चूंचूं चूहा और चींचीं चुहिया

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एक चूहा था, जिसका नाम था-चूंचूं

चूंचूं चूहा और चींचीं चुहिया
   (राजस्थानी दन्त-कथा )

एक चूहा था, जिसका नाम था-चूंचूं...उसकी नई-नई शादी हुई थी,चींचीं चुहिया से. शादी के बाद दोनों ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर आए. चूंचूं चूहा बहुत खुश था. वह सोच रहा था कि उसे अब खाना नहीं बनाना पडेगा और चींचीं चुहिया उसे बढ़िया खाना बनाकर खिलाएगी.
चींचीं चुहिया को भी नए नए पकवान बनाने का शौक था. जब उसे पता चला कि चूंचूं महाशय को खाने का शौक है तो वह भी बहुत खुश होगई. दूसरे दिन चूंचूं चूहा ऑफिस जाने के लिए बड़े ठाठ-बाट से तैयार हुआ.
चींचीं चुहिया ने पूछा, ‘तुम्हारे लिए आज खाने में क्या बनाऊँ?’
चूंचूं इतराकर बोला, ‘आज तुम अपनी पसंद का खाना बनाना जो भी तुम बहुत स्वादिष्ट बनाती हो.’
यह कहकर चूंचूं ने ‘ॐ गणपते नम:’ कहा और चला गया.  
चींचीं खुश होकर गाने लगी, ‘आछो आछो रान्दूसू, चूँ चूँ ने रीझाऊँसू’ (2)
[‘अच्छा अच्छा पकाऊँगी, चूँचूँ को रिझाऊँगी.’ (2)]
चींचीं को बैंगन बहुत पसंद थे. सोचा, ‘क्यों न मैं बहुत बढ़िया मसालेवाले छोटे भरवां बैंगन बनाऊँ?’
चींचीं बाज़ार गई, वहाँ से चार बैंगन लाई, धोकर भरा ढेर सारा मसाला, जलाया चूल्हा और कड़ाही चढ़ा, छौंक दिए बैंगन.
चींचीं बहुत खुश थी और बार-बार यही गा रही थी-
‘आछो आछो रान्दूसू, चूँ चूँ ने रीझाऊँसू’ (2)
[‘अच्छा अच्छा पकाऊँगी, चूँचूँ को रिझाऊँगी.’ (2)]
बैंगन की खुशबू घर में फ़ैलने लगी. जल्दी जल्दी तैयारी कर चींचीं रानी चूंचूं का करने लगी इंतज़ार. तभी आहट हुई और चूँचूँ मिंया घर के अंदर आए.
चींचीं बोली, ‘आओ जल्दी से हाथ-मुँह धो डालो, मैं खाना लगाती हूँ.’
चींचीं खुशी-ख़ुशी खूब अच्छी तरह से खाना थाली में सजाकर लाई. चूंचूं के मुँह में भी पानी आ रहा था. झटपट हाथ-मुँह धोकर आया और जल्दी से खाने बैठा, पर जैसे ही उसने बैंगन देखे वह उछल पडा...यह सब्जी तो उसे बहुत नापसंद थी.
एकदम नाक भौं सिकोड़ कर बोला, ‘अरे!!यह क्या बनाया!!’
चींचीं बोली, ‘यह दुनिया की सबसे स्वादिष्ट और फ़ायदेमंद सब्जी है. तुम इसे खाकर देखो, यह सब्जियों का राजा है. इसमें बहुत आयरन होता है, इससे शरीर में बहुत ताकत आती है.’
परन्तु चूंचूं तो आग बबूला हो गया.. वह गुस्से में कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था. चींचीं जब ज़िद करने लगी
मंजु महिमा
तो उसे और भी गुस्सा आया और उसने उठाकर खाना फेंक दिया. जैसे ही चींचीं ने बोलने के लिए मुँह खोला तो चूंचूं ने चींचीं को चपत मारी और घर से निकल गया...
 अब तो चींचीं को भी बुरा लगा, उसने अपना सामान बाँधा और चल दी अपने घर. चूंचूं का गुस्सा उतरा तो वह शाम को घर आया. चींचीं को न देख, बहुत दुखी हुआ. घर सूना-सूना हो गया था. अब उसे अफ़सोस हुआ और अपनी गलती का अहसास भी. तभी उसका दोस्त आया और उसने समझाया,‘तुम्हें चीं चीं को मारना नहीं चाहिए था. आखिर उसकी गलती ही क्या थी? उस बिचारी ने इतने प्यार से खाना बनाया और तुमने गुस्से में उठाकर फेंक दिया. तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.’
चूंचूं ने उदास स्वर में कहा, ‘अब मैं क्या करूं?’
दोस्त ने कहा, ‘तुम्हें जाकर चींचीं को मनाकर ले आना चाहिए. पर उसके पहले उसे उसके लिए कुछ अच्छा-सा खाना बना लेना चाहिए.’
चूंचूं ने अपनी पसंद का हलवा बनाया और चल पड़ा चींचीं को लेने.
वहाँ जाकर उसने चींचीं से माफ़ी माँगी और साथ चलने को कहा. पर चींचीं तो रूठी बैठी थी,
कहने लगी, ‘थें म्हने मारी, थें म्हने कूटी, आए म्हारी जूती’
[तुमने मुझे मारा तुमने मुझे कूटा, आए मेरा जूता]
चूंचूं बोला, ‘ना थने मारूं, ना थने कूटूं, चाल म्हारी गोरूं.’
[‘ना अब तुझे मारूं, ना तुझे कूटूं, चल मेरी गोरू’ ]
चींचीं ने कहा, ‘वादा करो’
चूंचूं ने कहा, ‘करता हूँ वादा
कभी ना तुझको मारूंगा,
खूब प्यार से सदा रखूँगा.
तेरा साथ निभाऊंगा.
हलवा तुझे खिलाऊँगा.’
–सुनकर चींचीं खुश हो गई और चल पड़ी फिर चूहे के साथ.
घर पहुंचकर चुहिया बोली, ‘हलवा मुझे पसंद नहीं, फिर भी मैं खाऊँगी,क्योंकि तुमने प्यार से मेरे लिए जो बनाया है.’
और फिर दोनों बड़े प्यार से अपने छोटे से बिल में हँसी-ख़ुशी रहने लगे. चूंचूं बैंगन खाने लगा और चींचीं हलवा....
सीख-/सन्देश-
बच्चो! जब कोई खूब प्यार से हमारे लिए कुछ बनाता है या लाता है तो पसंद ना होते हुए भी हमें उसे स्वीकार कर लेना चाहिए. इस प्रकार हम उसकी भावनाओं का आदर करते हैं और प्यार के बीज बोते हैं..


 यह रचना मंजु महिमा भटनागर जी द्वारा लिखी गयी है . आपकी प्रकाशित रचनाओं में काव्यसंग्रह– हिन्दी- (1) बोनसाई संवेदनाओं के सूरजमुखी (2) शब्दों के देवदार 3) हथेलियों में सूरज (सद्य प्रकाशित )  ,शोध प्रबंध–प्रकाशित-  (1) संतकवि आनंदधन एवं उनकी पदावली .आपको   हिन्दी साहित्य अकादमी गुजरात द्वारा श्रेष्ठ शोध-प्रबंध हेतु पुरस्कार , रजत पदक - डॉ. काबरा काव्य स्पर्धा में प्रथम पुरस्कार-हिन्दी साहित्य परिषद, अहमदाबाद आदि विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है . संपर्क सूत्र - ईमेल : manjumahimab8@gmail.com ,चलित-भाष-09925220177

COMMENTS

Leave a Reply: 2
  1. कहानी बहुत अच्छी है साथ ही शिक्षाप्रद है.

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  2. बहोत सुंदर कहानी, बच्चों को ज्ञान की बाते समझाने में काफी फायदेमंद साबित होंगी.

    जवाब देंहटाएं
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