महावर में डूबकर मैं मीरा बनी थी और तेरे युग को खींच लायी थी पुनश्च : l राजनीति के दमन चक्रों में ... मेरा कोमल सखा भाव एक बार फिर रख ...
महावर में डूबकर
मैं मीरा बनी थी
और तेरे युग को खींच लायी थी
पुनश्च : l
राजनीति के दमन चक्रों में ...
मेरा कोमल सखा भाव
एक बार फिर
रख दिया गया विष के प्याले में ...!
तूने देखा तो होगा ?
लोमहर्ष से
कह उठी थी दुनिया
कि तूने विष को किया अमृत ..!
कुछ झूठी नहीं थी लोकश्रुति !
विष क्या तेरे हाथ अमृत हुआ ?
काँटों की शैया
क्या फूल की थी तूने ?
सांप -पिटारा
शालिग्राम किया तूने ?
कह दे सच अपना पलट कर तू -
मेरा अपनाना तुझे
इस रूप अपरूप !
मेरा पारस स्पर्श तुझे याद है ?
अट्ठारह पर्वों में तेरी गीता -हाँ !
तेरी राजनीति की सम्पूर्ण समीक्षा थी !
थी न !
सच है ये !
और मेरे नेह की समीक्षा-
एक टीका भी न लिख पाया ?
मैं उन्नीसवां पर्व हूँ
तेरी गीता का ..
जो किसी अदालत में नहीं पूजा गया ..!
पर मेरी वेदना का
वह पर्व डूब गया था
द्वारिका में तेरी ...
इस आस में
कभी तो आएगा न फूल चुनने ?
मेरे महावर में लाल रंगे हैं फूल .
.या महावर लाल है इनसे ?
समय मिले
तो मोरपंख के साथ
जड़ लेना मुकुट में अपने
ये अलतई सुमन पारिजात के !
और एक बार पूछना मुझसे
विष का रंग क्या तेरे वर्ण -सा है ?
कान्हा !
यह रचना अपर्णा भटनागर जी की है . आप दिल्ली पब्लिक स्कूल, अहमदाबाद में अध्यापिका रह चुकी है . आपकी काव्य रचना 'मेरे क्षण' रोयल पब्लिकेशन, जोधपुर से प्रकाशित हो चुकी है . वर्तमान से आप गृहिणी तथा स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य से जुडी हुई है . अंतरजाल पर प्रकाशित विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती है.
मैं मीरा बनी थी
और तेरे युग को खींच लायी थी
पुनश्च : l
राजनीति के दमन चक्रों में ...
मेरा कोमल सखा भाव
एक बार फिर
रख दिया गया विष के प्याले में ...!
तूने देखा तो होगा ?
लोमहर्ष से
कह उठी थी दुनिया
कि तूने विष को किया अमृत ..!
कुछ झूठी नहीं थी लोकश्रुति !
विष क्या तेरे हाथ अमृत हुआ ?
काँटों की शैया
क्या फूल की थी तूने ?
सांप -पिटारा
शालिग्राम किया तूने ?
कह दे सच अपना पलट कर तू -
मेरा अपनाना तुझे
इस रूप अपरूप !
मेरा पारस स्पर्श तुझे याद है ?
अट्ठारह पर्वों में तेरी गीता -हाँ !
तेरी राजनीति की सम्पूर्ण समीक्षा थी !
थी न !
सच है ये !
और मेरे नेह की समीक्षा-
एक टीका भी न लिख पाया ?
मैं उन्नीसवां पर्व हूँ
तेरी गीता का ..
जो किसी अदालत में नहीं पूजा गया ..!
पर मेरी वेदना का
वह पर्व डूब गया था
द्वारिका में तेरी ...
इस आस में
कभी तो आएगा न फूल चुनने ?
मेरे महावर में लाल रंगे हैं फूल .
.या महावर लाल है इनसे ?
समय मिले
तो मोरपंख के साथ
जड़ लेना मुकुट में अपने
ये अलतई सुमन पारिजात के !
और एक बार पूछना मुझसे
विष का रंग क्या तेरे वर्ण -सा है ?
कान्हा !
यह रचना अपर्णा भटनागर जी की है . आप दिल्ली पब्लिक स्कूल, अहमदाबाद में अध्यापिका रह चुकी है . आपकी काव्य रचना 'मेरे क्षण' रोयल पब्लिकेशन, जोधपुर से प्रकाशित हो चुकी है . वर्तमान से आप गृहिणी तथा स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य से जुडी हुई है . अंतरजाल पर प्रकाशित विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती है.
दिल को छू गयी ये भावभीनी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंलाजवाब .
जवाब देंहटाएंपोला की बधाई भी स्वीकार करें .
अपर्णा,
जवाब देंहटाएंआपकी अत्यंत भावावाही रचना को पढ़कर बड़ी प्रसन्नता हुई | मैं चाहता हूँ कि आपके साथ हम भी अच्छी रचनाएँ बांटे | उम्मींद है कि आप संपर्क बनाए रखेंगी | धन्यवाद |
pankajtrivedi102@gmail.com
http://www.vishva-gatha.blogspot.com/
आदरणीया अपर्णा भटनागर जी की प्रस्तुत कविता बहुत उद्वेलित करने वाली है ।
जवाब देंहटाएंमैं उन्नीसवां पर्व हूं
तेरी गीता का …
जो किसी अदालत में नहीं पूजा गया … !
आपका गंभीर लेखन बहुत प्रेरणा देता है …
कोटिशः बधाई !
मंगलकामनाएं !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
kavita aap sabhi ko pasand aayi ..
जवाब देंहटाएंaabhar!
bahut khubsurat bhav
जवाब देंहटाएंabhar
भावपूर्ण ।
जवाब देंहटाएंbahut sundar likha hai aapne................shabda vyanjana ati sundar
जवाब देंहटाएं