाज़ आयी ।
  ‘हैलो, शिवम ।”
  “मम्मी , मैं यहाँ पहुँच गया ।”
  “सब ठीक है ,खाने पीने का खयाल रखना। अभी कहाँ ठहरा है ।”
  “अभी कम्पनी के गेस्ट हाउस में ठहरा हूँ।”
  “लो पापा से भी बात कर लो”, ये कहते हुए आशा ने अरुण को फोन दे दिया ।
  “हैलो शिवम कैसे हो ?”
  “ठीक हूँ । “
  “कोई जरूरत पड़े अग्रवाल अंकल से संपर्क कर लेना ।”
  “कर लूँगा पापा । गुड नाइट ”
  “गुड नाइट ।”
  दिनेश अग्रवाल अरुण के एक मित्र थे और बहरीन में एक सीमेंट प्लांट में इंजीनियर थे । उन्होंने उनका फोन नंबर शिवम को दे दिया था ।
  बातचीत समाप्त होने पर फिर दोनों बिस्तर पर लेट गये ।
  आशा बोली , “शिवम कितनी जल्दी बड़ा हो गया ?”
  “हूँ ।”अरुण का संक्षिप्त जवाब था ।
  “लगता है अभी थोड़े ही दिन हुए मैं उसे तैयार कर स्कूल भेजती थी ।”
  “समय बहुत तेजी से गुजरता है ।” अरुण बोला ।  
   सुबह अरुण ऑफिस चले गये । आशा गृहकार्य में लग गयी । बीच बीच में चौंक जाती ‘अरे शिवम के खाने का टाइम होने वाला है’, फिर याद आता वह तो परदेश में है । मन करता फोन करके पूंछे फिर टाल जाती कि कोई जरूरी काम में न उलझा हो और उसे डिस्टर्बेंस हो । सोचा शाम को अरुण के आने पर दोनों लोग बात कर लेंगे । दिन भर बेचैनी में काटा ।
  शाम को अरुण का फोन आया और उसने बताया एक जरूरी मीटिंग है वह देर से घर आयेगा ।
  अरुण को आते आते रात के नौ बज गये। आते ही हाथ मुंह धोकर कपड़े बदले और बैठक में टीवी खोलकर बैठ गये । आशा ने वहीं खाना लगा लिया और दोनों ने टीवी पर समाचार देखते हुए खाना खाया । दोनों को ही भूख कुछ खास नहीं थी किन्तु एक दूसरे का ध्यान रखते हुए खा लिया क्योंकि एक अनिच्छा दिखाता तो दूसरा भी नहीं खा पाता ।
  खाने के बाद आशा बोली , “शिवम को फोन लगायेँ ।”
  अरुण ने घड़ी देखी लगभग ग्यारह बज रहे थे उन्होने अंदाज़ा लगाया  और आशा को बताया बहरीन में उस समय लगभग साढ़े आठ बज रहे होंगे । उन्होने अपने मोबाइल से शिवम को फोन लगाया और आशा को पकड़ा दिया । आशा ने काफी देर तक बात की उसमें उसने शिवम के ऑफिस,निवास,दिनचर्या ,खाने पीने सब की जानकारी ली और अपने दिनभर के बारे में बताया। बाद में अरुण ने भी एक दो वाक्यों में बात कर बाय कर दिया ।
  आशा किचिन में बर्तन साफ करने चली गयी जैसा की उसकी दिनचर्या का हिस्सा था वो रात को बर्तन और किचिन दोनों साफ और व्यवस्थित करने के बाद ही सोती थी ।
  अरुण को नींद आ रही थी सो वह बेडरूम में बिस्तर पर आकर लेट गये । लेकिन लेटते ही उनकी नींद गायब हो गयी ।
  जबसे शिवम गया था उनको एक बात रह रह कर ध्यान में आ रही थी । उन्होंने कभी ये सोचा ही नहीं था कि उनके माँ बाप को कैसा लगा होगा जब वो नौकरी के लिये अपना घर शहर सब छोड़ के आये थे। और तब तो संपर्क के इतने साधन भी नहीं थे । मिलने देखने के लिए महीनों ,सालों इंतजार करना पड़ता था ।
  जब आशा काम खतम कर कमरे में आयी तो अरुण ने कहा , “यात्रा की तैयारी कर लेना हमलोग बनारस चल रहे है पिताजी के पास । वहीं से तुम्हारे घर लखनऊ चलेंगे तुम्हारे मम्मी पापा के पास ।”
  “यूं अचानक? और तुम्हारी छुट्टी ?”
  “ छुट्टी मिल जाएगी नहीं तो कंपनी की छुट्टी कर दूँगा । तीन साल से हम लोग अपने माता पिता से नहीं मिले । ये कोई बात है ?”
  फिर उन्होने एक ट्रैवल एजेंट को फोन कर बनारस जाने के लिए किसी भी फ्लाइट में और किसी भी क्लास में दो टिकेट बुक करने को कहा । आशा यात्रा की तैयारी में जुट गयी और सब समान ठीक करके ही सोई ।
  बनारस पहुँचने पर अरुण के घर में सब खुश थे । पिता ने पूछा, “अचानक कैसे प्रोग्राम बन गया ?
  अरुण ने कहा , “आना तो बहुत दिनों से चाह रहे थे । अब आना हो सका । आप लोगों की याद भी बहुत आ रही थी ।”
  पिताजी ने कहा , “खैर अच्छा हुआ जैसे भी आए भले आये । विदेश जाने से पूर्व शिवम भी एक बार यहाँ हो जाता ”
  “छुट्टियों में जब आएगा तो यहाँ हो जाने को कहेंगे । बल्कि हम सब साथ में फिर आ जायेंगे ।”
  पिता के चेहरे पर खुशी छलक रही थी  जिसे देखकर अरुण और आशा दोनों को आत्मिक प्रसन्नता महसूस हो रही थी। 


यह रचना रवि रंजन गोस्वामी जी द्वारा लिखी गयी है . आप भारतीय राजस्व सेवा में कार्यरत हैं . आपकी संवाद (कविता संग्रह ), मेरी पाँच कहानियां , द गोल्ड सिंडीकेट एवं लुटेरों का टीला चंबल (दोनों लघु उपन्यास ) आदि रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं . 

COMMENTS

Leave a Reply: 1
  1. रिश्तों की धीमी होती आंच के इस दौर को यह कहानी नई उर्जा से संपोषित करती हुई दिख रही है ।
    बधाई, रवि रंजन गोस्वामी जी को ।

    जवाब देंहटाएं
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका