मेरे प्रिय मित्रो , मेरे ब्लॉग " मेरी दृष्टि से " के माध्यम से मैंने हिन्दी - साहित्य के रचना...
मेरे प्रिय मित्रो,
आशुतोष दुबे "सादिक "
मेरे ब्लॉग "मेरी दृष्टि से" के माध्यम से मैंने हिन्दी -साहित्य के रचनाकारों व उनके साहित्य तथा साहित्य के इतिहास के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों को नए संदर्भ में रख कर उसे विचारने का प्रयत्न किया है। इस कड़ी में मै सर्वप्रथम साहित्य के विशिष्ट रचनाकारों का सामान्य परिचय दे रहा हूँ,इसके बाद उनके ग्रंथो तथा साहित्य के इतिहास की समस्याओ पर विचार करूँगा । इस काम में आप लोगो का जो सहयोग मिल रहा है,उसके लिए मै बहुत अनुग्रहित हूँ। आपके सहयोग से ही मै इस कार्य को और उपादेय बना पाउँगा।
"साहित्य समाज का या व्यक्ति का दर्पण नही है"। यह बात किसी को अनुचित प्रतीत हो सकती है,किंतु उस पर विचारने की जरुरत है। साहित्यकार स्वयं जिस समाज से आता है,वह समाज(व्यक्ति) ही इतना कुंठित या खंडित है कि उसके द्वारा लिखा गया साहित्य भी कई स्तरों पर खंडित होगा। लेखक के सामने आर्थिक समस्याये है जिन्हें वह अनैतिक ढंग से पूरा करता है। डॉ.गोविन्द चातक का यह कथन सत्य प्रतीत होता है कि "सिधान्तः बड़े बड़े पदों और सरकारी कमेटियों में नामजदगी पद्मश्री और पुरस्कार प्राप्ति आदि कई प्रकार के प्रलोभनों में आज का लेखक आता रहा है । अभाव ग्रस्त मध्य वर्गीय भावना के प्रतिनिधि होने के कारण वह उन पर बुरी तरह झपटा है"। मै इस कार्य को वर्त्तमान सन्दर्भ में अनुचित नही देख पाता क्योंकि बिना बुनियादी कारणों को मिटाये बिना कोई व्यक्ति (साहित्यकार) ऐसा ही खंडित होगा। आज किसी भी जगह राष्ट्रिय स्तर पर सेमिनारों के आयोजित होने पर हमारे ये तथाकथित साहित्यकार किस तरह की राजनीति करते है और ओछापन दिखाते है। यह बात जगजाहिर है। सामंती व्यवस्था के अत्याचारी होने पर इन साहित्यकारों (बुद्धिजीवियो) ने कभी कोई सार्थक आवाज नही उठाई । मै यहाँ उनका नाम नही लूँगा । कुछ प्रश्नों को जिन्हें जल्द ही सुलझा लिया जाना था,उन्हें और उलझाना इनकी नियति बन गई है। इनके पीछे कहीं न कहीं ख़ुद को प्रतिष्ठत करने की योजना चल रही है। और मजे की बात यह है कि ये साहित्यकार स्वयं को मनोविज्ञान का पंडित मानते है ,लेकिन स्वयं अपने मनोविज्ञान को समझ नही पाते।
ऐसे कितने ही प्रश्नों को मै इस ब्लॉग के माध्यम से विचार व्यक्त करूँगा,क्योंकि मै न तो लेखक हूँ या न पेशेवर आलोचक ,मै मात्र साधारण पाठक हूँ,इसलिए मै शायद उन चीजों को भी देख पाऊ जिन्हें हम स्वार्थवश नही देखना चाहते। अंत में मै अपनी त्रुटियो व कमियो के लिए क्षमायाचना करता हुए कृति-पाठको से सादर निवेदन करता हूँ,कि वे अपने अमूल्य सुझावों द्वारा इस सन्दर्भ में अपना योगदान दें, ताकि मै उस पर विचार कर और बेहतर लिख सकूँ ,इसी आशा में,
आपका मित्रआशुतोष दुबे "सादिक "
आप का स्वागत है....अगली पोस्ट का बेसब्री से इंतज़ार है...
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत सुन्दर लेख है,
जवाब देंहटाएं---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
हार्दिक स्वागत
जवाब देंहटाएंbahut sundar lekh...
जवाब देंहटाएंदोस्त ,क्या गजब की जानकारी ,विषये वस्तु वो भी हिन्दी साहित्य के कोहिनुरो के बारे में.
जवाब देंहटाएंइस के लिए आप को मेरी शुभकामनाये !
विस्तार से चर्चा फिर कभी............
आपका अपना
राजीव महेश्वरी
आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!
जवाब देंहटाएंमकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंमेरे तकनीकि ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित हैं
-----नयी प्रविष्टि
आपके ब्लॉग का अपना SMS चैनल बनायें
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue
आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....
जवाब देंहटाएंसुंदर लेख.आपका ब्लॉग बहुत हे सुंदर है. हिन्दी साहित्य का एक बेहतरीन पेशकश. सफल प्रयास.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
ापने बिलकुल सही कहा है अगर मैांपने निजी अनुभवऐसे महान सहित्यकारों के बारे में लिखने लगूँ तो शाय्द एक किताब बन जाये
जवाब देंहटाएंbahut sahi ...agle lekh ka intezaar rahega..
जवाब देंहटाएंयथार्थ परक सटीक आलेख बधाई
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर दस्तक दें
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http://kundkundkahan.blogspot.com
स्वागत है।
जवाब देंहटाएंराहुलजी हमारे प्रिय लेखक है। उनकी कई पुस्तकें मेरे पास हैं। बहुत कुछ सीखा है उन्हें पढ़ कर।
I will pass on your article introduced to my other friends, because really good!
जवाब देंहटाएंwholesale jewelry
AAGE K LEKHON KI PRATIKSHA RAHEGI..........
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