कश्मीर की सत्ता के लिए जुगाड़ शुरू

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jammu and kashmir chief minister today पीडीपी अध्यक्ष और जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती सयैद की मौत के बाद राज्य में सत्ता के समीकरण बदल सकते हैं। अब सारी नजरे उनकी बेटी महबूबा मुफ़्ती पर टिक गई हैं।

जम्मू कश्मीर की सत्ता के लिए जुगाड़ शुरू
पीडीपी अध्यक्ष और जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती सयैद की मौत के बाद राज्य में सत्ता के समीकरण बदल सकते हैं। अब सारी नजरे उनकी बेटी महबूबा मुफ़्ती पर टिक गई हैं। जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुसार राज्यपाल एन. वी. वोहरा ने सेक्शन 92(1) के मुताबिक राष्टपति शासन लगा दिया है । इस साल में ये दूसरी बार हुआ कि जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा हो।
हो सकता है कि महबूबा मुफ़्ती राज्य में चुनाव करवाना चाहती हों क्योकि लाख कयासों के बावजूद भी उन्होंने शपथ नही ली जिसकी वजह से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। कहने को तो ये भी कहा जा सकता है कि अपने पिता की मौत के चार दिन के भीतर वो शपथ नहीं लेना चाहती थी मगर यदि वो चाहती तो शपथ लेकर राष्ट्रपति शासन टाल सकती थी। कहीं ऐसा तो नहीं की मुफ़्ती के दिमाग में 1984-85 के लोकसभा चुनाव की वो तस्वीर चल रही हो जब इंद्रा गाँधी की मौत के बाद जनता ने भावनात्मक होकर कांग्रेस को प्रचंड बहुमत दिया था। अगर जम्मू-कश्मीर में चुनाव हुए तो सिम्पैथी पीडीपी के साथ जायेगी इस बात में कोई दौयराय नही है मगर महबूबा मुफ़्ती इस बात से नादान नही है कि दिल्ली से बिगाड़कर उन्हें कुछ मिलेगा नही क्योंकि दिल्ली में बेठी है बीजेपी इसकी बेशकियो के सहारे पर जम्मू–कश्मीर की सरकार चल रही थी कडवी सचाई है कि बीजेपी के साथ रहना महबूबा की मजबूरी भी है और समय की जरूरत भी। 
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी की महबूबा मुफ़्ती के फेयरव्यु आवास में अम्बिका सोनी, जिए मीर, सैफुद्दीन सोज और गुलाम नबी आजाद के साथ मिलने गयी और ये मुलाकात लगभग आधा घंटा चली थी। सोनिया के साथ गुलाम नबी आजाद का होना किसी समझोते या जोड़तोड़ की और इशारा तो नही करता ? क्योंकि जब 2002 से 2008 में पीडीपी की सरकार बनी तो कांग्रेस ने तीन-तीन साल के फोर्मुले के तहत समर्थन दिया था तब कांग्रेस की तरफ से गुलाम नबी आजाद मुख्यमंत्री बने थे। हालंकि 2008 में अमरनाथ के मूदे पर उन्हें गठबंधन तोडना पड़ा था । 
मोहित सिंह 
कानून की पढाई कर चूकी महबूबा मुफ़्ती कानून की अचछि जानकार के साथ एक मांझी हुई राजनेता भी है। कांग्रेस,बीजेपी या चुनाव के फैसले से पहले वो अपनी पार्टी का हित देखेंगी । याद कीजिए वो 1996 का वो साल जब उन्होंने कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा और नेता विपक्ष बनी उनके तर्क भरे सवालों से उस वक्त के फारुख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री के साथ साथ बीजेपी के नेता भी वाकिफ हैं । 
कुछ सूत्रों की माने तो महबूबा मुफ्ती ने बीजेपी के सामने चार शर्ते रखी हैं। जिसके तहत बीजेपी को उप-मुख्यमंत्री का पद छोड़ना होगा , बड़े पोर्टफोलियो से बीजेपी नेताओ की विदाई की मांग , 370 जैसे संवेदन शील मुद्दों पर बीजेपी नेताओ को चुप रहने के साथ जम्मू – कश्मीर के लिए अधिक धन भी देना होगा। 
फिलहाल बीजेपी इस मांगो को मानती नही दिख रही है क्योंकि ये अटल और अडवाणी की वो बीजेपी नही जो खुद की ज्यादा सिंटे होने के बावजूद नितीश कुमार को मुख्यमंत्री बनने के लिए समर्थन करे ये तो मोदी और अमित शाह की वो बीजेपी है जो सीटो के मुद्दे पर अपने सबसे पुराने साथी शिवसेना के साथ महाराष्ट्र में गठबंधन तोड़ते देर नही लगाती । बीजेपी जम्मू –कश्मीर में सत्ता में बने रहने के तीन-तीन साल के फोर्मुले के तहत मुख्यमंत्री का बदलाव चाहते हैं ।
अब देखना ये है होगा कि बीजेपी की मांगे मानी जाती है या पीडीपी की शर्ते या फिर एक बार फिर से पीडीपी पुराने साथी कांग्रेस सत्ता में आएगी वही अब बीजेपी तीन-तीन साल के फोर्मुले के तहत मुख्यमंत्री का बदलाव चाहते हैं । सत्ता की गद्दी पर कोई भी बैठे पर इस जोड़तोड़ का असर जनता के उन मुद्दों पर पड़ रहा है जो इस पार्टियों ने चुनाव के वक्त वोट मांगते वक्त किये थे ।

यह लेख मोहित सिंह जी द्वारा लिखा गया है . आप भारतीय जनसंचार संस्थान में छात्र हैं व विभिन्न सामायिक मुद्दों पर लिखते रहते हैं . 

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