राजभाषा पर विचार

SHARE:

राजभाषा पर विचार ऐसा कहा जाता है कि स्वर्ग तक बनती सीढ़ियों की प्रगति की रफ्तार देखकर देवता घबराए और इसे रोकने का निर्णय लिया. अन्...

राजभाषा पर विचार

ऐसा कहा जाता है कि स्वर्ग तक बनती सीढ़ियों की प्रगति की रफ्तार देखकर देवता घबराए और इसे रोकने का निर्णय लिया. अन्यन  तरीके खोजे गए और सरलतम उपाय जो समझ आया किया और सीढ़ियाँ अधूरी ही रह गईं.
देवताओ ने पता कर लिया कि सीढियाँ बनाने के काम से  जुड़े सारे लोगों की भाषा एक थी इसलिए उनमें एकताल, सहभागिता, सहकारिता व तन्मयता थी. देवताओं ने उनकी भाषाएं अलग-अलग कर दी, ताकि वे एकजुट न हो सकें और इससे उन्हें सफलता हासिल हो गई.
शायद यही खेल अंग्रेजों ने हमारे देश में खेला जिससे आज भी हम भारतीय भाषायी एकजुटता के लिए तरस रहे हैं.
बात शायद किसी ने मनगढंत ही कही होगी या मजाक ही होगा लेकिन इससे यह बात समक्ष तो आती ही है कि भाषा का सहयोगिता एवं सहकारिता  में एक विशेष स्थान है और इन्हीं पदचिन्हों पर चलते हुए हमारे पूर्वजों ने भाषा की एकता पर जोर दिया एवं एक राष्ट्रव्यापी भाषा को चुनना चाहा. शायद राजनैतिक कारणों से कुछ मतभेद हुए और लोंगों में सहमति नहीं बन पाई.
मुझे इसका ज्ञान नहीं है कि कभी हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया. हाँ, सुना है कि काँग्रेस के किसी अधिवेशन में हिदी को राष्ट्रभाषा माना गया. लेकिन ऐसी भी चर्चाएं हैं कि कई हिंदी व कुछ अहिंदी भाषी गणमान्य लोगों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की भरसक कोशिश की. लेकिन अन्य भाषा भाषियों ने समय पर समर्थन नहीं दिया, जिसके फलस्वरूप हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया न हीं जा सका. काँग्रेस के किसी अधिवेशन में राष्ट्रभाषा के मानकों का निर्धारण भी किया गया. इसी में हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाने की कोशिश भी की गई जो अन्य राजनीतिक पार्टियों को शायद रास नहीं आया.
राष्ट्रभाषा शब्द के लोगों ने इतने अर्थ निकाल लिए कि इस शब्द का कोई स्थिर अर्थ नहीं रह गया. राष्ट्र भर में बोली जाने वाली भाषाओं को कुछ ने राष्ट्र भाषा कहा, तो कुछ ने इसे देश की भाषा समझा. भिन्नता मिटाने की चेष्टा किसी ने की हो, ऐसा कहीं कोई वाकया नहीं मिलता. कुछ शिक्षितों ने राष्ट्रगीत, राष्ट्रकवि, राष्ट्र पताका, राष्ट्रगान, राष्ट्रीय पक्षी, राष्ट्रीय जानवर, के साथ ही राष्ट्रभाषा को भी स्थान दिया. तब से अब तक राष्ट्रभाषा शब्द का कोई भी स्थिर अर्थ नहीं निकल सका.

सन्  1995 में राजभाषा सचिवालय से प्रकाशित एक गृह पत्रिका में मैने पहली बार – राष्ट्र भाषाएँ – शब्द देखा, पढ़ा. वह तत्समय गृह मंत्री (श्री) एस.बी.चवन का लिखा था. इसे संलग्न कर रहा हूँ.


साथ ही गुजरात उच्चन्यायालय अहमदाबाद के एक निर्णयकी क्लिपिंग भी संलग्न कर रहा हूँ जिसमें माननीय न्यायाधीश ने स्पष्ट कहा है कि भले ही लोग मानते हैं किंतु भारत में सरकारी या कानूनी तौर पर कोई नेशनल लेंग्वेज (राष्ट्रभाषा) नहीं है.



शायद इसीलिए संविधान की भाषा समिति ने देश के राज काज की भाषा को राष्ट्रभाषा न कहकर राजभाषा कहा. किंतु इससे राष्ट्रभाषा शब्द का अस्तित्व करीबन खत्म ही हो गया. निश्चित व निष्कर्ष रूप में यह कहना मुश्किल है, पर ऐसा लगता है कि यदि काँग्रेस अपने अधिवेशन के पहले अन्य राजनीतिक पार्टियों से संपर्क करती या यह काम लोंगों को विश्वास में लेकर किया जाता तो हिंदी के प्रचार-प्रसार से लोगों को शायद आपत्ति नहीं होती और हिंदी को पीठासीन करना आसान होता. शायद हिंदी के प्रति लोगों का रवैया आज जैसा नहीं होता और हमारी राज काज की भाषा हिंदी देश की राजभाषा नहीं बल्कि राष्ट्रभाषा ही होती.
लेकिन आज भी हिंदी के समर्थक हिंदी को राष्ट्रभाषा कहते नहीं थकते. मैं यहाँ स्पष्ट करना चाहता हूँ कि 14 सितंबर 1949 के दिन हिंदी को राजभाषा के रूप स्वीकारा गया था, न कि राष्ट्रभाषा के रूप में. बाद में संविधान के तहत औपचारिक व कानूनी तौर पर हमारे संघ की राजभाषा बनकर अस्तित्व में आई. आज भी, और तो और कई हिंदी भाषी लोग भी, राजभाषा एवं राष्ट्रभाषा के फर्क से वाकिफ नहीं है. इससे ऐसा लगने लगा है कि समाज का एक अंग आज भी हिंदी को राष्ट्रभाषा ही समझता है और हिंदी को राष्ट्रभाषा कहने में अन्य लोगों के विचार भटक जाते हैं.
एम.आर.अयंगर
हर अभिभावक चाहेगा और उसे चाहना भी चाहिए कि उसके दिल का टुकड़ा आसमान की ऊंचाइयों को छुए. यदि उस मुकाम के लिए उसे हिंदी सीखनी या सिखानी पड़े तो लक्ष्य प्राप्ति के लिए वह हिंदी सीखेगा भी और सिखाएगा भी. अपने बच्चे को हिंदी के स्कूलों में भी पढ़ाएगा. तथ्यों की मेरी जानकारी के तहत भारत  एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है भाषा निरपेक्ष नहीं. इसलिए यहाँ आप किसी को भी, कोई भी धर्म अपनाने से रोक नहीं सकते, लेकिन भाषा के मामले में ऐसा नहीं है और भारतीयों को हिंदी सीखने लिए कहा जा सकता है. मेरी समझ में  नही आता  कि राजनीतिक समीकरणों के लिए हमने हिंदी की ऐसी हालत क्यों बना दी.
अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि हिंदी के प्रणेताओं ने हिंदी के चहेतों को भी ऐसा खेल खिलाया कि उन्हें भी हिंदी से नफरत सी होने लग गई. आज भी ऐसे कार्यालय होंगे, जहाँ हिंदी अपनाने पर, उसका अंग्रेजी अनुवाद माँगा जाता होगा. हिंदी में हस्ताक्षर करने को मजबूर किया जाता है. इस तरह के नाकाम बातों से परे, कार्यालय अनुवाद की सहायता कर लोगों को हिंदी के प्रति  उत्साहित कर सकता है. कुछ अनुवादक ही तो रखने होंगे बस.
--------------------------------------------------------------------

यह रचना माड़भूषि  रंगराज अयंगर जी द्वारा लिखी गयी है . आप इंडियन ऑइल कार्पोरेशन में कार्यरत है . आप स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य में रत है . आप की विभिन्न रचनाओं का प्रकाशन पत्र -पत्रिकाओं में होता रहता है .
संपर्क सूत्र - एम.आर.अयंगर. , इंडियन ऑयल कार्पोरेशन लिमिटेड,जमनीपाली, कोरबा.
मों. 08462021340

COMMENTS

Leave a Reply: 4
  1. कुतदीप जी,

    310714 पर लिंक देख नहीं पाया.
    कृपया ओक लिंक प्रेषित करे,,
    laxmirangam@gmail.com

    अयंगर.

    जवाब देंहटाएं
  2. हिंदी भाषा पर हिंदी की स्तिथि को स्पस्ट करता लेख .

    जवाब देंहटाएं
  3. सुनीता जी,

    आपकी सम्मति पर स्नेह पूर्वक धन्यवाद....

    जवाब देंहटाएं
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका