क्या हम अंग्रेजी बेचते हैं - मनोज सिंह

SHARE:

भारत में, कितने प्रतिशत जनता अंग्रेजी भाषा को ठीक-ठीक तरह से लिख-पढ़ समझ लेती हैं? अधिक से अधिक पांच प्रतिशत!! चूंकि हिन्दुस्तान का तथाकथित प...

भारत में, कितने प्रतिशत जनता अंग्रेजी भाषा को ठीक-ठीक तरह से लिख-पढ़ समझ लेती हैं? अधिक से अधिक पांच प्रतिशत!! चूंकि हिन्दुस्तान का तथाकथित पढ़ा-लिखा वर्ग अंग्रेजी का भक्त है इसलिए इस पर बहस कर दो-चार प्रतिशत बढ़ाया जा सकता है। सांकेतिक रूप से समझने वालों को भी जोड़ लिया जाए तो पांच प्रतिशत और बढ़ सकता है। इससे अधिक नहीं होना चाहिए। दूसरी तरफ हिन्दी भाषा पढ़-लिखकर समझने वालों की संख्या पूछी जाए तो यह प्रतिशत पचास से कम नहीं होना चाहिए। अनपढ़ों में अपनी मातृभाषा ही बोली-समझी जाती है इसलिए इन्हें मिला देने पर तो यह प्रतिशत अच्छा-खासा बढ़ जाएगा। हिन्दी के समानांतर, क्षेत्रीय भाषाओं को भी जोड़ लें तो तुरंत जवाब आएगा, शत प्रतिशत। इसका बड़ा सरल कारण है, आज भी, शिक्षा के इतने भीषण कानवेंटिकरण करने के बाद भी, हर भारतीय अपनी मातृभाषा जरूर समझता है। इसी संदर्भ को आगे बढ़ायें और भारतीय विज्ञापन की दुनिया में एक विश्लेषण करें तो पाएंगे कि यहां सत्तर प्रतिशत से अधिक विज्ञापन आज भी अंग्रेजी में बनाया जाता है। बाकी बचे प्रतिशत में भी कहीं न कहीं अंग्रेजी की घुसपैठ जरूर होती है। और जो थोड़ा-बहुत देसी भाषाओं का प्रयोग बढ़ा है, वो भी, पिछले कुछ वर्षों में, बाजार के दबाव में। अन्यथा पूर्व में तो यह नगण्य था। यहां मन में प्रश्न उठता है कि विज्ञापन की दुनिया की क्या मजबूरी है कि वो अंग्रेजी का उपयोग करते हैं? जबकि उनका सीधा और स्पष्ट उद्देश्य होता है अपने माल को लेकर अधिक से अधिक उपभोक्ता तक पहुंचना। इस कारण से कभी-कभी शंका होती है कि विज्ञापन की दुनिया के ये पढ़े-लिखे होशियार (?), कहीं जाने-अनजाने ही अंग्रेजी तो नहीं बेच रहे?
बांग्ला विश्व की श्रेष्ठ कलात्मक भाषाओं में से एक है। इस भाषा में सामने वाले के द्वारा कुछ बोले जाने पर कुछ-कुछ समझ तो सकता हूं लेकिन इस लिपि को पढ़ नहीं सकता। अपने उपन्यास 'बंधन' के बांग्ला अनुवाद के एक अध्याय को अनुवादक द्वारा मेरे पास भेजे जाने पर मेरे लिये यह अनुभव बहुत अजीब था। अपना ही उपन्यास पढ़ने में नहीं आ रहा था। भाषा व लिपि की अज्ञानता के कारण पढ़ा-लिखा इंसान भी अनपढ़ बन जाता है। इसी तरह के और भी कई अनुभव हो सकते हैं। मसलन पंजाब के अंदरूनी इलाके में जाने पर, सड़क किनारे मील के पत्थरों पर लिखे गए गुरुमुखी में पंजाबी शब्दों को न पढ़ पाने के कारण कई बार दिशा व दूरी का ज्ञान नहीं हो पाता। वो तो गनीमत है कि उत्तर भारत की भाषाएं व बोलियां आपस में आराम से समझी जा सकती हैं और किसी स्थानीय राहगीर से पूछा जा सकता है। वर्ना एक बार चेन्नई में एक पता ढूंढ़ने में घंटों लग गए थे जबकि हम गंतव्य के नजदीक ही खड़े थे। यहां पर कुछ समझदार लोग तुरंत अंग्रेजी की आवश्यकता पर जोर देंगे। मगर उनके लिए यह बताना जरूरी है कि अधिकांश स्थानीय सामान्यजन इस विदेशी भाषा को नहीं जानते। साथ ही, यहां हिन्दी को वर्चस्व प्रदान करने का भी कोई इरादा नहीं है। यहां सिर्फ यह याद दिलाना जरूरी है कि भाषा व लिपि कितनी महत्वपूर्ण होती है। अगर आप किसी भाषा व लिपि को नहीं जानते तो उससे संदर्भित संस्कृति, सभ्यता, समाज की विरासत व संवेदना, कुछ भी नहीं समझ सकते, संपर्क स्थापित नहीं कर सकते।
विज्ञापन का मुख्य उद्देश्य जैसा की अपेक्षित है, उपभोक्ता को अपने माल/कार्य/सेवा के बारे में बताना-समझाना, आकर्षित करना और खरीदने (उपभोग) के लिए प्रेरित करना। अर्थात सीधे शब्दों में उपभोक्ता के साथ संपर्क बनाना जरूरी होता है। मगर आप टेलीविजन पर दिखाये जाने वाले विज्ञापनों को देखिए, उसमें अंग्रेजी की भरमार मिलेगी। गांव-गांव गली-गली सड़क किनारे पोस्टरों में अंग्रेजी में लिखे शब्द बहुतायत में मिलेंगे। समाचारपत्रों-पत्रिकाओं में भी अंग्रेजी के विज्ञापन ही मिलेंगे। मैंने एक कंपनी के वरिष्ठ सीईओ से व्यक्तिगत वार्ता के दौरान एक सवाल पूछा तो वह चकरा गया। सवाल था कि आप मोबाइल बेच रहे हैं या अंग्रेजी? प्रथम प्रतिक्रिया तो यही थी कि वो कुछ समझा नहीं। मैंने उसे बताया कि एक गांव में, सड़क किनारे, बस अड्डे के मुख्य चौराहे पर, एक बहुत बड़ा पोस्टर लगा था, जिसमें कंपनी का नाम अंग्रेजी में लिखा हुआ था और नीचे की एकमात्र पंक्ति भी अंग्रेजी में थी। मैंने उससे जानना चाहा कि वो क्या उम्मीद करता है कि गांव में कितने प्रतिशत लोग अंग्रेजी जानते होंगे? सफाई में उसने बहुत सारी दलीलें दी थीं। मसलन उसने यह कहना शुरू किया कि अब हम हिन्दी व स्थानीय बोली को रोमन लिपि में लिखने लगे हैं। दूसरी बात, हमारी कंपनी को लोग उसके ट्रेड मार्क से जानते हैं, उसके विशिष्ट कलर से पहचानतें हैं, और इसीलिए हमें खरीदते हैं। मैंने उसे बताया कि लोग रोमन लिपि पढ़ने में भी असमर्थ हैं और फिर पूछा कि अगर यही विज्ञापन, स्थानीय भाषा या हिन्दी में लिखा जाता तो क्या होता? क्या वो अपनी बातें खरीदार तक अधिक आसानी से नहीं पहुंचा पाता? आज वो जिस सांकेतिक भाषा का प्रयोग कर रहा है उसके स्थान पर स्थानीय भाषा में लिखने पर उसे बेहतर ढंग से समझा जा सकता था। और कुछ हो न हो मगर सामान बिकने की संभावना यकीनन बढ़ जाती। इस पर उसका कोई जवाब नहीं था। तब मेरा प्रश्न उभरा कि उसकी ऐसी क्या मजबूरी है कि वह आज भी अंग्रेजी को लेकर बैठा हुआ है? बात उसे समझ में आई थी और उसने कुछ दिनों बाद ही उसके अपने मार्केटिंग हेड को मुझसे मिलवाया था।
विज्ञापन विभाग के मुखिया से बातचीत में यह साफ हो चुका था कि वह हिन्दी व स्थानीय भाषा के महत्व को समझ रहा है। बाजार का दबाव है। और यही कारण है कि विज्ञापन देसी भाषाओं में आने लगे हैं। लेकिन अभी भी बहुत बड़ा प्रतिशत अंग्रेजी का ही है। मैंने उसे सीधे सुझाव दिया कि आपको सारा विज्ञापन स्थानीय भाषा में कर देना चाहिए। जब आप यह जानते हैं कि अंग्रेजी का विज्ञापन मात्र दो से पांच प्रतिशत आदमी ही समझ सकता है तो क्यूं उसकी गुलामी करना? अधिकारी के पास कोई जवाब नहीं था, सिवाय इसके कि यह महसूस होता था कि वह अंग्रेजी मानसिकता के रोग से ग्रसित है। यह भी कह सकते हैं कि यहां एक तरह की परंपरा चली आ रही है। यह कहना बिल्कुल गलत होगा कि विज्ञापन के क्षेत्र में सारे अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोग ही आते हैं। सभी को अपनी देसी भाषा का ज्ञान जरूर होता है। लेकिन कार्पोरेट सेक्टर के वातानुकूलित कक्ष के अंदर बैठते ही उनकी मानसिकता आज भी अंग्रेजी वाली हो जाती है। वो इस बात को समझने को तैयार नहीं कि अब बाजार में गुलामों की प्रवृत्ति नहीं चलती। अगर उपभोक्ता से बात करनी है, उस तक पहुंचना है तो उसकी भाषा में बात करना होगा। वो आपका सामान खरीदने के लिए आपकी भाषा क्यों पढ़ने लगा? मगर बड़ी-बड़ी कंपनियों के छोटे-छोटे उपभोग के सामानों से लेकर रोजमर्रा की वस्तुओं पर आज भी नाम अंग्रेजी में लिखे होते हैं। गोया कि वो तेल-साबुन नहीं अंग्रेजी बेचते हों। अब क्रीम की खूबसूरती और गुणों को, अंग्रेजी के छोटे-छोटे अक्षरों में लिखा होने पर, आज तक इसके फायदे का ठीक-ठीक पता ही नहीं चलता। हां, अगर कंपनी चाहती है कि लोग इसे पढ़े ही नहीं तो बात अलग है। बसों और ट्रकों के शरीर पर अंग्रेजी में विज्ञापन लिखने का मुझे आज तक कारण समझ नहीं आया। गांव-देहात के बीच से निकलते हुए वो क्या दिखाना चाहते हैं? सड़कों पर चलने वाला आम आदमी इन शब्दों को देखते-देखते आदी होने के कारण कुछ-कुछ समझने तो लगता है लेकिन अगर उसकी भाषा में लिखा हो, तो उसे अपनापन भी लगेगा। 'कार डीलर' का समझ आता है लेकिन गरीब की साइकिल की दुकानों के नामों को अंग्रेजी में लिखे होने का कारण मुझे आज तक नहीं मालूम। कहीं साइकिल की दुकान का मालिक या फैक्टरी वाला अंग्रेज तो नहीं बनना चाहता? या फिर अपनी अंग्रेजी दिखाकर ग्राहकों को गुलाम बनाए रखने की प्रक्रिया में शामिल तो नहीं? वैसे साइन बोर्ड हिन्दी या स्थानीय भाषा में लिखे हुए हों तो भी फैक्टरी के मालिक या दुकानकार का रुतबा कम नहीं हो जाएगा।
यकीन से कह सकता हूं जिस दिन कोई भी कंपनी सारे विज्ञापन पूर्ण रूप से स्थानीय भाषा में शुरू कर देगी, उसका नुकसान उसे कदापि नहीं हो सकता। फायदा अवश्य होगा। इस विज्ञापन की दुनिया में, बिना सोचे-समझे, भेड़चाल के कारण, जाने-अनजाने ही जहां हम अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं वहीं अंग्रेजी के प्रचार व प्रसार में योगदान दे रहे हैं। इससे हमें कोई फायदा भी नहीं, उलटा नुकसान ही हो रहा है। व्यापारी की कोई राजनीतिक मजबूरी भी नहीं होती। दुकानदार को उपभोक्ता को भाषा का डर दिखाकर बांटना भी नहीं होता। फिर भी व्यवसायी ऐसा क्यों कर रहे हैं? यह आज तक किसी की भी समझ में नहीं आता। यह कुछ-कुछ ऐसा ही है कि हिन्दी दर्शकों की वाहवाही लूटकर अनपढ़ कलाकार भी रातोंरात सुपरस्टार स्टाइल में अंग्रेजी बोलने लग पड़ता है। और सोचता है कि इससे अपने आप को सपनों का राजकुमार बना लेगा और दर्शकों के बीच अपने लिए एक आकर्षण व स्टाइल पैदा करने में सफल होगा। जबकि सच तो यह है कि 'किस' को 'चुंबन' कहने पर युवाओं के हृदय में स्पंदन बढ़ेगा। 'कुछ-कुछ' थोड़ा ज्यादा होगा। यह एक विडंबना है कि बॉलीवुड सिनेमा ने हिन्दी का प्रचार जरूर किया लेकिन उससे अधिक हिन्दी में अंग्रेजी को घुसा दिया। इन हिन्दी पर पलने वालों को अंग्रेजी बोलते हुए देखकर अटपटा लगता है। ऑस्कर अवार्ड के चौखट पर कटोरा लेकर खड़े इन्हें कौन समझाए कि अंग्रेजी में बोलने से उनकी हिन्दी फिल्म कोई अंग्रेज नहीं देखता। विश्व भाषा की बात करने वालों को कौन बताए कि विदेश में भी उन्हें वही देखता है जो हिन्दी जानता है। इंटरनेट का हवाला देने वालों को पता होना चाहिए कि कंप्यूटर सिर्फ मशीनी भाषा समझता है। तो फिर अंग्रेजी का प्रदर्शन क्यों? विश्व में व्यापार करने का तर्क देने वालों को कौन समझाए कि बाहर व्यवसाय करने के लिए घर के अंदर के संस्कारों को बाहरी बना देना कहां की समझदारी है?
उपरोक्त मुद्दे पर चर्चा के दौरान एक बुद्धिमान मित्र का तर्क दिल-दिमाग पर असर कर गया था। बातचीत में उसने व्यंग्यात्मक ढंग से कहा था कि हमारे यहां अंग्रेजी के कारण उपभोक्ता में विश्वास जागता है, एक प्रभाव पड़ता है और ग्राहक आकर्षित होता है। अंग्रेजी बोलने को ग्लैमर से जोड़ा जाता है। और लोग इससे जुड़ना चाहते हैं। तभी बॉलीवुड हॉलीवुड बनने के चक्कर में रहता है। क्या यह सच है? अगर है तो फिर हमें विकसित राष्ट्र बनने का सपना ठुकरा कर यह स्वीकार करना होगा कि हम सांस्कृतिक रूप से गुलाम राष्ट्र हैं। और साथ ही यह भी स्वीकार करना होगा कि किसी का पीछा या नकल करने वाला कभी नेतृत्व नहीं प्रदान कर सकता।
मनोज सिंह
manoj@manojsingh.com
Mobile 9417220057

COMMENTS

Leave a Reply: 1
  1. १४-०७-१९४९ को हिंदी को राजभाषाका सुहाग बख्शा गया तभी से बेचारी हिंदी राष्ट्रभाषा के सिन्दूर को अपनी मांग में सजाने को तरस रही है|६१ सालों के बाद भी हिंदी राज्य की ही भाषा है |केंद्र सरकार के कार्यालयों में विशेषकर उत्सव सेलेब्रेट करके प्राईज़ बांटे गए ज्यादा तर अपनों को ही बांटे गए|लेडीस एंड जेंट्स के संबोधनों से दिवस प्रारंभ हुए और टी पार्टी के बाद समाप्त हुए इसके बाद फिर[ वोही पुराना राग] अघोषित राष्ट्रभाषा अंग्रेज़ीमें सर्कुलर बांटने की लीक पीटनी शुरू हो गयी

    जवाब देंहटाएं
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,3,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,4,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,6,कविता,1466,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,32,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,2,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,34,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,75,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,5,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,6,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,2,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,198,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,138,प्रयोजनमूलक हिंदी,37,प्रेमचंद,45,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,7,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,17,भीष्म साहनी,7,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,5,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,2,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,13,यशपाल,14,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,124,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,7,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,1,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,56,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,1,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,32,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,43,समसामयिक हिंदी लेख,260,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,19,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,85,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,415,हिंदी लेख,527,हिंदी व्यंग्य लेख,13,हिंदी समाचार,179,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,10,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,19,hindi essay,407,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,674,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,44,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,21,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,10,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,45,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: क्या हम अंग्रेजी बेचते हैं - मनोज सिंह
क्या हम अंग्रेजी बेचते हैं - मनोज सिंह
http://www.tribuneindia.com/2009/20090523/ttlife3.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2010/09/kya-hum-angreji-bechte-hai.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2010/09/kya-hum-angreji-bechte-hai.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका