अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान

SHARE:

पुस्तक का प्रत्येक खंड एवं संबद्ध आलेख बड़ी ही तन्मयता के साथ लिखे गए हैं. इस तन्मयता का ही परिणाम है कि हिंदी भाषा के साहित्यिक और साहित्येतर पाठों के विश्लेषण में यह सफल हो सकी है

पुस्तक समीक्षा : ऋषभदेव शर्मा 


अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परख

मनुष्यों द्वारा विचारों और मनोभावों की अभिव्यक्ति के लिए व्यवहार में लाई जाने वाली भाषा के वैज्ञानिक
अध्ययन के शास्त्र को भाषाविज्ञान कहा जाता है. सामान्य भाषाविज्ञान के अंतर्गत भाषा के उद्भव और विकास पर विचार किया जाता है. सैद्धांतिक भाषाविज्ञान भाषा अध्ययन और विश्लेषण के लिए सिद्धांत प्रदान करता है. वह मूलतः इस प्रश्न पर विचार करता है कि भाषा क्या है और किन तत्वों से बनी हुई है. इसके चार क्षेत्र हैं – ध्वनि विज्ञान, रूप विज्ञान, वाक्य विज्ञान और अर्थ विज्ञान. आधुनिक परिप्रेक्ष्य में भाषाविज्ञान सैद्धांतिकी से आगे बढ़कर विभिन्न क्षेत्रों में अनुप्रयुक्त हो रहा है और भाषा-उपभोक्ता की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान विकसित हुआ है. अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के अंतर्गत भाषा शिक्षण, शैलीविज्ञान, कोशविज्ञान, भाषा नियोजन, वाक् चिकित्सा विज्ञान, समाजभाषाविज्ञान, मनोभाषाविज्ञान, अनुवादविज्ञान आदि अनुप्रयोग के क्षेत्र शामिल हैं. हिंदी में अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की संक्रियात्मक भूमिका पर केंद्रित गंभीर पुस्तकों का लगभग अभाव-सा है. डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा (1975) की पुस्तक ‘अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परख’ (2015) इस अभाव की पूर्ति का सार्थक प्रयास प्रतीत होती है.

‘अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परख’ में कुल 29 अध्याय हैं जो इन 7 खंडों में विधिवत संजोए गए हैं – अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान, भाषा शिक्षण, अनुवाद विमर्श, साहित्य पाठ विमर्श (शैलिवैज्ञानिक विश्लेषण), प्रयोजनमूलक भाषा, समाजभाषिकी और भाषा विमर्श में अनुप्रयोग. अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के अग्रणी विद्वान प्रो. दिलीप सिंह का निम्नलिखित कथन इस पुस्तक की प्रामाणिकता का सबसे अधिक विश्वसनीय प्रमाणपत्र है – 
“पुस्तक का प्रत्येक खंड एवं संबद्ध आलेख बड़ी ही तन्मयता के साथ लिखे गए हैं. इस तन्मयता का ही परिणाम है कि हिंदी भाषा के साहित्यिक और साहित्येतर पाठों के विश्लेषण में यह सफल हो सकी है और इस तथ्य को उजागर कर सकी है कि कोई भी भाषा (इस अध्ययन में हिंदी भाषा) अलग-अलग सामाजिक परिस्थितियों और प्रयोजनों में अलग-अलग ढंग से बरती ही नहीं जाती, बल्कि भिन्न प्रयोजनों में प्रयुक्त होते समय अपनी अकूत अभिव्यंजनात्मक क्षमता को भी अलग-अलग संरचनाओं में ढाल कर अलग-अलग तरीकों से सिद्ध करती है.”
लेखिका ने पहले खंड में अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के स्वरूप और क्षेत्र पर सैद्धांतिक चर्चा की है. इसके बाद दूसरे खंड में मातृभाषा, द्वितीय भाषा और अन्य भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण के लिए भाषाविज्ञान के सिद्धांतों के अनुप्रयोग पर चर्चा की है. तीसरे खंड में अनुवाद सिद्धांत, अनुवाद समीक्षा और अनुवाद मूल्यांकन पर सोदाहरण प्रकाश डाला गया है. पुस्तक का चौथा खंड साहित्यिक पाठ विमर्श के लिए शैलीविज्ञान के व्यावहारिक पक्ष को सामने लाता है. यहाँ एक निबंधकार (प्रताप नारायण मिश्र), एक उपन्यासकार (प्रेमचंद) और दो कवियों (शमशेर तथा अज्ञेय) के साहित्यिक पाठ निर्माण, बनावट और बुनावट का विश्लेषण किया गया है. यह खंड पाठ विश्लेषण के क्षेत्र में शोध करने वालों के लिए विशेष उपयोगी है. पाँचवे खंड में अखबारों से लेकर टीवी तक विविध संचार माध्यमों द्वारा समाचार से लेकर प्रचार तक के लिए व्यवहार में लाई जाने वाली हिंदी भाषा के लोच भरे गंभीर और आकर्षक रूप की सोदाहरण मीमांसा की गई है. इसके पश्चात छठा खंड समाजभाषाविज्ञान पर केंद्रित है. जहाँ एक ओर तो सर्वनाम, नाते-रिश्ते की शब्दावली, शिष्टाचार, अभिवादन और संबोधन शब्दावली पर हिंदी भाषासमाज के संदर्भ में तथ्यपूर्ण विमर्श शामिल है तथा दूसरी ओर दलित आत्मकथाओं और स्त्री विमर्शीय लेखन की भी गहन पड़ताल की गई है. यह खंड साहित्य पाठ विमर्श वाले खंड के साथ मिलकर पाठ विश्लेषण के विविध प्रारूप सामने रखता है. पुस्तक का अंतिम खंड है – ‘भाषाविमर्श में अनुप्रयोग’. यहाँ विदुषी लेखिका ने महात्मा गांधी, प्रेमचंद, अज्ञेय, रवींद्रनाथ श्रीवास्तव, विद्यानिवास मिश्र और दिलीप सिंह जैसे अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े विद्वानों के भाषाविमर्श पर सूक्ष्म विचार-विमर्श किया है. इतना ही नहीं यह खंड इन भाषाचिंतकों के भाषाविमर्श की केंद्रीय प्रवृत्तियों को भी रेखांकित करता है. लेखिका ने प्रमाणित किया है कि महात्मा गांधी के भाषाविमर्श के केंद्र में संपर्कभाषा या राष्ट्रभाषा का विचार है, प्रेमचंद के भाषाविमर्श में सर्वाधिक बल हिंदी, उर्दू और हिंदुस्तानी जैसी साहित्यिक शैलियों के रचनात्मक समन्वय पर है तो अज्ञेय का भाषाविमर्श उनकी साहित्यिक शैली के प्रति जागरूकता के इर्दगिर्द निर्मित होता है. प्रो. रवींद्रनाथ श्रीवास्तव को डॉ. जी. नीरजा ने अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के सजग प्रहरी सिद्ध किया है तो विद्यानिवास मिश्र को आधुनिक भाषाशास्त्रीय चिंतन की पीठिका का भारतीय संदर्भ खड़ा करने का श्रेय दिया है. उनके अनुसार दिलीप सिंह का भाषाविमर्श अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की संपूर्ण पड़ताल के लिए कटिबद्ध और प्रतिबद्ध है. उल्लेखनीय है कि यह पुस्तक प्रो. दिलीप सिंह को ही समर्पित भी है. 
अंत में, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के अनुवाद अध्ययन विभाग के आचार्य डॉ. देवराज के शब्दों में यह कहना समीचीन होगा कि “डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा को इस बात का श्रेय देना होगा कि उन्होंने एक ऐसे विषय पर भरपूर सामग्री तैयार की है जो अन्य लोगों के लिए रचनात्मक स्तर पर चुनौती बना हुआ है. उनकी अध्ययनशीलता और संकल्पशीलता के लिए मेरी शुभकामनाएँ!”
--------------------------------
अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परख/ गुर्रमकोंडा नीरजा/ 2015/ वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली/ पृष्ठ - 304/ मूल्य – रु. 495/- 

प्रो. ऋषभदेव शर्मा 
(पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष
उच्च शिक्षा और शोध संस्थान 
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा)
208 ए, सिद्धार्थ अपार्टमेंट्स
गणेश नगर, रामंतापुर 
हैदराबाद – 500013
मोबाइल – 08121435033
ईमेल – rishabhadeosharma@yahoo.com
            
 

COMMENTS

Leave a Reply: 1
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका