रागदरबारी उपन्यास

SHARE:

रागदरबारी उपन्यास ,हिंदी उपन्यास ,श्रीलाल शुक्ल

रागदरबारी के माध्यम से आधुनिक शिक्षा व्यवस्था पर प्रहार
पुस्तक - रागदरबारी
लेखक- श्रीलाल शुक्ल
राग दरबारी व्यंग्य-कथा नहीं है, इसका संबंध एक बड़े नगर से कुछ दूर बसे हुए गाँव शिवपालगंज की जिंदगी से है, जो वर्षों की प्रगति और विकास के नारों के बावजूद निहित स्वार्थों और अनेक अवांछनीय तत्त्वों के सामने घिसट रही हैगाँव की कथा के माध्यम से आधुनिक भारतीय जीवन की मूल्यहीनता को सहजता और निर्ममता से अनावृत करने वाला उपन्यास है रागदरबारीशुरू से आखीर तक इतने निस्संग और सोद्देश्य व्यंग्य के साथ लिखा गया हिंदी का शायद यह पहला वृहत्त उपन्यास हैफिर भी  यह उसी जिंदगी का दस्तावेज है
उपन्यास का महत्व
1968 में राग दरबारी का प्रकाशन एक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक घटना थी .1970 में इसे साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया और 1986 में एक दूरदर्शन-धारावाहिक के रूप में इसे लाखों दशर्कों की सराहना प्राप्त हुई। वस्तुत: राग दरबारी हिंदी के कुछ कालजयी उपन्यासों में एक हैलेखन 1964 के अन्त में शुरू हुआ और अपने अन्तिम रूप में 1967 में समाप्त हुआ1968 में इसका प्रकाशन हुआ और 1969 में इस पर मुझे साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिलातब से अब तक इसके दजर्नों संस्करण और पुनर्मुद्रण हो चुके हैं1969 में ही एक सुविज्ञात समीक्षक ने अपनी बहुत लम्बी समीक्षा इस वाक्य पर समाप्त की: अपठित रह जाना ही इसकी नियति है
कहानी की जान है इसकी भाषा
इस उपन्यास की भाषा कहानी की जान हैग्रामीण तथा शहरी परिवेश का इतना अनोखा वर्णन शायद ही कहीं देखने को मिलता हैउपन्यास के कुछ अंश इस प्रकार हैं शहर का किनाराउसे छोड़ते ही • भारतीय देहात का महासागर शुरू हो जाता थावहीं एक ट्रक खड़ा थाउसे देखते ही यकीन हो जाता था, इसका जन्म केवल सड़कों के साथ बलात्कार करने के लिए हुआ हैजैसे कि सत्य के होते हैं, इस ट्रक के भी कई पहलू थेपुलिसवाले उसे एक ओर से देखकर कह सकते थे कि वह सड़क के बीच में खड़ा है, दूसरी ओर से देखकर ड्राइवर कह सकता था कि वह सड़क के किनारे पर हैचालू फैशन के हिसाब से ड्राइवर ने ट्रक का दाहिना दरवाजा खोलकर डैने की तरह फैला दिया थाइससे ट्रक की खूबसूरती बढ़ गई थी, साथ ही यह खतरा मिट गया था कि उसके वहाँ होते हुए कोई दूसरी सवारी भी सड़क के ऊपर से निकल सकती हैसड़क के एक ओर पेट्रोल-स्टेशन था; दूसरी ओर छप्परों, लकड़ी और टीन के सड़े टुकड़े और स्थानीय क्षमता के अनुसार निकलनेवाले कबाड़ की मदद से खड़ी की हुई दुकाने थींपहली निगाह में ही मालूम हो जाता था कि दुकानों की गिनती नहीं हो सकती। भाषा के माध्यम से व्यवस्था पर व्यंग्य किया गया
चरित्रों का अवर्णनीय चित्रण
कहानी में वैद्यजी, रूप्पन बाबु, बद्री पहलवान, रंगनाथ, छोटे पहलवान, खन्ना मास्टर, जोगनाथ, शनिचर, लंगड़ जैसे किरदार हैंलेखक ने इन चरित्रों का बखूबी चित्रण किया हैजहां वैद्यजी गांव की राजनीति के मास्ट माइंड हैं वहीं वैद्यजी का छोटा बेटा रिप्पन बाबु कईं सालों से एक ही क्लास में पढ़ रहा है और वह अपने पिता की सत्ता पर धोस जमाने वाले युवका प्रतीक हैबद्री पहलवान रिप्पन का बड़ा भाई हैरंगनाथ वैद्यजी का भतीजा है तथा शिक्षित हैवह पांच-छह महीनों के लिए शिवपालगंज आया है लेकिन गांव की स्थिति देख कर वह भी त्रस्त है। खन्नामास्टर ईमानदारी का प्रतीक है जो कि प्रिंसिपल साहब के काले कारनामों पर परदा उठाना चाहता है
रागदरबारी उपन्यास पर इतिश्री सिंह के विचार
इतिश्री सिंह 
रागदरबारी में लेखक ने शिक्षा व्यवस्था के सन्दर्भ  में लिखा कि 'आज की शिक्षा व्यवस्था सड़क पर सोई उस कुत्तिया की तरह है जिसे कोई भी कहीं भी  लात मार सकता है'। यह उपन्यास की चंद लाइनें नहीं बल्कि आज की ध्वस्तविध्वस्त सरकारी शिक्षा व्यवस्था का दस्तावेज हैंयह उपन्यास कईं साल पहले लिखी गई लेकिन शायद लेखक ने उस समय शिक्षा के भविष्य को भाँप लिया ताउसी तरह भारतीय रेलवे पर लेखक ने इन शब्दों के माध्यम से मार कि कि आज रेलवे ने उसे धोखा दिया थास्थानीय पैसेंजर्स ट्रेन को रोज की तरह दो घण्टा लेट समझकर वह घर से चला था, पर वह सिर्फ डेढ़ घण्टा लेट होकर चल दी थीशिकायती किताब के कथा-साहित्य में अपना योगदान देकर और रेलवे अधिकारियों की निगाह में हास्यास्पद बनकर वह स्टेशन से बाहर निकल आया था। कहीं-कहीं उपन्यास के किरदार अति नाटकीय लगते हैं लेकिन कहानी की भाषा और व्यवस्था पर व्यंग्य ने इसे कालजयी उपन्यास में तब्दील कर दिया है।
यह समीक्षा इतिश्री सिंह राठौर जी द्वारा लिखी गयी है . वर्तमान में आप हिंदी दैनिक नवभारत के साथ जुड़ी हुई हैं. दैनिक हिंदी देशबंधु के लिए कईं लेख लिखे , इसके अलावा इतिश्री जी ने 50 भारतीय प्रख्यात व्यंग्य चित्रकर के तहत 50 कार्टूनिस्टों जीवनी पर लिखे लेखों का अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद किया. इतिश्री अमीर खुसरों तथा मंटों की रचनाओं के काफी प्रभावित हैं.

COMMENTS

Leave a Reply: 3
  1. दूर दरसन निकट भया, घर भीतर दे गार ।
    ताते तो सुनहा भला, भूँके बैठ द्वार ।२०६१ ।
    भावार्थ : -- पहले दूरदर्सन दूरदर्शी था अच्छी अच्छी बातें बताता था अब तो यह अश्लिल दर्शन हो कर घर के भीतर ही दुर्वादन करता है, इससे तो कुत्ता ही भला है जो घर के बहार बैठ कर तो भूँकता है ॥

    जवाब देंहटाएं
  2. राग दरबारी, श्रीलाल शुक्ल जी ने गांव की राजनिति, परिवेश और भाषा का बहुत ही सुन्दर तरीके से लिखा है.... ऐसे उपन्यास अतीत में ले जाने में और फिर से उन्हें मन में जीवन्त करने की ताकत रखते हैं

    जवाब देंहटाएं
  3. राग दरबारी, श्रीलाल शुक्ल जी ने गांव की राजनिति, परिवेश और भाषा का बहुत ही सुन्दर तरीके से लिखा है.... ऐसे उपन्यास अतीत में ले जाने में और फिर से उन्हें मन में जीवन्त करने की ताकत रखते हैं

    जवाब देंहटाएं
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका