हरीश चंद्र शुक्ला (काक)

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व्यंगचित्र बनाने के बाद वह नीचे लिखते हैं काक. मतलब कौआ . जहां झूठ की आह तक सुनाई दे वहां कौआ काएं-काएं करने लगता है. हिंदी पत्रकारिता जगत में काक के नाम से अपनी अलग पहचान बनाने वाले व्यक्ति हैं व्यंग चित्रकर- हरीश चंद्र शुक्ला. विगत 50 सालों से उन्होंने हिंदी पत्रकारिता जगत को रोमांचक व्यंगचित्रों का अवदान दिया है. इसके फलस्वरूप शोहरत ने खुद व खुद इनके कदम चुमे हैं. 6 जुलाई 1967 को हिंदी समाचारपत्र ‘दैनिक जागरण’ में काक की पहली व्यंगचित्र प्रकाशित हुई. इसके करीब 37 साल पहले 16 मार्च 1940 को उनका जन्म हुआ था. उत्तरप्रदेश की उन्नाव जिला अंतर्गत पुरा गांव उनकी जन्म भूमि है.

हरीश चंद्र शुक्ला(काक)
|| मृणाल चटर्जी ||

व्यंगचित्र बनाने के बाद वह नीचे लिखते हैं काक. मतलब कौआ . जहां झूठ की आह तक सुनाई दे वहां कौआ काएं-काएं करने लगता है.
 हिंदी पत्रकारिता जगत में काक के नाम से अपनी अलग पहचान बनाने वाले व्यक्ति हैं व्यंग चित्रकर- हरीश चंद्र शुक्ला. विगत 50 सालों से उन्होंने हिंदी पत्रकारिता जगत को रोमांचक व्यंगचित्रों का अवदान दिया है. इसके फलस्वरूप शोहरत ने खुद व खुद इनके कदम चुमे हैं. 
 6 जुलाई 1967 को हिंदी समाचारपत्र ‘दैनिक जागरण’ में काक की पहली व्यंगचित्र प्रकाशित हुई. इसके करीब 37 साल पहले 16 मार्च 1940 को  उनका जन्म हुआ था. उत्तरप्रदेश की उन्नाव जिला अंतर्गत पुरा गांव उनकी जन्म भूमि है. 
कैरियर
 शुक्ला की पढ़ाई व कैरियर के साथ किसी प्रकार का तालमेल नहीं. उन्होंने मकैनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की लेकिन मशीनों को छोड़ उन्होंने मीड़िया से नाता जोड़ लिया. व्यंगचित्रकर के रूप में व्यंगचित्रकारी उनका नशा व पेशा दोनों बन गया. 

 एक बार ‘दैनिक जागरण’ में उनके व्यंगचित्र प्रकाशित होने के बाद हर दरवाजे खुद व खुद खुलते गए. 1983 से 1985 तक इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप की हिंदी अखबार ‘जनसत्ता’ की संपादकीय पृष्ठ में व्यंग चित्रकार के रूप मेंक्ला ने काम किया. इसके बाद उन्होंने टाइम्स आॅफ इंडिया ग्रुप की हिंदी अखबार ‘नव भारत टाइम्स’ के साथ काम किया. 14 साल वह नव भारत टाइम्स के साथ जुड़े रहे. केवल सामाचारपत्र की चाहर दीवारी तक शुक्ला सीमित नहीं थे बल्कि उस समय की प्रसिद्ध व्यंगचित्र पत्रिका शंकर्स विक्ली, दिनमान, करेंट, ब्लिज, रविवार, इतवारी पत्रिका, धर्मयुग व साप्ताहिक हिंदुस्तान आदि पत्रिकाओं में शुक्ला ने व्यंगचित्रों के काफी वाह-वाही बटौरी. 
 दैनिक समाचारपत्रों के लिए काक की कार्टून बहुत ही जानी-पहचानी थी. काफी लोकप्रिय दैनिक जागरण, आज, नवजीवन, राजस्थान पत्रिका व अमर उजाला में आयेदिन उनके व्यंग प्रकाशित होते थे. 
फिलहाल, हिंदी अखबार राष्ट्रीय सहारा में काक के कार्टून नियमित प्रकाश्ति हो रहे हैं. उनकी अपनी वेबसाइट काकदृष्टि. कॉम भी है. खूद एक टैब्लाइड का प्रकाशन कर रहे हैं. जिसका नाम हैं काकटूनस. 2004 से इसका प्रकाशन हो रहा है. इसके अलावा वेबसाइट    www.kaakdristi.com , www.kaaktoons.com , www.ekindia.com में उनके व्यंगचित्र छाये हुए हैं.
 काक के व्यंग यहीं तक ही सीमित नहीं बल्कि जबलपुर की स्वतंत्र मत व राजस्थान गंगनगर की दैनिक सीमा संदेश में रोज उनके कार्टुन प्रकाश्ति हो रहे हैं.
जानीमानी प्रकाशक रूपा ने काक की कुछ श्रेष्ठ व्यंगचित्रों को लेकर एक किताब भी निकाली है जिसका नाम है ‘नजरीया’.
 नियारे काक
काक का अर्थ कौआ होता है. जो रंग में काला है ही और बेसुरी आवाज का मालिक जिसका कोई आदर नहीं करता. जो घर की छत पर बैठ कर मेहमानों के आने का संदेश देता है. कूड़ों की सफाई करता है और गंदगी में बैठता है. लोक कहावत के अनुसार झूठ की गंध भी आने से कौआ चौंच मारता है. (प्रसिद्ध निर्देशक पद्मभूषण हृषिकेश मुशर्जी ने इस शृंखला में झूठ बोले कौआ काटे नामक एक फिल्म का निर्माण भी किया).
 व्यंगचित्रकर काक पूरी जिंदगी यह काम करते आए हैं. काक की एव्रीमैन(सभी इंसान) हर जगह है. हर समय है. यह चरित्र प्रसिद्ध व्यंगचित्रकर आर.के लक्ष्मण की कॉमन मैन(आम आदमी) की बात याद दिलाती है लेकिन एव्री मैन कॉमन मैन की तमाशाबीन बना दर्शक नहीं और न ही गली-मोहल्ले की घटना व दुर्घटना का गवाह है. एव्री मैन वह है जो भरष्टाचार व धोखाधाड़ी का मुहं तोड़ जावाब देता है. कौए के जैसा तीखी-तराज आवाज में वह तीव्र आलोचना करता है. समाज में जमी सामाजिक गंदगी का वह पर्दाफाश करता है. इसके खिलाफ आवाज उठाता है. 
काक की कार्टुनों के बारे में मार्केटिंग एवेन्यूज की संपादक रिचा शुक्ला कहती हैं कि शुक्ला के व्यंगचित्र का चरित्र हम में से एक है. जीवित जिसे क्षमता का मोह नहीं. दो मुठ्ठी चावल व एक बूंद पानी के लिए तरशने वाले इंसानों के साथ हंसता है. उनकी आह में दुखी होता है. आंसू बहाता है. चरित्र समाज की नंगी तस्वीर को बखूबी से कार्टुन का उन्होंने रूप दिया है. यह चरित्र खूद की संज्ञा नहीं भूलते. इसलिए यह लोकप्रिय हैं. इनकी खाशीयत ही यही है कि यह हमें मजबूर करते हैं इनको देखने के लिए. सराहने के लिए.  
 सम्मान
कार्टून की वजह से काक को बहुत ख्याती मिली. नईदिल्ली की हिंदी अकादमी की तरफ से ‘काक हथ्रासी सम्मान (2002), केरल ललित कला अकादमी सम्मान, केरल कार्टून अकादमी(कोची) पुरस्कार-2009 जैसे बहुत सम्मान व पुरस्कारों से उन्हें नवाजा गया. कार्टून जगत को अपनी जिंदगी भर की देन के लिए उन्हें बेंगलुरू स्थित भारतीय व्यंगचित्र संस्थान ने पुरस्कृत किया. 2011 में ‘कार्टून वाच’ पत्रिका ने उन्हें महत्वपूर्ण अवदान के लिए लाइफटाइम अचीवमेंट सम्मान का हकदार बनाया है.
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Translated from original English by Itishree Singh Rathaur.                                                                            E-mail: itishree.singhrathaur@gmail.com)
About the Author: A journalist turned media academician Dr. Mrinal Chatterjee presently heads the Eastern India campus of Indian Institute of Mass Communication (IIMC), located at Dhenkanal in Odisha. Besides writing on media and communication, he also writes fiction and column in English and Odia in several publications and websites.E-mail: mrinalchatterjee@ymail.com

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