निराला

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सूर्यकांत त्रिपाठी " निराला " : एक परिचय सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला " ने अपना जीवन परिचय एक पंक्ति में देते हुए लिखा...


सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" : एक परिचय

सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला " ने अपना जीवन परिचय एक पंक्ति में देते हुए लिखा है ,"दुःख ही जीवन की कथा रही"। सच में निराला का जीवन दुखों से भरा था और उन दुखों को चुनौती देने ,उनसे जूझने और उन्हें परास्त करने में ही उनका निरालापन था। निराला जी का जन्म १८९६ में पंडित रामसहाय त्रिपाठी जी के घर में हुआ था। त्रिपाठी जी बंगाल में महिषादल राज्य के अंतर्गत मेदिनीपुर में राज्बत्ति में सिपाही थे। अपने पौरुष के कारण वे उस छोटे से जगह में प्रसिद्ध थे और उनका मान था। वे स्वभाव से कठोर तथा अत्यधिक अनुशासन प्रिय थे। प्रायः बालक सूर्यकुमार को छोटे छोटे अपराधो पर भी कठोर दंड दिया जाता था। १९१३ में रामसहाय जी का देहांत हो गया। उस समय निराला जी की आयु १३ बर्ष की थी।

निराला जी बचपन का नाम सूर्यकांत था। ११ बर्ष की आयु में आपका का विवाह मनोरमा देवी जी हो गया था। उस समय आप बिद्यार्थी थे। १९१४ का बर्ष निराला जी के जीवन में अत्यधिक दुखदायी था। उस बर्ष उन के गाँव गढ़कोला में जोकि जिला उन्नाव में था,भयंकर महामारी फैली । इस महामारी में उनके चाचा ,भाई और भाभी का देहांत हो गया। १९१८ में उनकी पत्नी का भी देहांत हो गया। १९ बर्ष की अल्प आयु में उनकी बेटी सरोज की मौत हो गई। पारिवारिक जीवन में ऐसे आघातों ने निराला का मानसिक संतुलन प्रभावित किया। निराला को सांसारिक जीवन से बिरक्ति सी हो गई। वे अत्यन्त बिक्षिप्त सी अवस्था में कभी लखनऊ ,कभी सीतापुर ,कभी काशी तो कभी प्रयाग का चक्कर लगाते रहे । १९५० से वे दारागंज ,प्रयाग में रहने लगे। वही १५ अक्टूबर १९६१ को इनका देहांत हुआ। अनेक अवरोधों और दैवी बिपत्तियो से खिन्नता के बावजूद निराला जीवन पर्यंत साहित्य -रचना से कभी उदासीन नही हुए।
निराला का जीवन और रचनात्मक जीवन ,दोनों ही संघर्ष से भरा हुआ था। उनका स्वाभिमान ,उनकी करुणा ,उनकी साफगोई और साहित्यिक और उच्चतर जीवन मूल्य के लिए उनकी अडिगता उनके संबंधो के आड़े आई. वे टूट गए परन्तु झुके नही :

भर गया है जहर से/ संसार जैसे हार खाकर /देखते है लोग लोगो को /सही परिचय पाकर
************************************************
दिए है मैंने जगत को फूल -फल/ किया है अपनी प्रभा से चकित -चल/ पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल- /ठाट जीवन का वही /जो ढह गया है


निराला की रचनाये: (१) खंड काव्य: तुलसीदास
(२)मुक्तक -काव्य: अनामिका ,परिमल ,गीतिका ,कुकुरमुत्ता ,बेला, नए -पत्ते ,अर्चना ,आराधना, गीत-गुंज तथा सांध्य-बेला ।
(३) उपन्यास : अप्सरा ,अलका ,प्रभावती।
(४) कहानी -संग्रह : लिली ,सखी,सुकुल की बीवी तथा चतुरी चमार।
(५)रेखा -चित्र : कुल्ली -भाट, बिल्लेसुर बकरिहा।
(६)जीवनी: राणा-प्रताप ,प्रहलाद और भीष्म

COMMENTS

Leave a Reply: 14
  1. निराला जी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा! धन्यवाद!

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  2. बहुत अच्छी जानकारी दे आपने..पढ़ कर अच्छा लगा

    जवाब देंहटाएं
  3. Bahut achhchha prayash hai...
    Aur writers ke bare me bhi aasha hai padhane ko milega .....

    Regards

    जवाब देंहटाएं
  4. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  5. niraalaa ji ne sahity ke vedik bhav vidhaa- atukaant kavitaa kaa prachalan kiyaa tathaa saahity ko va kavitaa ko Mukt chhand va swachchhand kiyaa. pandity evam shaastreey chhand baddhataa se kavita ko mukt karne va atukaant kavitaa ko sthaapit karne ke liye unhen sadaa yaad kiyaa jaayegaa.
    Niraalaji ke is aandolan ko aage badhaate hue Dr. Rangnaath Misra 'saty" ne AGEET
    Kavitaa Vidhaa kaa 1966 ke prachalan kiyaa . YAH Lambe-lambe geeton ke sthaan par aaj kee atyavashykataa "SANkshipttaa " ko letee hai. Sirf
    5 se 10 panktiyaan kee kavitaa. for exam.--
    jeevan nirantar srajan kaa naam hai,
    srajan kee nirantartaa rukne par,
    jeevan thahar jaataa hai;
    thaharnaa AGATI hai,
    GATI vinaa,
    Jeevan kahaan rah paataa hai.
    dr.shyam gupta

    जवाब देंहटाएं
  6. drshyam guptaa 23,feb commeent का हिन्दी अनुबाद---अगीत कविता--

    निराला जी ने साहित्य के वेदिक भावविधा -अतुकान्त कविता का प्रचलन किया तथा साहित्य को व कविता को मुक्त छन्द व स्वच्छंन्द किया. इस विधा की स्थापना के लिये उन्हें सदा याद किया जायेगा, निराला के इस आन्दोलन को आगे बढाते हुए डा रन्ग नाथ मिश्र ’सत्य’ ने अगीत कविता विधा का १९६६ में प्रचलन किया. यह लम्बे लम्बे अतुकान्त गीतों के स्थान पर आज की आवश्यकता सन्क्षिप्तता को लेती है. सिर्फ़ ५ से १० पन्क्तियों की कविता. उदाहरणार्थ---
    ऊपर के अगीत का हिन्दी परिवर्तन--

    जीवन निरन्तर स्रजन का नाम है,
    स्रजन की निरन्तरता रुकने पर,
    जीवन ठहर जाता है :
    ठहरना अगति है,
    गति बिना -
    जीवन कहां रह पाता है ।

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  7. jankari pakar khush hoon ... mere liye ye bahut labhdayak raha hai ... thanx to the whole team !

    जवाब देंहटाएं
  8. nirala g par maine P.Hd ke kerya kiya hai. kya mein apni rachna prakashan bhej sakti hu. yadi haan to mail address bhejen. thank u.

    जवाब देंहटाएं
  9. जानकारी बहुत ही लाभदायक है.

    जवाब देंहटाएं
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