काशीनाथ सिंह के रचनाकर्म पर केन्द्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी

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काशीनाथ सिंह के रचनाकर्म पर केन्द्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी

प्रयास आसनसोल द्वारा हिंदी अकादमी, आसनसोल नगर निगम के सहयोग से  आयोजित कथाकार काशीनाथ सिंह के रचनाकर्म पर  केन्द्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी (सृजन संवाद 3)दिनाकं 2. 12. 12 को आसनसोल नगर निगम सभागार में सम्पन्न हुई .इस संगोष्ठी में काशीनाथ जी को सृजन  सम्मान 2012 से सम्मानित किया गया साथ ही साहित्यिक पत्रिका  संबोधन के काशीनाथ सिंह  विशेषांक  का  विमोचन हुआ . संगोष्ठी तीन सत्रों में संपन्न हुई .प्रथम सत्र सम्मान सत्र ,दूसरा सत्र ..भूमण्डलीकरण और कथाकार काशीनाथ सिंह।  तीसरा सत्र समकालीन कथा साहित्य और कथाकार काशीनाथ सिंह .इस संगोष्ठी में जो साहित्यकार और विद्वत जन शामिल हुए उनमे से प्रमुख .कथाकार काशीनाथ सिंह.कथाकार शिवमूर्ति  ,नारायन सिंह ,कृपा शंकर चौबे ,गौतम सान्याल आशीष त्रिपाठी ,कामेश्वर  सिंह,पल्लव , अभिजीत  सिंह आदि हैं 

प्रथम सत्र में सर्वप्रथम प्रयास के साथी  राजीव लोचन सिन्हा ने प्रसाद के गीत बीती बिभावारी जाग री की  संगीतमाय प्रस्तुति  दी . अतिथियों का स्वागत संयोजन समिति की सदस्य डा कुसुम राय  ने किया .प्रयास संस्था  के सचिव  डॉ कृष्ण कुमार श्रीवास्तव ने सं.स्था के उदेश्य और और उसकी गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए  कहा कि-  संस्था का मूल उद्देश्य हिंदी साहित्य को पठनीयता के संकट से उबारने में अपना छोटा सा योगदान देना है .इसी क्रम में प्रयास द्वारा रचना केन्द्रित त्रैमासिक गोष्ठियां की जाती रही है साथ ही रचनाकार  की उपस्थिति में उसके संपूर्ण लेखन  पर केंद्रित वार्षिक अयोजन सृजन संवाद अयोजित किया जाता है इसके पूर्व यह आयोजन .कथाकार संजीव के संपूर्ण लेखन  पर(2010),तथा कथाकार शिवमूर्ति के संपूर्ण लेखन  पर(2011)केंद्रित  रहा है .इसी सत्र में संस्था के संरक्षक डॉ संत राम ने शाल ओढाकर  तथा सत्र की अध्यक्षता कर रहे कथाकार शिवमूर्ति ने स्मृति चिन्ह प्रदान कर काशीनाथ जी को सृजन सम्मान 2012 से सम्मानित किया।
कथाकार काशीनाथ सिंह के संपूर्ण लेखन  पर चर्चा आरंभ  करते  हुए काशी हिन्दू  विश्वविद्यालय से पधारे  डॉ आशीष त्रिपाठी  ने अपने बीज वक्तव्य में  कहा कि काशीनाथ जी के रचना कर्म के मूलतः तीन  आयाम हैं ..कहानी, उपन्यास,संस्मरण। किन्तु मै  उन्हें मूलतः कहानीकार मानता हूँ.काशीनाथ जी की प्रतिबद्धता तो प्रेमचंद की परम्परा के तहत है ,किन्तु कथा ढांचा ,शिल्प के स्तर पर नई राह बनाते हैं .उनकी कहानी कला चेखव के निकट है ,,,प्रतिपल जीवन की नई भंगिमा ही उनका विषय है ... काशीनाथ जी ने अपनी रचना प्रक्रिया पर बोलते हुए कहा ..सिर्फ  होने से कुछ नही होता ,अपने होने का  हक़ अदा कीजै ..  उन्होंने कहा  भद्र लोक से जुड़ कर लेखक नहीं बना जा सकता सामान्य जनजीवन ही  लेखकीय स्रोत है उन्होंने स्वीकार किया कि अहिन्दी भाषी क्षेत्र में यह सम्मान मुझे एक परिघटना की तरह लगता है . ..अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कथाकार शिवमूर्ति ने  कहा -प्रेमचंद को पढ़ते हुए यह लगा की यह तो हमारे गाँव जंवार  की, अपने आस -पास कि  कहानियां है ,इस तरह तो मै भी लिख सकता हूँ .काशीनाथ सिंह को  पढ़ कर  यह लगा  कि सामान्य से  समान्य  विषय ,सन्दर्भों को भी रचना का विषय बनाया जा  सकता है ,कहानी  'अपना रास्ता लो बाबा' का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जिस चाचा ने कंधे पर बैठा  कर घुमाया ,पढाया,कथानायक उसे ही नही पहचानना चाहता है ,प्रयास के आयोजन उत्तरोतर  विकास की और हैं इसके लिए उन्होंने आयोजकों को बधाई दी .इस सत्र  का धन्यवाद ज्ञापन हिंदी अकादमी नगर निगम आसनसोल के सचिव जितेन्द्र तिवारी ने किया .इस  सत्र का संचालन डॉ दामोदर मिश्र ने किया। 

द्वितीय सत्र ..भूमण्डलीकरण और कथाकार काशीनाथ सिंह के वक्ता अभिजीत सिंह एवं प्रसिद्ध पत्रकार कृपा शंकर चौबे थे .अध्यक्षता आलोचक गौतम सान्याल ने की . इस  सत्र का संचालन अजय साव  ने किया .अपने वक्तव्य में  अभिजीत सिंह ने कहा -जिस तरह तुलसी के विना राम कथा पर और रेणु के विना ग्राम कथा पर चर्चा नही की जा सकती ,उसी तरह हिंदी कथा साहित्य में काशीनाथ सिंह के बिना भूमण्डलीकरण पर चर्चा नही की जा सकती .उन्होंने कहा कि आत्मालोचन की प्रक्रिया उनके यंहा बहुत गहरे तक समायी है . कृपा शंकर चौबे ने अपने वक्तव्य में कहा कि  काशी का अस्सी की पांच कहानियों में वैश्विकरण की आंच को महशूस किया जा सकता है यह सिर्फ बनारस की नहीं सम्पूर्ण हिंदुस्तान  की  कहानी है .रेहन पर रग्घू उदारीकरण के कारण गाँव में हो रहे परिवर्तन को रेखांकित करता है .काशीनाथ जी की सबसे बड़ी पहचान उनकी भाषा है।इस सत्र के अध्यक्ष  गौतम सान्याल  ने कहा कि जब मै  साठोत्तरी कहानीकारों की टीम बनाता  हूँ तो हर बार उसमे काशीनाथ सिंह का नाम आ जाता है .मै कई बार अपने प्रिय कथाकार   संजीव को भी उसमे स्थान नही दे पाता ,उन्हें बारहवें खिलाडी के रूप में ही स्थान दे पाता  हूँ . उन्होंने कहा  कि  हिंदी आलोचना कोअभी  यह पता ही नही है की संरचना के क्षेत्र में काशीनाथ जी ने कितना महत्वपूर्ण कार्य किया है .आज के सात आठ साल बाद बाद जब कैम्पस नावेल की चर्चा होगी तो हिंदी के पहले कैम्पस नावेल अपना मोर्चा का महत्व  समझ में आएगा .
तृतीय सत्र समकालीन कथा साहित्य और कथाकार काशीनाथ सिंह   के  वक्ता आलोचक पल्लव और कामेश्वर प्रसाद सिंह थे .अध्यक्षता कथाकार नारायण सिंह ने की .इस सत्र का संचालन कथाकार सृंजय ने किया .पल्लव ने अपने वक्तव्य में कहा कि -काशीनाथ सिंह का लेखन भूमंडलीकरण के राक्षस  को पहचानने में मदद करता है .उन्होंने कहानी सरायमोहन की रचना उस समय की जब विमर्शवादी दौर आरम्भ हो चुका  था और काशीनाथ सिंह उन रुझानों के चक्कर  में पड़े बगैर प्रगतिशील नजरिये से अपनी बात कह रहे थे .वे अपने लेखन को रुढियों में फंसने से बचाते हैं .रेहन  पर रग्घू के अंत में बहु रघुनाथ से कहती है -तुम कंहा जाते हो ,मेरा पति चला गया लेकिन तुम कंहा जाते हो ?यह नया स्त्री चरित्र है जिसकी उद्भावना काशीनाथ जी के यंहा की गयी है .कामेश्वर प्रसाद सिंह  ने अपने वक्तव्य में कहा कि-साहित्य के तिकड़म मै नही जानता हूँ .मेरा मानना है की बड़ा मनुष्य ही बड़ा रचनाकार हो सकता है .उन्होंने काशीनाथ सिंह के समकालीनों यथा ज्ञानरंजन ,रविन्द्र कालिया आदि से उनकी तुलना की .साथ ही काशीनाथ जी की रचनाओं के कुछ अंशों का पाठ किया .अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कथाकार नारायन सिंह ने कहा साहित्य कोई समाधान नही देता वह आपको बीच रास्ते  पर ला कर छोड़ देता है जिससे आप खुद विकल्प खोज सकें .प्रेमचंद ने कभी कहा था कि श्रेष्ठ रचनाएँ वे होती हैं जो आप को वेचैन करती हैं .काशीनाथ जी की रचनाएँ इस सन्दर्भ में खरी उतरती हैं .अंत में उन्होंने वैयक्तिक सम्बन्धों के आधार पर कहा उनका व्यक्तित्व उनकी रचना से बड़ा है .उनकी कहानियां उनकी रचना के आगे कंही नही ठहरतीं .सर्वांत में रचनाकार से संवाद हुआ ,उनसे प्रश्न पूछे गये ,इस संवाद में  विजय भारती , बिजय नारायण ,प्रमोद प्रसाद ,महेंद्र प्रसाद कुशवाहा ,दिलीप कुमार ,रविशंकर सिंह ,कथाकार महावीर राजी ,कथाकार सृंजय आदि ने भाग लिया .काशीनाथ जी ने सभी प्रश्नों के समुचित उत्तर दिए ,धन्यवाद ज्ञापन प्रयास  संस्था के संरक्षक डॉ संत राम जी ने दिया .

गोष्ठी के दूसरे दिन अग्निगर्भी  बांग्ला कवि काजी नजरुल इस्लाम की जन्म स्थली चुरुलिया भ्रमण  का कार्यक्रम बना .उबड़ खाबड़ रास्ता काशीनाथ जी तथा शिवमूर्ति जी द्वारा गाये गये लोकगीतों की तानो के कारण अत्यंत सुगम लग रहा था .कवि तीर्थ में उनकी विरासत को संजोने के लिए किये गये वैयक्तिक प्रयासों की सबने भूरि भूरि प्रशंसा  की .हिंदी समाज अपने रचनाकरों को ऐसा सम्मान दे सके इसकी कामना की गयी .सृजन संवाद -4 में फिर मिलने  की शुभेक्षा   के साथ सबने विदा ली .

                                                                                                    डॉ कृष्ण  कुमार श्रीवास्तव

COMMENTS

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  1. "कथाकार नारायन सिंह ने कहा साहित्य कोई समाधान नही देता वह आपको बीच रास्ते पर ला कर छोड़ देता है जिससे आप खुद विकल्प खोज सकें.."

    ---- यह असत्य कथन है एवं यह कहने वाले अधूरे साहित्यकार अथवा सिर्फ लिखने के लिए लिखने वाले कलमकार .....साहित्य का अर्थ ही है 'सा हिताय स' ... समाधान के बिना साहित्य ..साहित्य कहाँ रहेगा | क्या तुलसी...सूर के साहित्य में इन्हें समाधान नहीं दिखाई देता ....

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