आप की पहचान संदिग्ध है - मनोज सिंह

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एक बेहद कठिन व असामान्य परिस्थिति की परिकल्पना करें। आप दूर विदेश की लंबी यात्रा पर हैं और दुनिया के किसी अति व्यस्त और बड़े एयरपोर्ट पर आगे ...

एक बेहद कठिन व असामान्य परिस्थिति की परिकल्पना करें। आप दूर विदेश की लंबी यात्रा पर हैं और दुनिया के किसी अति व्यस्त और बड़े एयरपोर्ट पर आगे की यात्रा के लिए कनेक्टिंग फ्लाइट लेने उतरे हैं। आसान शब्दों में आप ट्रांजिट में हैं। उदाहरणार्थ, लंदन का हैथ्रो, अंटलांटा अमेरिका का हार्ट्सफील्ड, पेरिस का चार्ल्स डिगाले, जर्मनी का फ्रेंकफर्ट यहां तक कि पूरब में चीन का शंघाई और जापान का टोकियो इंटरनेशनल एयरपोर्ट में से कोई एक हो सकता है। ऐसे दसियों एयरपोर्ट और होंगे जहां सैकड़ों हवाई जहाज और हजारों यात्री प्रतिदिन आते-जाते हैं। यहां से दुनिया की हर दिशा में जाने के लिए जहाज मिल जाएंगे। दस-पंद्रह घंटे की लंबी यात्रा की थकान को मिटाने के लिए और आगे के गंतव्य की ओर जाने से पूर्व अधिकांश यात्री एयरपोर्ट के वॉश रूम-रेस्ट रूम का उपयोग करते हैं। आपका सामान एक एयरक्राफ्ट से दूसरे एयरक्राफ्ट में अपने आप ही शिफ्ट हो रहा होता है। अमूमन आप अपने साथ जरूरी कागजात और आवश्यक चीजें रखते हैं। जिसमें टेलीफोन नंबरों, ई-मेल एड्रेस और घर व कार्यालय के पतों से भरा मोबाइल, पैसे व के्रडिट कार्ड से भरा पर्स, पासपोर्ट-वीजा और बोर्डिंग पास का हर समय आपके पास होना आवश्यक है। कल्पना करें कि एक छोटा-सा बैग जिसमें आपने इन सब चीजों को रख रखा है वो गुम जाये या चोरी हो जाये, ऐसे में आपकी क्या स्थिति होगी? आप ऐसा सोचने मात्र से एक मिनट के लिए परेशान हो सकते हैं जबकि हकीकत में आपके पैरों तले जमीन गायब होगी। आपकी कल्पना भयावह भी हो सकती है लेकिन वास्तविकता में यह बहुत बड़ी मुसीबत में फंसने के समान है और होने वाली परेशानी को यहां शब्दों में बताना संभव नहीं। किसी-किसी के लिए यह महंगा सौदा भी हो सकता है। सर्वप्रथम आप पुलिस सहायता लेने की सोचेंगे। क्रेडिट व डेबिट कार्ड को बंद कराने की कोशिश करेंगे। आप अपने अन्य सामान के बचाव का प्रयास कर सकते हैं लेकिन होने वाली अड़चनों के लिए सही सही अनुमान लगाना संभव नहीं। आगे के घटनाक्रम भयंकर भी हो सकते हैं और परिणाम भयानक भी।
ऐसा ही कुछ नजारा हिन्दुस्तान में यात्रा कर रहे लोगों के साथ दिल्ली मुंबई के व्यस्त एयरपोर्ट पर भी हो सकता है। ट्रेन में सफर कर रहे यात्रियों के साथ यह दुर्घटना किसी व्यस्त रेल जंक्शन पर हो सकती है। आप ऐसी परिस्थिति में सर्वप्रथम किसी जानकार को फोन करना पसंद करेंगे और उसके लिए आपके पास पैसे होने चाहिए। परिस्थिति इतनी संवेदनशील और नाजुक हो जाती है कि किसी से दो-चार रुपये मांगना भी शान के खिलाफ होता है। सामने वाला आपकी मजबूरी को समझे न समझे आज की दुनिया में कहना बड़ा मुश्किल है। सबसे बड़ी मुश्किल तो इस बात की है कि आज का आधुनिक समाज हर नयी चीज को संदेह की दृष्टि से देखता है। आपको भी इसी दृष्टि से देखा जाएगा। जमीनी हकीकत है कि पुलिस अपने पास पहुंचने वाले हर एक को अपराधी मानती है। और वास्तविकता में आपको स्वयं को निर्दोष साबित करने की प्रक्रिया प्रारंभ करनी पड़ती है। नयी जगह पर अनजान व्यक्ति से सर्वप्रथम पहचानपत्र मांगा जाता है और न होने पर मुसीबत बढ़ जाती है। विभिन्न नजरे आपको चोर मान सकती है। आपके उचक्के, स्मगलर, आतंकवादी, इनफार्मर, ड्रग्स पैडलर होने का भी शक किया जा सकता है। आपको इन सब संदिग्ध आचरण वाले लोगों के साथ होने वाले अपमान प्रक्रिया की राह से गुजरना होगा। जिसे समझ पाना मुश्किल है। चलिए, कोई धर्मात्मा किस्म का सहयात्री या पुलिस-अधिकारी अपने मोबाइल से आपको फोन करने भी दे, जिसकी संभावना बहुत क्षीण है, फिर भी अगर मौका मिल ही जाए तो एक मुसीबत आती है कि आप जिसको फोन करना चाहते हैं उसका नंबर आपको याद नहीं होगा। हम अमूमन अपनी सारी सूचनाएं आजकल मोबाइल में स्टोर करके रखते हैं। हालात इतने बदतर हो सकते हैं कि हो सकता है कि आपको व्यक्तिगत व पारिवारिक (पति-पत्नी या फिर बच्चों के) नंबर भी याद न हो। ध्यान से देखिए, जब भी आपको घर का नंबर डायल करना होता है आप ÷होम' का बटन दबा देते हैं। अपने जीवनसाथी का नंबर डायल करना हो तो उसके नाम से बटन दबाते ही कनेक्ट हो जाते हैं। ऐसा निरंतर करते रहने से आप कभी भी नंबरों को जाने-अनजाने भी ध्यान व याद नहीं रख पाते। ऐसी परिस्थिति में घर के नंबर को याद न कर पाना आपके लिए एक और बड़ी मुसीबत का कारण बन जाता है। ध्यान रखिये आपकी घबराहट को देखकर आप पर और अधिक संदेह किया जाएगा। आप उस नये शहर में किसी जानकार के पास भी जाना चाहें तो घर व कार्यालय का पता भी आपके पास नहीं होगा। चूंकि वो भी मोबाइल में ही स्टोर रहता है। और ऐसे में, समय बीतने पर पुलिस थाने में जरूरी नहीं कि आपके साथ अच्छा व्यवहार ही किया जाए। विदेश में भाषा की समस्या आग में घी का काम कर सकती है।
आज के आधुनिक समाज में अपने पहचान को साबित करने की बड़ी समस्या है। पहचान की समस्या तो आजकल रोजमर्रा के जीवन में अपने शहर में भी आ सकती है। आज एक मोबाइल का सिम भी सही पहचानपत्र के बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता। यहां तक कि गैस के कनेक्शन से लेकर छोटे-मोटे काम के लिए भी पहचानपत्र का होना जरूरी है। अपने ही पैसों के लिए बैंक में अकाउंट खोलना हो तो, रेल और वायुयान से यात्रा करना हो तो, किराये का मकान लेना हो तो, अगर आपके पास पहचान पत्र नहीं है तो आप अपने शहर में भी अनजान हैं। दूसरे शहर में होटल में कमरा नहीं मिलेगा। किसी भी आधुनिक सुविधाओं को आप आसानी से प्राप्त नहीं कर सकते। पुलिस वेरिफिकेशन में भी दिक्कत हो सकती है और नौकरी व पढ़ाई के लिए विदेश जाना खटाई में पड़ सकता है। कहने वाले कह सकते हैं कि व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने व सुरक्षा के लिए यह आवश्यक है। और आज हमें यह ठीक भी लगता है। मगर हमने इस तेज भागादौड़ी में अपने अस्तित्व को कहां घुमा दिया, पता ही नहीं चला। और हर एक संदिग्ध बन गया। हम भीड़ में घुम होकर रह गए। हमारी पहचान हमारा नाम नहीं, खानदान नहीं, हमारा चेहरा, कार्य व व्यवहार नहीं, वो कागज के चंद टुकड़े हैं, वो प्लास्टिक के कार्ड हैं या फिर इलेक्ट्रॉनिक कोड के नंबर हैं, जिनसे हमारा सही व सच्चा होना प्रामाणित होता है। इनके हटते ही हमारी पहचान समाप्त और हम यकायक संदेह की दृष्टि में घेर लिये जाते हैं।
पूर्व में गांव से निकलने वाला एक अनपढ़ देहाती कुछ कोस दूर पहुंचने के साथ ही अकेला और अजनबी हो जाता था। उसके लिए इतने में ही देश से बाहर जाने वाली स्थिति बन जाती थी। राह में लूटने वाले लुटेरे-डकैत तो तब भी होते थे मगर धर्मात्माओं की कमी न थी। राह में धर्मशालाएं होती थीं, मंदिर थे और लोगों के दिल थे। किसी भी दरवाजे को खटखटा लें तो अमूमन वह आपको एक वक्त की रोटी जरूर खिलाएगा और साथ में आगे जाने में आपकी मदद कर आप से दो बातें भी करेगा। आपकी पहचान आपके बाप-दादाओं के नाम व गांव से जुड़ जाती थी। और बताने पर पुराने संपर्क और संबंध जल्दी ढूंढ़ लिये जाते थे। बरेली वाले, आगरा वाले, इलाहाबाद वाले, पूरबिया आदि नामों से पुकारे जाते थे। और एक बार संपर्क जुड़ जाने से भावनाएं जुड़ जाती थीं। धोखे तो तब भी होते थे, लूट भी होती थी, लेकिन दो अजनबी के बीच बातचीत विश्वास से प्रारंभ होती थी। इस संदर्भ में दादी-नानी द्वारा एक पुरानी कहानी सुनायी जाती थी, 'जिसमें एक राहगीर को एक लुटेरा साधु का भेस धारण कर लूट लेता है। राहगीर उसे सारा माल दे तो देता है मगर एक विनती करता है कि यह बात किसी से न कहना कि साधु के भेस में तुमने मुझे लूटा वरना साधु पर से लोगों का विश्वास उठ जाएगा।' आज हम हर चीज पर से विश्वास खो चुके हैं। हमारी नीयत व आचरण में खोट आ चुका है। डुप्लीकेट आईडी लगाकर लोग बड़े-बड़े नकली अधिकारी तक बन जाते हैं, ई-मेल व वेबसाइट हाईक कर लेते हैं, पासपोर्ट-वीजा बना लेते हैं। अब किसी के चेहरे पर तो लिखा नहीं है कि वह क्या है। तभी तो बिना कागज देखे हुए हम किसी पर यकीन नहीं करते। लेकिन मुसीबत तब आती है जब यह कागज भी झूठे बन जाते हैं।
एक दोस्त एक स्टेशन पर ऐसी ही परिस्थिति में फंस जाने के कारण घंटो परेशान रहा। इससे बचने के लिए आप कम से कम कुछ एक टेलीफोन नंबर को जरूर याद करके रख सकते हैं। जिसे आप मुसीबत में फोन कर सकें। यात्रा में पैसों को एक जगह न रखकर दो-तीन अलग-अलग जगह रख सकते हैं। अत्यंत महत्वपूर्ण सूचनाएं किसी छोटे से लैटर पैड/डायरी में लिखकर दूसरी जेब में रख सकते हैं। यूं तो विभिन्न पहचानपत्र और डायरी में, दुर्घटना होने पर, तुरंत संपर्क के नंबरों की सूची लिखी होती है। मरने के बाद हमारा पैसा किसको जाएगा इसकी घोषणा भी हम जीते जी कर देते हैं। यह दीगर बात है कि आज के युग में उस सही और पक्के आदमी का पता लगाना बहुत मुश्किल है जो आपकी मुसीबत में आपके काम आ सके और आपकी दुर्घटना सुनकर दौड़ लगा दे। हां, आपके मरने के बाद आपका पैसे और जमीन-जायदाद लेने में किसी को एतराज नहीं होगा।

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आप की पहचान संदिग्ध है - मनोज सिंह
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