कुल्फी एंड कैप्युचीनो (पुस्तक समीक्षा)

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थोड़ी कड़वाहट और ढेर सारे मिठास की कहानी है ‘कुल्फी एंड कैप्युचीनो’ यह जरूरी नहीं कि हर प्रेम कहानी में हीरो - हीरोइन के प्यार का अंत व...

थोड़ी कड़वाहट और ढेर सारे मिठास की कहानी है ‘कुल्फी एंड कैप्युचीनो’

यह जरूरी नहीं कि हर प्रेम कहानी में हीरो-हीरोइन के प्यार का अंत विवाह से हो. यह भी जरूरी नहीं कि हमारी हिंदी फिल्मों की तरह कहानी के अंत में नायक व नायिका का मिलन हो. प्यार तो प्यार होता है. चाहे वह
किताब- कुल्फी एंड कैप्युचीनो(फिक्सन)
लेखक-आशीष चौधरी
प्रकाशक- हिन्द युग्म 
कीमत-150 रुपये
कवर- पेपर बैक
पहली नजर में किया हुआ हो या सोचीसमझी नादानी
. कुछ ऐसी अनोखी प्रेम कहानी, कहें तो यारों की लव स्टोरी है आशीष चौधरी की 'कुल्फी एंड कैप्युचीनो'. इसमें भले ही आपको लैला-मजनू वाला प्यार न नजर आए लेकिन वह कालेज की गलियां जरूर याद आएंगी जहां आप अपनी पहली मोहब्बत को अक्सर छिप-छिप कर देखा करते थे. वह हास्टेल लाइफ जरूर याद आएगा जहां बारिश की ठंड और गर्मी की तेज धूप भी आपको उल्लसित करती थी. लेखक ने अपने नावेल में उन तमाम रिश्तों को ईमानदारी से उतारा. 'कुल्फी और कैप्युचीनो' कहानी है अनुराग मेहता और उसकी जिंदगी से जुड़े उन तमाम की जिनके साथ अनुराग ने कई यादें साझा किए लोगों. कहानी शुरू होती है अनुराग के ग्रेजुएट होने के बाद से. अपने पिता की ख्वाहिश को पूरा करने अनुराग एमबीए में दाखिले के लिए कैट की तैयारी करने के लिए जयपुर आता है. जयपुर पहुंचने से पहले बस में अनुराग की मुलाकात नेहा से होती है. नेहा की खुशबू से अनुराग जैसे मतवाला हो जाता है. अनुराग की आशिकी उसे इश्क के मुकाम तक पहुंचा भी देती है. जयपुर में अनुराग के नेहा के अलावा दो अच्छे दोस्त बनते हैं. प्रतीक और भूपी. इसके अलावा अंकुर, गरिमा, कोमल, सोमदेव अंकल, मसानी, तस्नीम मैडम, नेहा की स्ट्रिक्ट बुआ, इरशाद, होस्टल का बूढ़ा मालिक जैसे किरदार भी कहानी में अहम भूमिका निभाते हैं. इनमें कुल्फी की मिठास तो है साथ ही कैप्युचीनो की थोड़ी कड़वाहट समेटे यह निकल जाते हैं. कोमल अनुराग के सोमदेव अंकल की खूबसूरत (अनुराग की नजर में नेहा से कम) बेटी है. फिर भी अनुराग कभी-कभी कांफ्यूज हो जाता कि दोनों में से कौन बेहतर है. दो खूबसूरत लड़कियों के बीच घिरे अनुराग को यह जल्द ही अहसास हो जाता है कि वह प्यार तो नेहा से ही करता है. नेहा और अनुराग की मुकालातों का सिलसिला जारी रहता है. कहानी में नेहा को कैप्युचीनो और अनुराग को कुल्फी पसंद है. एक-दूसरे की पसंद से पसंद बदल जाने की कहानी दिशकश लगती है. प्रतीक अपने पिता से अलग रहता है और इस वजह से उनसे दिखावटी नफरत करता है दूसरी और भूपी आर्थिक रूप से कमजोर है. अनुराग की कहानी नेहा, कोमल और उसके आसपास घूमती है. कईं तूफान भी आते हैं इनकी जिंदगी में लेकिन कहानी के अंत में अनुराग किसका होता है नेहा का या कोमल का? प्रतीक और भूपि कहां जाते हैं? क्या अनुराग एमबीए की पढ़ाई कर अपने पिता का सपना पूरा कर पाता है? इन सभी सवालों का जवाब तो आपको किताब में ही मिलेगा

 रिश्तों की अहमियत
 'कुल्फी और कैप्युचीनो' सबसे बड़ी खाशियत यही है कि यह यारों की लव कहानी होते हुए भी सिर्फ बॉयफ्रेंड, गलर्फेंड, दोस्तों तक ही सीमित नहीं बल्कि माता-पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों के साथ रिश्तों को अहमियत को कलम के माध्यम से उतारी गई है. खास कर अनुराग के प्रति उसके पिता का कड़कपन, घर से बाहर जा रहे बेटे के लिए मां के प्यार को लेखक ने जीवंत बनाया है
इतिश्री सिंह राठौर 

कुल्फी और कैप्युचीनो नहीं करेगी बोर
अगर आप खुद को आज के जमाने का मानते हैं और ऐसी किताब नहीं पढ़ना चाहते जिसमें दिलचस्प किस्से ढूंढने के लिए आपको सैकड़ों पन्ने पलटने पड़े तो इस दिशा में आशीष चौधरी की 'कुल्फी और कैप्युचीनो' आपको निराश नहीं करेगी. किताब के पन्ने पलटने के साथ ही आपके ठहाके की गति तेज होती जाएगी. रिजनिंग क्लास में कुछ संवाद दिलचस्प हैं. जैसे 'शिक्षक का सारे टमाटर लाल नहीं होते, इसका तर्क देने को कहना' और इसके जवाब में एक छात्र का कहना कि 'सर सारे टमाटर लाल कैसे हो सकते हैं क्योंकि एक टमाटर तो लाल बाहादूर शास्त्री भी होते हैं' आपको ठहाके लगाने से नहीं रोक पाएगी

'कुल्फी की मिठास तो है लेकिन कैप्युचीनो की कड़वाहट भी
कहानी की शुरूआत में कुछ हिस्सों को लेखक ने ज्यादा ही खींच लिया है. उन्हें और छोटा किया जा सकता था. भारी बोरियत से जूझ रहे पाठक इसे चार से पांच पन्ने पलटते ही बंद कर सकते हैं. किताब भाषा भले ही बोलचाल की भाषा हो जिसमें इंग्लिश शब्द हैं लेकिन उस पर हिंदी के वजनदार शब्द जबरन लादे हुए लगते हैं. कहीं-कहीं पर आवश्यकता से अधिक भी अग्रेंजी शब्दों का इस्तमाल किया गया है. शायद इस कारण किताब युवापीढ़ी को तो ललचाने लायक है लेकिन 40 पार लोगों को कितना लुभा पाएगी यह संदेह है वहीं हिंदी लेखन की परंपरा से हट कर आशीष चौधरी ने कुछ अलग करने की कोशिश की. जो आज की युवापीढ़ी को पसंद आए. अपने नावेल में उन्होंने हिंदी के भारी-भरकम शब्द न डाल कर अंग्रेजी शब्दों का भी इस्तमाल किया जिन शब्दों का अक्सर बोलचाल की भाषा में प्रयोग होता है. यह कहानी पढ़ने लायक है

लेखक आशीष चौधरी फिलहाल बीबीसी के साथ कार्यरत हैं.



यह समीक्षा इतिश्री सिंह राठौर जी द्वारा लिखी गयी है . वर्तमान में आप हिंदी दैनिक नवभारत के साथ जुड़ी हुई हैं. दैनिक हिंदी देशबंधु के लिए कईं लेख लिखे , इसके अलावा इतिश्री जी ने 50 भारतीय प्रख्यात व्यंग्य चित्रकर के तहत 50 कार्टूनिस्टों जीवनी पर लिखे लेखों का अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद किया. इतिश्री अमीर खुसरों तथा मंटों की रचनाओं के काफी प्रभावित हैं.

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