वापसी कैसे ?

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संध्या जैसा नाम वैसी ही सुरमई शाम की तरह सुन्दर | जो भी उसे देखता वह बार-बार उसे देखने की चाहत रखता |

वापसी कैसे ?

संध्या जैसा नाम वैसी ही सुरमई शाम की तरह सुन्दर | जो भी उसे देखता वह बार-बार उसे देखने की चाहत रखता | खूबसूरती को देखना कौन नहीं चाहेगा | सारे मोहल्ले में हार लडके की नजर उसी पर होती | जब वह
अपने कॉलेज के लिए निकलती तो बस नौजवानों में होड़ लग जाती कि संध्या को कौन पहले देखेगा | हरएक नौजवान दूसरे नौजवान से जलता था | तब तो और भी आफ़त आ जाती जब संध्या की नजर किसी नौजवान पर युहीं गिर जाती,वह तो बेचारा आह भर रहा जाता |
         धीरे-धीरे संध्या का रूप यौवन का उबटन लगाकर और भी निखर रहा था | उसी की कॉलेज में एक लड़का श्याम जिसने कभी संध्या की तरफ़ देखा तक नहीं संध्या उसीकी ओर आकृष्ट होने लगी | क्योंकि संध्या को लगता कि वह मेरे अनुकूल ही है उसे मेरे सौन्दर्य में कोई रूचि नहीं है,यदि होती तो वह भी और लड़कों की तरह मेरी राहों में नज़ारे झुकाए बैठा रहता | नियति का खेल उसकी पड़ोस में रहने वाली लड़की संध्या की सहेली थी | जब संध्या को यह पता चला तो सन्ध्या रोज किसी -न -किसी बहाने से उस सहेली के घर चली जाती | 
         सहेली को संध्या का मंतव्य का पता चल गया | उसने संध्या को बहुत रोका कि उस लडके को अपने दिल से निकाल फेंक क्योंकि 'वह अच्छा लड़का नहीं है, मुझे उसके बारे में बहुत संदेह है क्योंकि वह रात भर कहीं बाहर रहता है और अलस सुबह आता है | वह एक रहस्यमय शक्सियत है |' लेकिन संध्या पर इसका कोई असर नहीं हुआ |
   
जयश्री जाजू
 उसने एक दिन अपनी मोहब्बत का जिक्र उस लडके से कर ही दिया | लडके ने भी कई वाडे कर दिए | समय अपनी रफ्तार से आगे बढ़ रहा था | यहाँ इन दोनों की मोहब्बत परवान चढ़ रही थी | अचानक एक दिन संध्या के घर में पता चल गया तब संध्या पर पहरे लगा दिए गए | एक दिन संध्या ने उन पहरों को तोड़ दिया और वह हमेश के लिए अपने उस प्यार  के भरोसे उस ल्लादाके के घर चली गई | उस लडके ने भी सहर्ष स्वीकार कर लिया और उसने वह शहर छोड़ दिया | 
       वे कुछ दिन तो किसी शहर में बद्मजे के साथ रह रहे थे किंतु अचानक एक दिन संध्या को कोई उठाकर ले गया | संध्या को किसी गुमनाम जगह पर ले जाकर रखा गया | अब उसपर दबाव डाला जाता,उसे पीटा जाता कि वह उनके द्वारा आए लोगों का मनोरंजन करें | एक दिन गलती से कमरें का द्वार खुला था | उसने एक क्षण गवाएं बिना बाहर निकल गई | बहार आकर वह उस लडके को उस मोटे आदमी से पैसे लिए  हुए देखती है |  अब वह सोचती है कि "किस मुँह से मैं  अपने घर वापस जाऊँगी,  कुछ दिनों के प्यार के लिए मैंने बरसों के पवित्र प्रेम को दाँव पर लगा दिया | एक पल भी सोचा नहीं और मैं घर छोड़कर इस अनजान लडके के साथ चली आई | अब मेरी वापसी कैसे होगी ? कोई मुझे इस प्रश्न का उत्तर दे दो |" यह सोचते हुए वह बेहोश हो गई |

यह रचना जयश्री जाजू जी द्वारा लिखी गयी है . आप अध्यापिका के रूप में कार्यरत हैं . आप कहानियाँ व कविताएँ आदि लिखती हैं . 

COMMENTS

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  1. जयश्री जाजू जी आपकी द्वारा लिखी गयी ये रचना बेहतरीन हैं

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