चप्पल (२)/ कमलेश्वर

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हिन्दी कहानी ,कमलेश्वर की कहानी

कमलेश्वर 
गतांक  से आगे ...
वार्ड बॉय बच्चे की कुर्सी को पुश करता हुआ ऑपरेशन थिएटर वाले बरामदे में मुड गया नर्स उसके साथ ही चली गयी उसका बाप धीरे-धरे उन्हीं के पीछे चला गया .
तब मुझे याद आया कि मुझे तो सातवीं मंज़िल पर जाना था संध्या वहीं थी मैं सीढ़ियों से एक मंज़िल उतर आया संध्या के डॉक्टर पति ने मुझे पहचाना और आगे बढ़कर मुझसे हाथ मिलाया हाथ की पकड में मायूसी और लाचारी थी क़ुछ पल खामोशी रही फ़िर मैंने कहा , मैं कल ही वापस आया तभी पता चला यह एकाएक कैसे हो गया ?
-- नहीं, एकाएक नहीं, ब्लीडिंग तो पहले भी हुई थी पर तब कंट्रोल कर ली गयी थी पंद्रह दिनों बाद फिर होने लगी एक्सेसिच ब्लीडिंग चार घंटे ऑपरेशन में लगे एंड यू नो, वी डॉक्टर्स आर वर्स्ट पेशेंट्स! वो संध्या के बारे में भी कह रहे थे संध्या भी डॉक्टर थी .
-- यस! आप तो सब समझ रहे होंगे संध्या को भी एक -एक बात का अंदाज़ हो रहा होगा ! मैंने कहा .
-- लेकिन वो बहुत करेजसली बिहेव कर रही है ! संध्या के डॉक्टर पति ने कहा , बोल तो सकती नहीं पल्स भी गर्दन के पास मिली अर्टीफ़िशियल रेस्परेशन पर है एक तरह से देखिए तो उसका सारा शरीर आराम कर रहा है और सब कुछ आर्टीफ़िशिल मदद से ही चल रहा है , संध्या के डाक्टर पति ज्यादातर बातें मुझे मेंडिकल टर्म्स में ही बताते रहे और मैं उन्हें समझने की कोशिश करता रहा बीच -बीच मैं इधर-उधर की बातें भी करता रहा .
संध्या का  भी आज सुबह पहुंच गया क़िसी तरह उसे जापान होते हुए टिकट मिल गया ! उन्होंने बताया .
यह बहुत अच्छा हुआ मैंने कहा .
आप देखना चाहेंगे ?
हां, अगर पॉसिबिल हो तो ...
आइए देख तो सकते हैं भीतर जाने की इजाज़त नहीं है वैसे तो सब डॉक्टर फ्रेंड्स ही हैं, पर ...
नहीं-नहीं, वो ठीक भी है ...
वो बोल भी नहीं सकती वैसे आज कांशस है क़ुछ कहना होता है तो लिख के बता देती है उन्होंने कहा और एक केबिन के सामने पहुंचकर इशारा किया .
मैंने शीशे की दीवार से संध्या को देखा वह पहचान में ही नहीं आयी दो डॉक्टर और नर्स उसे अटैंड भी कर रहे थे और फिर इतनी नलियां और मशीनें थीं कि उनके बीच संध्या को पहचानना मुश्किल भी था.
संध्या होश में थी ड़ॉक्टर को देख रही थी ड़ॉक्टर उसका एक हाथ सहलाते हुए उसे कुछ बता रहा था मैंने संध्या को इस हाल में देखा तो मन उदास हो गया वह कितनी लाचार थी बीमारी और समय के सामने आदमी लाचार होता है क़ुछ कर नहीं पाता मैंने मन ही मन संध्या के लिए प्रार्थना की , किससे की यह नहीं मालूम -ऐसी जगहों पर आकर भगवान पर ध्यान जाता भी है और किसी के शुभ के लिए उसके अस्तित्व को स्वीकार कर लेने में अपना कुछ नहीं जाता -सिवा प्रार्थना के कुछ शब्दों के .
हम आई सीयू से हटकर फिर बरामदे में आ गये वहां बैठने के लिए कोई जगह नहीं थी बरामदे बैठने के लिए बनाये भी नहीं गये थे संध्या या डॉक्टर की बहन नीचे चाद बिछाये बैठी थी ड़ॉक्टर के कुछ दोस्त एक गुच्छे में खड़े थे
अभी तो, बाद में, एक ऑपरेशन और होगा संध्या के डॉक्टर पति ने बताया, तब छोटी आंत को सिस्टम से जोड़ा जायेगा ख़ैर पहले वो स्टेबलाइज़ करे, फिर रिकवरी का सवाल है उसके बाद मैं सोचता हूं - उसे अमेरिका ले जाऊंगा !
यह ठीक रहेगा!
इसके बाद हम फिर इधर-उधर की बातें करते रहे मैं संध्या की संगीन हालत से उनका ध्यान भी हटाना चाहता था इसके सिवा मैं और कर भी क्या सकता था , और डॉक्टर के सामने यों खामोश खड़े रहना अच्छा भी नहीं लग रहा था, यह जताते हुए कि अस्पताल वालों से छुपाकर मैं सिगरेट पीना चाहता हूं - मैं खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया बाहर लू चल रही थी नीचे धरातल पर कुछ लोग आ-जा रहे थे वे ऊपर से बहुत लाचार और बेचारे लग रहे थे और मेरे मन से सबके शुभ के लिए सद्भावना की नदियां फूट रही थीं एेसे में तुम सोचो - लगता है मनुष्य ने मनुष्य के साथ तो सघन और उदात्त संबंध बना लिए हैं, पर ईश्वर के साथ वह ऐसा नहीं कर पाया है मनुष्य अपने ईश्वर के दु :ख-सुख में शामिल नहीं हो सकता ईश्वर से उसका सबंध सिर्फ दाता और पाता का है वहदेता है और मनुष्य पाता है क़ितना इकतरफा रिश्ता है यह और फिर अगर तुम यह भी मान लो कि ईश्वर ही मनुष्य को बनाता तो ईश्वर की क्षमता पर विश्वास घटने लगता है - सृष्टि के आदि से वह मनुष्य को बनाता आ रहा है परंतु असंख्य प्राणियों को बनाने के बावजूद वह आज तक एक सहज संपूर्ण और मुकम्मिल मनुष्य नहीं बना पाया क़ुछ कमी कहीं तो ईश्वर की व्यवस्था में भी है हो सकता है उनका आदि -कलाकार कुंभकार उन्हें मिट्टी सप्लाई करने में कुछ घपला कर रहा हो ऌस रहस्य का पता कौन लगायेगा? रहस्य ही रहस्य को जन्म देता है शायद इसीलिए मनुष्य ने ईश्वर को रहस्य ही रहने दिया ज़ो सत्ता या शक्ति विश्वास के निकष पर खरी न उतरे , उसे रहस्य बना देना ही बेहतर है और किया भी क्या जा सकता ...
लू के एक थपेड़े ने मेरा मुँह झुलसा दिया। ड़ॉक्टर अपने चिंताग्रस्त शुभचिंतकों के गुच्छे में खड़े थे- और सबके चेहरे कुछ ज्यादा सतर्क थे।
ब्लडप्रेशर गिर रहा है
आईसीयू में डॉक्टरों और नर्सो की आमदरफ्त से लग रहा था कि कोई कठिन परिस्थिति सामने है क़ुछ देर बाद पता चला कि नीडिल कुछ ढीली हो गयी थी उसे ठीक कर दिया गया है और ब्लडप्रेशर ठीक से रिकॉर्ड हो रहा है सबने राहत की सांस ली मौत से लड़ना कोई मामूली काम नहीं है ईश्वर ने तो मौत पैदा की ही है , पर मौत तो मनुष्य भी पैदा करता है एक तरफ जीवन के लिए लड़ता है ओर दूसरी तरफ मौत भी बांटता है- यह द्वंद्व ही तो जीवन है यह द्वंद्व और द्वैत ही जीवित रहने की शर्त है और अद्वैत या समानता तक पहुंचने का साधन और आदर्श भी आध्यात्मिक अद्वैत जब भौतिकता की सतह पर आता है और मनुष्य के प्रश्न सुलझाता है तभी तो वह समवेत समानता का दर्शन कहलाता है .........
सिगरेट से मुंह कड़वा हो गया था लू वैसे ही थपेड़े मार रही थी सीमेंट के पलस्तर का दहकता-चिलचिलाता तालाब सामने फैला था - कोई एक आदमी जलते नंगे पैरों से उसे पार कर रहा था .
मैंने पलटते हुए लिफ्ट की तरफ देख ड़ॉक्टर मेरा आशय समझ गये थे, लेकिन तभी राजनीतिज्ञ- से उनके कोई दोस्त आ गये थेशुरू की पूछताछ के बाद वे लगभग भाषण-सा देने लगे, अब तो अग्नि मिसाइल के बाद भारत दुनिया का सबसे शक्तिशाली तीसरा देश हो गया है और आने वाले दस वर्षो में हमें अब कोई शक्ति -महाशक्ति बनने से नहीं रोक सकती इंग्लैंड और फ्रांस की पूरी जनसंख्या से ज्यादा बड़ा है आज भारत का मध्यवर्ग अपनी संपन्न्ता में भारतीय मध्यवर्ग जैसी शक्ति और संपन्नता उन देशों के मध्यवर्ग के पास भी नहीं है ........
तभी एक चिंताग्रस्त नर्स तेज़ी से गुजर गयी और सन्नाटा छा गया चिंता के भारी क्षण जब कुछ हल्के हुए तो मैंने फिर लिफ्ट की तरफ देखा ड़ॉक्टर साहब समझ गये, आपको ढाई -तीन घंटे हो गये क्या-क्या काम छोड़ के आये होंगे अौर वे लिफ्ट की ओर बढ़े लिफ्ट आयी , पर वह ऊपर जा रही थीड़ॉक्टर साहब को मेरी खातिर रूकना न पड़े, इसलिए मैं लिफ्टमैं घुस गया .
लिफ्ट आठ पर पहुंचा वहाँ ज्यादा लोग नहीं थे पर एक स्ट्रेचर था और दो -तीन लोग। स्ट्रेचर भीतर आया उसी के साथ लोग भी स्ट्रेचर पर चादर में लिपटा बच्चा पड़ा हुआ था वह बेहोश था वह आपरेशन के बाद लौट रहा था उसके गालों और गर्दन के रेशमी रोएं पसीने से भीगे हुए थे माथे पर बाल भी पसीने के कारण चिपके हुए थे .
उसका बाप एक हाथ में ग्लूकोज की बोतल पकड़े हुए था ग्लूकोज की नली की सुई उसकी थकी और दूधभरी बांह की धमनी में लगी हुयी थी उसका बाप लगातार उसे देख रहा था वह शायद पसीने से माथे पर चिपके उसके बालों को हटाना चाहता था , इसलिए उसने दूसरा हाथ ऊपंर किया, पर उस हाथ में बच्चे की चप्पलें उसकी उंगलियों में उलझी हुई थीं वह छोटी -छोटी नीली हवाई चप्पलें ..........
मैंने बच्चे को देख फ़िर उसके निरीह बाप को.
मेरे मुंह से अनायास निकल हो गया इसका...
इसकी टांग काटी गयी है वार्ड बॉय ने बाप की मुश्किल हल कर दी.
ओह! कुछ हो गया था? मैंने जैसे उसके बाप से ही पूछावे मुझे देखकर चुप रह गये उसके ओठ कुछ बुदबुदाकर थम गये लेकिन वह भी चुप नहीं रह सका एक पल बाद ही बोला, जांघ की हड्डी टूट गयी थी.........
चोट लगी थी ?
नहीं सड़क पार कर रहा था एक गाड़ी ने मार दिया, वह बोला और मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे टक्कर मारने वाली गाड़ी फिर वह वीतराग होकर अपने बेटे को देखने लगा .
पांचवीं मंज़िल पर लिफ्ट रूकी बच्चों का वार्ड इसी मंजिल पर था लिफ्ट में आने वाले कई लोग थे वे सब स्टै्रचर निकाले जाने के इंतज़ार में बेसब्री से रूके हुए थे... वार्ड बॉय ने झटका देकर स्ट्रेचर निकाला तो बच्चा बोरे की तरह हिल उठा, अनायास ही मेरे मुंह से निकल गया, धीरे से ...
ये तो बेहोश है इसे क्या पता ? स्ट्रेचर को बाहर पुश करते हुए वार्ड बॉय ने कहा .
उस बच्चे का बाप खुले दरवाजे से टकराता हुआ बाहर निकला तो एक नर्स ने उसके हाथ की ग्लूकोज की बोतल पकड़ ली.
लिफ्ट के बाहर पहुंचते ही उसके बाप ने उसकी दोनों नीली हवाई चप्पलें वहीं कोने में फेंक दीं फ़िर कुछ सोचकर कि शायद उसका बेटा होश में आते ही चप्पलें मांगेगा, उसने पहले एक चप्पल उठाई......... फ़िर दूसरी भी उठा ली और स्ट्रेचर के पीछे-पीछे वार्ड की तरफ जाने लगा .
मुझे नहीं मालूम कि उसका बेटा जब होश में आयेगा तो क्या मांगेगा- चप्पल मांगेगा या चप्पलों को देखकर अपना पैर मांगेगा ...
बेसब्री से इंतज़ार करते लोग लिफ्ट में आ गये थे। लिफ़्टमैन ने बटन दबाया। दरवाज़ा बंद हुआ। वह लोहे का बंद कमरा नीचे उतरने लगा...
                 समाप्त 

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