मिड डे मील (हिंदी कहानी)

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मिड डे मील (हिंदी कहानी),डॉ.गंगा प्रसाद शर्मा,मिड-डे-मील योजना.

रंजना जबसे पढ़ने जाने लगी है, उसके सींक जैसे सूखे हाथ-पैर अब कुछ-कुछ हरियाने-मुटाने लगे हैं.लेकिन साल भर से अक्षर ज्ञान और गिनती-पहाड़ा की रटंत के बावज़ूद कोई लाभ नहीं है.दस के बाद की वह कोई गिनती नहीं जानती और दो के बाद का दूसरा कोई पहाड़ा.उसके लिए दू नवाँ भी अट्ठारह होता है और तीन, चार से लेकर दस-बीस नवाँ जो भी बोलो सबका जवाब भी अट्ठारह ही मिलता है.गाँव भर के बच्चे, बूढ़े और जवान सभी जब भी उधर से गुजरते हैं, स्कूल में ज़रूर झाँकते हैं.अगर अंदर रंजना हो तो एक बार दो कमरों वाले उस स्कूल के अंदर प्रवेश कर, रंजना से पहाड़ा सुनकर डिप्टी इंस्पेक्टरी ज़रूर कर जाते हैं
               न तो रंजना को पता है कि वह सबके मनोरंजन का साधन है और न ही हेडमास्टर कोजब लोग उससे पहाड़ा पूछते तो हैं तो ये हेड मास्टर साहब भी अपनी कुर्सी छोड़ उनके साथ हो जाते हैं और जवाब आते ही ये भी दांत चियार देते हैंइस स्कूल में एक शिक्षा मित्र भी है पहले वह मेहनत से पढ़ाता था, लेकिन हेड मास्टर के रवैये को देखकर वह भी बिगड़ गया है .अब वह भी मानीटर से काम चलाने लगा है
               रंजना दूसरे दर्ज़े में हैउसका छोटा भाई पहले में.दोनों दोपहर के खाने तक बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करते हैं और खिचड़ी, खीर, रोटी और तहरी जो कुछ भी मिलता है, उसे थाली में लेकर घर रफूचक्कर हो जाते हैं.कभी-कभी बस्ता स्कूल में ही छोड़ जाते हैं.खैर! बस्ते में रहता ही क्या है? एक-आध फटी किताब और एक माँगे की स्लेट.घर पर इन दोनों में माँ भी हिस्सा बंटा लेती है। जिस दिन ज़रा भी देर हो जाती है, माँ सीधे स्कूल पहुँचकर मास्टर से झगड़ा कर बैठती है। "इन दुध मुंहों को सबेरे से बैठाए हो मास्टर साहेब! तरस नहीं आता का?" कहती हुई रामकली सीधे हेडमास्टर के सर पर खड़ी हो जाती है.रंजना की माँ के लिए हेडमास्टर के दिल में कुछ जगह है.इससे इनके दिल में कुछ-कुछ होता रहता है.पता नहीं रंजना की माँ को पता है कि नहीं.लेकिन इन्हें पक्का पता है कि वह इन्हें अच्छी लगती है.लोग जानते हैं कि जाति-बिरादरी के कारण ये उसका ध्यान रखते हैं.यह इनके लिए भी अच्छा है और उस गरीब के लिए भी। मास्टर जी को भी पता है कि रंजना भले ही भूख सह ले पर उसकी माँ नहीं सह सकती.इसलिए वे रोज जल्दी-जल्दी करके महराजिन से 'मिड डे मील'तैयार करवा ही लेते हैं.उन्होंने रामकली को खाना बनाने के लिए रखने का प्रस्ताव रखा तो प्रधान ने उसे दासों गालियाँ दी, बोला, "तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है .इस चुहड़ी का बनाया खाना बाँभन-ठाकुरों के लड़कों को खिलाओगे.धर्म भ्रष्ट करोगे.बाल भर पढ़-लिख क्या गए, लाट गवन्नर बन गए.अगर आगे से इसका नाम लिया और चुदुर्बुदुर करके कउनिउ चमरई झारी तो पक्का अपना ट्रांसफर धरा समझो। "
                मास्टर जी स्कूल को उलटे पाँव लौट पड़े.जाते समय मन ही मन लड्डू फूट रहे थे.उन्हें लग रहा था कि शायद प्रधान जी राजी हो जायेंगे.अगर प्रधान जी राजी हो गए तो शायद इनकी दाल भी गल जाए.वहाँ पहुँचे तो दाल गलनी तो दूर उलटे गाली खाके आए.रास्ते भर सोचते जा रहे थे कि भाषण तो खूब झाड़ते हैं कि कोई ऊँच-नीच नहीं.सभी बराबर हैं.सभी एक ही परमपिता की संतान हैं और अकेले देखो कैसे अजगर की तरह फुफकार रहे थे कि अगर कहीं "कउनिउ चमरई झारी तो पक्का ट्रांसफर धरा समझो।" यह बेइज़्ज़्ती हेडमास्टर रामधारी के कलेजे को चीर कर आर-पार हो गई थी।
               जबसे बिहार में 'मिड डे मील' खाकर बीसों बच्चे मरे हैं, सारे देश के मास्टर और परधान डर गए हैं.लेकिन क्वालिटी खाने की अब भी लगभग वही है.बस यह सावधानी बरती जा रही है कि कोई उसमें कुछ मिला न दे.कभी -कभी कलेक्टर के दौरे की हवा भी उडती है.यह भी हवा उड़ती है कि कलेक्टर नई उमर की है.पकड़ लेती है तो छोड़ती नहीं है.मास्टर रामधारी की समझ में नहीं आ रहा है कि वे करें तो करें क्या? महराजिन है वह अव्वल दर्ज़े की बेवकूफ़.एक दिन कढ़ाई में मेढकी कूद गई .उसने उसे भी तल दिया.गनीमत है कि समय रहते हेडमास्टर ने देख लिया और उसे फटाफट निकाल कर जलते चूल्हे में झोंक दिया, नहीं तो पकड़े जाने पर बड़ी किरकिरी हो जातीऊपर से गावदी शिक्षामित्र अनोखे लाल.कितना भी तोते की तरह सिखाओ सब अकारथ.रत्ती-रत्ती बात परधानको बताता है.यह नहीं जानता परधान अपने सगे बाप का नहीं तो इनका कब होगा.कमीशन भी सबको बराबर चाहिए और क्वालिटी भी.वे यह भी सोचते रहते हैं कि कलेक्टर कम उमर की भले हो पर कोई नादान तो होगी नहीं कि उसे सरकारी रामलीला का पता ही न हो.वे उससे साफ़-साफ़ कह देंगे.इसके बाद वह चाहे छोड़े, चाहे गोली दगवा दे.परधान ज़्यादा लिबिड़-चिबिड़ करेंगे तो कलेक्टर को सीधे उनकी भैंसों की नाँदों पर ही ले जाके खड़ी कर देंगे कि देख लो, 'दलिया भैंसें खाएँगी तो लड़के क्या कद्दू खाएँगे?'
             रंजना पिछले तीन दिनों से बीमार है.लेकिन उसका 'मिड डे मील'उसकी माँ बराबर ले जाती है.महराजिन को यह बात गलत लगती है.उसने हेडमास्टर रामधारी को चेतावनी की मुद्रा में कहा कि, "यह अंधेरगर्दी नहीं चलेगी मास्साब।" टके की कामवाली के ऐसे रोब को देखकर हेड को भी गुस्सा आ गया.उसने कहा, "हमारे काम-काज में ज़्यादा दख़ल मत दिया करो.यह अंधेरगर्दी है और जो परधान की भैंसों के लिए गठरी बाँध-बाँध के दलिया ले जाती हो, वह अंधेरगर्दी नहीं है क्या? "महराजिन को यह बात बहुत बुरी लगी.उसे लगा कि कल को यह भी कह सकता है कि अपने घर भी गठरी बाँध के ले जाती है। आज चौथे दिन जब यह अँधेरगर्दी महराजिन से सहन न हुई तो उसने इसकी शिकायत सुबह-सुबह घर से स्कूल आते समय परधान से कर दी.इंटरवल में कई बार बाहर झाँक कर देख भी चुकी थी कि परधान जी आ क्यों नहीं रहे हैं? लेकिन हेड साहब इससे बेख़बर अपने काम में लगे हैहुए थे
          बारह बजे के आस-पास महराजिन एकबार फिर बाहर निकली.उसे यह देखकर खुशी हुई कि 'मिड डे मील' लेने के लिए रंजना की माँ आगे-आगे और प्रधान पीछे-पीछे स्कूल की ओर चले आ रहे थे.कनखियों से उसने यह भी देखा कि रंजना की माँ अपने आँचल में थाली छिपाए स्कूल के कोने में लगे हैंडपंप के पास एक तरफ खड़ी हो गई है.यह देख कर वह फिर से अंदर आ गई .उसे अब पक्का विश्वास हो गया था कि आज हेड मास्साब की कलई खुलके रहेगी
          रंजना की माँ ने देखा था कि परधान उसके पीछे-पीछे आया है.लेकिन उसे यह बिल्कुल नहीं पता था कि उसकी थाली पकड़ने के लिए आया है.उसके दिल में कोई चोरी नहीं थी.उसे लग रहा था कि वह अपनी बेटी का खाना लेने आई है.कोई चोरी करने तो आई नहीं कि परधान से डरे.वैसे भी परधान जैसे बड़के चोर के आगे तो सब चोर बौने हैं.वह देख रही थी कि सारे लड़के -लड़कियाँ दलिया ले-ले के खा रहे हैं और नल पर जाकर हाथ धो रहे हैं.उसे लग रहा था कि दलिया बनी है तो अच्छा ही है.डॉकटर ने भी दलिया देने के लिए कहा है.हैण्ड पंप की छींटें खाती हुई भी काफी देर तक वह वहीं इस इंतज़ार में खड़ी रही कि जब सबको मिल जाए तब वह महराजिन से कहे
         दूर खड़े परधान ने एक आदमी से बातें करते हुए भी रंजना की माँ रामकली पर बराबर निगाह रखी है.यह नाम उसी का धरा हुआ है.वोटर लिस्ट में उसी ने लिखवा दिया रामकली पत्नी हरेराम.लेकिन वह उसे कहता रम कलिया ही है.बस पिछले साल वोट वाले दिन राम कली कहा था.भीतर से महराजिन भी निगाह रखे हुए है कि कहीं बिना कुछ किए-धरे ही परधान वापस तो नहीं जा रहे? रामधारी मास्साब अब भी इस नाटक से बेख़बर हैं.उन्होंने दूर खड़ी रंजना की माँ को पुकारा, "ओ रंजना की माई! रंजना का बुखार कैसा है? सुना है कई दिन से बीमार है.हरेराम से कहो कि उसे कहीं बाहर दिखाएँ।" वह फिर भी उसी तरह खड़ी रही.मास्टर रामधारी को लगा कि जैसे उसने सुना नहीं.इसलिए उन्होंने अपनी बात एकबार फिर दोहराई.सुना पहले भी था लेकिन अबकी उसने जवाब दिया, "क्या कहें मास्साब करम का ही दोस है.दुनिया भर के लड़के -बच्चे खेल-कूद रहे हैं और हमरी बिटिया खाट पकड़े है.बिटिया-बेटारू है.इसलिए वह भी कहीं नहीं ले जा रहे.बिटिया-बेटारू केरि कउनिउ कदरि कहाँ है मास्साब। "
          धीरे-धीरे बच्चों की भीड़ कम हुई तो रामकली महराजिन के पास आकर खड़ी हो गई.महराजिन ने कहा आज कुछ बचा नहीं है.इसपर उसने कड़ाह की ओर इशारा करते हुए दिखाया और बोली कि, "दलिया है तो काफ़ी अब दो चाहे न दो तुम्हारी मर्जी। "महराजिन कहने लगी," लो, तुम्हीं सब भर लो.मैं नहीं ले जाऊँगी। "यह कहकर उसकी थाली भर दी.इसके बाद भी काफी दलिया कड़ाह में बची थीमहराजिन ने आज जान-बूझकर पूरी थाली भर दी थी कि परधान को दिखा सके कि वह रोज़ ही उतना ही ले जाती है.रंजना की माँ के थाली उठाते ही परधान अंदर घुसे और हेडमास्टर को डाँटते हुए बोले कि, "क्या अंधेरगर्दी मचा रखी है मास्साब? "रंजना की माँ के हाथ से थाली छीन कर ज़मीन पर उलटते हुए पहली बार हेडमास्टर साहब का नाम लेकर गरजे," लगता है रामधारी तुम्हारा रामनाम सत्य करना ही पड़ेगा.कल ही बी एस ए को लिखता हूँ। "हेडमास्टर रामधारी अचानक सकपका गए.उन्हें लगा कि जैसे अँगूठा छाप परधान अचानक विद्वान हो गया है.बी एस ए को 'बेसे साहब'कह-कह के न थकने वाला आज केवल बी एस ए का उच्चारण कर रहा था, वह भी सही -सही और साफ-साफ परधान आग बबूला हुए जा रहे थे और हेडमास्टर भीगी बिल्ली.राम कली डरी-डरी कोने में खड़ी थी.उसे यह नहीं सूझ रहा था कि वह वहाँ से चली जाए कि खड़ी रहे।
         रामकली परधान के पैरों पर गिर पड़ी .परधान ने उसे लात मार दी.लात इतनी जोर से मारी थी कि वह छाती पकड़ के बैठ गईबहुत देर तक तो उसकी साँस ही नहीं लौटी .लेकिन परधान को रंच भी डर न लगा कि एक महिला वह भी दलित पर उसने हाथ क्या लात तक उठा दी.हेड मास्टर रामधारी को अचानक लगा कि जैसे उनकी आँखों के सामने बाबा साहेब अंबेडकर खड़े हैं और कह रहे हैं कि, 'देखो! शिक्षित बनो, संगठित हो और संघर्ष करो।' अब तो आव देखा न ताव और एक लात उसने भी परधान के ऐसे ठौर पर धरी कि वे एक लंबी चीख के साथ वहीं ढेर हो गए
        उधर सारे गाँव में शोर मचाती हुई महराजिन का निकलना था कि, "हाय राम! मुए हेडमास्टर राम धारी ने परधान जी को मार डाला।" और, इधर हेडमास्टर ने भी जल्दी-जल्दी सारे रजिस्टर अंदर डाले और साइकिल लेकर भाग निकले.सबसे पहले वे अपने रिश्तेदार विधायक के पास पहुँचे कि वे मामला किसी तरह रफा-दफा करवाएँ.विधायक जी आए भर थे.उन्होंने पूछा, "रामधारी सब ठीक तो है। "रामधारी जी ने एक आस पाकर लंबी साँस खींचते हुए कहा, "सब ठीक ही तो नहीं है.सब गड़बड़ है भाई साहब!" विधायक जी हेडमास्टर साहब के ममेरे भाई थे.लेकिन साल-बरसाल ही मुलाक़ात हो पाती थी.आज छः महीनों बाद मिले थे.अगर यह मुसीबत न आ जाती तो साल भी बीत सकता था.उन्होंने विधायक जी को पूरी बात तफसील से बता दी.विधायक जी ने माना भी कि सोलहो आने गलती परधान की है .लेकिन एक पढ़े-लिखे और मास्टर होने के नाते इन्हें गम खा जाना चाहिए था.उन्होंने आगे समझाते हुए कहा कि, "बच्चों में रहते -रहते मास्टर की बुद्धि भी बच्चे जैसी हो जाती है.वह तुम्हारे स्कूल के भीतर आया यह बात सही है.लेकिन यह बात भी सही है कि अगर बाख गया तो वह यही कहेगा कि मैं खाने की जाँच करने आया था, तब तुम क्या जवाब दोगे? वैसे उसका बचना ही तुम्हारे लिए जीवन रक्षक होगा वरना जेल में पड़े-पड़े सड़ जाओगे .बच्चों की गवाही होगी। इसमें बच पाना असंभव होता है"हेडमास्टर रामधारी भीतर तक दहल गए.इनके भग्य से परधान जी जीवित बच गए.पंद्रह दिन बाद अस्पताल से वापस आ गए.इस बीच तलवारें ले-लेकर हेडमास्टर खोजे गए .लेकिन उनका कहीं अत-पता नहीं चला.पता न चलने पर बड़बोले रिश्तेदारों की और बन आई कि, 'अगर मिल जाता तो चूहड़े साले की बोटी-बोटी कर चील-कौओं को खिला देते।'
         रंजना ठीक हो गई है.स्कूल आने लगी है.उसे 'मिड डे मील' में जो भी मिलता है घर भी ले जाती है लेकिन उसकी माँ अब उसमें से हिस्सा नहीं बँटाती.कलेक्टर का दौरा भी हुआ किसी की हिम्मत नहीं हुई कि वह परधान की शिकायत करे.पहले हेड मास्टर भले नहीं पढ़ाते थे पर शिक्षामित्र से बराबर पढ़वाते थे.हेडमास्टर की भी कोई गलती नहीं थी.वे करते भी क्या? दो स्कूलों का चार्ज उन पर था.दोनों जगह का 'मिड डे मील'अपनी निगरानी में बनवाने से लेकर खिलवाने तक का काम उन्हें खुद करना रहता था.यही नहीं उन्हें एक ही साल में पाँच स्कूल बनवाने, जनगणना, पशुगणना आदि काम भी तो करने थे
          चारों तरफ़ अफ़वाहें ही अफ़वाहें.कोई कहे कि मास्टर गिरफ्तार हो गया है.कोई कहे कि उसने आत्महत्या कर ली है.विधायक जी जिस दल के थे, ठाकुर परधान भी उसी दल के थेएफ आई आर लिख ली गई थी.परधान की डाक्टरी भी हो गई थी.लेकिन विधायक के प्रभाव से इतना तो हो ही गया था कि धाराएँ हलकी-फुल्की लगी थीं.अब विधायक जी दोनों में सुलह लगवाना चाहते थे क्योंकि दोनों उनके अपने थे। पर दोनों में मूल अंतर यह था कि ठाकुर गाली देके काम लेता था और हेडमास्टर मास्टर हाथ-पाँव जोड़के। उसने विधायक को खुली धमकी दी थी कि, "सुनो विधायक जी! अगर तुमने इसमें चमरौटी निभाई तो रिजरब सीट पर खड़े होने वाले अकेले तुम्हीं इस क्षेत्र में नहीं हो.तुम्हारे सामने बीस चमार-पासी लाके खड़े कर दूँगा।" प्रधान की इस धमकी से रामधारी सस्पेंड तो हो गए थे लेकिन इसी खुशामदी प्रवृत्ति पर उनकी बहाली का आश्वासन भी लगे हाथ मिल गया था
        
डॉ.गंगा प्रसाद शर्मा
  विधायक जी के द्वारा लाख गलतियां निकालने के बावज़ूद हेडमास्टर साहब की समझ में यह नहीं आ रहा था कि उनकी गलती कहाँ पर है.इसीलिए उनकी इच्छा थी कि ठाकुर माफी माँगे और ठाकुर की इच्छा थी कि हेडमास्टर माँगें.दोनों अपनी -अपनी बात पर अड़े थे.विधायक चाहते थे जल्दी से जल्दी दोनों में सुलह हो.इसी वज़ह से वे दोनों को बराबर समझाते.दोनों की गलतियों को बताते.जिसके सामने होते उसे ऐसा सिद्ध कर देते कि सौ फीसदी गलती उसी की है.इस तरह सुलह करवाने में विधायक ने अंततः सफलता पा ही ली
        हेडमास्टर साहब को जब लगा कि विधायक जी परधान की तरफ़ झुक रहे हैं तो चोरी-छिपे बसपा के ही किसी सांसद जी के चक्कर लगाने लगे.यह बात प्रधान ने विधायक के कान में इस उद्देश्य से डाली कि वे हेडमास्टर से बिदक जाएँ.लेकिन हुआ उलटा वे जाति- बिरादरी की एका से डर गए.छह महीने बीतते-बीतते बहाली का पत्र हेडमास्टर साहब को मिल गया.लेकिन उन्हें वहाँ से हटाकर दूसरी तहसील में स्थानांतरित कर दिया गया था।



यह रचना डॉ.गंगा प्रसाद शर्मा जी द्वारा लिखी गयी है . आप लखनऊ विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में डॉक्टरेट उपाधि के साथ-साथ नेट प्रवीणता प्राप्त एवं यूजीसी फैलोशिप धारक हैं .उनकी 20 से अधिक कृतियाँ प्रकाशित है जिसमें प्रमुख हैं - दलित साहित्य का स्वरूप विकास और प्रवृत्तियां (आलोचना) 'सप्तपदी' और 'समय की शिला पर' (सहयोगी दोहा संग्रह), मेरी सोई हुई संवेदन (कविता संग्रह), हर जवां योजना परधान के हरम मे (ग़ज़ल संग्रह, 1999), डरा हुआ आकाश (दोहा संग्रह, 1999), अफसर का कुत्ता, पुलिसिया व्यायाम (दोनों व्यंग्य संग्रह, 2003 -04) इत्यादि .उन्हें 1999 में साहित्य कला परिषद, जालौन (उत्तर प्रदेश) से साहित्य शिरोमणि सम्मान तथा 2005 में सूकरखेत (उत्तर प्रदेश) में तुलसी सम्मान से विभूषित किया जा चुका है वर्तमान में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अधीन संचालित हिंदी चेयर के अंतर्गत चीन के गुआंगदोंग अंतर्राष्ट्रीय भाषा विश्वविद्यालय, गुआन्ग्ज़ाऊ, चीन में प्रोफ़ेसर (हिंदी) के पद पर कार्यरत हैं

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