बीस कदम का फासला (हिंदी कहानी )

SHARE:

आरज़ू अब मुड़कर जाने लगी थी समीर ने भी उसे रोकने की कोशिश नहीं की वो तो बस मुस्कुराते हुए उस नायाब लम्हे की कशिश को क़ैद कर रहा था अपने दिल में क्योंकि आज के बाद यही तो उसके जीने का सहारा बनता। बस यूँही एक मोहब्बत का अफ़साना खत्म हो गया 'बीस कदम के फासले के दरम्यान...

बीस कदम का फासला

'नही मुझे ये ड्रेस बिल्कुल भी पसंद नहीं है'....आरज़ू ने ड्रेस को एक कोने में डालते हुए कहा। 'तुम्हे पता भी है पुरे बाजार का चक्कर लगाने के बाद मैंने ये ड्रेस तुम्हारे लिए पसंद की है भला क्या खराबी है इसमें'....आरज़ू की बड़ी
बहन ज़ोया ने उसी ड्रेस को हाथ में उठाकर दिखाते हुए कहा। 'लेकिन ये मुझे बिल्कुल भी पसंद नी है और दीदी इसका कलर तो देखो इतने डार्क कलर के कपडे मैं नी पहन सकती'...इस बार एक वजह को बताते हुए आरज़ू ने थोड़ी तेज आवाज़ में कहा। 'अब आ गयी है तो पहननी तो पड़ेगी'....ज़ोया ने उसकी वजह को नज़रअंदाज़ करते हुए कहा। 'ठीक है अगर आप  जबरदस्ती पहनाना ही चाहती है तो ठीक है मैं पहन लूँगी'...इस बार आरज़ू ज़रा नीची और भावुक आवाज में बोली। आरज़ू का ये इमोशनल तीर निशाने पे लग चूका था। 'हाँ चलो ठीक है अब इतना रोंदू सा मुँह बनाने की जरुरत नी है इसकी तह करके बैग में ही डाल दो कल बदल के लेती आना'....आरज़ू के भावुक तीर से घायल ज़ोया आखिर मान ही गयी। आरज़ू ने ख़ुशी से ज़ोया के गले लगते हुए कहा' थैंक यू सो मच दी...आप ना वर्ल्ड की सबसे बेस्ट दी हो'। 'अच्छा और अगर ये ड्रेस चेंज करने के लिए मना कर दूँ तो'....ज़ोया ने भी अपनी लाड़ली बहन को छेड़ते हुए कहा। ये मीठी नोक-झोंक कोई नई बात नहीं थी दोनों बहनो में ये सिलसिला से तो बचपन से ही चल रहा था कभी अपने पसंदीदा स्कूल बैग को लेकर तकरार तो कभी अपनी अम्मी के साथ सोने को लेकर तकरार मगर छोटी होने और अपनी बड़ी बहन ज़ोया की लाड़ली होने के कारण बाज़ी हमेशा आरज़ू ही मार लेती थी। अपनी छोटी बहन के लिए  ज़ोया ने कई किरदार निभाये थे कभी कॉलेज के काम को कराने में वो उसकी सहेली बनती तो कभी किसी काम से रोकने  के लिए नशीहते देने वाली बड़ी बहन तो कभी बेशुमार प्यार देने वाली अम्मी। कुछ महीनो बाद ज़ोया की शादी हो गयी। 
आरज़ू अब घर में अकेली पड़ चुकी थी घर अब वीरान सा लगने लगा था उसे ज़ोया के बिना। वैसे भी घर अपनों से होते है अगर अपने ना हो तो वो महज वक़्त गुजारने की जगह बन कर रह जाते है। अब ना ही कोई झगड़ने वाला था और ना ही कोई ऐसा जिससे ज़िद्द करके वो अपनी ख्वाहिशो को पूरा करा सके। ऐसा लगता था मानो ज़ोया की डोली के साथ आरज़ू की तमाम शरारते, बेपरवाह ख्वाहिशे भी घर से रुखशत हो गयी हो। ज़ोया फ़ोन करके अपनी बहन को पढ़ाई में ध्यान लगाने और खुश रहने को कहती रहती। मगर आरज़ू का मन दिल कहीं भी नहीं लगता था।  'अरे तू क्यूँ इतना उदास रहती है देख अगर तू ऐसे उदास रहेगी ना तो मैं भी तेरी शादी के बाद ऐसे ही उदास रहा करुँगी'...आरज़ू की उदासी को देखकर एक दिन उसकी सहेली मुस्कान ने थोडा मुँह बनाते हुए कहा। 'हाँ जैसे तुझे तो यहीं बसना है हमेशा तेरी भी तो होगी या कोई घर जमाई ढूंढ लिया है हाँ'.....आरज़ू ने हँसते हुए कहा। 'नहीं अपने लिए तो नहीं ढूंढा मगर लगता है तेरे लिए जरूर ढूंढना पड़ेगा'....मुस्कान ने भी हँसते हुए जवाब दिया। 'हाँ ढूंढ लेना मगर अभी तो घर चलने का टाइम हो गया है पहले बस ढूंढ'.....आरज़ू ने कहा। 'अरे मैं तुझे बताना भूल गयी आज मेरा भाई आ रहा है मुझे लेने तो मैं उसके साथ जाउंगी तू बस से चली जाना'.....मुस्कान ने कहा। बाते करते करते वो दोनों कॉलेज के गेट पे आ चुके थी। आरज़ू बस स्टॉप की तरफ निकल पड़ी और मुस्कान भी अपने भाई की बाइक के पास आकर खड़ी हो उसका भाई अब भी आरज़ू को ही देख रहा था उसे पता ही नहीं चला कब मुस्कान उसके पास आ गयी। मुस्कान ने मुस्कुराते हुए अपनी भाई को देखा और बाइक का हॉर्न बजाया। समीर के किसी खूबसूरत ख्वाब को जैसे इस हॉर्न की तेज़ आवाज ने तोड़ दिया हो। 'तुम कब आई'...समीर ने हड़बड़ाते हुए रज़िया से पूछा। 'जब तुम मेरी सहेली को एकटक घूर रहे थे'....मुस्कान ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया। 'घूर नहीं रहा था मैं तो बस देख रहा था खुदा के एक करिश्मे को....मतलब ढूंढ रहा था तुम्हे ही'....समीर ने थोडा बात को सम्भालते हुए कहा। 'अच्छा जी ढूंढने के लिए नजरे इधर-उधर घुमानी पड़ती है...एक ही जगह बिना पलके झुकाये देखकर नहीं ढूंढा जाता'.....मुस्कान ने फिर कहा। 'चल ज्यादा मत सोच घर चल अब पहले ही देर हो चुकी है'...समीर ने बात बदलते हुए कहा। वो दोनों घर पहुँच गए। समीर की आँखों में अब भी आरज़ू का ही चेहरा घूम रहा था। एक बेनाम मगर हजारो जन्नतो के सुकून सा चेहरा। वो उसका नाम जानना चाहता था मगर कैसे ये सवाल उसके जहन में उठ रहा था। उसने सोचा चलो मुस्कान से ही पूछ लेते है लेकिन अगर उसे शक हो गया की उसके भाई पहली ही नजर में किसी को दिल दे बैठा है तो वो तो उसका जीना हराम कर देगी। मगर अभी कौन-सा सुकून है जाने क्या कर गयी वो लड़की बिना कुछ कहे ही। आखिर हिम्मत जुटा के समीर मुस्कान के कमरे में गया वो पढ़ रही थी। थोड़ी देर तक कमरे में इधर-उधर देखने के बाद मेज पे से मुस्कान की किताब उठाकर पढ़ने का नाटक करने लगा। मुस्कान उसे देखकर मुस्कुराती रही। 'क्या हुआ क्यूँ हँस रही हो वैसे ये किताब बहुत अच्छी है'....समीर ने मुस्कान की हँसी का कारण पूछा। 'नहीं वो तो ऐसे ही वैसे ये किताब और अच्छी लगेगी अगर सीधी पकड़ लो तो'.....मुस्कान ने कहा। समीर ने हड़बड़ाकर किताब सीधी की और आखिर पूछ ही लिया। 'उसका नाम क्या है'। 'किसका'...मुस्कान ने अनजान बनते हुए पूछा। वैसे मालूम तो हो गया था उसे की किसके ख्याल उसके भाई को उस तक खींच लाये थे और वो आरज़ू के बारे में ही पूछ रहा है। 'देखो तुम्हे पता है मैं किसकी बात कर रहा हूँ अब जल्दी से उसका नाम बताओ'....समीर ने थोड़े गुस्से से कहा। 'मुझे नहीं पता तुम खुद ही क्यूँ नी पूछ लेते उससे'....मुस्कान ने जवाब दिया। 'कैसे.....उसने बताने से मना कर दिया तो'....समीर थोडा उदास हो गया। 'अरे बताएगी ना मगर ऐसे ही थोड़े बताएगी थोडा फिल्मी होना पड़ेगा...कल उसके पास जाना और वो सॉन्ग सुनाना 'चेहरा है या चाँद खिला है जुल्फ घनेरी शाम है या सागर जैसी आँखों वाली ये तो बता तेरा नाम है क्या'.......हँसते हुए मुस्कान ने कहा। 'ओये इतने सैंडल पड़ेंगे की तुम्हे भी पहचान पत्र दिखाकर बताना पड़ेगा की मैं समीर हूँ...बात करती है सॉन्ग सुना दो'.....समीर ने थोड़े गुस्से से कहा।

'हाँ तो मेरे पास यही आईडिया था मैंने बता दिया नहीं मानना है तो मत मानो कुछ और सोच लो'.....मुस्कान ने अपनी हंसी रोकते हुए कहा। कोई बात ना बनते देख आखिर समीर ने सोचा चलो इसे सच बता ही देता हूँ थोड़ी
गौतम कुमार
हंसेगी मगर ये तो अब भी हंस रही है और मदद भी तो यही करेगी आखिर। 'तुम्हे पता है मैं ये सब कुछ पूछ रहा हूँ'....थोडा गंभीर होते हुए समीर ने पूछा। 'हाँ पता है तुम उसे पसंद करते हो इसलिए'....मुस्कान ने अपने भाई के दिल की बात दोहरा दी। इस जवाब की उम्मीद नहीं थी समीर को वो  थोडा लड़कियो की तरह शरमाया मगर कुछ बोला नहीं। 'आरज़ू नाम है उसका मेरे साथ ही पढ़ती है, और पढ़ाई में भी मुझसे अच्छी ही है अब इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं बता सकती जाओ अब मुझे भी पढ़ने दो'.....एक ही साँस में मुस्कान ने ये सब बोल दिया। 'आरज़ू......'....कहते हुए समीर ने एक गहरी साँस ली और कमरे से जाते हुए बोला 'अब कुछ नहीं पूछना है बाक़ी मैं खुद कर लूँगा'। देर तक अपने बिस्तर पे लेटकर वो अपने उस ख्वाबो के चेहरे को उसके नाम से जोड़ता रहा। मन ही मन आरज़ू कहता और मुस्कुराता। इश्क़ भी क्या चीज़ है ना इंसान अकेले में मुस्कुराने लगता है लेकिन ये तो बस शुरुआत थी। वो सोने की कोशिश कर रहा था मगर उसकी नींद तो किसी की रेशमी ज़ुल्फो में उलझ के रह गयी थी। वो आरज़ू से मिलने की तरकीबे सोचने लगा। जब कोई तरकीब ना सूझी तो उसके कदम फिर चल पड़े मुस्कान के कमरे की तरफ। अन्दर जाकर उसने थोडा झिजकते हुए मुस्कान से पूछा 'वो एक बात पूछनी थी'। 'हम्म पूछो'...किताबो से नजरे हटाये बिना ही मुस्कान ने कहा। 'तुम उसे बता सकती हो मैं उसे पसंद करता हूँ'....समीर ने कहा। 'हाँ बता दूंगी मगर अगर उसने कुछ उल्टा-सीधा बोला तो मुझसे मत कहना'....मुस्कान ने कहा। समीर की साँस में साँस आ गयी उसने कहा 'बस तुम बोल देना एक बार फिर वो कुछ भी कहे मुझे सब कुछ मंज़ूर है उसकी नफरत भी और उसकी....'। 'मिर्ज़ा ग़ालिब जी अगर आपका हो गया हो तो तो आप जा सकते है मुझे पढ़ना भी है'....मुस्कान ने तंग होकर कहा। 'हाँ जा रहा हूँ और भूलना मत उसे बोलना है'....कहते हुए समीर बाहर की और जाने लगा तभी मुस्कान ने कहा 'ये भी कहते जाओ की तुम्हे कल कॉलेज मैं छोड़ने जाऊँगा नहीं तो एक बार और आओगे'। 'ओह हाँ भूल गया था चलो अच्छा है याद दिला दिया'...कहकर समीर चला गया। 
वैसे सुबह जल्दी उठने की आदत तो नहीं थी और ऊपर से सर्दी का मौसम तो किसका मन करता है उठने मगर फिर भी आरज़ू का दीदार करना था उठना ही पड़ा। और उसके सामने अच्छा भी दिखना था तो तैयार होने में समीर ने मुस्कान को भी कॉलेज के लिए देर करा दी। पुरे रास्ते मुस्कान बताती रही समीर आज ना लेट हूँ मैं और वो भी तुम्हारी वजह से। कॉलेज के बाहर जाकर बाइक रोकी और इंतज़ार करने लगा आरज़ू का। 'तुम उसका इंतज़ार करो मैं जाती हूँ'....कहकर मुस्कान कॉलेज जाने लगी। समीर ने एक बार फिर याद दिलाया की आज बताना है आरजू को मेरे बारे में। मुस्कान कॉलेज में गयी मगर थोड़ी देर में बाहर भी आ गयी। 'क्या हुआ वापस क्यूँ आ गयी'....समीर ने हैरानी से पूछा। 'और सज-संवर लो एक-दो बार और बालो को ठीक कर लेते, वो क्लास में ही है हमसे पहले आ चुकी है अब तो जब लेने आओगे तभी देखना अब तो उसे....गुस्से में कहकर मुस्कान जाने लगी। समीर ने उदास मन से बाइक स्टार्ट की और मुस्कान को आवाज लगायी, मुस्कान भी मुड़ी और बोली 'हाँ बता दूंगी भूली नहीं हूँ कितनी बार याद दिलाओगे'। लेकिन मुस्कान को थोड़ी हिचकिचाहट हो रही थी आरज़ू को ये सब बताने में। लेकिन अगर नहीं बताया तो वो जान खा जायेगा। मुस्कान के उतरे हुए चेहरे को देखकर आखिर आरज़ू ने ही पूछ लिया 'क्या बात है क्यूँ चेहरे की बत्ती गुल है'। 'मुझे तुम्हे कुछ बताना है'...मुस्कान ने कहा। 'हाँ बताओ क्या बताना है उसमे इतना परेशां होने वाली क्या बात'....आरज़ू ने फिर पूछा। 'वो बात दरअसल ये है की मेरा भाई तुम्हे पंसद करता है'....मुस्कान ने भी आखिर बोल ही दिया। 'तुम्हारा भाई मैंने तो तुम्हारे भाई को देखा भी नहीं और तुम्हारे भाई ने मुझे कहाँ देख लिया। 'अरे वो कल लेने आया था मुझे तब और वो चाहता है तुम एक बार बस उसे देख लो'.....मुस्कान ने कहा। 'हम्म बिल्कुल जरा मैं भी तो देखूँ ये आशिक़ साहब है कैसे'.....आरज़ू ने कहा। 'वो आज फिर आएगा मुझे लेने देख लेना उसे नीली शर्ट और सफ़ेद पैंट में'....मुस्कान ने कहा। 'अरे मुझे नी देखना मैं तो ऐसे ही कह रही थी'...वैसे देखने का मन तो था उसका भी मगर अपने दिल की बात दिल में ही छुपाये रखी। कॉलेज से बाहर निकलकर काफी देर तक उसकी निगाहे समीर को तलाशती रही मगर समीर एक कोने में खड़ा उसको ही देख रहा था इस बात का पता नहीं था उसे। थोड़ी देर बाद मुस्कान बाहर आई और आरज़ू से कहा 'तुम तो कह रही थी नहीं देखना अब इतनी देर तक देख कर भी मन नहीं भरा क्या'। 'अरे कहाँ वो आया ही नही'...आरज़ू ने जवाब दिया। 'अरे वो तो खड़ा है कोने में कब से तुम्हे ही देख रहा है'....मुस्कान ने कोने में खड़े अपने भाई की तरफ इशारा करते हुए कहा। आरज़ू ने एक नज़र देखा और उस एक ही पल में ना जाने ऐसा क्या हुआ की उसने नजरे फेर ली अब ये शर्मो हया थी या और कुछ ये मुझे भी नहीं मालूम। अब ये रोज़ का सिलसिला हो गया था दिसम्बर की सर्दियो में ठिठुरता वो उसका इंतज़ार करता वो आती देखती और चली जाती एक महीने में भी उनके बीच कोई बात नहीं हुई थी हाँ करते भी क्यों इश्क़ वालो को लफ़्ज़ों की जरुरत कहाँ होती है वो तो झुकी निगाहो में ही अफ़साने पढ़ लिया करते है।
 सर्दिया बढ़ी, कोहरा बढ़ा, इंतज़ार बढ़ा और दोनों का इश्क़ भी आरज़ू भी अब देख कर निगाहे नहीं फेरती थी वो मुस्कुराती और उस सर्दी में भी साहिल को ऐसे लगता मानो कोई उसकी मुस्कुराहट ने कोई अलाव जला दिया हो उसके दिल में। कुदरत को भी शायद ये आंखमिचौली पसंद नहीं आई उसने भी उनके बीच एक नक़ाब लाकर रख दिया कोहरे का वो कभी नज़र आती तो कभी उस कोहरे में ही कहीं खो सी जाती साहिल भी उसे उस 20 कदम के फासले से ही देखकर लौट जाता। पास आने की हिम्मत दोनों में ही नहीं थी। इसी आंखमिचौली के बीच नया साल आ गया। मुस्कान के कहने पे साहिल ने नए साल की मुबारकबाद देने के लिए मुस्कान के ही हाथो एक ग्रीटिंग आरज़ू के लिए भिजवा दिया। आरज़ू ने भी एक ग्रीटिंग मुस्कान के ही हाथो साहिल को भिजवा दिया। इसके मिलने से साहिल भी काफी खुश था की चलो इसी बहाने साहिब को ख्याल तो आया मेरा।

बातो का सिलसिला अब भी उन दोनों के बीच शुरू होने के इंतज़ार में था। लेकिन उन्हें कहाँ मालूम था की बाते कहाँ अब तो ये नजरो का सुकून भी उनसे छीनने वाला था। आरज़ू के एग्जाम हो गए और उसे कॉलेज छोड़ना पड़ा। साहिल भी अब काफी परेशान रहने लगा था रातो को नींद भी आती थी कोई आरज़ू का कोई आवारा सा ख्वाब आकर उसे भी छीन लेता। कहाँ-कहाँ नहीं ढूंढा समीर ने मुस्कान ने भी अपनी सहेलियों से उसका पता मालूम करने की कोशिश की मगर सब कोशिशे नाकाम रही। आरज़ू ने भी इतने दिनों में ना ही तो मुस्कान को उसने अपना पता बताया था और ना ही किसी और को। मुस्कान को भी खुद पे काफी गुस्सा आ रहा था क्योंकि उसने भी कभी ये सब जानना नहीं चाहा था उसके बारे में। समीर अब भी कॉलेज जाता उसी कोने में खड़े होकर अब भी उसकी नजरे बस आरज़ू को तलाशती मगर उसके बाद आरज़ू कभी कॉलेज गयी नहीं वो मिलना नहीं चाहता था उससे वो तो बस एक नज़र देखना भर चाहता था ताकि सारी उम्र के लिए क़ैद कर सके उसे अपनी आँखों में। खैर समीर ने भी अपनी बदकिस्मती मानकर अपने दिल को समझा लिया और आरज़ू ने भी। इस वाकया को 3 साल गुजर गए इन सालो में उन्होंने ना ही कभी एक दूसरे को देखा और ना ही कोई बात ही हुई थी। लेकिन आज 3 साल बाद आरज़ू की आँखों के सामने से फिर वही चेहरा गुजरा जो उसके दिल के किसी कोने में इन तीन सालो से एक नज़र दीदार का प्यासा था। उस एक पल ने उसे फिर से उसे पुरानी यादो की तरफ धकेल दिया। जहाँ वो थी, समीर था और उन दोनों के बीच वही 20 कदम का फासला। वो घर पहुंची उसकी दी घर ही आई हुई थी। आरज़ू आकर लेट गयी। आँखों से झरती यादो की हर एक बूँद उसे बीते पलो की याद दिला रहा थी उनको छिपाने के लिए उसने अपनी आँखों पे हाथ रख लिए। उसकी बड़ी बहन ज़ोया ने आखिर पूछ ही लिया क्या बात है क्यूँ इतनी परेशान हो। आरज़ू ने ये बात अब तक अपनी दी से छुपाई थी मगर बताती भी क्या उसने सोचा था की एग्जाम के बाद बताएगी मगर उसके बाद से तो खुद इस बात को भूलना चाह रही थी लेकिन जब इंसान का दिल दुखी हो तो वो खुद-ब-खुद बोलने लगता है आरज़ू ने पूरी बात ज़ोया को बता दी उसकी आँखों के आँसू अब अपनी बहन के सामने होने का लिहाज नहीं कर रहे थे। ज़ोया ने अपनी बहन को गले लगाते हुए कहा 'तेरी अब सगाई हो चुकी है और कुछ ही महीनो में शादी भी हो जायेगी अब काफी देर हो चुकी है मैं ये नहीं कहती की तू उन बातो को भूल जा मगर जहाँ इन तीन सालो में उन बातो रखा था वहीँ रख अपनी अच्छी यादो के तौर पे'। आरज़ू ने रोते हुए ही कहा 'मुझे बस एक बार बात करनी है समीर से बस एक बार फिर मैं उसकी सारी यादो को अपने दिल में ही दफ़न कर लुंगी'। हमेशा की तरह आज भी ज़ोया आरज़ू की ज़िद्द के सामने हर गयी उसने कहा 'ठीक है'। काफी मशक्कत के बाद ज़ोया ने मुस्कान का पता लगा ही लिया समीर अब उस शहर में नहीं रहता था तो मुस्कान ने उसका नंबर ज़ोया को दे दिया। बहरहाल नंबर तो मिल गया था मगर ये नंबर मिल ही नहीं रहा था कभी स्विच ऑफ तो कभी पहुँच से बाहर। इसी तरह एक महीना गुजर गया। आज भी रोज़ की तरह आरजू ने नंबर मिलाया उसे तो आदत पड़ चुकी थी ये सुनने की कि 'जिस नंबर से आप संपर्क करना चाहते है वो अभी स्विच ऑफ है कृपया थोड़ी देर बाद कोशिश करे' लेकिन आज ऐसा नहीं हुआ आज रिंग गयी वो हैरान भी थी खुश भी ऐसा लग रहा था जैसे रिंग नहीं मानो आरज़ू की रुकी धड़कने चलने लगी हो दो रिंग के बाद समीर ने फ़ोन उठा लिया 'हेल्लो....'। मगर आरज़ू कुछ नहीं बोली। समीर ने 4-5 बार हेल्लो कहा जब आरज़ू के सिसकने के अलावा कोई आवाज उसके कानो में ना गयी तो वो बोला 'आरज़ू....देखो अगर तुम आरज़ू हो तो बस हम्म कह दो प्लीज कुछ मत बोलना इतनी ख़ुशी से मर जाऊंगा मैं'। देर तक दोनों फ़ोन पे रोकर अपनी पुरानी यादो को अपने आंसुओ से धोते रहे। आखिर ज़ोया ने ही आरज़ू से ही कहा अरे अब बात भी करो कुछ या रोती ही रहोगी। 'तुम अब भी मुझसे प्यार करते हो'....आरज़ू ने रोते हुए ही पूछा। 'ये सवाल पूरी ज़िन्दगी में कभी भी पूछोगी तो मेरा जवाब हाँ ही होगा, लेकिन अब काफी देर हो चुकी है तुम्हारी बहन ने बताया था मुस्कान को की तुम्हारी सगाई हो चुकी है, मैंने बहुत से ख्वाब संजोये थे सिर्फ तुम्हे लेकर, मगर अब समझ नहीं आता क्या करूँ किससे कहूँ किससे तुम्हे माँगू मुझे कुछ नहीं पता, हाँ एक हसरत है आखिरी बार तुम्हे उसी तरह देखने की मैं कुछ नहीं कहूँगा बस उसी तरह देखकर लौट जाऊंगा अगर तुम पूरी कर सको तो'। आरज़ू के पास मना करने की कोई वजह नहीं थी उसने भी कह दिया ठीक है। अगले दिन दोनों वही खड़े थे जहाँ से उनके इश्क़ ने साँस लेना शुरू किया था वही आज उस इश्क़ की शायद ज़िंदगी पूरी होने वाली थी। हवाएँ थोड़ी तेज थी शायद आज सब कुछ अपने साथ बहा ले जाने को बेकरार। आरज़ू आज भी समीर को तलाश रही थी और आज भी समीर चुपचाप उस कोने में खड़ा उसे ही देख रहा था। आखिर आरज़ू की नजरो ने भी तलाश ही लिया उस चेहरे को जिसे देखकर अक्सर वो झूक जाया करती थी। दो रूहे ख़ामोशी से उस लम्हे को जी रही थी कुछ वक़्त बाद जो बस एक याद बन कर रह जायेगा मगर दोनों के दिल अपनी ही बातो में मशगूल थे। आरज़ू की आँखों का सब्र टूट चूका था वो भर आई थी। समीर ने दूर से ही हाथ से आँसू पोछने का इशारा किया आरज़ू ने भी अपने हाथो से आंसुओ को हटाया। मुस्कुराहट की एक छोटी सी लकीर समीर के चेहरे पे उभर आई। आज उन दोनों के दरमियाँ कोई नहीं था सिवाय उस बीस कदम के फासले के जो इतने सालो में भी वो लाँघ नहीं पाये थे। आरज़ू अब मुड़कर जाने लगी थी समीर ने भी उसे रोकने की कोशिश नहीं की वो तो बस मुस्कुराते हुए उस नायाब लम्हे की कशिश को क़ैद कर रहा था अपने दिल में क्योंकि आज के बाद यही तो उसके जीने का सहारा बनता। बस यूँही एक मोहब्बत का अफ़साना खत्म हो गया 'बीस कदम के फासले के दरम्यान...

यह रचना गौतम कुमार जी द्वारा लिखी गयी है . आप अभी विद्यार्थी के रूप में अध्यनरत हैं . संपर्क सूत्र - ईमेल पता - Gautamkauri@gmail.com , फेसबुक पता - http://www.facebook.com/TheGautamKumar

COMMENTS

Leave a Reply: 1
  1. गौतम जी, कहानी तो बहुत ही आत्मीयता लिए हुए है.. लगता है किसी की आपबीती है. एक बात पर गौर कराना चाहूँगा कि बीच में एक जगह "साहिल' आ गया है... शायद समीर के बदले. यदि मेरी नमिगाह सगही है तो इसे ठीक कर लें.
    "मुस्कान के कहने पे साहिल ने नए साल की मुबारकबाद देने के लिए मुस्कान के ही हाथो एक ग्रीटिंग आरज़ू के लिए भिजवा दिया। आरज़ू ने भी एक ग्रीटिंग मुस्कान के ही हाथो साहिल को भिजवा दिया। इसके मिलने से साहिल भी काफी खुश था की चलो इसी बहाने साहिब को ख्याल तो आया मेरा।"

    एम.आर. अयंगर.8462021340
    laxmirangam.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,36,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,3,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,2,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,6,कविता,1466,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,31,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,2,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,34,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,75,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,5,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,6,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,2,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,198,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,138,प्रयोजनमूलक हिंदी,37,प्रेमचंद,45,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,87,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,7,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,17,भीष्म साहनी,7,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,5,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,2,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,7,मोहन राकेश,13,यशपाल,14,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,124,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,7,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,1,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,7,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,56,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,1,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,32,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,42,समसामयिक हिंदी लेख,259,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,19,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,82,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,415,हिंदी लेख,526,हिंदी व्यंग्य लेख,13,हिंदी समाचार,179,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,10,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,19,hindi essay,407,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,674,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,43,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,21,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,10,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,44,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: बीस कदम का फासला (हिंदी कहानी )
बीस कदम का फासला (हिंदी कहानी )
आरज़ू अब मुड़कर जाने लगी थी समीर ने भी उसे रोकने की कोशिश नहीं की वो तो बस मुस्कुराते हुए उस नायाब लम्हे की कशिश को क़ैद कर रहा था अपने दिल में क्योंकि आज के बाद यही तो उसके जीने का सहारा बनता। बस यूँही एक मोहब्बत का अफ़साना खत्म हो गया 'बीस कदम के फासले के दरम्यान...
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi11MF4w5TbYBhStqItmZl0izJauiCRQzcBgzWOP5NASvIPwhaLOdHZCLu0VR6YJLyILaTkUK4hmAX-tTKic7AHqud6-HNalRi58vrFQUm7WRkLrnL_ln8dMH2rlb40Q3_RFcFxQWjnyj3U/s320/images+%25281%2529.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi11MF4w5TbYBhStqItmZl0izJauiCRQzcBgzWOP5NASvIPwhaLOdHZCLu0VR6YJLyILaTkUK4hmAX-tTKic7AHqud6-HNalRi58vrFQUm7WRkLrnL_ln8dMH2rlb40Q3_RFcFxQWjnyj3U/s72-c/images+%25281%2529.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2015/10/distance-of-twenty-steps.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2015/10/distance-of-twenty-steps.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका