बड़े बाबू - प्रेमचंद

SHARE:

तीन सौ पैंसठ दिन, कई घण्टे और कई मिनट की लगातार और अनथक दौड़-धूप के बाद मैं आखिर अपनी मंजिल पर धड़ से पहुँच गया। बड़े बाबू के दर्शन हो गए। म...

तीन सौ पैंसठ दिन, कई घण्टे और कई मिनट की लगातार और अनथक दौड़-धूप के बाद मैं आखिर अपनी मंजिल पर धड़ से पहुँच गया। बड़े बाबू के दर्शन हो गए। मिट्टी के गोले ने आग के गोले का चक्कर पूरा कर लिया। अब तो आप भी मेरी भूगोल की लियाकत के कायल हो गए। इसे रुपक न समझिएगा। बड़े बाबू में दोपहर के सूरज की गर्मी और रोशनी थी और मैं क्या और मेरी बिसात क्या, एक मुठ्ठी खाक। बड़े बाबू मुझे देखकर मुस्कराये। हाय, यह बड़े लोगों की मुस्कराहट, मेरा अधमरा-सा शरीर कांपते लगा। जी में आया बड़े बाबू के कदमों पर बिछ जाऊँ। मैं काफिर नहीं, गालिब का मुरीद नहीं, जन्नत के होने पर मुझे पूरा यकीन है, उतरा ही पूरा जितना अपने अंधेरे घर पर। लेकिन फरिश्ते मुझे जन्नत ले जाने के लिए आए तो भी यकीनन मुझे वह जबरदस्त खुशी न होती जो इस चमकती हुई मुस्कराहट से हुई। आंखों में सरसों फूल गई। सारा दिल और दिमाग एक बगीचा बन गया। कल्पना ने मिस्र के ऊंचे महल बनाने शुरु कर दिय। सामने कुर्सियों, पर्दो और खस की टट्टियों से सजा-सजाया कमरा था। दरवाजे पर उम्मीदवारों की भीड़ लगी हुई थी और ईजानिब एक कुर्सी पर शान से बैठे हुए सबको उसका हिस्सा देने वाले खुदा के दुनियाबी फ़र्ज अदा कर रहे थे। नजर-मियाज़ का तूफ़ान बरपा था और मैं किसी तरफ़ आंख उठाकर न देखता था कि जैसे मुझे किसी से कुछ लेना-देना नहीं।
अचानक एक शेर जैसी गरज ने मेरे बनते हुए महल में एक भूचाल-सा ला दिया—क्या काम है? हाय रे, ये भोलापन ! इस पर सारी दुनिया के हसीनों का भोलापन और बेपरवाही निसार है। इस ड्याढ़ी पर माथा रगड़ते-रगड़ते तीने सौ पैंसठ दिन, कई घण्टे और कई मिनट गुजर गए। चौखट का पत्थर घिसकर जमीन से मिल गया। ईदू बिसाती की दुकान के आधे खिलौने और गोवर्द्धन हलवाई की आधी दुकान इसी ड्यौढ़ी की भेंट चढ़ गयी और मुझसे आज सवाल होता है, क्या काम
है !
मगर नहीं, यह मेरी ज्यादती हैं सरासर जुल्म। जो दिमाग़ बड़े-बड़े मुल्की और माली तमद्दुनी मसलों में दिन-रात लगा रहता है, जो दिमाग़ डाकूमेंटों, सरकुलरों, परवानों, हुक्मनामों, नक्शों वग़ैरह के बोझ से दबा जा रहा हो, उसके नजदीक मुझ जैसे खाक के पुतले की हस्ती ही क्या। मच्छर अपने को चाहे हाथी समझ ले पर बैल के सींग को उसकी क्या खबर। मैंने दबी जबान में कहा—हुजूर की क़दमबोसी के लिए हाजिर हुआ।
बड़े बाबू गरजे—क्या काम है?
अबकी बार मेरे रोएं खड़े हो गए। खुदा के फ़जल से लहीम-शहीम आदमी हूँ, जिन दिनों कालेज में था, मेरे डील-डौल और मेरी बहादुरी और दिलेरी की धूम थी। हाकी टीम का कप्तान, फुटवाल टीम का नायब कप्तान और क्रिकेट का जनरल था। कितने ही गोरों के जिस्म पर अब भी मेरी बहादुरी के दाग़ बाकी होंगे। मुमकिन है, दो-चार अब भी बैसाखियां लिए चलते या रेंगते हों। ‘बम्बई क्रानिकल’ और ‘टाइम्स’ में मेरे गेंदों की धूम थी। मगर इस वक्त बाबू साहब की गरज सुनकर मेरा शरीर कांपने लगा। कांपते हुए बोला—हुजूर की कदमबोसी के लिए हाजिर हुआ।
बड़े बाबू ने अपना स्लीपरदार पैर मेरी तरफ़ बढ़ाकर कहा—शौक से लीजिए, यह कदम हाजिर है, जितने बोसे चाहे लीजिए, बेहिसाब मामले हैं, मुझसे कसम ले लीजिए जो मैं गिनूँ, जब तक आपका मुंह न थक जाए, लिए जाइए ! मेरे लिए इससे बढ़कर खुशनसीबी का क्या मौका होगा ? औरों को जो बात बड़े जप-तप, बड़े संयम-व्रत से मिलती है, वह मुझे बैठे-बिठाये बग़ैर हड़-फिटकरी लगाए हासिल हो गयी। वल्लाह, हूं मैं भी खुशनसीब । आप अपने दोस्त-अहबाब, आत्मीय-स्वजन जो हों, उन सबको लायें तो और भी अच्छा, मेरे यहां सबको छूट है !
हंसी के पर्दे में यह जो जुल्म बड़े बाबू कर रहे थे उस पर शायद अपने दिल में उनको नाज हो। इस मनहूस तकदीर का बुरा हो, जो इस दरवाज़े का भिखारी बनाए हुए है। जी में तो आया कि हज़रत के बढ़े हुए पैर को खींच लूं और आपको जिन्दगी-भर के लिए सबक दे दूँ कि बदनसीबों से दिल्लगी करने का यह मजा हैं मगर बदनसीबी अगर दिल पर जब्र न कराये, जिल्लत का अहसास न पैदा करे तो वह बदनसीबी क्यों कहलाए। मैं भी एक जमाने में इसी तरह लोगों को तकलीफ पहुँचाकर हंसता था। उस वक्त इन बड़े बाबुओं की मेरी निगाह में कोई हस्ती न थी। कितने ही बड़े बाबुओं को रुलाकर छोड़ दिया। कोई ऐसा प्रोफेसर न था, जिसका चेहरा मेरी सूरत देखते ही पीला न पड़ जाता हो। हजार-हजार रुपया पाने वाले प्रोफेसरों की मुझसे कोर दबकी थी। ऐसे क्लर्को को मैं समझता ही क्या था। लेकिन अब वह जमाना कहां। दिल में पछताया कि नाहक कदमबोसी का लफ़्ज जबान पर लाया। मगर अपनी बात कहना जरुरी था। मैं पक्का इरादा करके अया था कि उस ड्यौढ़ी से आज कुछ लेकर ही उठूंगा। मेरे धीरज और बड़े बाबू के इस तरह जान-बूझकर अनजान बनने में रस्साकशी थी। दबी ज़बान से बोला—हुजूर, ग्रेजुएट हूँ।
शुक्र है, हज़ार शुक्र हैं, बड़े बाबू हंसे। जैसे हांडी उबल पड़ी हो। वह गरज और वह करख्त आवाज न थी। मेरा माथा रगड़ना आखिर कहां तक असर न करता। शायद असर को मेरी दुआ से दुश्मनी नहीं। मेरे कान बड़ी बेक़रारी से वे लफ़्ज सुनने के लिए बेचैन हो रहे थे जिनसे मेरी रुह को खुशी होगी। मगर आह, जितनी मायूसी इन कानों को हुई है उतनी शायद पहाड़ खोदने वाले फ़रहाद को भी न हुई होगी। वह मुस्कराहट न थी, मेरी तक़दीर की हंसी थी। हुजूर ने फ़रमाया—बड़ी खुशी की बात है, मुल्क और क़ौम के लिए इससे ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है। मेरी दिली तमन्ना है, मुल्क का हर एक नौजवान ग्रेजुएट हो जाए। ये ग्रेजुएट ज़िन्दगी के जिस मैदान में जाय, उस मैदान को तरक्की ही देगा—मुल्की, माली, तमद्दुनी (मजहबी) ग़रज कि हर एक किस्म की तहरीक का जन्म और तरक्की ग्रेजुएटों ही पर मुनहसर है। अगर मुल्क में ग्रेजुएटों का यह अफ़सोसनाक अकाल न होता तो असहयोग की तहरीक क्यों इतनी जल्दी मुर्दा हो जाती ! क्यों बने हुए रंगे सियार, दग़ाबाज जरपस्त लीडरों को डाकेजनी के ऐसे मौके मिलते! तबलीग क्यों मुबल्लिगे अले हुस्सलाम की इल्लत बनती! ग्रेजुएट में सच और झूठ की परख, निगाह का फैलाव और जांचने-तोलने की क़ाबलियत होना जरुरी बात है। मेरी आंखें तो ग्रेजुएटों को देखकर नशे के दर्जे तक खुशी से भर उठती हैं। आप भी खुदा के फ़जल से अपनी क़िस्म की बहुत अच्छी मिसाल हैं, बिल्कुल आप-टू-डेट। यह शेरवानी तो बरकत एण्ड को की दुकान की सिली हुई होगी। जूते भी डासन के हैं। क्यों न हो। आप लोंगों ने कौम की जिन्दगी के मैयार को बहुत ऊंचा बना दिया है और अब वह बहुत जल्द अपनी मंजिल पर पहुँचेगी। ब्लैकबर्ड पेन भी है, वेस्ट एण्ड की रिस्टवाच भी है। बेशक अब कौमी बेड़े को ख्वाजा खिज़र की जरुरत भी नहीं। वह उनकी मिन्नत न करेगा।
हाय तक़दीर और वाय तक़दीर ! अगर जानता कि यह शेरवानी और फ़ाउंटेनपेन और रिस्टवाज यों मज़ाक का निशाना बनेगी, तो दोस्तों का एहसान क्यों लेता। नमाज़ बख्शवाने आया था, रोज़े गले पड़े। किताबों में पढ़ा था, ग़रीबी की हुलिया ऐलान है अपनी नाकामी का, न्यौता देना है अपनी जिल्लत कों। तजुर्बा भी यही कहता था। चीथड़े लगाये हुए भिखमंगों को कितनी बेदर्दी से दुतकारता हूँ लेकिन जब कोई हजरत सूफी-साफ़ी बने हुए, लम्बे-लम्बे बाल कंधों पर बिखेरे, सुनहरा अमामा सर पर बांका-तिरछा शान से बांधे, संदली रंग का नीचा कुर्ता पहने, कमरे में आ पहुँचते हैं तो मजबूर होकर उनकी इज्जत करनी पड़ती है और उनकी पाकीज़गी के बारे में हजारों शुबहे पैदा होने पर भी छोटी-छोटी रक़म जो उनकी नज़र की जाती हे, वह एक दर्जन भिखारियों को अच्छा खाना खिलाने के सामान इकट्ठा कर देती। पुरानी मसल है—भेस से ही भीख मिलती है। पर आज यह बात ग़लत साबित हो गयी । अब बीवी साहिबा की वह तम्बीह याद आयी जो उसने चलते वक्त दी थी—क्यों बेकार अपनी बइज्जती कराने जा रहे हो। वह साफ़ समझेंगे कि यह मांगे-जांचे का ठाठ है। ऐसे रईस होते तो मेरे दरवाजे पर आते क्यों। उस वक्त मैंने इस तम्बीह को बीवी की कमनिगाह और उसका गंवारपन समझा था। पर अब मालूम हुआ कि गंवारिनें भी कभी-कभी सूझ की बातें कहते हैं। मगर अब पछताना बेकार है। मैंने आज़िज़ी से कहा—हुजूर, कहीं मेरी भी परवरिश फ़रमायें।
बड़े बाबू ने मेरी तरफ़ इस अन्दाज से देखा जैसे मैं किसी दूसरी दुनिया का कोई जानवर हूँ और बहुत दिलासा देने के लहजे में बोले—आपकी परवरिश खुदा करेगा। वही सबका रज्ज़ाक है, दुनिया जब से शुरु हुई तब से तमाम शायर, हकीम और औलिया यही सिखाते आये हैं कि खुदा पर भरोसा रख और हम हैं कि उनकी हिदायत को भूल जाते हैं। लकिन खैर, मैं आपको नेक सलाह देने में कंजूसी न करुँगा। आप एक अखबार निकाल लीजिए। यकीन मानिए इसके लिए बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे होने की जरुरत नहीं और आप तो खुदा के फ़ज़ल से ग्रेजुएट है।, स्वादिष्ट तिलाओं और स्तम्भन-बटियों के नुस्खें लिखिए। तिब्बे अकबर में आपको हज़ारों नुस्खे मिलेंगे। लाइब्रेरी जाकर नकल कर लाइए और अखबार में नये नाम से छापिए। कोकशास्त्र तो आपने पढ़ा ही होगा अगर न पढ़ा हो तो एक बार पढ़ जाइए और अपने अखबार में शादी के मर्जो के तरीके लिखिए। कामेन्द्रिय के नाम जिंतने ज्यादा आ सकें, बेहतर है फिर देखिए कैसे डाक्टर और प्रोफेसर और डिप्टी कलेक्टर आपके भक्त हो जाते हैं। इसका खयाल रहे कि यह काम हकीमाना अन्दाज़ से किया जाए। ब्योपारी और हकीमाना अन्दाज में थोड़ा फ़र्क़ है, ब्योपारी सिर्फ़ अपनी दवाओं की तारीफ़ करता है, हकीम परिभाषाओं और सूक्तियों को खोलकर अपने लेखों को इल्मी रंग देता है। ब्योपारी की तारीफ से लोग चिढ़ते हैं, हकीम की तारीफ़ भरोसा दिलाने वाली होती है। अगर इस मामले में कुछ समझने-बूझने की जरुरत हो तो रिसाला ‘दरवेश’ हाज़िर हैं अगर इस काम में आपको कुछ दिक्कत मालूम होती हो, तो स्वामी श्रद्धानन्द की खिदमत में जाकर शुद्धि पर आमादगी जाहिर कीजिए—फिर देखिए आपकी कितनी खातिर-तवाजों होती है। इतना समझाये देता हूँ कि शुद्धि के लिए फौरन तैयार न हो जाइएगा। पहले दिन तो दो-चार हिन्दू धर्म की किताबें मांग लाइयेगा। एक हफ्ते के बाद जाकर कुछ एतराज कीजिएगा। मगर एतराज ऐसे हो जिनका जवाब आसानी से दिया जा सके इससे स्वामीजी को आपकी छान-बीन और जानने की ख्वाहिश का यकीन हो जायेगा। बस, आपकी चांदी है। आप इसके बाद इसलाम की मुखालिफत पर दो-एक मजमून या मजमूनों का सिलसिला किसी हिन्दू रिसाले में लिख देंगे तो आपकी जिन्दगी और रोटी का मसला हल हो जाएगा। इससे भी सरल एक नुस्खा है—तबलीग़ी मिशन में शरीक हो जाइए, किसी हिन्दू औरत, खासकर नौजवान बेवा, पर डोरे डालिए। आपको यह देखकर हैरत होगी कि वह कितनी आसानी से आपसे मुहब्बत करने लग जाती है। आप उसकी अंधेरी जिन्दगी के लिए एक मशाल साबित होंगे। वह उज़ नहीं करती, शौक से इसलाम कबूल कर लेगी। बस, अब आप शहीदों में दाखिल हो गए। अगर जरा एहतियात से काम करते रहें तो आपकी जिन्दगी बड़े चैन से गुजरेगी। एक ही खेवे में दीनो-दुनिया दोनों ही पार हैं। जनाब लीडर बन जाएंगे वल्लाह, एक हफ्ते में आपका शुमार नामी-गरामी लोगों में होने लगेगा, दीन के सच्चे पैरोकार। हजारों सीधे-सादे मुसलमान आपकों दीन की डूबती हुई किश्ती का मल्लाह समझेंगे। फिर खुदा के सिवा और किसी को खबर न होगी कि आपके हाथ क्या आता है और वह कहां जाता है और खुदा कभी राज नहीं खोला करता, यह आप जानते ही हैं। ताज्जुब है कि इन मौकों पर आपकी निगाह क्यों नहीं जाती ! मैं तो बुड्ढा हो गया और अब कोई नया काम नहीं सीख सकता, वर्ना इस वक्त लीडरों का लीडर होता।
इस आग की लपट जैसे मज़ाक ने जिस्म में शोले पैदा कर दिये। आंखों से चिनगारियां निकलने लगीं। धीरज हाथ से छूटा जा रहा था। मगर कहरे दरवेश बर जाने दरवेश(भिखारी का गुस्सा अपनी जान पर) के मुताबिक सर झुकाकर खड़ा रहा। जितनी दलीलें दिमाग में कई दिनों से चुन-चुनकर रखी थीं, सब धरी रह गयीं। बहुत सोचने पर भी कोई नया पहलू ध्यान में न आया। यों खुदा के फ़ज़ल से बेवकूफ़ या कुन्दजेहन नहीं हूँ, अच्छा दिमाग पाया है। इतने सोच-विचार से कोई अच्छी-सी गजल हो जाती। पर तबीयत ही तो है, न लड़ी। इत्तफाक से जेब में हाथ डाला तो अचानक याद आ गया कि सिफारिशी खतों का एक पोथा भी साथ लाया हूँ। रोब का दिमाग पर क्या असर पड़ता है इसका आज तजुर्बा हो गया। उम्मीद से चेहरा फूल की तरह खिल उठा। खतों का पुलिन्दा हाथ में लेकर बोला—हुजूर, यह चन्द खत हैं इन्हें मुलाहिजा फरमा लें।
बड़े बाबू ने बण्डल लेकर मेज़ पर रख दिया और उस पर एक उड़ती हुई नज़र डालकर बोले—आपने अब तक इन मोतियों को क्यों छिपा रक्खा था ?
मेरे दिल में उम्मीद की खुशी का एक हंगामा बरपा हो गया। जबान जो बन्द थी, खुल गयी। उमंग से बोला—हुजूर की शान-शौकत ने मुझ पर इतना रोब डाल दिया और कुछ ऐसा जादू कर दिया कि मुझे इन खतों की याद न रही। हुजूर से मैं बिना नमक-मिर्च लगाये सच-सच कहता हूँ कि मैंने इनके लिए किसी तरह की कोशिश या सिफारिश नहीं पहुँचायी। किसी तरह की दौड़-भाग नहीं की।
बड़े बाबू ने मुस्कराकर कहा—अगर आप इनके लिए ज्यादा से ज्यादा दौड़-भाग करने में भी अपनी ताक़त खर्च करते तो भी मैं आपको इसके लिए बुरा-भला न कहता। आप बेशक बड़े खुशनसीब हैं कि यह नायाब चीज़ आपकों बेमांग मिल गई, इसे जिन्दगी के सफ़र का पासपोर्ट समझिए। वाह, आपकों खुदा के फ़ज़ल से एक एक़ से एक कद्रदान नसीब हुए। आप जहीन हैं, सीधे-सच्चे हैं, बेलौस हैं, फर्माबरदार है। ओफ्फोह, आपके गुणों की तो कोई इन्तहा ही नहीं है। कसम खुदा की, आपमें तो तमाम भीतरी और बाहरी कमाल भरे हुए हैं। आपमें सूझ-बूझ गम्भीरता, सच्चाई, चौकसी, कुलीनता, शराफत, बहादुरी, सभी गुण मौजूद हैं। आप तो नुमाइश में रखे जाने के क़ाबिल मालूम होते हैं कि दुनिया आपकों हैरत की निगाह से देखे तो दांतों तले उंगली दबाये। आज किसी भले का मुंह देखकर उठा था कि आप जैसे पाकीजा आदमी के दर्शन हुए। यह वे गुण हैं जो जिन्दगी के हर एक मैदान में आपको शोहरत की चोटी तक पहुँचा सकते हैं। सरकारी नौकरी आप जैसे गुणियों की शान के क़ाबिल नहीं। आपकों यह कब गवारा होगा। इस दायरे में आते ही आदमी बिलकुल जानवर बन जाता है। बोलिए, आप इसे मंजूर कर सकते हैं ? हरगिज़ नहीं।
मैंने डरते-डरते कहा—जनाब, जरा इन लफ्जों को खोलकर समझा दीजिए। आदमी के जानवर बनजाने से आपकी क्या मंशा है?
बड़े बाबू ने त्योरी चढ़ाते हुए कहा—या तो कोई पेचीदा बात न थी जिसका मतलब खोलकर बतलाने की जरुरत हो। तब तो मुझे बात करने के अपने ढंग में कुछ तरमीम करनी पड़ेगी। इस दायरे के उम्मीदवारों के लिए सबसे जरुरी और लाज़िमी सिफ़त सूझ-बूझ है। मैं नहीं कह सकता कि मैं जो कुछ कहना चाहता हूँ, वह इस लफ्ज से अदा होता है या नहीं। इसका अंग्रेजी लफ्ज है इनटुइशन—इशारे के असली मतलब को समझना। मसलन अगर सरकार बहादुर यानी हाकिम जिला को शिकायत हो कि आपके इलाके में इनकमटैक्स कम वसूल होता है तो आपका फ़र्ज है कि उसमें अंधाधुन्ध इजाफ़ा करें। आमदनी की परवाह न करें। आमदनी का बढ़ना आपकी सूझबूझ पर मुनहसर है! एक हल्की-सी धमकी काम कर जाएगी और इनकमटैक्स दुगुना-तिगुना हो जाएगा। यकीनन आपकों इस तरह अपना ज़मीर (अन्त:करण) बेचना गवारा न होगा।
मैंने समझ लिया कि मेरा इम्तहान हो रहा है, आशिकों जैसे जोश और सरगर्मी से बोला—मैं तो इसे जमीर बेचना नहीं समझता, यह तो नमक का हक़ है। मेरा ज़मीर इतना नाज़ुक नहीं है।
बड़े बाबू ने मेरी तरफ़ क़द्रदानी की निगाह से देखकर कहा—शाबाश, मुझे तुमसे ऐसे ही जवाब की उम्मीद थी। आप मुझे होनहार मालूम होते हैं। लेकिन शायद यह दूसरी शर्त आपको मंजूर न हो। इस दायरे के मुरीदों के लिए दूसरी शर्त यह है कि वह अपने को भूल जाएं। कुछ आया आपकी समझ में ?
मैंने दबी जबान में कहा—जनाब को तकलीफ़ तो होगी मगर जरा फिर इसको खोलकर बतला दीजिए।
बड़े बाबू ने त्योरियों पर बल देते हुए कहा—जनाब, यह बार-बार का समझाना मुझे बुरा मालूम होता है। मैं इससे ज्यादा आसान तरीक़े पर खयालों को ज़ाहिर नहीं कर सकता। अपने को भूल जाना बहुत ही आम मुहावरा हैं। अपनी खुदी को मिटा देना, अपनी शख्सियत को फ़ना कर देना, अपनी पर्सनालिटी को खत्म कर देना। आपकी वज़ा-कज़ा से आपके बोलने, बात करने के ढंग से, आपके तौर-तरीकों से आपकी हिन्दियत मिट जानी चाहिए। आपके मज़हबी, अखलाकी और तमद्दुनी असरों का बिलकुल ग़ायब हो जाना ज़रुर हैं। मुझे आपके चेहरे से मालूम हो रहा है कि इस समझाने पर भी आप मेरा मतलब नहीं समझ सके। सुनिए, आप ग़ालिबन मुसलमान हैं। शायद आप अपने अक़ीदों में बहुत पक्के भी हों। आप नमाज़ और रोज़े के पाबन्द हैं?
मैंने फ़ख से कहा—मैं इन चीजों का उतना ही पाबन्द हूँ जितना कोई मौलवी हो सकता हैं। मेरी कोई नमाज़ क़ज़ा नहीं हुई। सिवाय उन वक्तों के जब मैं बीमार था।
बड़े बाबू ने मुस्कराकर कहा—यह तो आपके अच्छे अखलाक ही कह देते हैं। मगर इस दायरे में आकर आपकों अपने अक़ीदे और अमल में बहुत कुछ काट-छांत करनी पड़ेगी। यहां आपका मज़हब मज़हबियत का जामा अख्तियार करेगा। आप भूलकर भी अपनी पेशानी को किसी सिजदे में न झुकाएं, कोई बात नहीं। आप भूलकर भी ज़कात के झगड़े में न फूसें, कोई बात नहीं। लेकिन आपको अपने मजहब के नाम पर फ़रियाद करने के लिए हमेशा आगे रहना और दूसरों को आमादा करना होगा। अगर आपके ज़िले में दो डिप्टी कलक्टर हिन्दू हैं और मुसलमान सिर्फ़ एक, तो आपका फ़र्ज होगा कि हिज एक्सेलेंसी गवर्नर की खिदमत में एक डेपुटेशन भेजने के लिए कौम के रईसों में आमादा करें। अगर आपको मालूम हो कि किसी म्युनिसिपैलिटी ने क़साइयों को शहर से बाहर दूकान रखने की तजवीज़ पास कर दी है तो आपका फ़र्ज होगा कि कौम के चौधरियों को उस म्युनिसिपैलिटी का सिर तोड़ने के लिए तहरीक करें। आपको सोते-जागते, उठते-बैठते जात-पॉँत का राग अलापना चाहिए। मसलन इम्तहान के नतीजों में अगर आपको मुसलमान विद्यार्थियों की संख्या मुनासिब से कम नज़र आये तो आपको फौरन चांसकर के पास एक गुमनाम ख़त लिख भेजना होगा कि इस मामले में जरुर ही सख्ती से काम लिया गया है। यह सारी बातें उसी इनटुइशनवाली शर्त के भीतर आ जाती हैं। आपको साफ़-साफ़ शब्दों में या इशारों से यह काम करने से लिए हिदायत न की जाएगी। सब कुछ आपकी सूझ-सूझ पर मुनहसर होगा। आपमें यह जौहर होगा तो आप एक दिन जरुर ऊंचे ओहदे पर पहुँचेंगे। आपको जहां तक मुमकिन हो, अंग्रेजी में लिखना और बोलना पड़ेगा। इसके बग़ैर हुक्काम आपसे खुश न होंगे। लेकिन क़ौमी ज़बान की हिमायत और प्रचार की सदा आपकी ज़बान से बराबर निकलती रहनी चाहिए। आप शौक़ से अखबारों का चन्दा हज़म करें, मंगनी की किताबें पढ़ें चाहे वापसी के वक्त किताब के फट-चिंथ जाने के कारण आपको माफ़ी ही क्यों न मांगनी पड़े, लेकिन जबान की हिमायत बराबर जोरदार तरीकें से करते रहिए। खुलासा यह कि आपको जिसका खाना उसका गाना होगा। आपकों बातों से, काम से और दिल से अपने मालिक की भलाई में और मजबूती से उसको जमाये रखने में लगे रहना पड़ेगा। अगर आप यह खयाल करते हों कि मालिक की खिदमत के ज़रिये कौम की खिदमत की करुंगा तो यह झूठ बात है, पागलपन है, हिमाक़त है। आप मेरा मतलब समझ गये होंगे। फ़रमाइए, आप इस हद तक अपने को भूल सकते हैं?
मुझे जवाब देने में जरा देर हुई। सच यह है कि मैं भी आदमी हूँ और बीसवीं सदी का आदमी हूँ। मैं बहुत जागा हुआ न सही, मगर बिलकुल सोया हुआ भी नहीं हूँ, मैं भी अपने मुल्क और क़ौम को बुलन्दी पर देखना चाहता हूँ। मैंने तारीख पढ़ी है और उससे इसी नतीजे पर पहुँचा हूँ कि मज़हब दुनिया में सिर्फ एक है और उसका नाम है—दर्द। मज़हब की मौजूदा सूरत धड़ेबंदी के सिवाय और कोई हैसियत नहीं रखती। खतने या चोटी से कोई बदल नहीं जाता। पूजा के लिए कलिसा, मसजिद, मन्दिर की मैं बिलकुल जरुरत नहीं समझता। हॉँ, यह मानता हूँ कि घमण्ड और खुदगरजी को दबाये रखने के लिए कुछ करना जरुरी है। इसलिए नहीं कि उससे मुझे जन्नत मिलेगी या मेरी मुक्ति होगी, बल्कि सिर्फ़ इसलिए कि मुझे दूसरों के हक़ छीनने से नफ़रत होगी। मुझमें खुदी का खासा जुज़ मौजूद है। यों अपनी खुशी से कहिए तो आपकी जूतियॉँ सीधी करुँ लकिन हुकूमत की बरदाश्त नहीं। महकूम बनना शर्मनाक समझता हूँ। किसी ग़रीब को जुल्म का शिकार होते देखकर मेरे खून में गर्मी पैदा हो जाती है। किसी से दबकर रहने से मर जाना बेहतर समझता हूँ। लेकिन खयाल हालतों पर तो फ़तह नहीं पा सकता। रोज़ी फ़िक्र तो सबसे बड़ी। इतने दिनों के बाद बड़े बाबू की निगाहे करम को अपनी ओर मुड़ता देखकर मैं इसके सिवा कि अपना सिर झुका दूँ, दूसरा कर ही क्या सकता था। बोला- जनाब, मेरी तरफ़ से भरोसा रक्खें। मालिक की खिदमत में अपनी तरफ़ से कुछ उठा न रक्खूँगा।
‘ग़ैरत को फ़ना कर देना होगा।’
‘मंजूर।’
‘शराफत के जज्बों को उठाकर ताक़ पर रख देना होगा।’
‘मंजूर।’
‘मुखबिरी करनी पड़ेगी?’
‘मंजूर।’
‘तो बिस्मिल्लाह, कल से आपका नाम उम्मीदवारों की फ़ेहरिस्त में लिख दिया जायेगा ।’
मैंने सोचा था कल से कोई जगह मिल जायेगी। इतनी जिल्लत क़बूल करने के बाद रोजी की फ़िक से तो आज़ाद हो जाऊँगा। अब यह हक़ीकत खुली। बरबस मुंह से निकला—और जगह कब तक मिलेगी?
बड़े बाबू हंसे, वही दिल दुखानेवाली हंसी जिसमें तौहीन का पहलू खास था—जनाब, मैं कोई ज्योतिषी नहीं, कोई फ़कीर-दरवेश नहीं, बेहतर है इस सवाल का जवाब आप किसी औलिया से पूछें। दस्तरखान बिछा देना मेरा काम है। खाना आयेगा और वह आपके हलक में जायेगा, यह पेशीनगोई मैं नहीं कर सकता।
मैंने मायूसी के साथ कहा—मैं तो इससे बड़ी इनायत का मुन्तज़िर था।
बड़े बाबू कुर्सी से उठकर बोले—क़सम खुदा की, आप परले दर्जे के कूड़मग्ज़ आदमी हैं। आपके दिमाग में भूसा भरा है। दस्तरखान का आ जाना आप कोई छोटी बात समझते हैं? इन्तज़ार का मज़ा आपकी निगाह में कोई चीज़ ही नहीं? हालांकि इन्तजार में इन्सान उमरें गुज़ार सकता है। अमलों से आपका परिचय हो जाएगा। मामले बिठाने, सौदे पटाने के सुनहरे मौके हाथ आयेंगे। हुक्काम के लड़के पढ़ाइये। अगर गंडे-तावीज का फ़न सीख लीजिए तो आपके हक़ में बहुत मुफ़ीद हो। कुछ हकीमी भी सीख लीजिए। अच्छे होशियार सुनारों से दोस्ती पैदा किजिए,क्योंकि आपको उनसे अक्सर काम पड़ेगा। हुक्काम की औरतें आप ही के मार्फ़त अपनी जरुरतें पूरी करायेंगी। मगर इन सब लटकों से ज्यादा कारगर एक और लटका है, अगर वह हुनर आप में है, तो यक़ीनन आपके इन्तजार की मुद्दत बहुत कुछ कम हो सकती है। आप बड़े-बड़े हाकिमों के लिए तफ़रीह का सामान जुटा सकते हैं !
बड़े बाबू मेरी तरफ़ कनखियों से देखकर मुस्कराये। तफ़रीह के सामान से उनका क्या मतलब है, यह मैं न समझ सका। मगर पूछते हुए भी डर लगता था कि कहीं बड़े बाबू बिगड़ न जाएं और फिर मामला खराब हो जाए। एक बेचैनी की-सी हालत में जमीन की तरफ ताकने लगा।
बड़े बाबू ताड़ तो गये कि इसकी समझ में मेरी बात न आयी लेकिन अबकी उनकी त्योरियों पर बल नहीं पड़े। न ही उनके लहजे में हमदर्दी की झलक फ़रमायी—यह तो ग़ैर-मुमकिन है किक आपने बाज़ार की सैर न की हो।
मैंने शर्माते हुए कहा—नहीं हुजूर, बन्दा इस कूचे को बिलकुल नहीं जानता।
बड़े बाबू—तो आपको इस कूचे की खाक छाननी पड़ेगी। हाकिम भी आंख-कान रखते हैं। दिन-भर की दिमागी थकन के बाद स्वभावत: रात को उनकी तबियत तफ़रीह की तरफ़ झुकती हैं। अगर आप उनके लिए ऑंखों को अच्छा लगनेवाले रुप और कानों को भानेवाले संगीत का इन्तज़ाम सस्ते दामों कर सकते हैं या कर सकें तो...
मैंने किसी क़दर तेज़ होकर कहा—आपका कहने का मतलब यह है कि मुझे रुप की मंड़ी की दलाली करनी पड़ेगी ?
बड़े बाबू—तो आप तेज़ क्यों होते हैं, अगर अब तक इतनी छोटी-सी बात आप नहीं समझे तो यह मेरा क़सूर है या आपकी अक्ल का !
मेरे जिस्म में आग लग गयी। जी में आया कि बड़े बाबू को जुजुत्सू के दो-चार हाथ दिखाऊँ, मगर घर की बेसरोसामानी का खयाल आ गया। बीवी की इन्तजार करती हुई आंखें और बच्चों की भूखी सूरतें याद आ गयीं। जिल्लत का एक दरिया हलक़ से नीचे ढकेलते हुए बोला—जी नहीं, मैं तेज़ नहीं हुआ था। ऐसी बेअदबी मुझसे नहीं हो सकती। (आंखों में आंसू भरकर) जरुरत ने मेरी ग़ैरत को मिटा दिया है। आप मेरा नाम उम्मीदवारों में दर्ज कर दें। हालात मुझसे जो कुछ करायेंगे वह सब करुँगा और मरते दम तक आपका एहसानमन्द रहूँगा।
-‘खाके परवाना’से

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,35,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",6,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,3,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,7,आषाढ़ का एक दिन,17,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,2,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,15,कमलेश्वर,6,कविता,1413,कहानी लेखन हिंदी,13,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,5,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,4,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,3,केशवदास,4,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,138,गजानन माधव "मुक्तिबोध",14,गीतांजलि,1,गोदान,6,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,2,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,2,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,30,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,72,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,5,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,25,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,3,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,6,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,23,नाटक,1,निराला,35,निर्मल वर्मा,2,निर्मला,38,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,174,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,133,प्रयोजनमूलक हिंदी,24,प्रेमचंद,40,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,86,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,5,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,7,भक्ति साहित्य,138,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,13,भीष्म साहनी,7,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,5,मलिक मुहम्मद जायसी,4,महादेवी वर्मा,19,महावीरप्रसाद द्विवेदी,2,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,11,मैला आँचल,4,मोहन राकेश,11,यशपाल,14,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,5,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,20,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,2,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,8,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,2,लघु कथा,118,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,33,विद्यापति,6,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,1,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,7,शमशेर बहादुर सिंह,5,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,5,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,53,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,1,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,28,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,39,समसामयिक हिंदी लेख,222,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,17,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,70,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",9,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,20,सूरदास,15,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,10,हजारी प्रसाद द्विवेदी,2,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,349,हिंदी लेख,504,हिंदी व्यंग्य लेख,4,हिंदी समाचार,164,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,86,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,6,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,18,hindi essay,341,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,102,hindi stories,656,hindi-gadya-sahitya,7,hindi-kavita-ki-vyakhya,15,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,14,kavyagat-visheshta,22,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,10,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,Rimjhim Class 3,14,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,sponsored news,10,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,39,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: बड़े बाबू - प्रेमचंद
बड़े बाबू - प्रेमचंद
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2010/01/premchand-stories-hindi_17.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2010/01/premchand-stories-hindi_17.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका