अलार्म

SHARE:

दिन ठण्डा था। चार-पाँच महिलाएँ शर्मा जी की बैठक में बैठकर गपशप कर रही थीं। कुछ देर बाद मिसेज शर्मा चाय बना लाई। उन्होंने चाय कपों में उड़ेलते हुए कहा-”आप सभी पहले चाय लें। बातें बाद में। ठंड के दिनों में गर्म चाय ही अच्छी लगती हैं।”

अलार्म

    दिन ठण्डा था। चार-पाँच महिलाएँ शर्मा जी की बैठक में बैठकर गपशप कर रही थीं। कुछ देर बाद मिसेज शर्मा चाय बना लाई। उन्होंने चाय कपों में उड़ेलते हुए कहा-”आप सभी पहले चाय लें। बातें बाद में। ठंड के दिनों में गर्म चाय ही अच्छी लगती हैं।”
    सभी ने कप उठा लिए और साथ में बिस्कुट भी। वे बिस्कुट कुतरते हुए चाय की चुस्की लेने लगी। परन्तु मिसेज शर्मा अभी कप उठा भी न पाई थीं कि उनके मोबाइल का अलार्म बज गया। वे उठी और बगल के कमरे में जाकर किसी को फोन लगाकर बातें करने लगी।
    इधर बहनें उनका इंतजार कर रही थीं और उधर वे फोन पर व्यस्त थीं। एक ने घड़ी की ओर देखा। वह बोली- “चार बज गए। भाभीजी आएं तो हम चलें। बच्चों का स्कूल से आने का समय हो रहा है।”
    दूसरी ने कहा- “हम ही कहाँ बहुत देर रूकने वाले हैं।”
    मिसेज शर्मा लौट आई। उनकी चाय ठंडी हो चुकी थी। रमा ने मजाक करते हुए कहा- “आपने सबको गर्म चाय पिला दी और आपकी ठंडी हो गई। अब हम चलते हैं। आप चाय गर्म कर आराम से पियें।”
    इसी समय शर्माजी भी सीढि़यों से उतरते हुए दिखाई दिए। एक सखी ने कहा- “देखिए आपका साथ देने शर्माजी भी आ गए हैं।”
    मिसेज शर्मा मजाक के मूड में नहीं थीं। वे बोली- “साथ किसी का भी मिले मेरे हिस्से में गर्म चाय और आराम है ही नहीं।”
    मिसेज वर्मा ने आश्चर्य से कहा- “क्यों नहीं है? दो बुजुर्ग लोग हैं आप। कौन सा अधिक काम है। आराम से बैठकर चाय पिया करें।”
    मिसेज शर्मा ने आहिस्ता से कहा- “काम अधिक नहीं हैं पर बिना काम के काम सैकड़ों हैं। कप में चाय डालते ही किसी को दवा याद आती है तो किसी को मोबाइल या पैन, कोई दरवाजा ही खटखटा देता है।”
    एक बहन ने हँसते हुए कहा- “और नहीं तो क्या! देखो अब अलार्म ही बज गया।”
    मिसेज वर्मा ने कौतुहल से पूछा- “इस समय अलार्म क्यों लगाया आपने? देखो अलार्म बंद करने गई और फोन भी आ गया। इसी सब में देर लगी और आपकी चाय ठंडी हो गई।”
अपर्णा शर्मा
    मिसेज शर्मा खीज कर बोली- “यही तो आप नहीं समझ पाएंगी कि कैसी अजीब-अजीब ड्यूटियाँ लगती हैं मेरी। इस समय का अलार्म बहू को जगाने के लिए था। अलार्म सुनकर हर दिन उसको फोन करती हूँ तब वे जागती हैं। यदि किसी दिन भूल हो जाय तो शाम का नाश्ता नहीं बनता। बच्चे बजारू चाजें खाते हैं।”
    एक सखी बोली- “बहू को यह कैसी बेकार की आदत डाल ली आपने।”
    तभी शर्माजी कमरे में प्रवेश करते हुए बोले- “अब यह बात इन्हें कौन समझाए। शुरू में खूब मना किया। नहीं मानी। अब परेशान होती हैं।”
    मिसेज शर्मा बोली- “शुरूआत तो आपने ही की। आप जो सुबह तीन-तीन बार फोन कर बेटे को जगाते हैं। बेचैन घूमते रहते हैं। नहीं जगाया तो छुट्टी कर लेगा।”
    शर्माजी- “उसका छोड़ो। उसे तो हॉस्टल टाइम से आदत पड़ी है।”
    मिसेज वर्मा समझाते हुए बोली- “लेकिन शर्माजी अब तो वह बाल बच्चेदार हैं और ऑफिस में भी एक जिम्मेदार अफसर के पद पर है। अपनी इतनी जिम्मेदारी भी नहीं निभाता है तो बाकी जिम्मेदारियाँ कैसे निभाएगा? अब आप भी अपनी आदत बदलिए। देखिए बहू को भी यही आदत बन गई है। आप लोगों की बढ़ती उम्र है। इतनी छोटी-छोटी बातों के लिए कब तक परेशान होते रहेंगे।”
    बरामदे में शर्माजी की बहन लेटी थी। साल में एक दो बार हफ्ता दस दिन के लिए आ जाती थी। उनकी दिनचर्या के दो ही मुख्य कार्य थे- भगवान का भजन और आराम। घर में आने-जाने वालों से इन्हें विशेष मतलब नहीं रहता था। मिसेज वर्मा अपनी बात पूरी भी न कर पाई थीं कि वे बैठक में आ गई और बोली- “ड्यूटी ये नहीं निभा रहे हैं बल्कि वे बच्चे इनकी ड्यूटी निभा रहे हैं। उन्होंने कितनी बार चाहा कि ये चलकर उनके साथ रहें। पर इन्हें तो अपना घर द्वार छोड़ना नहीं है। तब वे कैसे इनकी सुध लें। इसीलिए बच्चा सुबह ही तीन चार बार इन्हें बुलवाकर देख लेता है कि ठीक-ठाक हैं और यही ड्यूटी उसने उस बेचारी बहू की भी लगा दी है कि वह शाम को सासूजी की सुध ले ले। वरना जो परदेश में अकेली तीन बच्चों को पाल रही है। अलार्म लगाकर जग नहीं सकती? बच्चे साथ रह रहे होते तो दिनभर लिए न घूमते। उनके दसियों काम करते। अब मिनट भर का एक फोन भी भारी हो रहा है। बड़े होकर क्या इतना भी फर्ज नहीं है। अब आप सब अपने घर जाओ और इन्हें ऐसी उल्टी सीधी बातें मत समझाया करो।” सब आहिस्ता से उठ गई।


 डॉ. (श्रीमती)  अपर्णा शर्मा ने मेरठ विश्वविद्यालय, मेरठ से एम.फिल. की उपाधि 1984 में, तत्पश्चात् पी-एच.डी. की उपाधि 1991 में प्राप्त की। आप निरंतर लेखन कार्य में रत् हैं। डॉ. शर्मा की एक शोध पुस्तक - भारतीय संवतों का इतिहास (1994), एक कहानी संग्रह खो गया गाँव (2010), एक कविता संग्रह जल धारा बहती रहे (2014), एक बाल उपन्यास चतुर राजकुमार (2014), तीन बाल कविता संग्रह, एक बाल लोक कथा संग्रह आदि दस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साथ ही इनके शोध पत्र, पुस्तक समीक्षाएं, कविताएं, कहानियाँ, लोक कथाएं एवं समसामयिक विषयों पर लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। आपकी बाल कविताओं, परिचर्चाओं एवं वार्ताओं का प्रसारण आकाशवाणी, इलाहाबाद एवं इलाहाबाद दूरदर्शन से हुआ है। साथ ही कवि सम्मेलनों व काव्यगोष्ठियों में भागेदारी बनी रही है।

COMMENTS

Leave a Reply: 2
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका